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Petya ransomware attack पेटया रैनसमवेयर अटैक

केवल 6 हफ्ते पहले ही वानाक्राई रैनसमवेयर से पूरा विश्व लड़ रहा था और अब फिर से पूरा विश्व एक और रैनसमवेयर अटैक याने कि Petya ransomware attack  से थर्रा रहा है लोग अभी वानाक्राई के अटैक को भूल भी नहीं पाए थे की पेटया रैनसमवेयर आ गया।

Petya Ransomware Attack
Petya Ransomware Attack

यह साइबर आक्रमण सबसे पहले यूक्रेन में हुआ था, साथ ही Central Bank, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, यहां तक की चरनेबल न्युक्लियर फैसिलिटी और बहुत सारी यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और यहां तक कि आस्ट्रेलिया की भी संस्थाएं चपेट में है अभी रैनसमवेयर आक्रमण हुए कुछ ही समय बिता है और लगभग 2000 आक्रमण रिकॉर्ड किए जा चुके हैं अभी तक 64 देशों से रैनसमवेयर अटैक की सूचना आ चुकी है।

अभी तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार पेटया रैनसमवेयर वायरस मॉडिफाई वर्जन है जो की गोल्डन आई और वानाक्राई एलिमेंट्स को मिलाकर बनाया गया है।

इस वायरस में गोल्डन आई वायरस जो की पूरी हार्ड डिस्क को एंक्रिप्ट ही नहीं करता था बल्कि पूरे नेटवर्क को अनुपयोगी बना देता था, साथ में वही विंडोज की नीली स्क्रीन जो कि वानाक्राई का फीचर है दिखाता है जिससे अब तक तीन लाख कंप्यूटर पूरे विश्व में संक्रमित हैं।

इसके पहले की माइक्रोसॉफ्ट अपने सिक्योरिटी पेच रिलीज कर पाता नए रैनसमवेयर वायरस के अटैक ने बहुत सारे कंप्यूटरों को संक्रमित कर दिया है और जिन कंप्यूटरों पर नए पैचेस आ भी गए हैं उनपर भी पेटया रैनसमवेयर आक्रमण कर सकता है।

लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी और सारे विश्व की साइबर सिक्योरिटी कंपनियां इस आक्रमण की तहकीकात में लगी हुई हैं। यहां तक कि कुछ शोधकर्ताओं ने अस्थायी तरीका इस वायरस से बचने का दिया है, पर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक रैनसमवेयर अटैक के 6 हफ्ते के बाद ही एक और बड़ा रैनसमवेयर का हमला कैसे हो गया?

जो भी इस आक्रमण के पीछे हैं, उनके ईमेल एड्रेस से जो भी बिटकॉइन रेनसम के रूप में ट्रांसफर होने वाले थे, उन सबको होस्ट कंपनीयों ने डिसेबल कर दिया है। इसका मतलब यह है कि अगर रैनसमवेयर के आक्रमण के कारण अगर कोई फिरौती में बिटकॉइन देता है तो वह उसका उपयोग नहीं कर पाएंगे, मतलब नगद नहीं मिल पाएगा।

बहुत सारे सबूत इस बात के भी मिले हैं कि गोल्डन आई पेटया रैनसमवेयर जिन लोगों ने भी फैलाया है, उनका मकसद फिरौती की रकम उगाहना नहीं था बल्कि डाटा को खराब करना था । जिस तरीके से रैनसम मांगी जा रही थी, उससे यह बात पता चली है । लेकिन जिन लोगों ने रैनसम दे भी दी उनके डाटा सुरक्षित मिल ही गए इसकी भी कोई रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है।

केवल 6 हफ्ते में इतना बड़ा रैनसमवेयर आक्रमण हुआ है जोकि वानाक्राई से भी ज्यादा तगड़ा था। अब इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाले निकट भविष्य में कोई और रैनसमवेयर अटैक नहीं होगा और अगर रैनसमवेयर अटैक हुआ तो हम उसके लिए कितने तैयार हैं। इस बार रैनसमवेयर से और ज्यादा लोग संक्रमित होंगे।

रैनसमवेयर अटैक से बचने के लिए आपको क्या करना होगा –

आप अपने ऑपरेटिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर के सारे नई पैचेस डाउनलोड कर लें । अपने ऑपरेटिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर अप टू डेट रखें और ध्यान रखें कि किसी भी लिंक पर क्लिक करें तो सोच समझकर करें।कोई भी ईमेल का अटैचमेंट डाउनलोड ना करें। केवल यह दो तरीकों से आपके कंप्यूटर में रैनसमवेयर का आक्रमण हो सकता है। अगर आपने इतना एहतियात रखा तो आप रैनसमवेयर वायरस के आक्रमण से बच सकते हैं।

