Tag Archives: मेरी पसंद

त्रिफला जबरदस्त औषधि

त्रिफला जबरदस्त औषधि है, आयुर्वेद में लिखा है जो 10 साल तक त्रिफला लगातार ले लेता है। उसका कायाकल्प हो जाता है। हाँ इसके सेवन करने के तरीके मौसम के अनुसार बदल जाते हैं।

1 भाग हरड, 2 भाग बहेड़ा, 3 भाग आंवला 1:2:3 मात्रा वाला त्रिफला ही लेना चाहिये, हम अमेजन से मंगवाते हैं, लोकल में इधर अत्तार नहीं हैं। हमने थोड़े दिन पहले शुरू किया जबरदस्त फायदा है।

फायदे जो गिनाये जाते हैं वे इस प्रकार हैं –

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।

आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है

उर्मिला निंद्रा पर जागृति थियेटर पर प्ले

बहुत सालों बाद कल जागृति थियेटर में प्ले देखने गये नाम था ‘उर्मिला’।

आदिशक्ति माँ सीता की बहन उर्मिला, जब श्रीराम का विवाह सीता से हुआ, तब लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से हुआ।

बनवास के समय लक्ष्मण दिन में श्रीराम व सीतामाता की सेवा करते थे, और रात्रि में रक्षा करते थे, लक्ष्मण ने निद्रादेवी से वरदान मांगा था कि उन्हें 14 वर्ष तक नींद न आये, तब निद्रादेवी ने एक शर्त पर यह वरदान देने को कहा कि कोई और तुम्हारी जगह 14 साल तक सोयेगा, तब उर्मिला ने लक्ष्मण की नींद ली।

दक्षिण भारत में कुम्भकर्ण निंद्रा के साथ ही उर्मिला निंद्रा की लोकोक्ति प्रचलित है। जैसे हमारे यहाँ ज्यादा सोने वाले को कुम्भकर्ण कहते हैं।

इस प्ले की मुख्य पात्र थी उर्मिला, जो अपनी नींद को सुला रही है, प्ले शानदार था, जबरदस्त लाइटिंग और कलाकारों ने अपने अभिनय से चार चाँद लगा दिये। इस प्ले में कालारियपट्टू बॉडी लैंग्वेज का भरपूर प्रयोग किया गया है। अभिनय के साथ ही जो व्यायाम इसमें किया गया है, वह अद्वितीय है, जिसके लिये बहुत ऊर्जा चाहिये।

फोटो ले नहीं पाये, क्योंकि फोन बंद करवा दिये गये थे, नहीं तो थियेटर की लाइटिंग के प्रभाव में कमी आ जाती है।

₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली, जिसे जोलड़ा रोटी उटा भी कहते हैं।

लोग कहते हैं कि इधर सबसे सस्ती थाली मिलती है या उधर, पर मैंने बैंगलोर से सस्ती थाली कहीं नहीं खाई, मात्र ₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली मिलती है, जिसे जोलड़ा रोटी उटा (oota) मील कहते हैं। oota का मतलब कन्नड़ में भोजन होता है।

इसमें पतली पतली ज्वार की 2 रोटी, 1 सब्जी, 1 दाल, चटपटी चटनी, स्प्रोउट सलाद, दही, चावल और सांभर मिलता है, साथ ही प्याज व तली हुई हरी मिर्च। सब्जी, दाल, चटनी व सांभर अनलिमिटेड होता है।

रोटी व चावल की मात्रा इतनी होती है कि आराम से एक व्यक्ति का पेट भर जाता है, क्योंकि चावल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, हम 2 लोग जाते हैं तो एक थाली का चावल लौटा ही देते हैं।

साथ ही अगर ज्वार रोटी और चाहिये तो भी ₹20 की और मिल जाती है। इन रेस्टोरेंट्स के नाम बसवेश्वरा काना वाली के नाम से होते हैं, कुछ ब्राह्मिन के नाम से भी होते हैं। पर जो स्वाद बसवेश्वरा रेस्टोरेंट्स में मिलता है, वह ब्राह्मिन में नहीं मिलता। हमारे घर के पास कम से कम 5-6 रेस्टोरेंट हैं। पर अधिकतर लोग इनको एक्सप्लोर ही नहीं कर पाते, क्योंकि उनको पता ही नहीं होता।

क्या आपके शहर में ₹80 में या इससे कम में थाली मिलती है?

#bengaluru

1 करोड़ या 90 लाख रुपये शेयर बाजार में कैसे गंवा देते हैं?

