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साक्षात्कार – पारखी का काम है ।

साक्षात्कार लेना भी एक कला है, केवल थोड़े से समय में (जो कि अमूमन 15 मिनिट से 1 घंटा होता है) किसी को भी परखना भी पारखी का ही काम है। मैं इतने वर्षों में साक्षात्कार लेने और देने दोनों की प्रक्रिया से बहुत बार गुजरा हूँ, हालाँकि साक्षात्कार दिये कम हैं और हमने साक्षात्कार लिये ज्यादा हैं। साक्षात्कार लेने से साक्षात्कार देने में बहुत मदद मिलती है, हम साक्षात्कार देते समय साक्षात्कार लेने वाले की मनोस्थिती को समझने में लगभग हर बार कामयाब होते हैं।

साक्षात्कार लेते समय हम सबसे पहले साक्षात्कार देने वाले का रिज्यूमे ध्यान से पढ़ते हैं, और अपने काम के बिंदुओं पर निशान लगाते जाते हैं, क्योंकि हमें जब भी कोई बंदा लेना होता है तो वह किसी विषय का ज्ञाता होता है। आंग्लभाषा में कहते हैं Skilled Resource । तो जिस विषय के लिये साक्षात्कार लिया जाता है उसका एक पैनल होता है और एक पैनल में वह होता है जो कि सारा तमाशा देखता है और शांति के साथ पूरा साक्षात्कार देखकर केवल साक्षात्कारदाता से कुछ सवाल पूछता है जिससे उसके व्यवहार और प्रतिक्रिया का पता चलता है।

साक्षात्कार
साक्षात्कार

साक्षात्कारदाता को हमेशा ही अच्छे कपड़ों में अपने आप को प्रदर्शित करना चाहिये, पुरूष हैं तो शेव और बाल अच्छे से करना चाहिये, महिला हैं तो बालों को अच्छे से सँवारना चाहिये। खुद को आईने में देखकर अपने आप को हम कुछ अलग लगना चाहिये। खुद में आत्मविश्वास रखें और अपना आत्मविश्वास अपनी बातों को अच्छे से रखकर प्रदर्शित करें। अपनी हर बात को जो आप साक्षात्कार में रखने वाले हैं, उसकी अच्छे से अकेले में ही प्रेक्टिस करें, इससे जब आप बोलेंगे तो आपकी हिचक खत्म हो जायेगी और आप साक्षात्कार में ज्यादा अच्छे से बोल पायेगे।

साक्षात्कार देने से पहले की भी तैयारी अच्छे से करें आप अपना रिज्यूमे अच्छे से पढ़ लें और सुनिश्चित कर लें कि आपने जो लिखा है आप उस सबके बारे में अच्छे सा जानते हैं, अगर किसी चीज पर काम न किया हो तो बेहतर है कि आप अपने रिज्यूमें में उसके बारे में न लिखें, क्योंकि हो सकता है कि आप केवल उसी बिंदु पर ही सिलेक्ट न हो पायें, अपने रिज्यूमें में और अपने साक्षात्कार में कही गई बातों में हमेशा ईमानदारी बरतें, याद रखें इससे आपको ही सहायता होगी, क्योंकि हो सकता है कि अभी आप जिस जगह काम कर रहे हैं उस जगह के बारे में साक्षात्कारकर्ता को अच्छे से पता हो या कोई उसकी जान पहचान वाला हो।

आलस को अपने ऊपर हावी न होने दें। साक्षात्कार देने से पहले अपने लिये पॉजिटिव एनर्जी बनायें और खुद को उसी पॉजिटिव ऊर्जा में रहने दें, बाहरी ऊर्जा प्रवाह के लिये आप कोई भी चॉकलेट खा लें जिसमें चोको की मात्रा अच्छी हो, हाँ कुछ भी खाने के पहले पनी सेहत का ध्यान जरूर रखें। अपने दिमाग में, मन में कोई भी नकारात्मक विचार न आने दें और कोशिश करें कि आप साक्षात्कार देने तक अपने रिज्यूमे के हर बिंदु में मन ही मन एक चक्कर लगा लें, इस तैयारी से आपको जबाब देते समय बहुत मदद होगी।

जब आप साक्षात्कार देने गये हैं तो वहाँ पर भी अपनी सोशल नेटवर्किंग का उपयोग करें तो आपको पता चल जायेगा कि और कहाँ कहाँ पर अभी साक्षात्कार हो रहे हैं और साक्षात्कार में क्या पूछा जा रहा है।

मुझे उम्मीद है कि बतायी गई बातों से आपको मदद मिलेगी।

परेशानी में दिमाग की स्थितियाँ

जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारा दिमाग अलग अलग स्थितियों में चला जाता है, जैसे या तो सुन्न हो जाता है हम किसी भी प्रकार से सोच ही नहीं पाते हैं, दिमाग सुस्त हो जाता है हमारे सोचने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है हम परिस्थितियों से हाथ दो चार करना चाहते हैं परंतु सोचना मुश्किल हो जाता है, हमारे सोचने की प्रक्रिया तेज हो जाती है जब हमें थोड़ी भी प्रेरणा या कोई आगे बढ़ने की थोड़ी सी भी राह मिल जाती है कोई रोशनी की किरण दिख जाती है हम Continue reading परेशानी में दिमाग की स्थितियाँ