अच्छी नींद का कारोबार

कौन कितना दौलतमंद है, ताकतमंद है, इसे जानने के लिए उसकी नींद पर गौर करें। आजकल नींद का कारोबार प्रगति पर है और तरह तरह के शोध और प्रयोग हो रहे हैं।

क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कोई आवाज़ लगाता हुआ आये, नींद ले लो नींद, इतने रुपए किलो नींद ले लो। तो क्या आप कभी नींद खरीद पाएंगे। या बाजार जाएं और बाजार से अपने लिए कुछ घंटों की आरामदायक नींद खरीद कर ला पाएं। हो सकता है कि तकनीक के कारण भविष्य में यह भी संभव हो।

इस बारे में बहुत शोध हुए हैं जिसमें नींद को केंद्र में रखा गया है, और पता लगाने की कोशिश की गई कि नींद गहरी आने के लिए या कितने समय सोना चाहिए, उसके लिए किन तत्वों का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन शोध भी तभी काम आते हैं जब हम उनके बताए गए रास्तों को बहुत ही गंभीरता से अपने जीवन में उतारें।

नींद ना आने के कारण सबसे बड़ी समस्या होती है हमारा दिन, हमारी दिनचर्या पूरी तरह से हमारी नींद पर निर्भर करती है क्योंकि नींद ना आने से हम हमेशा ही कहीं ना कहीं नींद के नशे में कुछ प्रतिशत हमेशा रहते हैं। जिससे हम हमारे दिमाग को पूर्णतया अपने किसी काम में नहीं लगा पाते हैं, और हम कई बार कुछ चाहे-अनचाहे गलतियाँ कर ही देते हैं।

vividus mattress

केवल नींद लेना ही महत्वपूर्ण नहीं है। अच्छी नींद लेना महत्वपूर्ण है।अच्छी नींद के लिए अपने दिमाग को शांत रखना जरूरी है। नींद के लिए जो वातावरण चाहिए वह जरूरी है, जिसमें बिस्तर की गर्मी, सिर के नीचे लगाने वाला तकिया, ओढ़ने के लिए चादर और आप क्या पहन कर सो रहे हैं, इन सब की भी बहुत अहम भूमिका है। हमें समय से सोने के अलावा, हमारी नींद भी गहरी हो अच्छी हो, इस पर भी ध्यान देना चाहिए। अभी स्वीडिश ब्रांड होस्टन ने विविड्स नाम का 96 लाख रुपए का गद्दा बनाया है। जिसे वह कहते हैं कि यह सही तरह से नींद पूरी करने के लिए बनाया गया है, जिसके अंदर कोई भी गर्म करने वाली रबर या प्लास्टिक मटेरियल का उपयोग नहीं किया गया है और वह गद्दा केवल ऑर्डर पर बनाते हैं। कंपनी इस गद्दे को विश्व का सबसे बेहतरीन बिस्तर बता रही है।

 

Dreem Hedset
Dreem Hedset

आजकल ऐसी बहुत सी मशीनें आ रही हैं जो आपकी नींद को रिकॉर्ड करती है, जो बैंड आप हाथ में पहन लेते हैं या फिर कई ऐप है जो स्मार्टफोन में उपलब्ध हैं, जिससे पता चलता है कि आप किस प्रकार की नींद ले रहे हैं। लेकिन यह सारे गेजेट्स नींद अच्छी बनाने में सहायक नहीं हैं। अभी सिलिकॉन वैली में एक गैजेट डिजाइन हुआ है जो कि लगभग $400 में प्री ऑर्डर पर उपलब्ध है और उनका दावा है कि ड्रीम हेडसेट लगाने से आप बहुत गहरी नींद में सो पायेंगे। वैसे कई लोगों का मानना है कि सिल्क के तकिए के कवर हैं तो उससे नींद बहुत अच्छी आती है।

यह कहना वाकई बड़ा मुश्किल है कि नींद का गणित क्या है? नींद के कारोबार में हमें किस चीज का ध्यान रखना चाहिए? क्या हमें बराबर थकान होनी चाहिए या फिर हमें हमारे विचारों के ऊपर नियंत्रण करना चाहिए या जो हम पहनकर सोते हैं, ओढ़ते हैं बिछाते हैं, उनमें बदलाव किया जाना चाहिए। यह शायद बेहद निजी और गोपनीय अनुभव होते हैं और सब के लिए अलग अलग अनुभव होते हैं।

14 जून रक्तदान दिवस है Celebrating the Blood Donors #SharingLife

Celebrating the Blood Donors #SharingLife

Donating blood is not only a noble act but also a necessary one. Blood that matches the receiver’s blood group and which is safe to be used is difficult to find easily in hours of emergency. To promote this noble cause we celebrate 14th June as World Blood Donors Day.

