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मेरी तस्वीर जो केवल मेरे मन के आईने में नजर आती है….मेरी कविता ….. विवेक

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मेरी तस्वीर जो केवल,

मेरे मन के आईने में नजर आती है,

दुनिया को कुछ ओर दिखता है,

पर अंदर कुछ ओर छिपा होता है,

मेरा स्वरुप पारदर्शी है,

पर आईने को सब पता होता है,

जैसा मैं हूँ वैसा मैं ,

तत्व दुनिया को दिखाता नहीं हूँ,

आईना आईना होता है,

पर वो अंतरतम में कहीं होता है,

तस्वीर चमकती रहती है,

जिसे दुनिया तका करती है।

आज मन धीर है, गंभीर है…… मेरी कविता…..विवेक

आज मन धीर है,

गंभीर है,

भविष्य के गर्भ में,

क्या है,

वो जानने के लिये,

अधीर है,

कोई चिंता नहीं है,

फ़िर भी,

बहुत ही बैचेन है,

जाने क्यों,

जिंदगी की धार में,

बहते हुए,

जिंदगी की धार पर,

चलते हुए,

आज मन धीर है,

गंभीर है।

हाँ तुमने आकर, मेरी जिंदगी सँवार दी है …

तुमने मेरे अंदर,
प्रेम पल्लवित किया है,
तुमने मेरे अंदर्,
ऊष्मा भर दी है
तुमने जिंदगी को नये,
तरीके से जीना सिखाया है
हाँ तुमने आकर,
मेरी जिंदगी सँवार दी है

अब तुम,
मुझसे अलग नहीं हो,
तुम मुझमें इस तरह,
सम्मिलित हो गयी हो
इसलिये तुम्हरा,
अहसास ही नहीं होता
अहसास तो उसका होता,
है जो अपने मैं नहीं होता
हाँ तुमने आकर,
मेरी जिंदगी सँवार दी है ।

लगभग १० साल बाद वापिस से कविता लिखी है, “इंतजार है उस दिन का”… इंतजार है आपकी प्रतिक्रियाओं का

इंतजार है उस दिन का

जब तुम अपनी बाँहों मॆं

भरकर मुझे गर्मजोशी से

प्यार से दिल से मन से

मुझे अलसुबह उनींदे बिस्तर से

उठाओगी, और हल्के से कहोगी

प्रिये सुप्रभात, तुम्हारे लिये

मैंने नई दुनिया गढ़ी है

वो तुम्हारा इंतजार कर रही है…