इतनी खबरें आती हैं कि फलाना ने 1 करोड़ या 90 लाख रुपये शेयर बाजार में गंवा दिये, मुझे तो आज तक समझ ही नहीं आया कि ऐसे कैसे गंवा सकते हैं, अपन ने तो कभी नहीं गंवाये, उल्टे कुछ गुना ज्यादा ही हो गये।

ऐसा ये लोग करते क्या हैं, यही समझ नहीं आया।

कल ही किसी से बात हो रही थी, तो वे बोले कि शेयर बाजार भयंकर रिस्की है, हमने कहा जहाँ रिस्क होगा वहीं रिवार्ड भी होगा, बिना रिस्क के रिवार्ड कैसा?

पता नहीं क्यों दुनिया को शेयर बाजारबसे रातभर में अमीर बनना है, भाई अनुशासन से शेयर बाजार के पैसे भरे समुंदर से समय समय पर एक लोटा निकालते जाओ, अब अगर बाल्टी भरकर निकालने जाओगे तो समुंदर आपकी बाल्टी ही साथ ले जायेगा। इधर बाल्टी लोटे को पैसे का पर्यायवाची समझें।

हमने कहा कि मैं जब से शेयर बाजार में आया हूँ, तबसे केवल एफडी के ब्याज से डबल कमाने की सोची, जब एफडी पर 9% ब्याज मिलता थाज़ तब भी शेयर बाजार से 18% साल का कमाने की सोचते थे, हालांकि यह अलग बात है कि शेयर बाजार ने कुछ सालों में 50% से ज्यादा रिवार्ड भी दिया, कुछ में 100% भी दिया।

आज भी अपना शेयर बाजार से लाभ हमें 18% ही कमाना है, पर तब भी यह 24% से नीचे जा ही नहीं पाता। हम कोई कठिन चीज नहीं करते, बस फोकस रहता है, जैसे ही प्रॉफिट मिले वह हाथ से जाना नहीं चाहिये। बिजली की तेजी से मौका ले लेना है, यहाँ सेकंड में खेल हो जाते हैं।

जैसे कल creditacc में अपनी नजरें जमी हुई थीं, सुबह सुबह एक बेहतरीन ट्रेड मिली, अपनी एंट्री हुई 873 के आसपास और बस 15-18 मिनिट में ही अपना प्रॉफिट बुक करने का टार्गेट 927 जो कि अपने 15 मिनिट के चार्ट पर 200dma का टारगेट से ऊपर था, परंतु हमें प्रोफिट ट्रेल किया, वरना भाव तो हमने 937 भी देखा था। अब हमने एक शेयर पर कमाई की ₹54 की जो कि लगभग 6% होता है। पर ऐसे मौके रोज नहीं आते। आते भी हैं तो पकड़ नहीं पाते।

मेरे कई दोस्त कहते हैं कि यार तुम हमको भी ऐसे टिप बता दिया करो, पर मैं उनको समझाते थक गया कि भाव सेकंड का गेम है, आप जब तक खुद नहीं सीखोगे तब तक शेयर बाजार से कमा ही नहीं सकते, टिप्स बिजनेस पर ध्यान न दो, अपना स्किल बढ़ाओ।

साल का 18% कमाना भी बहुत आसान है, वह भी निफ्टी 50 के शेयर से, आपको 200 dma को पकड़ना है, और जैसे ही 200 dma के नीचे लगातार 7 लाल केंडल मिल जायें, वह शेयर खरीद लो, और अपना प्रॉफिट बुकिंग का टारगेट 3% या 200 dma रख लें, अगले 3 से 30 दिन में आपको यह प्रॉफिट मिलना तय है। बस अपने नियमों को न भूलें।

सबकी अपनी अपनी स्ट्रेटेजी होती है, हम सिंपल रखते हैं, बाजार से पैसा बनाना बहुत आसान है, बस अनुशासन में रहें, नियमों का पालन करें, दिमाग को स्थिर रखें, इसके लिये सुबह रोज 1 घँटा ध्यान करें।

18% साल का कमाने के लिये आपको केवल 1.5% महीना कमाना है, बहुत आसान है। पर सबसे पहले अपने आक्रामक दिमाग को शांत रखिये।

ऐसी बातें और भी आगे पोस्ट में करते रहेंगे।

कानों का चक्कर

कई बार कान वही सुनते हैं जो सुनना चाहते हैं और इस चक्कर में कई बार गड़बड़ियां हो जाती हैं।

