Tag Archives: बोल वचन

जीवन का उद्देश्य क्या है ? (Confusing…)

    आखिर इस जीवन का उद्देश्य क्या है, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। यह प्रश्न मेरे अंतर्मन ने मुझसे पूछा तो मैं सोच में पड़ गया कि वाकई क्या है इस जीवन का उद्देश्य… ?

    सबसे पहले मैं बता दूँ कि मैं मानसिक और शारीरिक तौर पर पूर्णतया स्वस्थ हूँ और मैं विषाद या उदासी की स्थिती में भी नहीं हूँ, बहुत खुश हूँ। पर रोजाना के कार्यकलापों और जीवन के प्रपंचों को देखकर यह प्रश्न अनायास ही मन में आया।

    थोड़ा मंथन करने के बाद पाया कि मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं पता है, कि जीवन का उद्देश्य क्या है, क्या हम निरुद्देश्य ही जीते हैं, हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है।

    जैसे कि मैंने बचपन जिया फ़िर पढ़ाई की, मस्तियाँ की फ़िर नौकरी फ़िर शादी, बच्चे और अब धन कमाना, और बस धन कमाने के लिये अपनी ऐसी तैसी करना। थोड़े वर्ष मतलब बुढ़ापे तक यही प्रपंच करेंगे फ़िर वही जीवन चक्र जो कि मेरे माता-पिता का चल रहा है वह होगा और जिस जीवन चक्र में अभी मैं उलझा हुआ हूँ, उस जीवन चक्र में उस समय तक मेरा बेटा होगा।

    यह सब तो करना ही है और इसके पीछे उद्देश्य क्या छिपा है, कि परिवार की देखभाल, उनका लालन पालन, बच्चों की पढ़ाई फ़िर अपनी बीमारी और फ़िर सेवानिवृत्ति और फ़िर अंत, जीवन का अंत। पर फ़िर भी इस जीवन में हमने क्या किया, यह जीवन तो हर कोई जीता है। समझ नहीं आया।

    यह सब मैंने अपने गहन अंतर्मन की बातें लिख दी हैं, मैं दर्शनिया नहीं गया हूँ, केवल व्यवहारिक होकर चिन्तन में लगा हुआ हूँ, और ये चिन्तन जारी है, जब तक कि जीवन का उद्देश्य मिल नहीं जाता है।

इंडिब्लॉगर पर वोट कैसे दें ? (Tutorial for Voting on Indiblogger)

    मैंने पिछली पोस्ट [आखिर हिन्दी ब्लॉगर वोट देने में इतने कंजूस क्यों हैं ?] लिखी थी तो कुछ ईमेल और टिप्पणियों से मुझे लगा कि बहुत सारे ब्लॉगर्स को पता ही नहीं है कि इंडिब्लॉगर में वोट कैसे दिया जाता है।

    इंडिब्लॉगर में वोट देने के लिये पहले अपने ब्लॉग को इंडिब्लॉगर पर साइन अप  करवाना होता है, फ़िर मानवीय प्रक्रिया से इसे अनुमोदित किया जाता है।

    इसमें आप पहले इंडिब्लॉगर की साईट पर जायें फ़िर साईन इन करें और फ़िर इंडिवाईन पर चटका लगायें और बायीं तरफ़ Trending Topics में प्रतियोगिताओं की जानकारी दी होती है। जैसे कि अभी नया टॉपिक है ३ जी लाईफ़ ब्लॉगर कॉन्टेस्ट, पर चटका लगायें, तो आपको इस प्रतियोगिता की सारी प्रविष्टियाँ दिखने लगेंगी।

    फ़िर जिस पोस्ट को वोट देना हो उस पोस्ट के नीचे बटन दिखाई देगा [View post to Promote] । इस पर चटका लगाने से पोस्ट नई विन्डों में खुल जायेगी, उसे पढ़ने के बाद वापिस इंडिब्लॉगर वाली विन्डो में जाइये। [View post to Promote] वाला बटन अब [Promote This Post] हो जायेगा, अब इस बटन पर चटका लगाईये, तो वोट के नंबर बढ़ जायेंगे और [Promoted] लिखा हुआ आ जायेगा। बस हो गया आपका वोट।

    आप सीधे इन लिंकों पर चटका लगाकर भी साईन इन करने के बाद वोट दे सकते हैं।

प्यार में बहुत उपयोगी है ३ जी तकनीक (Use of 3G Technology in Love..)

पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से (Problems of Husband by 3 G Technology)

आखिर हिन्दी ब्लॉगर वोट देने में इतने कंजूस क्यों हैं ?

   मैंने इंडिब्लॉगर में अपनी दो पोस्टें लगायी हैं, और सभी पाठकों और ब्लॉगरों से निवेदन किया था कि कृप्या पोस्ट पर वोटिंग करें, पर हमारे हिन्दी ब्लॉगर बहुत ही कंजूस हैं।

    अगर पोस्ट पसंद नहीं आई तो कम से कम टिप्पणी करके ये तो बता दीजिये कि भई आपकी पोस्ट अच्छी नहीं है, जरा अच्छा लिखिये, और यह प्रतियोगिता के काबिल नहीं है, आपने क्यों प्रतियोगिता में भाग लिया, इसलिये हमने वोटिंग नहीं की।

    हिन्दी ब्लॉग जगत से निवेदन है कि देखिये हमारी दो प्रविष्टियाँ हमने इंडिब्लॉगर “टाटा डोकोमो ३जी लाईफ़ प्रतियोगिता” में दी हैं, अगर आपको पसंद आती हैं तो इनको प्रमोट कीजिये, इस प्रतियोगिता में कुल ९५ प्रविष्टियाँ हैं, और हिन्दी ब्लॉग जगत से केवल ३ प्रविष्टियाँ हैं, जिसमें से दो मेरी हैं।

    यहाँ पर जिसको ज्यादा वोट होंगे उसके जीतने के ज्यादा अवसर होंगे। हिन्दी को आगे बढ़ाईये और हमारी दोनों प्रविष्टियों पर पसंद के चटके लगाईये। हर इंडिब्लॉगर सदस्य हर प्रविष्टी को दो वोट दे सकता है, मतलब कि दो बार प्रमोट कर सकता है।

    निम्न दो प्रविष्टियों हमने सम्मिलित की हैं, इन पर चटका लगाकर प्रविष्टी पढ़कर दो दो चटके लगाईये।

प्यार में बहुत उपयोगी है ३ जी तकनीक (Use of 3G Technology in Love..)

पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से (Problems of Husband by 3 G Technology)

शायद हमारी बात झूठी हो जाये कि हिन्दी ब्लॉगर वोट देने में कंजूस हैं !

हम विरोध करने से पीछे क्यों हटते जा रहे हैं ?

    आज सुबह से बहुत सारी पोस्टें पढ़ीं, जिसमॆं सुरेश चिपलूनकर जी की पोस्ट ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। क्यों हम लोग विरोध करने से पीछे हटते जा रहे हैं ?

    यहाँ मैं केवल किसी एक मुद्दे के विरोध की बात नहीं कर रहा हूँ, यहाँ मैं बात कर रहा हूँ हर विरोध की, चाहे वह कहीं पर भी हो, गलत बात का विरोध, घर में, बाहर, कार्य स्थान पर कहीं पर भी ! क्यों ?

    मानसिकता क्यों ऐसी होती जा रही है कि हमें क्या करना है, जो हो रहा है होने दो, विरोध दर्ज करवाने से भी क्या होगा, वगैराह वगैराह, क्या यही हमारी भारतीय संस्कृति रही है !!

    या यह प्रवृत्ति हम धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता से उधार लेकर अपने जीवन में पूरी तरह से उतार चुके हैं, मन उद्वेलित है, कुछ समझ नहीं आ रहा है।

यह पोस्ट शायद १ नवंबर को लिखी थी, पर व्यस्तता और कुछ आलस्य के कारण छाप नहीं पाया।

दीवाली आते ही ए.टी.एम. खाली… क्या आर.बी.आई. को ए.टी.एम. के लिये नियम निर्देशिका नहीं बनानी चाहिये।

    out of service atm दीवाली का त्यौहार शुरु हो चुका है, और खरीदारी का दौर शुरु हो चुका है, वैसे तो प्लास्टिक करंसी का ज्यादा उपयोग हो रहा है पर बहुत सारे लोग क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से भुगतान नहीं लेते और बहुत सारे उपभोक्ता कार्ड का उपयोग करने से डरते हैं, इसलिये वे लोग नकद व्यवहार ही करते हैं।