सिगरेट पीती आँटी को विस्मय से देखते हमारे बेटेलाल

    आज हम सिगरेट के बारे में बात करेंगे । कल जब ऑफिस से घर के लिये निकले तो सूरज अपने शाम के चरम पर था, जैसे कोई दिया बुझने से पहले जमकर लौ देता है, जैसे कि सप्ताहांत के दो दिनों में सूरज अपने न निकलने का मलाल निकाल रहे हों, या फिर बादलों से खुद को छिपाने का बदला ले रहे हों। घर पहुँचे तो बाजार जाने के लिये बेटेलाल तैयार थे, उन्होंने पहले ही अपने सामान की सूचि जो कि उन्हें अपने विद्यालयीन प्रोजेक्ट के लिये चाहिये थी, हमें व्हाट्सएप कर दी थी। नहीं तो घर पहुँचकर हम डायरी पढ़ते और फिर सामान दिलवाने ले जाते, तो इस नई तकनीक ने पता नहीं कितना हमारा समय बचा दिया।

    घर पहुँचते ही बेटेलाल ने कहा कि डैडी कल हमारे विद्यालय से हमें सिलोखेड़ा गाँव में ले जाने वाले हैं, वह गाँव हमारे विद्यालय ने गोद ले रखा है जैसे कि कन्हाई गाँव गोद ले रखा है। मैं बेटेलाल का चेहरा देखे जा रहा था और सोच रहा था, कि विद्यालय ने गोद लेने का मतलब बच्चों को कितनी जल्दी समझा दिया है और बच्चे भी अपने गोद लिये हुए गाँव के लिये सामान लेकर जा रहे हैं, जिससे उन्हें कपड़े का थैला बनाना था और गाँव वालों का वे थैले बनाकर देते और उन्हें थैले बनाना सिखाते। गाँव वालों के साथ यह प्रयोजन करने का मतलब यह समझाना है कि पोलीथीन की थैली से प्रदूषण फैलता है, तो पोलीथीन की जगह कपड़े के थैले का प्रयोग करें।

    हम उन्हें बाजार लेकर गये पर प्रोजेक्ट के लिये जो सामान चाहिये था वह नहीं मिला, हमने कहा कोई बात नहीं, अपने शिक्षक को कह देना कि हमें बाजार में यह सामान नहीं मिला, फिर किसी और प्रोजेक्ट के लिये बारिश के कुछ फोटेग्राफ्स कलर प्रिंट निकलवाने थे, जो फोटो प्रिंट करने थे वे हमारे बेटेलाल ने हमें ईमेल कर दिये थे और हमने उन्हें एक वर्ड डाक्यूमेंट में करके पेनड्राईव पर सेव कर लिया, और फिर उसी पेनड्राईव से प्रिंट आउट की दुकान से प्रिंट निकलवा दिये। पता नहीं आजकल विद्यालय बच्चों से क्या क्या करवाते हैं।

    सुबह से बेटेलाल का पेट खराब था, बताया कि विद्यालय में एक उल्टी भी हुई तो उनके शिक्षक ने उन्हें एक दवाई भी दी जिससे थोड़ा आराम मिला, और दोपहर से घर आने के बाद वे पेटदर्द की शिकायत कर रहे थे। हम बड़े दिनों बाद बाजार आये थे तो हमने अपने और भी काम साथ में निपटा लिये। हम एक जगह खड़े थे तो वहीं से एक लड़की और एक लड़का निकले और लड़की के हाथ में सिगरेट थी और धूम्रपान का आनंद ले रही थी, लगभग दस कदम दूर जाकर वे लोग दो लड़कियों के साथ जाकर खड़े हो गये, हम तब तक दुकानदार से बात कर रहे थे, हमने बेटेलाल की और देखा तो क्या देखते हैं कि ये भाईसाहब बड़े ध्यान से मुंह खोलकर औचक से उन चारों की और देख रहे थे, वे चारों आपस में एक ही सिगरेट से धूम्रपान कर रहे थे, तभी बेटेलाल को हमारा ध्यान आया होगा, हमारी और देखा तो शर्मा गये और हमसे आकर चिपक गये और बताने लगे कि डैडी वो देखो आंटी लोग सिगरेट पी रही हैं, हमने उन्हें बताया कि ये सब तो सामान्य है, इसमें इतना चौंकने वाली बात क्या है।

     फिर घर आते समय हम उनके साथ बहुत सी अलग तरह की बातें करते हुए आये, जिससे उनका ध्यान धूम्रपान वाली बात से हट जाये और उन्हें बताया भी कि दुनिया में ऐसी बहुत सी बातें हो रही हैं जिसका तुमको पता नहीं है, तो ऐसे आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है, अभी ऐसे कई वाकये आपकी जिंदगी में आयेंगे।

सोच थिएटर ग्रुप (Soch Theater Group)

अतिथि ब्लॉग पोस्ट – राजीव कोहली

    सोच थिएटर ग्रुप (Soch Theater Group) को शुरू करने के पीछे बस एक ही मकसद था, इस समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाना और इसके लिए नाटक से अच्छा और कोई माध्यम नहीं हो सकता। खास तौर पर नुक्कड़ नाटक। बस इसी उम्मीद के साथ हम कुछ लोगों ने इस थिएटर ग्रुप की शुरुआत करने की तरफ कदम बढ़ाया।