On this day we express our gratitude towards the individuals who donate their blood with the hope of saving a precious life. To further support this cause a new app, named Life is also available on the Google Play Store. This app helps you locate donors and recipients in nearby places easily in hours of need.

Donating blood does not only let you save a life, but also lets you share your life with someone in need. It is an act of passing on something precious to someone who needs it more. So, let us all pledge to donate towards saving precious lives, and contribute towards making the world a better place.

#SharingLife

रक्तदान करना बहुत अच्छा काम है और हमें यह निश्चित अंतराल पर करते रहना चाहिए, जिससे हम हमारे समाज में रक्त के लिए हुई कमी को पूरा कर सकें।

हमें उन सभी व्यक्तियों के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए जो रक्तदान करके अनमोल जीवन को बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं। यह एक नया ऐप है लाइफ जो कि गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है, तो इस एप से आप अपने आसपास के रक्तदाताओं को या फिर जिनको जरूरत है उन लोगों को आराम से ढूंढ सकते हैं।

तो आइए हम भी प्रतिबद्ध हो की हम भी रक्तदान में सहयोग करेंगे जिस से हम कई अनमोल जीवन को बचा सकें। रक्तदान करने के पहले हमें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

1) अगर शराब का सेवन करते हैं तो 48 घंटे तक शराब का सेवन ना किया हो।

2) अगर धूम्रपान करते हैं तो कम से कम 4 घंटे तक धूम्रपान न किया हो ।

3) अगर कुछ खाया पिया हो तो वह कम से कम 3 घंटे पहले खाया पिया हो।

इंसान और अविष्कार

इंसान जबसे इस दुनिया में आया है तब से ही वह अपने अविष्कार का लोहा मनवाते आया है, पहले नग्न रहते थे, फूल पत्ती खाते थे, धीरे धीरे अपने को ढंकने के लिये फूल पत्तियों का उपयोग किया और जो जानवर उनको परेशान करते थे, इंसान ने जाना होगा कि जब जानवर जानवर को मारकर खा सकता है और इंसान को भी मारकर खा सकता है तो इंसान ने भी जानवर को मारा होगा और अपने आप को बचाया होगा। स्वाद के लिये जब मांस को पकाया होगा तो उसमें ज्यादा स्वाद आया होगा। उसी तरह से कंदमूल को भी जब आग पर पकाया तो उसका स्वाद बेहतर लगा होगा। तो ये सब पहले अविष्कार थे, धीरे धीरे इंसान ने अपनी जरूरत के लिये और भी चीजों को सोच समझकर बनाया, जैसे चाकू, चूल्हा, पहनावा और जानवरों को आवागमन का साधन बनाकर यात्रा करना।

इंसान और अविष्कार
इंसान और अविष्कार

यह बात हुई पुरातन काल की, तो उस समय इंसान के पास कुछ था ही नहीं तो इंसान ने सबसे पहले अपनी जरूरत की चीजों पर काम करना शुरू किया, जिससे उसे सुविधा हो और कम मेहनत में ज्यादा काम करे, जिन भी नई चीजों को बनाया गया उसे अविष्कार ही कहा जायेगा, क्योंकि वह दुनिया में पहले से उपलब्ध नहीं थी और उस अविष्कार के उपयोग से हर कोई लाभांवित हुआ।

जब अपनी जरूरत की चीजें पा ली गईं तब सबसे पहले बचने वाले समय के उपयोग के लिये खेलों, नाटक, गाने, नृत्य, चित्रकारी आदि का अविष्कार हुआ। इन सब विधाओं के आने से न केवल इंसान की क्षमताओं का पता चला बल्कि इंसान कितना कल्पनाशील हो सकता है, यह भी निखर कर सामने आया। कई चीजों में इंसान को बहादुरी दिखानी होती थी, इससे इंसान के साहस और बहादुरता को और निपुण किया गया।

