‘अग्निमीळे पुरोहितम’
वैदिक ऋषिक में यह अग्नि केवल पाचक दाहक प्रकाशक ही नहीं, अपितु यह सर्वज्ञ सर्वान्तर्यामी अग्रगामी नेतृत्व करने वाला सर्वाधिक रमणीय धनों को देने वाला है। अत: जातवेदस वैश्वानर पुरोहित देव इत्यादि रूप में यह अग्नि प्रार्थनीय है।
‘अग्निमीळे पुरोहितम’
वैदिक ऋषिक में यह अग्नि केवल पाचक दाहक प्रकाशक ही नहीं, अपितु यह सर्वज्ञ सर्वान्तर्यामी अग्रगामी नेतृत्व करने वाला सर्वाधिक रमणीय धनों को देने वाला है। अत: जातवेदस वैश्वानर पुरोहित देव इत्यादि रूप में यह अग्नि प्रार्थनीय है।
माता भूमि: पुत्रोsहं पृथिव्या: । अथर्ववेद १२.१.१२
नमो मात्रे पृथिव्यै । यजुर्वेद ९.२२
विश्वबन्धुत्व की भावना –
यत्र विश्वं भवत्येकनीडम
१. माता २. पिता ३.आचार्य ४.अतिथि
मातृदेवो भव पितृदेवो भव आचार्यदेवो भव अतिथिदेवो भव
एकाकी स न रेमे
एकोsहं बहु स्याम, प्रजायेय
तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत
अनुव्रत: पितु: पुत्रो मात्रा भवतु संमना:।जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम॥ अथर्ववेद
३.३०.२
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा
समानी प्रपा सह वोsन्नभाग: – अथर्ववेद ३.३०.६
केवलाघो भवति केवलादी – ऋगवेद १०.११७.६
पुमान पुमांसं परिपातु विश्वत:
समानीव आकूति: समाना हृदयानि व:।समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति॥ ऋग्वेद १०.१९१.४
हे मनुष्यों (व: ) आप सभी को (आकूति: ) विचार संकल्प (समानी) समान होवें। (व: ) आप सभी के (हृदयानि) हृदय (समाना) समान होवें (व: ) आप सभी के (मन: ) मनन-चिन्तन (समानम अस्तु) समान होवें। (यथा) जिससे (व: ) आप सभी का (सुसह-असति) एक साथ रहना होवे। सह अस्तित्व के लिये चिन्तन-मनन, भावना तथा संकल्प में समानता-एकरूपता आवश्यक है।
सप्त ऋषय: प्रतिहिता: शरीरे।सप्त रक्षन्ति सदमप्रमादम ( यजुर्वेद ३४.५५)
पं. सातवलेकर ने मानव शरीर को अपना स्वराज्य बतलाया है। यह शरीर ही रत्नादि से परिपूरित अपराजेय देवपुरी अयोध्या है और सवकीय आत्मा ही इस स्वराज्य का राजा है। शरीर रूपी यह स्वराज्य सभी को सहज ही स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। धनी हो अथवा निर्धनी, सभी व्यक्ति का अपना स्वराज्य है और आत्मा रूपी राजा का शासन इस पर चलना चाहिए। इस प्रकार मनुष्य को अपने शरीर के महत्व का बोध कराया गया है।
भद्रं कर्णेभि:श्रृणुयाम देवा भद्रं
पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।स्थिरैरड्गै:स्तुष्टुवांसस्तनूभिर्येशम देवहितं यदायु:॥ ऋगवेद १.८६.८
भूयश्च शरद: शतात
(शतात शरद भूय: ) और सौ वर्ष से अधिक जीवित रहें ।
न श्व: श्वमुपासीत। को हि मनुष्यस्य श्वो वेद।
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानांपूरयोध्या
(अष्टचक्रा) आठ चक्रों (नवद्वार) नव द्वारों वाला हमारा यह शरीर ही (देवानां) देवताओं की (पू: ) पुरी (अयोध्या) अयोध्या-अपराजेय है। इसलिए यह शरीर सर्वतोभावेन रक्षणीय है, इसको स्वस्थ एवं स्वच्छ बनाए रखना है।
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:
(भद्रा:क्रतव:) कल्याण करने वाली बुद्धियाँ (विश्वत:) सभी तरफ़ से (न:) हमारे पास (आ यन्तु) आवें अर्थात ज्ञान की उत्तम धाराएँ हमको प्राप्त होवें।