आज की गड़बड़ी बड़ी जबरदस्त रही, एक पारिवारिक आयोजन में जाना था। जिसकी डेट हमें आज की याद थी। पर मम्मी जी बोली कि बुधवार को जाना है और फिर तुरंत उन्होंने फोन लगाकर कंफर्म भी कर लिया।

हम गाड़ी धो रहे थे तब उन्होंने पूछा था कि आज गाड़ियां क्यों धो रहे हो तो हमने बोला कि आज वहां जाना है तो गाड़ी थोड़ी साफ सुथरी होगी तो अच्छा लगेगा।

अब जब बात हुई तब पता चला आयोजन आज नहीं चल ही है अपने ऊपर थोड़ा क्षोभ हुआ, सोचा कहीं बुढ़ा तो नहीं गए हैं या फिर अपने हिसाब से अपना मन अपनी बातें करने लगता है आजकल क्या हो गया है मुझे!

ऐसे ही अभी फ्लिपकार्ट मिनिट्स से ऑर्डर किया और तैयार होने के बाद पापाजी से पूछा समान आ गया क्या? वो बोले – नहीं आया। मैंने फिर एप्प पर देखा कि वाकई ऑर्डर हो भी गया था या नहीं, क्योंकि पेमेंट कन्फर्म होने के बाद मैंने मोबाईल का स्क्रीन बंद कर दिया था, देखा तो पता चला कि ऑर्डर तो हो गया है, पर फ्लिपकार्ट ने मिनिट्स का आधा घँटा कर दिया है। यह भी कन्फ्यूजन रहा।

हर शख्स के होते हैं कई चेहरे

कई बार सोचता हूँ जिनके बारे में ऐसा लगता है कि इनको मैं अच्छे से जानता हूँ, तो क्या सही लगता है?

जीवन का कोई एक पहलू नहीं होता, ऐसे ही चेहरे का, हर शख्स के होते हैं कई चेहरे, ऑफिस में किसी के सामने कुछ किसी ओर के सामने कुछ, बाहर कुछ, बाजार में कुछ, घर में पत्नी के सामने कुछ, माँ बाप के सामने कुछ, बच्चों के सामने कुछ।

शख्स एक ही है, पर वह दिखाता अलग अलग शख्सियत है। कहीं सीधा सादा, कहीं जालिम क्रूर, कहीं बेवकूफ, कहीं बुद्धिमान कहीं कमजोर, कहीं पागल प्रेमी, तो कहीं आज्ञाकारी।

बस ऐसे ही चोले ओढ़े जीवन बीतता जाता है, और ऐसे ही अपने आपको बड़ा आदमी समझते हुए एक दिन खुद को रहस्यमयी दिखाता हुआ,इस दुनिया से वह चल देता है।

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य

यह वह समय था जबकि देवता लोग धरती पर रहते थे। धरती पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। काम था धरती का निर्माण करना। धरती को रहने लायक बनाना और धरती पर मानव सहित अन्य आबादी का विस्तार करना।

देवताओं के साथ उनके ही भाई बंधु दैत्य भी रहते थे। तब यह धरती एक द्वीप की ही थी अर्थात धरती का एक ही हिस्सा जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा हिस्सा था। इसके बीचोबीच था मेरू पर्वत।

धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया।

दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ ‘समुद्र मंथन’ के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया।
इस तरह हुआ समुद्र मंथन। यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं। जब देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया। वे समुद्र के बीचोबीच में वे स्थिर रहे और उनके ऊपर रखा गया मदरांचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बानाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना शुरू कर दिया।

मंथन करने पर सबसे पहले क्या निकला?हलाहल (विष) : – समुद्र का मंथन करने पर सबसे पहले पहले जल का हलाहल (कालकूट) विष निकला जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की।

शंकर ने उस विष को हथेली पर रखकर पी लिया, किंतु उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया तथा उस विष के प्रभाव से शिव का कंठ नीला पड़ गया इसीलिए महादेवजी को ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। हथेली से पीते समय कुछ विष धरती पर गिर गया था जिसका अंश आज भी हम सांप, बिच्छू और जहरीले कीड़ों में देखते हैं।

दूसरा महत्वपूर्ण रत्न,कामधेनु : – विष के बाद मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े जोर की आवाज उत्पन्न हुई। देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं।

गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र पशु माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण पशु है। गाय को कामधेनु कहा गया है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। उस काल में गाय को धेनु कहा जाता था।

तीसरा महत्वपूर्ण रत्न,उच्चैःश्रवा घोड़ा : – घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो।