    नकद व्यवहार के लिये उपभोक्ता ए.टी.एम. पर ज्यादा निर्भर है, क्योंकि आजकल अगर बैंक में जाकर पैसे निकालना हो तो ज्यादा समय लगता है, और ए.टी.एम. से बहुत ही कम। बैंक में जाकर नकद निकालने का समय १०-१५ मिनिट हो सकता है, और फ़िर चेकबुक साथ में ले जाना होती है, पर ए.टी.एम में अपना कार्ड स्वाईप किया और अपना कूटशब्द डालते ही नकद आपके हाथ में होता है।

    मंदी के बाद की यह पहली दीवाली है लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं, बाजार सजे हुए हैं और लोगों के चेहरे पर खुशी है। अक्सर देखा जा रहा है कि त्यौहार के समय ए.टी.एम. नकदी की समस्या से झूझ रहे होते हैं। ए.टी.एम. के बाहर एक बोर्ड लगा दिया जाता है “ए.टी.एम. अस्थायी तौर पर बंद है”, पर इसका कोई कारण नहीं लिखा होता है।

    जैसे बैंकों के लिये नकद संबंधी नियम हैं, या बैंके नकद कम न पड़े इसका ध्यान रखती हैं, तो उन्हें ए.टी.एम. का भी नकद प्रबंधन अच्छे से करना चाहिये। इसके लिये आर.बी.आई. को नियम निर्देशिका बनाना चाहिये कि नकद के अभाव में ए.टी.एम. बंद ना हों, नकद प्रवाह के लिये किसी को जिम्मेदार बनाना ही चाहिये, जिससे आम जनता को तकलीफ़ नहीं हो।

मशीनी युग में भी मानसिक चेतना जरुरी (Consciousness in the machine age)

    आज के मशीनी युग में हम सभी लोग पूरी तरह से मशीनों पर निर्भर हो चुके हैं, सोचिये अगर बिजली ही न हो तो क्या ये मशीनें हमारा साथ देंगी। या फ़िर वह मशीन ही बंद हो गई हो जिस पर हम निर्भर हों।

    बात है कल कि सुबह ६.२५ की मेरी उड़ान थी चैन्नई के लिये, मैंने मोबाईल में दो अलार्म लगाये एक ३.५० का और एक ४.०० बजे, मेरी चेतन्ती भी थी कि मुझे जल्दी उठना है, इसलिये बारबार में उठकर समय देख रहा था, सुबह ३ बजे एक बार आँख खुली फ़िर सो गया कि अभी तो एक घंटा है। फ़िर अलार्म नहीं बजा पर मानसिक चेतना ने मुझे उठाया कि देखो समय क्या हुआ है, जिस मोबाईल में अलार्म लगाया था वह तो सुप्ताअवस्था में पढ़ा था याने कि बंद था, फ़िर दूसरे मोबाईल में समय देखा तो सुबह के ४.१३ हो रहे थे। हम फ़टाफ़ट उठे और तैयार हो गये पर फ़िर भी अपने निर्धारित समय से १० मिनिट देरी से सारे कार्यक्रम निपट गये, और बिल्कुल ऐन समय पर हवाईअड्डे भी पहुँच गये, सब ठीक हुआ।

    परंतु अगर मानसिक चेतना सजग नहीं करती तो ? सारे कार्यक्रम धरे के धरे रह जाते अगर मोबाईल मशीन के ऊपर पूरी तरह से निर्भर होते। वैसे भी अगर कोई कार्यक्रम पूर्वनिश्चित हो और दिमाग में हो तो शायद हमारे मानस में भी एक अलार्म अपने आप लग जाता है परंतु कई बार यह विफ़ल भी हो जाता है। विफ़ल शायद तभी होता होगा कि हमारा मानस पूरी तरह से सुप्तावस्था में चला जाता होगा और चेतना का अलार्म मानस में दस्तक नहीं दे पाता होगा।

आधुनिक शिक्षा की दौड़ में कहाँ हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य (Can we save our indian culture by this Education ?)