Doon International School
Doon International School

    सोच थिएटर ग्रुप की स्थापना या कह लीजिये इस थिएटर ग्रुप को शुरू करने के बारे में मैंने पिछले साल नवम्बर में सोचा था। इस सोच को कुछ अपने जैसी ही सोच रखने वाले सहकर्मियों के साथ बांटा तो पता चला की थिएटर में रूचि रखने वाले बहुत से लोग हैं। सोच थिएटर ग्रुप की वहीं से शुरुआत हुयी।

    हालाँकि हम कुछ लोगों ने मिलकर इस ग्रुप की नींव नवम्बर २०१४ में ही रख दी थी लेकिन आम जनता के बीच आकर अपना पहला नाटक करने के लिए हम लोगों को कम से कम दो महीने लग गए। ऐसा इसलिए भी था क्यूँकि हम अपने ग्रुप की शुरुआत एक अच्छे नाटक के साथ और पूरी तैयारी के बाद करना चाहते थे. मुझे आज भी याद है ये नाटक था सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा और हमे इस नाटक का मंचन राहगिरी गुडगाँव में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार के सौजन्य से करने का अवसर मिला।

Doon International School Theatre
Doon International School Theatre

    बस उस दिन के बाद सोच थिएटर ग्रुप ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, इसके बाद हमने राहगिरी से नाता बनाये रखा और राहगिरी गुडगाँव, कनाट प्लेस, द्वारका में अलग अलग नाटक का मंचन किया जिनमें प्रमुख हैं-

  1. सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा : सड़क पर वाहन के नियमों के पालन करने की महत्वता को दर्शाता हुआ नाटक।
  1. स्वच्छ भारत – एक सुन्दर सच : अपने घर, शहर और भारत देश में सफाई बनाये रखने पर जोर डालता हुआ नाटक।
  1. शिक्षा परमो भ्रम – शिखा प्रणाली में सुधार लाने के लिए एक अपील करता हुआ नाटक।

इतना ही नहीं हमारा थिएटर ग्रुप (Soch Theater Group) कई गैर सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ भी जुड़ा है जिनमें प्रमुख नाम हैं –

  1. Naaz foundation – Goal India program
  1. 9People4Change

Naaz foundation के साथ मिलकर हमने इसी साल महिल दिवस के उपलक्ष्य में हमारे नए नाटक “मुझे जीने दो” का मंचन किया, जो की नारी शक्ति पर आधारित है। इस नाटक को काफी सराहा गया और अब सोच थियेटर ग्रुप Naaz foundation के प्रवासी बच्चों को थिएटर वर्कशॉप भी करवाता है ।

9People4Change संस्थान के साथ मिलकर हमें देहरादून के दून इंटरनेशनल और हिम्ज्योती स्कूल में बच्चों के बीच अपने नाटक पेश करने का मौका मिला। सोच थिएटर के कलाकरों के लिए यह अपने आप में एक नया अनुभव था, जब आपके दर्शक मासूम बच्चे हों तो आपको अपने नाटक के बारे में प्रतिक्रिया उसी वक़्त नाटक के चलते हुए ही मिल जाती है और ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ।

यहाँ दिल्ली में भी हमें कई कॉर्पोरेट्स के साथ परफॉर्म करने का मौका मिला जिसमें प्रमुख है makemytrip.com जिनके लिए हमने नए नाटक “Diversity है सही” का मंचन किया। इस नाटक को सभी ने सराहा और इसमें हमने सन्देश दिया हमें अपने ऑफिस में सभी को अपनाना चाहिए और बराबर का मौका देना चाहिए और इस सन्देश को सभी को अपनाना चाहिये।

सोच थिएटर ग्रुप को Zabardast Hit 95FM के प्रोग्राम “मैं भी RJ” में पुरे 3 घंटे का कार्यक्रम पेश करने का मौका मिला। जिसमें हमने आम जनता से अपील की कि वो हमारी इस मुहीम के साथ आकर जुड़ें जिसमें हम चाहते हैं कि थिएटर के माध्यम से हम इस समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकें. इस प्रयास को सफल बनाने के लिए हम Zabardast Hit 95FM की पूरी टीम , मुख्यत: Ritesh, RJ Panky के आभारी हैं।

सोच थिएटर ग्रुप की टीम इस बात को भली भांति जानती है कि आम जनता से जुड़ने के लिए हमें आम जनता के बीच जाना होगा उनके साथ जुड़ने के सभी सोशल नेटवर्किंग के माध्यमों को अपनाना होगा और इसी पहल के तहत सोच टीम Facebook, Twitter, Instagram पर सक्रिय है। आप भी हमारे साथ जुड़ सकते हैं।

e-mail: [email protected]

Facebook : https://www.facebook.com/sochtheatregroup

Twitter : @sochtheatre

Instagram : Soch Theare Group

यहीं नहीं आप हमारी वेबसाइट के माध्यम से भी हमसे जुड़ सकते हैं हमारी वेबसाइट का पता www.sochtheatregroup.com है ।

सोच थिएटर ग्रुप की नयी पहल है और हम कल्पतरु ब्लॉग के जरिये आप सभी के बीच ये लांच करना चाहते हैं कि जल्द ही सोच थिएटर ग्रुप चंडीगढ़ में भी शुरू हो रहा है, अगस्त के महीने में हम लोग सोच थिएटर ग्रुप चंडीगढ़ और पटियाला में शुरू कर रहे हैं आप सभी लोग चंडीगढ़ की टीम के साथ जुड़ सकते हैं –