चौथा महत्वपूर्ण रत्न,ऐरावत हाथी : – हाथी तो सभी अच्‍छे और सुंदर नजर आते हैं लेकिन सफेद हाथी को देखना अद्भुत है। ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। ‘इरा’ का अर्थ जल है, अत: ‘इरावत’ (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को ‘ऐरावत’ नाम दिया गया है।

यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। चार दांतों वाला सफेद हाथी मिलना अब मुश्किल है।

महाभारत, भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले ‘ऐरावत’ कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा। हालांकि उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा।

पांचवां रत्न,कौस्तुभ मणि : – मंथन के दौरान पांचवां रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। महाभारत में उल्लेख है कि कालिय नाग को श्रीकृष्ण ने गरूड़ के त्रास से मुक्त किया था। उस समय कालिय नाग ने अपने मस्तक से उतारकर श्रीकृष्ण को कौस्तुभ मणि दे दी थी।

यह एक चमत्कारिक मणि है। माना जाता है कि इच्छाधारी नागों के पास ही अब यह मणि बची है या फिर समुद्र की किसी अतल गहराइयों में कहीं दबी पड़ी होगी। हो सकता है कि धरती की किसी गुफा में दफन हो यह मणि।

छटा रत्न,कल्पद्रुम : – यह दुनिया का पहला धर्मग्रंथ माना जा सकता है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुआ। कुछ लोग इसे संस्कृत भाषा की उत्पत्ति से जोड़ते हैं और कुछ लोग मानते हैं कि इसे ही कल्पवृक्ष कहते हैं। जबकि कुछ का कहना है कि पारिजात को कल्पवृक्ष कहा जाता है।

सातवां रत्न,रंभा : – समुद्र मंथन के दौरान एक सुंदर अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया। पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में माना जाता है, जो कि कुबेर की सभा में थी। रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबर के साथ पत्नी की तरह रहती थी। ऋषि कश्यप और प्राधा की पुत्री का नाम भी रंभा था। महाभारत में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।

समुद्र मंथन के दौरान इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा था। अप्सरा को गंधर्वलोक का वासी माना जाता है। कुछ लोग इन्हें परी कहते हैं।

आठवां रत्न,लक्ष्मी : – समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई। लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति। कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं। माना जाता है कि जिस भी घर में स्त्री का सम्मान होता है, वहां समृद्धि कायम रहती है।

दूसरी लक्ष्मी : – महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम लक्ष्मी था और जिसने भगवान विष्णु से विवाह किया।

नौवां रत्न,वारुणी (मदिरा) : – वारुणी नाम से एक शराब होती थी। वारुणी नाम से एक पर्व भी होता है और वारुणी नाम से एक खगोलीय योग भी। समुद्र मंथन के दौरान जिस मदिरा की उत्पत्ति हुई उसका नाम वारुणी रखा गया। वरुण का अर्थ जल। जल से उत्प‍न्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण नाम के एक देवता हैं, जो असुरों की तरफ थे। असुरों ने वारुणी को लिया।

वरुण की पत्नी को भी वरुणी कहते हैं। कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को भी वारुणी कहते हैं।

दसवां रत्न,चन्द्रमा : – ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं, जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है जिसका नाम ‘सोम’ है। दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां थीं जिनके नाम पर 27 नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं।

आज आसमान में हम जो चंद्रमा देखते हैं वह समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस चंद्रमा का चंद्रवंशियों के चंद्रमा से क्या संबंध है, यह शोध का विषय हो सकता है। पुराणों अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति धरती से हुई है।

ग्यारहवां वृक्ष,पारिजात वृक्ष : – समुद्र मंथन के दौरान कल्पवृक्ष के अलावा पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति भी हुई थी। ‘पारिजात’ या ‘हरसिंगार’ उन प्रमुख वृक्षों में से एक है जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

पारिजात वृक्ष में कई औषधीय गुण होते हैं। हिन्दू धर्म में कल्पवृक्ष के बाद पारिजात को महत्व दिया गया है। इसके बाद बरगद, पीपल और नीम का महत्व है।

12वां ,रत्न,शंख : – शंख तो कई पाए जाते हैं लेकिन पांचजञ्य शंख मिलना मुश्किल है। समुद्र मंथन के दौरान इस शंख की उत्पत्ति हुई थी। 14 रत्नों में से एक पांचजञ्य शंख को माना गया है। शंख को ‍विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है।