हर अविष्कार के पीछे कोई न कोई तकलीफ हमेशा ही जुड़ी होती है, जब तक इंसान को तकलीफ नहीं होती है तब तक वह किसी अविष्कार के लिये उद्यत नहीं होता, इंसान में आलस्य की भावना शायद जरूरत के अविष्कारों के बाद से ही ज्यादा जोर देने लगी होगी। पहले शारीरिक श्रम होता था और इसके लिये शारीरिक क्षमताओं पर ध्यान दिया जाता था, शारीरिक क्षमताओं वाला श्रम और खेल दुनिया सामने देख सकती थी तो उससे किसी एक इंसान को बहादुर या साहसी मान लिया जाता था जो कार्य कोई अन्य नहीं कर सकता था या फिर दूसरों के लिये कठिन होता था। अब शारीरिक श्रम की मात्रा कम हो गई है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि अब तो बहुत सी मशीने इंसान ने बना ली हैं।

अब मानसिक श्रम ज्यादा है, जिसमें कोई आपके पास बैठा व्यक्ति भी आपकी क्षमताओं का आंकलन नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें कई बार तो किसी को पता ही नहीं होता है कि कौन ज्यादा मानसिक श्रम कर रहा होता है। अब तो खैर जैसे जैसे हम तकनीक जगत में उन्नत होते जा रहे हैं, वैसे वैसे मानसिक श्रम को भी विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जा रहा है।

शारीरिक श्रम के कार्यों में अधिक लोगों का जुड़ाव नहीं होता था, मतलब कि पहले ही आंकलन कर लिया जाता था कि इस कार्य के लिये कितने लोगों को श्रम लगेगा, उसमें भी अगर कोई अपने श्रम को बचाने के लिये अविष्कार कर ले तो उसे बेहतर माना जाता होगा। वैसे ही मानसिक श्रम में अपना समय और अच्छे से कार्य करने के लिये थोड़ा साहस अपने भीतर भरना होता है और हम नित नये अविष्कार कर सकते हैं। किसी को उन अविष्कारों के बारे में बतायें या न बतायें यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।

डेशबोर्ड पर भगवान God on Dashboard

आज ऑफिस आते समय अचानक ही एक कार जिस पर एल (L) का स्टीकर कार पर लगा था याने कि कोई नया बंदा गाड़ी चला रहा थी और उसकी कार में सीट पर भी पॉलीथीन चढ़ी हुई थी, उस कार में पीछे के काँच और डेशबोर्ड दोनों पर भगवान चिपका रखे थे और उन पर ताजे फूल भी चढ़ाये हुए थे। आश्चर्य तब और हुआ जब उसके डेशबोर्ड पर दो भगवान याने कि गणेश जी और बाला तिरूपति दोनों को विराजित देखा और ऊपर काँच पर हनुमान लटकते नजर आये।

Car Dashboard India
Car Dashboard India

अचानक ही मुझे ध्यान आया कि जब मैंने भी कार ली थी और मेरा ड्राईवर जिससे मैंने कार सीखी थी वो कार डेकोर के पास लेकर गया था और मुझे भगवान डेशबोर्ड पर लगाने के लिये कहा था, तो मैंने कहा कि मेरे भगवान इस दुकान पर नहीं मिलेंगे वो तो केवल उज्जैन में ही मिलते हैं और मेरे पास एक छोटी सी तस्वीर है मैं उस तस्वीर को ही कार को माईलोमीटर के पास रखकर काम चला लूँगा, और जब भी उज्जैन जाऊँगा तब वहाँ से महाकाल भगवान डेशबोर्ड पर लगाने वाले ले आऊँगा।

मैंने इसके बाद ध्यान से देखना शुरू किया तो पाया कि लगभग 90 प्रतिशत गाड़ियों में डेशबोर्ड पर भगवान विराजमान हैं, अगर डेशबोर्ड पर नहीं हैं तो वे किसी न किसी प्रकार से गाड़ी मैं मौजूदगी बनाये हुए हैं, या तो वे बैकमिरर पर लटके हुए हैं या फिर तस्वीर की शक्ल में विराजमान हैं। किसी ने डेशबोर्ड पर छोटे भगवान लगा रखे हैं तो किसी ने बड़ा मंदिर भी लगा रखा है, पर सभी धर्मों के चालकों ने अपने अपने भगवान गाड़ियों में लगा रखे हैं।