    क्या शिक्षा में सांस्कृतिक मूल्य नहीं होने चाहिये, शिक्षा केवल आधुनिक विषयों पर ही होना चाहिये जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो सकें या फ़िर शिक्षा मानव में नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक मूल्य की भी वाहक है।

कैथलिक विद्यालय में जाकर हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं –

यीशु मसीह देता खुशी

यीशु मसीह देता खुशी
करें महिमा उसकी
पैदा हुआ, बना इंसान
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान

नारे लगाओ, जय गीत गाओ
शैतान हुआ परेशान
ताली बजाओ, नाचो गाओ
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा…

गिरने वालों, चलो उठो
यीशु बुलाता तुम्हें
छोड़ दो डरना
अब काहे मरना
हुआ है ज़िन्दा यीशु मसीह
यीशु मसीह…

झुक जायेगा, आसमां एक दिन
यीशु राजा होगा बादलों पर
देखेगी दुनिया
शोहरत मसीह की
जुबां पे होगा ये गीत सभी के
यीशु मसीह..

कल के चिट्ठे पर कुछ टिप्पणियों में कहा गया था कि धार्मिक संस्कार विद्यालय में देना गलत है, तो ये कॉन्वेन्ट विद्यालय क्या कर रहे हैं, केवल मेरा कहना इतना है कि क्या इन कैथलिक विद्यालयों के मुकाबले के विद्यालय हम अपने धर्म अपनी सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरुप नहीं बना सकते हैं ? क्या हमारे बच्चों को यीशु का गुणगान करना और बाईबल के पद्यों को पढ़ना जरुरी है। पर क्या करें हम हिन्दूवादिता की बातें करते हैं तो हमारे कुछ लोग ही उन पर प्रश्न उठाते हैं, जबकि इसके विपरीत कैथलिक मिशन में देखें तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देगा।

यहाँ मैं कैथलिक विद्यालयों की बुराई नहीं कर रहा हूँ, मेरा मुद्दा केवल यह है कि जितने संगठित होकर कैथलिक विद्यालय चला रहे हैं, और समाज की गीली मिट्टी याने बच्चों में जिस तेजी से घुसपैठ कर रहे हैं, क्या हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ इन कैथलिक विद्यालयों के साथ स्वस्थ्य प्रतियोगिता नहीं कर सकते।

“हिन्दुत्व” पढ़ाने वाले भारतीय संस्कृति के विद्यालयों की कमी क्यों है, हमारे भारत् में..?

    एक् बात मन में हमेशा से टीसती रही है कि हम लोग उन परिवारों के बच्चों को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो कॉन्वेन्ट विद्यालयों में पढ़े होते हैं, वहाँ पर आंग्लभाषा अनिवार्य है, उन विद्यालयों में अगर हिन्दी बोली जाती है तो वहाँ दंड का प्रावधान है। वे लोग अपनी संस्कृति की बातें बचपन से बच्चों के मन में बैठा देते हैं।

    पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ये विद्यालय हमें हमारी भारतीय संस्कृति से दूर ले जा रहे हैं, हमारे भारतीय संस्कृति के विद्यालयों में जहाँ तक मैं जानता हूँ वह हैं केवल “सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित”, “गोपाल गार्डन, इस्कॉन द्वारा संचालित” ।

    और किसी हिन्दू संस्कृति विद्यालय के बारे में मैंने नहीं सुना है जो कि व्यापक स्तर पर हर जिले में हर जगह उपलब्ध हों। मेरी बहुत इच्छा थी कि बच्चे को कम से कम हमारी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये, आंग्लभाषा पर अधिकार हिन्दुत्व विद्यालयों में भी हो सकता है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गोपाल गार्डन विद्यालय, वहाँ के बच्चों का हिन्दी, संस्कृत और आंग्लभाषा पर समान अधिकार होता है और उनके सामने कॉन्वेन्ट के बच्चे टिक भी नहीं पाते हैं।

    हमारे धर्म में लोग मंदिर में इतना धन खर्च करते हैं, उतना धन अगर शिक्षण संस्थानों में लगाया जाये और पास में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाये तो बात ही कुछ ओर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षैत्र में उग्र आंदोलन की जरुरत है। नहीं तो आने वाले समय में हम और हमारे बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति भूलकर पश्चिम संस्कृति में घुलमिल जायेंगे।

    याद आती है मुझे माँ सरस्वती की प्रार्थना जो हम विद्यालय में गाते थे, पर आज के बच्चों को तो शायद ही इसके बारे में पता हो –

माँ सरस्वती या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||

अगर हमारे मास्साब को ७,८,१३ के पहाड़े और विज्ञान की मूल बातें न पता हों तो हमारे देश के बच्चों का भविष्य क्या होगा ..!