वेदों का महत्व –
वेद भारतीय अथवा विश्व साहित्य के उपलब्ध सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। इनसे पहले का कोई भी अन्य ग्रन्थ अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। इसलिये कहाज आता है कि वे सम्पूर्ण संसार के पुस्तकालयों की पहली पोथी है और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के तो वेद प्राचीनतम एवं सर्वाधिक मूल्यवान धरोहर हैं, हमारे स्वर्णिम अतीत को अच्छी तरह प्रकाशित करने वाले विमल दर्पण हैं।
वेद शब्द का अर्थ ही है ज्ञान और इस तरह वेद दकल ज्ञान-विज्ञान की निधि हैं। परा था अपरा दोनों विद्याओं का निरूपण करते हैं। भगवान मनु का उद्घोष है कि ‘सर्वज्ञानमयो हि स:’ (स: ) वह वेद (सर्वज्ञानमय: ) सभी प्रकार के ज्ञान से युक्त हैं। महर्षि दयानन्द ने वेदों को समस्त सत्य विद्याओं का आकार कहा है। हमारा सम्पूर्ण जीवन, सकल क्रियाकलाप वेदों से ओतप्रोत है, कुछ भी वेद से बाहर नहीं है। इनकी उपयोगिता सार्वकालिक सार्वदेशिक सार्वजनीन है। इसलिए इन वेदों के अध्ययन पर बल दिया गया है और भौतिक विज्ञान के इस अत्यन्त समुन्नत युग में भी वेदों का ज्ञान उपयोगी, अत एवं प्रासंगिक है और इन्हीं वेदों के कारण आज भी हमारी भारतीय संस्कृति संसार में पूजनीया है और भारत देश विश्वगुरू के महनीय पद पर प्रतिष्ठित है।
वेदों का स्वरूप –
वेद अपौरूषेय, अत एवं नित्य हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार इन वेदों की रचना नहीं हुई है, अपितु ऋषियों ने अपनी सतत साधना तपश्चर्या से ज्ञान राशि का साक्षात्कार किया है और प्रत्यक्ष दर्शन करने के के कारण इनकी संज्ञा ‘ऋषि’ है –
ऋषिर्दर्शनात (दर्शनात) दर्शन, करने के कारण (ऋषि: ) ऋषि कहते हैं।
ऋषयो मन्त्रद्रष्टार: (मन्त्रद्रष्टार: ) मन्त्रों को देखने वाले (ऋषय: ) ऋषिलोग (युग के प्रारम्भ में हुए) ।
साक्षात्कृतधर्माण: ऋषयो बभूवु: (साक्षात्कृतधर्माण: ) धर्म-धारक्रतत्व-सत्य का साक्षात्कार करने वाले (ऋषय: ) ऋषिलोग (बभूवु: ) युग के प्रारम्भ में हुए। प्रत्यक्ष किए जाने के कारण वेद प्रतिपादित ज्ञान सर्वथा संदेहरहित निर्दोष, अत एवं प्रामाणिक है। इनमें किसी भी प्रकार की मिथ्यात्व की सम्भावना नहीं है। इसलिये वेदों कास्वत: प्रामाण्य है, अपनी पुष्टि प्रामाणिकता के लिये वेद किसी के आश्रित नहीं हैं। वेदों का सर्वाधिक महत्व इसी बात में है कि इनके द्वारा स्थूल-सूक्ष्म निकटस्थ दूरस्थ, अन्तर्हित व्यवहित, साथ ही भूत, वर्तमान, भविष्यत, त्रैकालिक समस्त विषयों का नि:संदिग्ध निश्चयात्मक ज्ञान होता है और इसीलिए भगवान मनु ने वेदों को सनातन चक्षु कहा है। यह अनुपम ज्ञाननिधि सुदूर प्रचीन काल से आज तक अपने उसी रूप में सुरक्षित चली आ रही है। इसमें एक भी अक्षर यहाँ तक कि एक मात्रा का भी जोड़ना-घटाना सम्भव नहीं है। आठ प्रकार के पाठों से यह वेद पूर्णत: सुरक्षित है।
हम उन बैंक अधिकारी के साथ अपने मित्र के सायबर कैफ़े गये, जहाँ रोज शाम वे इन्टरनेट का उपयोग करने जाते थे, उन्होंने हमें सबसे पहले गूगल में खोजकर हिन्दी के बारे में बताया, फ़िर हिन्दी में कुछ लेख भी पढ़वाये, अब याद नहीं कि वे सब कोई समाचार पत्र थे या कुछ और, बस यह याद है कि किसी लिंक के जरिये हम पहुँचे थे, और वह शायद हिन्दी की शुरूआती अवस्था थी । हिन्दी लिखने के लिये कोई अच्छा औजार भी उपलब्ध नहीं था।