मुझे कभी गाड़ी में भगवान लगाने का सिद्धान्त ही समझ नहीं आया, पता नहीं कब क्यों और कहाँ से यह अवधारणा आई। अगर ऐसा ही होता तो कार खरीदते समय ही कार कंपनी डेशबोर्ड पर भगवान आपकी पसंद के अनुसार फिट करके दे देते। पहले के राजा लोग अपने रथ पर कोई ध्वज फहराते थे और शायद भगवान उनके ध्वज पर ही रहते थे। जैसे पुराने जमाने में लोग बैलगाड़ी वगैराह में जाते थे तब उनकी गाड़ी में या तो जगह नहीं होती थी या उनको पता नहीं था, परंतु मैंने कभी बैलगाड़ी में भगवान को नहीं देखा, शायद बैल को ही भगवान रूप मान लिया जाता होगा। चार पहिया कोई भी हो, मैंने अधिकतर गाड़ियों में भगवान को देखा है, बसों में तो अगरबत्ती भी जलाई जाती है।

शायद इसके पीछे की भावना यही होती होगी कि इतनी बड़ी मशीन एक इंसान ही चला रहा है तो भगवान आप कृपा रखना और कई लोग गाड़ी चलाने के पहले भगवान का नाम लेते हैं और उतरते समय भगवान का धन्यवाद भी करते हैं। मशीने कभी भी किसी भी कारण से खराब हो जाती हैं और ये मशीनें बहुत तेज चलती हैं तो वैसे ही दुर्घटना भी खतरनाक होती है। हो सकता है कि आने वाले समय में रॉकेट में भी भगवान विराजमान हों, विमान का हमें पता नहीं। आप भी अपने आस पास देखें और समझें कि भगवान आखिर डेशबोर्ड पर विराजमान क्यों होते हैं।

महाकाल में वीआईपी दर्शन VIP Darshan in Mahakal

वैसे मैं महाकाल की व्यवस्था पर लिखने से हमेशा ही बचता हूँ, क्योंकि लगता है कि इससे लोगों की आस्था कम होती है।

परंतु फिर भी इस पर आज लिख रहा हूँ, मैं हमेशा ही महाकाल में वीआईपी दर्शन करता हूँ, पहले इसका शुल्क 151 रूपये था और अब सुविधाओं के नाम पर इसे बढ़ाकर 250 रूपये कर दिया गया है। वीआईपी दर्शन इसलिये करता हूँ, कि इसमें दिया गया धन का दुरूपयोग नहीं हो सकता है, इसका हिसाब ऑडिट वगैराह में देखा जाता है, अगर दान पात्र में हम दान देते हैं तो हमें कोई सुविधा नहीं मिलती है एवं अगर पंडे पंडितों को सीधे देते हैं तो वह उनकी जेब में जाता है।

वीआईपी दर्शन का टिकट लेने के बाद वहीं पर जूते चप्पल स्टैंड पर हमने जूते उतारे, यहाँ पता चला कि अब ये जूता चप्पल स्टैंड केवल वीआईपी दर्शन के टिकट वालों के लिये ही है। दर्शन करने के बाद जब महाकाल से बाहर आने की बात आई तो पता चला कि बाहर जाने का एक ही रास्ता है, और वहाँ पर पैर न जलें इसके लिये कोई व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि मुझे और मेरे परिवार को अभी तक पैरों में जलन की तकलीफ सहन करना पड़ रही है।

जब वापिस जूते चप्पल लेने पहुँचे तो वहाँ पर सहायक प्रशासनिक अधिकारी का कार्यालय दिखा, हम पहुँचे वहाँ कि हमें शिकायत पुस्तिका दें, हमें शिकायत करनी है, तो हमें कहा गया कि यहाँ शिकायत पुस्तिका नहीं है, आपको 3 मंजिला महाकाल के प्रशासनिक भवन में जाना होगा। अधिकारी तो वहाँ थे नहीं, परंतु उनके बात करने के अंदाज से यह जरूर लगा कि बहुत से वीआईपी टिकट वाले लोग वहाँ आकर शिकायत करते हैं, परंतु शिकायत पुस्तिका के अभाव में बात सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है। वहाँ बैठे सारे लोग अपने मोबाईल में सिर घुसाये मिले।