1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने की उत्तम औषधि है।

शंख 3 प्रकार के होते हैं- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।

तेरहवां रत्न,धन्वंतरि वैद्य : – देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए। विद्वान कहते हैं कि इस दौरान दरअसल कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला

हालांकि धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।

धन्वंतरि 10 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।

उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।

‘ धनतेरस’ के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है। धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था।

अंत में 14वां रत्न ‘अमृत’, जानिए महत्वपूर्ण रत्न,अमृत :  – ‘अमृत’ का शाब्दिक अर्थ ‘अमरता’ है। निश्चित ही एक ऐसे पेय पदार्थ या रसायन रहा होगा जिसको पीने से व्यक्ति हजारों वर्ष तक जीने की क्षमता हासिल कर लेता होगा। यही कारण है कि बहुत से ऋषि रामायण काल में भी पाए जाते हैं और महाभारत काल में भी। समुद्र मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था। अमृत के नाम पर ही चरणामृत और पंचामृत का प्रचलन हुआ।

‘सोमरस’ :  – देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब झगड़ा हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दानवों ने उसका पीछा किया। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। यहीं पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके अमृत बांटा था।

अमृत’ शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है, जहां यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। संभवत: ‘सोमरस’ को ही ‘अमृत’ माना गया हो। सोम एक रस है या द्रव्य, यह कोई नहीं जानता। कुछ विद्वान सोम को औषधि मानते है। उनके अनुसार सुश्रुत के चिकित्सास्थान में लिखा है कि इसका सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है, वृद्ध पुनः युवा हो जाता है।

किंतु वेद में एक और सोम की भी चर्चा है जिसके संबंध में लिखा है कि ब्राह्मणों को जिस सोम का ज्ञान है उसे कोई नहीं पीता। ब्राह्मण के सोम की महिमा इन शब्दों में है। देखो हमने सोमपान किया और हम अमृत हो गए या जी उठे।

अमीर बाप की औलाद का किस्सा, जिसने घाटा होने के बाद घर बेचकर वापिस 800 करोड़ का बिजनेस बनाया

एक अमीर बाप की औलाद का किस्सा सुनाता हूँ, जिसने अपनी रेस्टोरेंट चैन खोली और वह बुरी तरीके से फेल हुई, रेस्टोरेंट बिजनेस में फेल होना मतलब पब्लिक फेलियर होता है। उसके बाद उसने अपना घर बेचकर वापस से एक नया बिजनेस शुरू किया और आज उसका टर्नओवर 800 करोड़ के आसपास है।

राजीव बहल जिनका ब्रांड था फन फूड, उनके बेटे हैं विराज बहल। विराज अपने पिताजी का बिजनेस जॉइन करना चाहते थे, पर पिता ने मना कर दिया और कहा कि जाओ पहले 3 लाख रुपये खुद से कमाकर लेकर आओ, तब इस बिजनेस में एंट्री मिलेगी। जो कि आज लगभग 16 लाख रुपए के बराबर होते हैं तब उसने मर्चेंट नेवी में नौकरी करके 2002 में 3 लाख कमा लिये।

उसके बाद अगले 6 साल में बाप बेटे ने मिलकर फन फूड को एक बहुत बड़ा ब्रांड बना दिया। तब राजीव ने विराज को कहा कि मैं नहीं चाहता कि जिन कठिनाइयों के दौर से मैंने जीवन निकला है, उन कठिनाइयों को मेरे बेटा देखे और मैं चाहता हूँ कि मैं अपने बेटे को अच्छा खासा पैसा दूँ जिससे उसे आगे जीवन में कोई तकलीफ ना उठानी पड़े।

तब उन्होंने अपनी 25 वर्ष पुरानी फन फ़ूड कंपनी Dr Oetkar को ₹110 करोड़ में बेच दी।

तब विराज ने अपने हिस्से में आए पैसे से एक रेस्टोरेंट चैन खोलने का फैसला किया, जिसका नाम था पॉकेट फुल। 4 साल तक वह अपने रेस्टोरेंट चैन को प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश करता रहा लेकिन नहीं हुआ। इससे उसे भयंकर फाइनेंशियल नुकसान हुआ पर उसकी भी जिद थी कि वह कुछ अलग करेगा।