तब तक हमारा 486 DX2 दगा दे चुका था, यह कम्प्यूटर लगभग हमारे पास ४-५ वर्ष चला, और हमने फ़िर इन्टेल छोड़ दिया, और ए एम डी का एथलॉन प्रोसेसर वाला कम्प्यूटर ले लिया, कीबोर्ड हालांकि नहीं बदला वह हमने अपने पास मैकेनिकल वाला ही रखा, क्योंकि मैमरिन कीबोर्ड बहुत जल्दी खराब होते थे और उसमें टायपिंग करते समय टका टक आवाज भी नहीं आती थी, तो लगता ही नहीं था कि हम कम्प्यूटर पर काम भी कर रहे हैं, एँटर की भी इतनी जोर से हिट करते थे कि लगे हाँ एँटर मारा है, जैसे फ़िल्म में हीरो एन्ट्री मारता है।
उस समय लाईवजनरल, ब्लॉगर, टायपपैड, मायस्पेस, ट्रिपोड और याहू का एक और प्लेटफ़ॉर्म था, अब उसका नाम याद नहीं आ रहा है। फ़िर उन्हीं बैंक अधिकारी के साथ ही हम सायबर कैफ़े जाने लगे और हिन्दी के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता ने हमें उनका साथ अच्छा लगने लगा, पर इसका फ़ायदा यह हुआ कि अब वे शाम रंगीन हमारे साथ हिन्दी के बारे में जानने और ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म को जानने में करने लगे। सारे लोग यही सोचते थे कि देखो ये लड़का तो गया हाथ से अब यह भी अपनी शामें सायबर कैफ़े में रंगीन करने लगा है।
परंतु उस समय इन्टरनेट की रफ़्तार इतनी धीमी थी कि एक घंटा काफ़ी कम लगता था और उस पर हमारी जिज्ञासा की रफ़्तार और सीखने की उत्कंठा बहुत अधिक थी। हमने बहुत सारे ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म देखे परंतु ब्लॉगर का जितना अच्छा और सरल इन्टरफ़ेस था उतना सरल इन्टरफ़ेस किसी ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म का नहीं था । हमने वर्डप्रेस का नाम इस वक्त तक सुना भी नहीं था।
काफ़ी दिनों की रिसर्च के बाद क्योंकि इन्टरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी थी और अपनी अंग्रेजी भी बहुत माशाअल्ला थी, तो इन दोंनों धीमी रफ़्तार के कार्यों से ब्लॉगिंग की दुनिया में आने में देरी हुई, तब तक गूगल करके हम बहुत सारे हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगरों को पढ़ने लगे थे, उस समय चिट्ठाग्राम, अक्षरविश्व जैसी महत्वपूर्ण वेबसाईस होस्ट की गई थीं, जिससे बहुत मदद मिलती थी, और उस समय कुछ गिने चुने शायद ८०-९० ब्लॉगर ही रहे होंगे। आपस में ब्लॉगिंग को बढ़ावा देते, टिप्पणियाँ करते, लोगों को कैसे ब्लॉगिंग के बारे में बताया जाये, इसके बारे में बात करते थे। उस समय हम सोचते थे कि कम से कम रोज एक वयक्ति को तो हम अपने ब्लॉग के बारे में बतायेंगे। जिससे पाठक तो मिलना शुरू होंगे।
जारी..
आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।
अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।
PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।
वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।
इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।
नई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।
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