बाबा महाकाल के हम भक्त हैं, और महाकाल में प्रशासन के नाम पर लूटने वाले लोग और मानवीयता को शर्मसार करने वाले प्रशासनिक अधिकारी जो कि अपने अपने ए.सी. केबिन में बैठकर सुस्ताते रहते हैं, उम्मीद है कि वे भी महाकाल के भक्त होंगे और भक्तों की तकलीफ को समझेंगे। शिकायत पुस्तिका केवल महाकाल प्रशासनिक कार्यालय में ही क्यों उपलब्ध है, यह तो वीआईपी दर्शन के दरवाजे पर भी उपलब्ध होनी चाहिये, जहाँ टिकट मिलते हैं उस काऊँटर पर भी उपलब्ध होनी चाहिये।

वीआईपी काऊँटर पर लिखा हुआ है कि कार्ड से भी भुगतान स्वीकार किया जाता है, परंतु जिस समय हम पहुँचे तो काऊँटर क्लर्क किसी और को बैठाकर कहीं चला गया था और उन सज्जन को कार्ड की स्वाईप मशीन ही नहीं मिल रही थी, और हमें यह भी कहा कि उन्हें कार्ड की स्वाईप मशीन का उपयोग करना ही नहीं आता है। समझ नहीं आता कि महाकाल प्रशासन हर जगह महाकाल भक्तों से शुल्क वसूलने में लगा है, जैसे कि भस्मारती पर अब ऑनलाईन 100 रूपये और ऑफलाईन 10 रूपये का शुल्क वसूला जा रहा है। परंतु भक्तों को सुविधाओं के नाम पर केवल असुविधा ही मिल रही है।

महाकाल केवल अब वीआईपी लोगों के लिये ही सुविधाजनक है, सामान्य भक्त के लिये प्रशासन सारी मानवीय मूल्यों को भूल चुका है। उम्मीद है कि मेरी यह शिकायत महाकाल प्रशासक और उज्जैन कलेक्टर तक जरूर पहुँचेगी।

मेरे फ्लैट (Flat) का सपना जो सपना ही रह गया

अपने शहर उज्जैन के ऑनलाईन अखबार का एडीशन रोज ही पढ़ता हूँ, आज एक खबर देखी कि एक बिल्डर ने 198 फ्लैट (Flat) बेचे और लगभग पूरे पैसे भी ले लिये, पर अभी तक न मल्टी पूरी हुई और न ही किसी को मालिकाना हक दिया। इस पर कोर्ट ने बिल्डर को जेल भेज दिया है।

यह किस्सा है तकरीबन 4 वर्ष पहले का, जब इस कंपनी ने बड़े बड़े विज्ञापन अखबारों में दिये थे, और हमने भी एक फ्लैट यहाँ पर बुक करवाया था, हम बैंगलोर में थे और पापा को कहकर कि फ्लैट अच्छी जगह लग रहे हैं और ले लेना चाहिये, जो बुकिंग एजेन्ट था वह हमारे पारिवारिक परिचित ही थे, हमने बुकिंग एमाऊँट बिना सोचे समझे, उन पारिवारिक परिचित के कहने पर जमा भी करवा दिया।

जब हम छुट्टियों में घर पहुँचे तो एजेन्ट और बिल्डर दोनों से मिलकर आये, बात करने के बाद हमें मामला गड़बड़ लगा और हमने तत्काल ही अपने बुकिंग एमाऊँट को वापिस करने की माँग रखी, और कहा कि हाँ अपने से गलती हुई कि बिना जाँचे परखे बुकिंग करवाई, आप पैनल्टी काटकर हमारा बुकिंग एमाऊँट वापिस कर दो। पर वे लोग पैसा वापिस देने में आनाकानी करने लगे।

पहले हमने उन्हें सीधे सादे तरीके से कहा कि हमारे पैसे दे दो, तो वो हमारा मखौल उड़ाने लगे, कहने लगे कि जो करते बने कर लो, पैसा तो आपको नहीं मिलेगा, आप बेहतर है कि लोन लो और बाकी के पैसे भी चुकाकर फ्लैट जब बन जायेगा, तब ले लो। हमने उस समय LIC Housing में जाकर बात की, बिल्डर ने हमें वहाँ भेजा था, तो वे तत्काल ही लोन देने को तैयार हो गये। उसी समय हमारे मित्र इलाहाबाद बैंक में मैनेजर थे, हमने उनसे बात की कि आप अपने बैंक से लोन दो, उन्होंने हमें बहुत सारे बिल्डरों की कहानियाँ बताईँ और समझाया कि उज्जैन में मल्टी का फंडा नया है और बिल्डर का कोई भी पुराना रिकार्ड नहीं है, इसलिये कोई भी सरकारी बैंक लोन नहीं देगा। हमें समझ आ गया कि भई अपन फँस चुके हैं।