उसने अपनी आखिरी संपत्ति जो कि उसका घर था वह भी बेच दिया और उससे उसने एक बड़ी जमीन खरीद कर फैक्ट्री बनाई। जिसमें वह सॉस बनाने लगा। फैक्ट्री बनाने के बाद पहले साल तो रेस्टोरेंट बिजनेस से भी बुरा रहा और वह बड़े कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए तरसता रहा। यह इतना भयावह हो चुका था कि उसके पास सैलरी देने के लिए पैसे भी नहीं थे।

थोड़ी हिम्मत रखने के बाद और बार-बार कंपनियों को ऑर्डर के लिये परेशान (गिड़गिड़ाने के बाद) करने के बाद आखिर कर विराज को डोमिनोस से 70 टन सॉस का आर्डर मिला। उसके बाद तो विराज के पास केएफसी, पिज़्ज़ाहट, टैको बेल व अन्य कंपनियों से ऑर्डर की लाइन लग गई।

बिजनेस ही क्यों? क्योंकि यही विराज का लक्ष्य था और B2B में कैश फ्लो अच्छा होता है, जिसके कारण बिजनेस अच्छा चल पाता है।

अपने सॉस को अच्छा बनाने के लिए विराज ने जुगाड़ लगाई, आने वाले गेस्ट को वह अलग-अलग सॉस परोसता था और जो भी सॉस गेस्ट और लेते थे, तो इसका मतलब इस सॉस का स्वाद अच्छा होता था और उनका स्वाद बढ़ाने के लिए काम करता था। बिजनेस में जिन सॉस के आर्डर बड़े होते थे और जल्दी निकलते थे उन उत्पादों पर विराज ज्यादा ध्यान देने लगा।

अगर उनके प्रारंभिक प्रोडक्ट को देखें तो वे सब इंटरनेशनल टेस्ट के थे, हाँ उसमें भारतीय टेस्ट का ट्विस्ट डाल दिया गया था। क्योंकि भारत में तो हर 100 किलोमीटर में स्वाद ही बदल जाता है। भारत में सॉस का लीडर बनने के लिए उसे इंटरनेशनल स्वाद में लीडर बनाना था, जो कि विराज का इनोवेशन था सॉस का स्वाद शुद्ध हो हेल्दी हो, इसी के दम पर वह भारत में सॉस का लीडर बन गया।

विराज की इस कंपनी का नाम है Veeba।

भारत में लेबर लॉ लचर हैं

हमारे भारत में लेबर लॉ को और कड़ा करने की व कड़ाई से पालन करवाने की जरूरत है।

एक महीने में 3 मौतें हो चुकी हैं।

  1. एना सेबस्टियन EY
  2. सदफ फातिमा Hdfc Bank
  3. तरुण Bajaj Finance

और भी ऐसे कई केस होंगे जो पता ही नहीं चले
आजकल काम की जगहों पर स्ट्रेस इतना है, कि जान की कीमत बहुत सस्ती हो गई है।

तरुण वर्क प्रेशर के चलते 45 दिन सो नहीं पाया और अंततः आत्महत्या कर ली।

जीवन कठिन है, पर अगर वर्क प्रेशर है तो काम छोड़ दीजिये, पर अपने जीवन की हत्या न करें, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा।

IIT Dhanbad के दलित का केस

IIT Dhanbad के दलित का जो केस आया है जिसमें वह समय से फीस जमा नहीं कर पाया और इस कारण उसे एडमिशन नहीं दिया गया तब वह कोर्ट के पास गया और कोर्ट ने आदेश दिया की इस नौजवान को एडमिशन दिया जाए।

उस नौजवान के परिवार ने फीस के लिए पूरे गांव से चंदा लिया, इंग्लिश में जिसे क्राउड फंडिंग कहा जाता है, फीस भी मात्र ₹17,000 थी, कोई ऐसा सिस्टम जरूर होना चाहिए कि ऐसा हम लोगों को भी पता चले और हम उनकी मदद कर पायें।

हम सोचते हैं हम मदद कर देंगे लेकिन हमें सही समय पर जानकारी नहीं मिल पाती और बहुत सारे टैलेंटेड बुद्धिमान नौजवान इन सब चीजों से महरूम रह जाते हैं।

हालांकि हमारा सिस्टम इस मामले में बहुत तेज होना चाहिए लेकिन लचर है, इसके लिए कोई तो प्लेटफार्म होना चाहिए जिससे की मदद एकदम से मिल पाए और केस genuine है यह भी साबित हो पाए।

क्यों हमारे राजनेता इन सब में आकर मदद नहीं करते? उनका सामाजिक दायित्व सबसे पहले बनता है। क्या वे जनता को पढ़ा लिखा नहीं देखना चाहते?