Facebook : https://www.facebook.com/sochtheatregroupchd

Twitter : @sochtheatreCHND

यही नहीं आज कल की टेक्नोलॉजी और स्मार्ट फोन के इस्तेमाल को देखते हुए अभी हाल ही में सोच थिएटर ग्रुप ने अपनी तरह की पहली एंड्राइड (ANDROID) app भी लांच की है। आप सभी नीचे दिए गए लिंक के जरिये ये आप अपने फ़ोन पर इंस्टाल कर सकते हैं

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.wSochTheaterGroup&hl=en

Soch Theatre Group Android App
Soch Theatre Group Android App

हम आप सभी को अपील करते हैं ज्यादा से ज्यादा संख्या में हमसे जुड़े हमारे थिएटर ग्रुप को ज्वाइन करें ऐसा करने के लिए आप हमें facebook पर मैसेज कर सकते हैं, ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं या फिर e-mail कर सकते हैं। आप हमारी वेबसाइट पर जाकर contact-us पेज पर एक छोटा सा फॉर्म भरकर भी हमें ज्वाइन कर सकते हैं.

Join Soch theatre Group, Be part of the change, be the change !!!

Himjyoti School
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Join theatre
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95FM
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makemytrip.com
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Naaz Foundation
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Theatre Plays
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Shiksha Parmo Brham
Nukkad Natak
Shiksha Parmo Brham Pitampura

चोकोस के साथ खुलजाये बचपन (Kelloggs Chocos)

बचपन हमेशा ही हर किसी के लिये अनूठा होता है और हमेशा ही हम अपना बचपन हम भूल जाते हैं, वही बचपन हम हमारे बच्चों में हमेशा ही ढ़ूँढ़ते हैं। चाहते हैं कि हम अपने बच्चे के बचपन को उसके साथ वापस से जियें, कुछ बातों की हमेशा ही हमें अपने पालकों से शिकायत रहती है, तो वह कमी भी हम अपने बच्चों को नहीं महसूस करवाना चाहते हैं। हम हमेशा ही बच्चों की मदद कर उनसे उनके जीवन में घुलमिलना चाहते हैं।

मेरे बेटे को हिन्दी में शब्द श्रंखला बनाना थी, जो कि 100 शब्दों की होनी चाहिये थी और उसके कुछ नियम भी थे –

शब्द श्रंखला नाम के आखिरी अक्षर से शुरू होगी

  1. एक ही शब्द एक से ज्यादा बार नहीं आना चाहिये
  2. शब्द में किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं होना चाहिये
  3. शब्द में जगह का नाम भी नहीं होना चाहिये
  4. दो अक्षर वाले शब्द नहीं होने चाहिये, कम से कम तीन शब्दों वाले अक्षर होने चाहिये

हमारे बेटेलाल का नाम हर्ष है और उनको पहले ही शब्द को बनाने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि अंग्रेजी में कुछ भी करवा लो, कितना भी कार्य करवा लो पर हिन्दी में तो आजकल अच्छे अच्छों को पसीने छूट जाते हैं। हमने कहा चलो पहले शब्द श्रंखला खेलते हैं और फिर बाद में तुमको शब्दों के बारे में पता चल जायेगा तो तुम लिख भी लेना।

इसमें पहला शब्द जिस अक्षर से खत्म होता है तो अगला शब्द उसी अक्षर से शुरू होगा, इतना आसान कार्य भी नहीं है, पर हाँ जब खेलने लगे तो बहुत ही आसान लगा पर कई बार कुछ शब्द वापिस लेने पड़ते क्योंकि बार बार एक ही शब्द की निरंतरता रहती, जैसे कि “र” और “र” से कितने शब्द बनायें जायें जबकि ऊपर बताये गये 5 कठिन नियमों का भी पालन करना था।

खैर हमसे खेल ही खेल में हमारे बेटेलाल बहुत ही खुल गये, तो हमारे लिये वे पल “खुशी के पल” थे और बेटेलाल ने हमें बता दिया कि अगर बच्चों के साथ समय बिताया जाये तो “खुलजाये बचपन” । और उनके खुशी के पल वे ज्यादा होते हैं जब वे चोकोस  (Chocos)खाते हैं।

दुनिया में किसी पर भी विश्वास करने से पहले बेहतर है कि परख लिया जाये। (Trust)

   दुनिया में जब तक आप किसी पर विश्वास (Trust) न करें तब तक किसी भी कार्य का संपादन होना मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन है, सारे कार्य खुद नहीं कर सकते और मानवीय मन अपनी बातों को किसी को बताने के लिये हमेशा ही उद्यत रहता है। हर किसी को अपने मन और दिल की बात बताना भी बहुत भारी पड़ सकता है, पता नहीं कब कैसे कहाँ वह आपके विश्वास करने की सदाशयता पर घात लगा दे। और आपको अपने उस पल पर जिसमें आपने अपनी बातों को बताने का फैसला किया था, हमेशा जीवन भर सालता रहेगा। आपको हमेशा दूसरे व्यक्ति पर ही गुस्सा आयेगा जिसने आपके विश्वास को तोड़ा होगा, परंतु वाकई में आप खुद उसके लिये जिम्मेदार हैं। क्या कभी इस बारे में सोचा है ? नहीं न! जी हाँ हम खुद पर कभी गुस्सा करना ही नहीं चाहते हैं, हमेशा ही किसी दूसरे व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराते हैं।