    खबर है थाणे महाराष्ट्र प्रदेश की (Thane civic teachers flunk surprise test) कि शिक्षा विभाग के सरकारी विद्यालयों में महकमे ने कुछ अध्यापकों से उनके विषय से संबंधित मूल प्रश्न पूछे, जैसे कि ७,८,१३ के पहाड़े और रसायन विज्ञान के मूल सूत्र जो कि वे लगभग पिछले १५-२० वर्षों से बच्चों को पढ़ाते रहे हैं।

    सरकारी महकमा भी सोच रहा होगा कि कैसे नकारा मास्टर लोग हैं हमारे यहाँ के जो नाम डुबाने में लगे हैं। बताईये उन बच्चों का क्या भविष्य होगा जो इन विद्यालयों में इन मास्साब लोगों से पिछले १५-२० वर्षों से पढ़ रहे हैं। चैन की दो वक्त की रोटी मिलने लगे तो क्या मानव को अपने कर्त्तव्य से इतिश्री कर लेना चाहिये।

    इससे अच्छा तो सरकार को विद्यालयों में शिक्षकों को निकालकर नये पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों को भर्ती कर लेना चाहिये, कम से कम बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न तो नहीं लगेगा। अगर ऐसे मास्साब लोग हमारे विद्यालय में होंगे तो हमें हमारी तरक्की से वर्षों पीछे ढकेलने से कोई नहीं रोक सकता। इसके लिये केवल वे मास्साब ही जिम्मेदार नहीं हैं, जिम्मेदार हैं प्रशासन से जुड़ा हर वह व्यक्ति जो कि बच्चों की शिक्षा के लिये सरकारी महकमे से जुड़े हैं।

   यह स्थिती केवल इसी जिले की नहीं होगी यह स्थिती देश के हर जिले की होगी, इसकी पूरी पड़ताल करनी चाहिये ।

आखिर क्या करना चाहिये ऐसे मास्साबों का ? और क्या होगा हमारे बच्चों का भविष्य ?

(ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करके पूरा समाचार पढ़ा जा सकता है।)

पत्नी ने रिश्वतखोर पति का भंडाफ़ोड़ किया..काश हर घर में हो..कितना सही..चिंतन..? [Fiesty wife exposes bribe – taking hubby]

    जी हाँ यह सच है, कल के मुंबई मिरर में “Fiesty wife exposes bribe – taking hubby” इस घटना का ब्यौरा दिया गया है। पूरी  खबर लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

    वाकई अगर पत्नी पति की रिश्वतखोरी को रोके, भारत देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का यह सबसे आसान तरीका लगता है। इस मुद्दे पर नारीवादी संगठनों को आगे आना चाहिये और नारियों को जागरुक करना चाहिये।

    जिस घटना को पढ़कर यह मैं लिख रहा हूँ उस घटना में पत्नी रिश्वत के पैसे से घर नहीं चलाना चाहती थी, और उसने पति को समझाया कि सीमित वेतन में अच्छे से जी सकते हैं, तो यह गलत काम क्यों करना। पत्नी ने पति को समझाया कि उसके पापा भी सरकारी नौकरी में थे और कभी भी रिश्वत के लालच में नहीं आये। पर पति की समझ में न आया, और उसकी रिश्वत की भूख बड़ती ही जा रही थी, एक दिन पति दो लाख रुपये लेकर आया तो पत्नी ने हंगामा कर दिया कि वह इस रिश्वत की रकम को घर में नहीं रहने देगी, और पति के न मानने पर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार संबंधी कागज लेकर पुलिस को दे दिये।

    प्रश्न अब यह है कि क्या पत्नी ने ठीक किया ? भ्रष्टाचारी पति का भंडाफ़ोड़ करके या उसे यह सब चुपचाप सहन कर लेना चाहिये था और भ्रष्ट धन से भौतिक सुख सुविधाओं का मजा लूटना चाहिये था ?