मेरी तस्वीर जो केवल,
मेरे मन के आईने में नजर आती है,
दुनिया को कुछ ओर दिखता है,
पर अंदर कुछ ओर छिपा होता है,
मेरा स्वरुप पारदर्शी है,
पर आईने को सब पता होता है,
जैसा मैं हूँ वैसा मैं ,
तत्व दुनिया को दिखाता नहीं हूँ,
आईना आईना होता है,
पर वो अंतरतम में कहीं होता है,
तस्वीर चमकती रहती है,
जिसे दुनिया तका करती है।