   विश्वास करने की शिक्षा हमें कहीं किसी किताब से नहीं मिलती है, यह हमें हमेशा अपने खुद के अनुभवों से मिलती है। हम कभी किसी के अनुभवों से कोई भी व्यवहार नहीं सीखते हैं, जब तक कि अपना खुद का अनुभव न हो तब तक हम ऐसे किसी अनुभव को याद ही नहीं रख पाते हैं, शायद ईश्वर ने ही हमारी मानसिक स्थिती ऐसी बनाई हुई है। हमारे में अगर किसी और के अनुभवों की सीख से अपनाने का गुण आ जाये तो एक अलग बात है, पर आज के इस आत्ममुग्ध संसार में यह लगभग असंभव है और इस गुण को अपने आप में लाने के लिये आपको आत्मकेंद्रित होना पड़ता है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि इंसान हमेशा सफल आदमी से ही प्रेरित होता है और हमेशा उनके जैसा ही बनने की कोशिश करता है। कभी भी इंसान अपने दम पर अलग से खुद को स्थापित करने की सफल कोशिश नहीं करता है। आजकल के इंटरनेटयुगीन रिश्तों के युग में किसी को भी जानना बहुत आसान हो गया है पर आप केवल उसके विचार जान सकते हैं, उसके पीछे की भावनाओं को समझने के लिये आपको हमेशा ही उस व्यक्तित्व के संपर्क में आना होता है।

   संपर्क में आने पर ही आप देख पायेंगे कि व्यक्तित्व में विचारों (जिससे आप प्रभावित हुए) और उनके जीवनचर्या में अक्सर ही जमीन आसमान का अंतर होता है। यह अलग बात है कि आप कभी यह निश्चय नहीं कर पायेंगे कि उस व्यक्तित्व ने भी आपसे कुछ बातें ग्रहण की हैं, यह मानवीय स्वभाव है। हम किसी और के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को दोहराने की चेष्टा करते हैं क्योंकि हम सोचते हैं कि अगर वही शारीरिक क्रियाएँ हम दोहरायेंगे तो शायद हम भी वैसे ही किसी विचार को पा सकते हैं।

   जब आप ऐसे किसी भी व्यक्ति के संपर्क में आते हैं जिससे आप प्रभावित हैं तो मुझे लगता है कि हमें ध्यान रखना चाहिये – जो व्यक्ति अभी भी उनसे संपर्क में हैं या निकट हैं या उनका कार्य करते हैं, उन पर हमें विश्लेषण करना चाहिये जिससे आप खुद ही अपने आप निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे। आपको किसी और व्यक्ति से मशविरा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । खुद ही विश्लेषक बनना अपने जीवन को आसान बनाना होता है, किसी और पर निर्भरता हमेशा ही हमें गलत राह पर ले जाती है। अपने मनोमष्तिष्क को दूसरे पायदान पर ले जाने के लिये हमें खुद के लिये बहुत ही मेहनत करनी होगी।

धर्म वैज्ञानिकों की मशीनों से मधुमेह को काबू में किया गया

धर्म वैज्ञानिकों के द्वारा किये जा रहे मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप की पिछली पोस्ट के बाद मुझसे कई मित्रों और पाठकों ने द्वारका आश्रम का पता और फोन नंबर के बारे में पूछा, मैं आश्रम गया जरूर था पर पता मुझे भी पता नहीं था, आज हमारे पास पता भी आ गया है और फोन नंबर भी उपलब्ध है।

 

उसके पहले एक बात और मैं साझा करना चाहूँगा कि हमारे मित्र मधुमेह के लिये आश्रम नियमित तौर से जा रहे थे और उन्हें काफी आराम भी है, पहले उनकी शुगर 180 के आसपास रहती थी, और कई बार की कोशिश के बाद ज्यादा से ज्यादा 145-148 तक आती थी, साधारणतया शुगर की मात्रा 140 होती है, आज उनकी शुगर 132 आयी तो वे भी बहुत खुश थे, हालांकि अभी दवाई भी जारी है, जहाँ तक मुझे याद है गुरू जी ने बताया था कि धीरे धीरे दवाई की मात्रा कम करते जायेंगे। फेसबुक पर भी एक टिप्पणी थी कि अगर कोई इंसुलिन वाला मरीज ठीक हुआ हो तो उसके बारे में बतायें, तो मैं मेरे मित्र चित्तरंजन जैन से आग्रह करूँगा कि वे इस बारे में पता कर सूचित करें।

 

इसी बाबद मेरे ऑफिस में एक सहकर्मी से स्लिप डिस्क की बात हो रही थी, कि उनकी बहिन को यह समस्या लगभग 2 वर्ष से है और पहले तो वे बिल्कुल भी पलंग से उठ भी नहीं पाती थीं, पर फिर उन्हें किसी से पता चला कि सोहना (हरियाणा में, गुड़गाँव से 40 कि.मी.) में कोई व्यक्ति देशी दवा से इलाज करता है और वो पैर की कोई नस वगैराह भी दबाता है, तो उनकी बहिन को कुछ ही दिन में बहुत आराम मिल गया, वे बता रही थीं कि उनकी बहिन अब घर में अपने सारे काम खुद ही कर लेती हैं, उनके लिये भी हमने पता किया था, तो हमें मित्र द्वारा सूचना दी गई कि स्लिप डिस्क वाली समस्या में भी किसी मरीज को काफी लाभ हुआ है।