हम परेशान थे तो हमने महफूज भाई से बात की और उन्होंने जो कानूनन तरीका बताया, उस पर चले। हमने एक आवेदन लिखा कलेक्टर महोदय के नाम और पहुँच गये उनसे मिलने, वहाँ जाकर बात की तो उन्होंने कहा कि आप अपना आवेदन यहीँ छोड़ जाईये, आपका पैसा बिल्डर घर पर देने आ जायेगा। हमने कहा हमें आप पर पूर्ण विश्वास है, परंतु फिर भी आप हमें आवक नंबर दे दीजिये, जिससे हमें संतुष्टि हो जाये। इस पर कलेक्टर महोदय ने कहा कि अगर आपको कानूनन प्रक्रिया ही करनी है तो फिर आवेदन बाहर दीजिये, अपनी गति से कार्य होगा। हमने उन्हें बताया कि अगर कानूनन प्रक्रिया को नहीं अपनाया तो हम मुश्किल में फँस जायेंगे, क्योंकि हमें अगले दिन ही बैंगलोर के लिये वापिस निकलना था। हमारे एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र हैं, उनसे इस बाबद बात की तो वे बोले कि बॉस इस तरीके से थोड़ा समय जरूर लगेगा, परंतु ये सब सुधर जायेंगे।

हमने आवक नंबर लिया और आवेदन की अपनी प्रति पर आवक के सील ठप्पे लगवाकर, कलेक्टरेट से निकल ही रहे थे, कि हमने एक नाम देखा डिप्टी कलेक्टर महोदय का, हमें लगा कि अरे ये तो अपने परिचित हैं, वे हमारे कॉलेज के अर्थशास्त्र विषय के प्रोफेसर थे, जो बाद में पीएससी करके डिप्टी कलेक्टर थे, हम पहुँचे तो वे एकदम से पहचान गये और उन्होंने कुशल पूछा और कहा कि बताओ इधर कैसे आना हुआ, हमने अपना सारा किस्सा उन्हें सुना दिया, तो वे बोले अभी माधवनगर कंट्रोल रूम जाओ और वहाँ पर एक एएसपी का नाम बताया और सामने ही फोन कर दिया, कहा कि चिंता मत करो बेटा, हम यही सब ठीक करने के लिये तो प्रोफेसर से प्रशासन में आये हैं।

हम कंट्रोल रूम गये, बड़े अच्छे से साहब पेश आये और हमारा आवेदन उन्होंने भी ले लिये, अभी तक जो एजेन्ट और बिल्डर अकड़ रहे थे, तो उनके ऊपर अब कानूनन हमने दो प्रकार से दबाब बना दिया था, पुलिस कंट्रोल रूम से भी अब दबाब बनाया जाने लगा और कलेक्टर महोदय ने हमारी अर्जी को तहसीलदार को सौंप दिया, तो तहसीलदार की तरफ से भी उनके पास समन जाने लगे, समन की तामील करने वे नहीं आये, तो कानून ने अपने तरीके से काम करना शुरू किया और वे लोग हमारे घर आये और बाहर ही सैटलमेंट की बाद करने लगे, हम अपने अभिभावकों को ज्यादा परेशान नहीं करना चाहते थे, सो बाहर ही सैटलमेंट कर लिया।

पर सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि हमने अपनी कमाई की पूँजी लुटने से बचा ली, और दुख इस बात का है कि बहुत से लोग उस एजेन्ट और बिल्डर के झाँसे में आकर अपने सपने को लुटते हुए देखते रहे और आखिर में वह सपना टूट ही गया।

CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

OTBA याने कि Open Text Based Assessment जो कि Central Board of Secondary Education (CBSE) ने दो वर्ष पूर्व शुरू किया था। अब इस सत्र से CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

OTBA को 9 व 11 वीं के छात्रों के लिये शुरू किया गया था, OTBA के बारे में जानकारी इस प्रकार है – Continue reading CBSE ने OTBA को बंद करने की घोषणा कर दी है।

