आखिर इस जीवन का उद्देश्य क्या है, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। यह प्रश्न मेरे अंतर्मन ने मुझसे पूछा तो मैं सोच में पड़ गया कि वाकई क्या है इस जीवन का उद्देश्य… ?
सबसे पहले मैं बता दूँ कि मैं मानसिक और शारीरिक तौर पर पूर्णतया स्वस्थ हूँ और मैं विषाद या उदासी की स्थिती में भी नहीं हूँ, बहुत खुश हूँ। पर रोजाना के कार्यकलापों और जीवन के प्रपंचों को देखकर यह प्रश्न अनायास ही मन में आया।
थोड़ा मंथन करने के बाद पाया कि मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं पता है, कि जीवन का उद्देश्य क्या है, क्या हम निरुद्देश्य ही जीते हैं, हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है।
जैसे कि मैंने बचपन जिया फ़िर पढ़ाई की, मस्तियाँ की फ़िर नौकरी फ़िर शादी, बच्चे और अब धन कमाना, और बस धन कमाने के लिये अपनी ऐसी तैसी करना। थोड़े वर्ष मतलब बुढ़ापे तक यही प्रपंच करेंगे फ़िर वही जीवन चक्र जो कि मेरे माता-पिता का चल रहा है वह होगा और जिस जीवन चक्र में अभी मैं उलझा हुआ हूँ, उस जीवन चक्र में उस समय तक मेरा बेटा होगा।
यह सब तो करना ही है और इसके पीछे उद्देश्य क्या छिपा है, कि परिवार की देखभाल, उनका लालन पालन, बच्चों की पढ़ाई फ़िर अपनी बीमारी और फ़िर सेवानिवृत्ति और फ़िर अंत, जीवन का अंत। पर फ़िर भी इस जीवन में हमने क्या किया, यह जीवन तो हर कोई जीता है। समझ नहीं आया।
यह सब मैंने अपने गहन अंतर्मन की बातें लिख दी हैं, मैं दर्शनिया नहीं गया हूँ, केवल व्यवहारिक होकर चिन्तन में लगा हुआ हूँ, और ये चिन्तन जारी है, जब तक कि जीवन का उद्देश्य मिल नहीं जाता है।