 

बात यहाँ मानने या न मानने की तो है ही, क्योंकि जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वे इसे वैज्ञानिक पद्धति का इलाज मानकर करवा सकते हैं, और जो ईश्वर को मानते हैं वे इस ईलाज के लिये बनाई गई मशीनों के लिये अपने वेद और पुराणों में वर्णित प्राचीन पद्धति को धन्यावाद दे सकते हैं।

 

द्वारका आश्रम का पता इस प्रकार से है –

 

धर्म विज्ञान शोध ट्रस्ट

द्वारिका”, नीलगंगा रोड,

लव-कुश कॉलोनी,

नानाखेड़ा,
उज्जैन (म.प्र)

Phone – धर्म वैज्ञानिक उर्मिला नाटानी 0734 42510716

 

Dharma Vigyan Shodh Trust

Dwarika”, Neelganga Road,

Lav-Kush Colony,

Nanakheda, Ujjain (M.P.)

Phone – Religious Scientist 0734 – 42510716

धर्म वैज्ञानिक जो बिना किसी दवा के मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप को ठीक कर रहे हैं

धर्म वैज्ञानिक नाम ही कुछ अजीब लगता है न, लगना भी चाहिये हमारे पूर्वज, ऋषि, महर्षियों ने जो भी नियम हमारे लिये बनाये थे, उन सबके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर होता है, बस उन कारणों को लोगों को नहीं बताया गया, केवल रीत बना दी गई और डर भी बैठा दिया गया कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो अच्छा नहीं होगा। जो धर्म पर अध्ययन कर उसके पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को ढ़ूँढ़ते हैं, इस बार के उज्जैन प्रवास के समय हमारे मित्र चित्तरंजन जैन ने हमें इस नई संस्था से अवगत करवाया, हम उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं, जब तक कि वे खुद किसी चीज से संतुष्ट नहीं होते जब तक वे न तो किसी को कुछ बताते हैं और न ही दिखाते हैं।
इस बार हम शाम के समय उनकी दुकान पर बैठे हुए थे, तो उन्होंने हमसे पूछा कि अगर आप एक घंटा फ्री हों तो हम आपको नई जगह ले चलते हैं, जहाँ मैंने भी पिछले 7 दिन से जाना शुरू किया है, इस जगह आश्रम का नाम है द्वारिका, हम उनके साथ चल दिये, कि चलो हमारे पास एक घंटा है, और हम भी कुछ ज्यादा जानें इस आश्रम के बारे में। जाते जाते हमें हमारे मित्र ने बताया कि आपको तो पता ही है कि हमें मधुमेह की बीमारी है और यहाँ पर मात्र 30 दिन में मधुमेह को हमेशा के लिये खत्म करने की बात कही जाती है, कि उसके बाद कभी भी आपको मधुमेह के लिये दवाई लेनी ही नहीं होगी। उनके ईलाज की पद्धति चार चीजों पर आधारित है, चुँबक, प्रकाश, आकृति और मंत्र। आश्रम में खाने के लिये कोई दवाई नहीं दी जाती है, केवल उपरोक्त चार चीजों पर ही बीमारियों का ईलाज किया जाता है।
हमारे मित्र के साथ हम आश्रम में पहुँचे, वहाँ प्रथम तल पर सामने ही गुरू जी बैठे हुए थे, उनके पास ही हमारे पुराने मित्र मुन्नू कप्तान भी बैठे हुए थे, हमने सबको राम राम की, हमारे मित्र ने हमें कहा कि हम तो ईलाज के लिये जा रहे हैं, आपको भी अगर आजमाना है तो आ जाओ, हमें आजमाना तो नहीं था, परंतु देखना जरूर था, हम उनके साथ कमरे में गये वहाँ तीन पलंग लगे हुए थे, हरेक पलंग की छत पर कुछ आकृतियाँ बनायी हुईं थीं, जैसे कि पिरामिड, त्रिकोण इत्यादि और साथ ही वहाँ विभिन्न तरह के बल्ब लगाकर प्रकाश की व्यवस्था की गई थी, हमारे मित्र ने वहीं पर दीदी जी जो कि वहाँ सेवा देती हैं, उनसे एक थाली ली, जिसमें से कुछ काला सा तिलक अपनी नाभि मे लगाया और 7 तुलसा जी की पत्ती खाईं और फिर चुँबकीय बेल्ट अपनी कमर पर नाभि के ऊपर कस कर लेट गये, उन्हें 15-20 मिनिट अब उसी अवस्था में लेटे रहना था, पूरे आश्रम में मंत्र ध्वनि गुँजायमान थी। तो हम बाहर आकर गुरू जी के पास बैठ गये और उनसे बातचीत कर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करने लगे।
गुरूजी ने हमें पूरे आश्रम की मशीनों से अवगत करवाया, जिन्हें उन्होंने 31 वर्षों के शोध के बाद खुद ही तैयार किया था, और लगभग सभी मशीनें लकड़ी की ही बनी हुई था, जिसमें छत पर अलग अलग आकृतियाँ थीं, गुरूजी ने हमें मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप जैसी मशीनों के बारे में जानकारी दी, कि ये सब बीमारी हम केवल एक महीने में ठीक कर देते हैं, एक बार ठीक होने के बाद उन्हें कभी भी जीवनभर किसी दवाई का सेवन भी नहीं करना होगा। किसी को बुखार हो तो हम उसे केवल 15 मिनिट में ठीक कर देते हैं। किसी को तनाव है तो उसके लिये भी उनके लिये अलग मशीन है और उसके लिये भी मात्र 15 मिनिट लगते हैं। दोपहर बाद हमें भी तनाव तो था ही, परंतु वहाँ के माहौल से और मंत्रों से हमारा तनाव 5 मिनिट में ही दूर हो गया। 
हीमोग्लोबीन अगर कम है तो उसके लिये भी एक अलग यंत्र है, जिसके बारे में हमें बताया गया कि उसमें भी रोगी को रोज 15 मिनिट बैठना होता है और आश्चर्यजनक रूप से 2-4 दिन में ही लाभ दिखने लगता है, इसके पीछे गुरूजी ने बताया कि हमारी अस्थिमज्जा को ब्रह्मंडीय ऊर्जा के संपर्क से ठीक करते हैं, और उनकी सारी मशीनें व यंत्र इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं।
ईलाज के लिये कोई फीस नहीं है, बिल्कुल निशुल्क है, आश्रम की यह सुविधा मुख्य रूप से उज्जैन में ही उपलब्ध है, उज्जैन के अलावा उनके आश्रम इंदौर और इलाहाबाद में भी हैं। पिछले सप्ताह ही मित्र से बात हुई तो उन्होंने हमें बताया कि मधुमेह की जाँच में पता चला कि 15 प्रतिशत का फायदा है, और अब मानसिक शांति पहले से ज्यादा है, साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ज्यादा है।