अवचेतन मस्तिष्क subconscious mind

शुक्रवार को सुबह मन अनमना था, कुछ न कुछ उधेड़बुन मन में लगी हुई थी। उठने के बाद से ही लग रहा था कि आज कुछ गड़बड़ होने वाली है, ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हो रहा था, पहले भी कई बार हो चुका है। मुझे कई बार पूर्वाभास हो जाता है, मेरे अवचेतन मस्तिष्क में यह बात चौंकी भी थी कि आज बाईक फिसल सकती है और कुछ चोट लग सकती है। ऑफिस जाने से पहले मैंने कई बार सोचा कि आज कार से जाया जाये, परंतु बैंगलोर का यातायात ऐसा है कि जितना देर होते जाता है, उतना ही कठिन गाड़ी चलाना होता जाता है। हमें तैयार होते होते थोड़ी देर हो ही गई, बाईक से ही जाने का निश्चय किया। बारिश का भी मौसम था, सोचा था कि बारिश से भी थोड़ा बच लेंगे, परंतु भाग्य से पूरे रास्ते बारिश नहीं मिली। Continue reading अवचेतन मस्तिष्क subconscious mind

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

ऐसी 5 चीजें जिनका उपयोग हम रोज करते हैं, हमें उनका उपयोग बंद कर देना चाहिये।

  1. प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच – अभी तक प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि समुद्र में प्राप्त 80 प्रतिशत कबाड़ा प्लास्टिक का होता है, जिसमें प्लास्टिक स्ट्रॉ भी शामिल है। प्लास्टिक स्ट्रॉ की जगह काँच की स्ट्रॉ का उपयोग करें, काँच की स्ट्रॉ खरीदें, उपयोग करें, धोयें और वापिस से उपयोग करें, इससे आप कार्बन फुटप्रिट्स में को कम करने में मदद ही करेंगे। साथ ही अपने घर में बड़े लोगों को समझायें कि मसालदानी वगैराह में प्लास्टिक की चम्मच की जगह, लकड़ी की चम्मच का उपयोग करें, लकड़ी की चम्मच ज्यादा दिन भी चलेगी।

    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
  2. माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट या त्वचा की रक्षा करने वाले उत्पाद – अधिकतर टूथपेस्ट वाली कंपनियाँ अपनी पैकिंग में माईक्रोबीड्स वाले ऐसे तत्वों का उपयोग करती हैं जिन्हें प्राकृतिक तरीके से नहीं सड़ाया जा सकता या नष्ट नहीं किया जा सकता है। इससे ही लगभग 8 टन कचरा समुद्र में पहुँचता है। इस तरह के उत्पाद को खरीदने के पहले उनकी सामग्री को पढ़ लें और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद ही उपयोग करें।

    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
  3. स्टीरोफोम उत्पाद – पॉलीस्टीरीन से बनने वाले ये उत्पाद, पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक जो का नॉन बॉयोडिग्रेडेबल है और उसके स्वास्थ्य पर नुक्सान ज्यादा हैं। स्टीरोफोम आधारित उत्पाद कटोरी, प्लेटों का उपयोग हम लोग अपनी पार्टियों में करते हैं। इसकी जगह हमें पर्यावरण अनुकूल उत्पादों याने कि बाँस, पेड़ की छाल या फिर पत्तों का उपयोग करना चाहिये।

    स्टीरोफोम
    स्टीरोफोम
  4. लकड़ी की चॉपस्टिक – खाना खाने के आनंद के लिये हम लोग लकड़ी की चॉपस्टिक का उपयोग करते हैं, परंतु हर साल लगभग 5.70 करोड़ (ग्रीनपीस के अनुसार आँकड़े) चॉप्स्टिक का उपयोग किया जाता है, सोचिये कि कितने सारे पेड़ इसके लिये काटने पड़ते हैं। इन चॉप्सिटकों का उपयोग न करें और इसकी जगह स्टील के काँटे या चम्मच का ही उपयोग करें।

    लकड़ी की चॉपस्टिक
    लकड़ी की चॉपस्टिक
  5. पॉलीथीन के थैले – प्लास्टिक के ये थैले नष्ट नहीं होते हैं, उनको ऐसे ही कचरे के साथ कचरा क्षैत्र में जमीन में दबा दिया जाता है और जब कचरे को नष्ट करने के लिये जलाया जाता है तो इससे जहरीली गैसें निकलती हैं और जो कि प्रदूषण भी बड़ाती हैं। कपड़े या जूट का थैला खरीदें जिसे कि बार बार उपयोग किया जा सके और प्लॉस्टिक थैले के लिये मना कर दें। इससे कम से कम थोड़ी बहुत तो हमारे फेफड़ों और धरती को राहत मिलेगी।

    पॉलीथीन के थैले
    पॉलीथीन के थैले

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