कृपया पते के लिये इस पोस्ट को देखें ।

आसुस जेनफोन 2 से अपने स्मार्टफोन के अनुभव को चार चाँद लगायें

जब से स्मार्टफोन उपयोग करना शुरू किया है तब से अब तक हमने बहुत कुछ अनुभव किया और ऐसा लगता रहा कि काश हमारा यह अनुभव ओर अच्छा होता, हम जो भी चीज चाहें वह हमारे हिसाब से ही काम करे, कम्पयूटर की दुनिया में यह संभव है कि कुछ चीजों को अलग से लगाकर आप अपने अनुभव को अपने कार्य करने के तरीके को उत्कृष्ट बना सकते हैं, पर छोटे से मोबाईल की दुनिया में यह कठिन ही नहीं हमेशा मुझे नामुमकिन लगा, और अभी भी असंभव ही लगता है, कई बार ऐसा लगा कि काश मेरा विन्डोज फोन को मैं ऑपरेटिंग सिस्टम एन्ड्रॉयड भी संस्थापित कर पाता, हालांकि अभी तक यह मेरी सोच ही है, अभी तक यह हार्डवेयर डिपेन्डेन्ट होने के कारण संभव भी नहीं हो पाया है।

 

स्मार्टफोन में सबसे बड़ी समस्या है बैटरी बहुत ही जल्दी खत्म होती है, और 3जी चलाने पर तो ऐसा लगता है कि किसी ने बैटरी के पानी के सारे नल एकसाथ खोल दिये हैं, और फिर से बैटरी चार्ज करने में लगने वाला ज्यादा समय और ज्यादा परेशानी का सबब है। हमारा स्मार्टफोन हमेशा ही बहुत सारी एप्प से भरा रहता है और हम हमेशा कई सारी एप्प का उपयोग एक साथ करते हैं, तो हमारा स्मार्टफोन का उपयोग करने का अनुभव हमेशा ही खराब रहता है और हम देखते हैं कि हमारा स्मार्टफोन या तो धीमा काम करने लगा है या फिर हैंग हो गया है और हमेशा ही यह अनुभव तकलीफदेह होता है। हमेशा ही मेरा बेटा फोन पर गेम्स खेलने का शौकीन रहा है और हमेशा ही मुझे शिकायत करता है कि डैडी यह स्मार्टफोन बेकार है, हमेशा ही मेरे गेम्स खेलने के बीच में ही हैंग हो जाता है या फिर इसका वीडियो खराब हो जाता है, इसका वीडियो गड़बड़ा जाता है, क्योंकि इसकी रैम बहुत कम है।

 

मोबाईल के जमाने में सेल्फी तो बनती ही है, और अगर फ्रंट कैमरा ठीक न हो तो सेल्फी भी अच्छे नहीं आते हैं, और अब अलग से कैमरा ले जाने का जमाना भी नहीं है, अगर कहीं घूमने भी गये तो पूरा ट्रिप हम अब कैमरे से ही शूट करते हैं, इस काम के लिये हमारे मोबाईल का कैमरा भी अच्छा होना चाहिये, जिससे हमारी यादें आगे के लिये हम सहेज सकें।

 

मुझे ऐसा लगता है कि आसुस जेनफोन 2 मेरे स्मार्टफोन के अनुभव को एक नया ही अवतार देने में सक्षम है और इसके लिये ये पाँच मुख्य फीचर आसुस जेनफोन 2 के हैं –

 

  1. आसुस जेनफोन 2 में 4 जीबी रेम है तो मेरा गेमिंग अनुभव और वीडियो का अनुभव बहुत ही अच्छा होगा।
  2. बैटरी खत्म होने के बाद केवल 39 मिनिट में ही 60 प्रतिशत बैटरी चार्ज हो जायेगी। जिससे मेरी जिंदगी ज्यादा आसान हो जायेगी।
  3. अब मैं बिना फ्लेश के भी अँधेरे में साफ फोटो ले सकता हूँ, क्योंकि यह 400 प्रतिशत ज्यादा ब्राईटन के साथ रात में फोटो खींच सकता है।
  4. 2.3 GHz के प्रोसेसर से मेरे सारे एप्प बहुत ही तेज रिस्पाँस देंगे और मेरा स्मार्टफोन अनुभव बहुत ही उम्दा होगा। मेरा वीडियो भी अच्छा दिखेगा।
  5. रियर कैमरा 13 मेगा पिक्सल और फ्रंट कैमरा 5 मेगा पिक्सल होने से मेरे सेल्फी बहुत ही अच्छे और मेरे ट्रिप के सारे फोटो अच्छे आयेंगे।

 

तो बस अब मुझे है इंतजार आसुस जेनफोन 2 के लांच होने का, और मैं अपने स्मार्टफोन के अनुभव को और परिष्कृत कर सकूँगा।

स्पोर्ट शूज कैसे चुनें (How to select sport shoes)

    जीवन में स्वास्थ्य का अपना ही महत्व है, कहते हैं कि सुबह घूमने से हमेशा ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सुबह घूमने से फेफड़ों को ताजी प्राणवायु मिलती है उसके लिये पता होना चाहिये कि How to select Sport Shoes। सुबह के समय की प्राणवायु में प्रदूषण की बहुत ही कम मात्रा होती है, जिससे हमारे फेफड़े सही तरीके से काम करते हैं। सुबह घूमने का उपर्युक्त समय साधारणतया: 5 बजे होता है, और सुबह की वायु में फूलों की खुश्बू वातावरण को सुगंधित भी कर देती है।
    घूमने के लिये हमेशा ही उपर्युक्त है कच्ची जमीन या घास, आजकल लगभग हर बगीचे में मिल ही जाती है, इससे हमारे पैरों के तलवों में ज्यादा दर्द नहीं होता है, अगर सीमेंट की पगडंडी बनी होती है तो हमारे पैरों के तलवों में दर्द होने लगता है और हम ज्यादा देर नहीं चल पाते हैं। चलने के लिये भी हमारे जूते बेहतरीन क्वालिटी के होने चाहिये जिससे हमारे तलवों में दर्द न हो। चलते चलते हमारे जूतों का शेप बिगड़ जाता है पर फिर भी हम जूते बदलना नहीं चाहते हैं। खेलने वाले जूते भी अलग अलग तरह के आते हैं, जिसमें रोज साधारण चलने के लिये, 5-8 कि.मी. रोज चलने के लिये, 10-12 कि.मी. चलने के लिये, सप्ताह में 3 दिन चलने के लिये, रोज 2-4 कि.मी., 5-8 कि.मी., 10-12 कि.मी., 15-18 कि.मी., 18-21 कि.मी. और मैराथन वाले 41 कि.मी. के दौड़ने के जूते उपलब्ध होते हैं और हमें पता ही नहीं होता है कि कौन सा जूता हमें पहनना चाहिये। साधारणतया हमें 10-12 कि.मी. चलने वाला जूता लेना चाहिये जिससे हम उस जूते को पहनकर थोड़ा दौड़ भी लें तो कोई फर्क नहीं पड़े।
    जूते का सोल केवल रबर वाला नहीं होना चाहिये, नहीं तो जूता बहुत ही जल्दी घिस जायेगा और फिर हमें नया जूता लेने की जरूरत होगी, तो हमेशा ध्यान रखें कि जूते का सोल नीचे से चारों और से बाईंड हो जिससे जूता आपको पूरा कम्फर्ट देगा और जल्दी खराब भी नहीं होगा। मैंने हमेशा स्पोर्ट शूज नेट वाले पहने पर इस बार मैंने सोचा कि बिना नेट ला जूता लूँगा। क्योंकि स्पोर्ट शूज को हमें हर छ महीने में बदल लेना चाहिये,
हमें जूते लिये हुए 6 महीने से ज्यादा हो गये थे और फिर तभी स्नैपडील पर प्यूमा के अच्छे जूतों को देखा तो हमने अपने आप को प्यूमा का स्पोर्ट शूज गिफ्ट कर दिया, अब हमारा प्रात भ्रमण हमारे नये जूते के साथ होता है। हमारे पैरों के तलवों को फिर से वही कम्फर्ट लेवल मिल गया है जो कि 6 महीने पहले हमें नये जूतों में मिला था। तो ताजा प्राणवायु लेना हमारे दिल की बात है जिसे पूरा किया स्नैपडील ने । दिल की डील स्नैपडील से।
I am participating in the #DilKiDealOnSnapdeal activity at BlogAdda in association with SnapDeal.