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मेरी बाईकें फ़टफ़टी और मेरा बाईक शौक (My Bike passion..)

    बाईक मेरा बहुत बड़ा शौक रहा है, पहले इसे फ़टफ़टी कहते थे क्योंकि इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज आती थी, पर अब बाईक कहते हैं और इसमें से फ़ट फ़ट की आवाज भी नहीं आती अब तो झूम्म्म की आवाज आती है।
crusedar bike    मुझे बचपन की याद है पापाजी के पास सबसे पहली फ़टफ़टी थी क्रूसेडर, जिसमें से बहुत आवाज आती थी और उस आवाज को सुनकर ऐसा लगता था कि बस अब बहरे हो जायेंगे। फ़िर क्रूसेडर के बाद पापाजी ने यजदि बाईक ली। जो मुझे बेहद ही पसंद थी। ऊँचाई इतनी कि मैं बैठ ही नहीं पाता था, मैंने उसका नाम ऊँट रखा था। उसमें किक और गियर एक ही था, पहले गियर वाले डंडे से किक मारके यजदि चालू करो और फ़िर उसी डंडे को नीचे गिराकर उसका गियर बना लो। ये सब तो मुझे जादू जैसा लगता था।
यजदि की एक खासियत यह अच्छी लगती थी कि उसमें पेट्रोल और ओईल एक अनुपात में मिलाना पड़ता था पर अगर आपको कहीं जल्दी जाना है तो ओईल थोड़ा ज्यादा कर लो, फ़िर तो यजदि रॉकेट बन जाती थी, उसका पिकअप जबरदस्त हो जाता था।
जब बड़े हुए तब तक बाजार में स्कूटर ने अपनी पैठ बना ली थी, औरbajaj super हमारे घर भी आया “हमारा बजाज” याने कि बजाज सुपर स्कूटर। मुझे वह स्कूटर बहुत ही पसंद था और उसी स्कूटर से मैंने दोपहिया वाहन चलाना सीखा था। कॉलेज के कुछ दिन भी उसी स्कूटर से निकले।
फ़िर बाद में मैं उज्जैन आ गया तो पहले मेरे पास एक २८ इंच की luna superएटलस साईकिल थी, डबल डंडे वाली, वह तो मेरे ऊँट से भी ऊँची थी, उस पर बैठने के लिये मुझे एक बड़े पत्थर का सहारा लेना पड़ता था या फ़िर पैर आगे से उचकाकर सीट पर बैठना पड़ता था। साथ ही मुझे मिली काईनेटिक की लूना, जो कि उस समय लगभग ६० किमी माईलेज देती थी। बजाज सुपर पुराना पड़ने लगा था और उसका इंजिन दम तोड़ने लगा था, बजाज सुपर हमारे घर में लगभग १४ वर्ष रहा।
सुपर के बाद हमारे घर में आया फ़िर “हमारा बजाज” का ही बजाज ब्रेवो, जो कि फ़ेल स्कूटर रहा परंतु मुझे ब्रेवो स्कूटर की जो बातें पसंद थीं वे थी उसकी अच्छी ऊँचाई, क्योंकि लगभग सभी स्कूटरों की ऊँचाई थोड़ी कम ही होती थी, और ब्रेवो का पिकअप, गजब का पिकअप था।
इसी बीच दोस्तों की बाईक राजदूत, यमाहा RX100 और कावासाकी बजाज मेरे मनपसंदीदा बाईक रहीं।
राजदूत थोड़ी भारी मोटरसाईकिल थी और उसमें किक पलट कर मारती थी, जिससे कई बार पैर में भी चोट खाई है, उस समय राजदूत का माईलेज लगभग ४० किमी मिलता था, और लगभग हर दूधवाले और पुलिसवाले के पास राजदूत ही होती थी। सबसी अच्छी मुझे राजदूत की चाबी लगती थी, बिल्कुल अलग तरह की, शायद आज तक किसी और बाईक की चाबी वैसी बनी ही नहीं है।
यमाहा RX100 मेरी सबसे करीब रही, इसमें सबसे अच्छी चीज जो मुझे भाती थी वह था इसका पिकअप और आवाज। हमने कई बार साईलेंसर की आधी गुल्ली काटकर लगाते थे, तभी ओरिजनल आवाज आती थी। आज  भी अगर यह बाईक मेरे पास से निकल जाती है तो बिना देखे पता चल जाता है कि RX100 आ रही है।
कावासाकी बजाज ने जब पहली बार बाईक भारत में लाई तो मेरे दोस्त के पास जापान वाला ओरिजनल मॉडल था, और झाबुआ के माछलिया घाट जो कि लगभग १० किमी का बड़ा घाट है, उतार पर हाथ छोड़कर वह घाट पार करने जाते थे। एक बार उसी बाईक से एक दुर्घटना भी हुई, हम घूमने गये थे और बाईक लगभग ८० की रफ़्तार पर चल रही थी और उसमें आईल खत्म हो गया था, जिसका हमें पता ही नहीं था, उसके पिस्टन चिपक गये और हम बहुत दूर तक घिसटते हुए गये, फ़िर एक वाहन में रखकर बाईक वापस लाये थे। खैर बाद में वह ओरिजिनल पिस्टन नहीं मिला। उस समय ओईल हम केस्ट्रोल का उपयोग में लाते थे। www.facebook.com/CastrolBiking
इसी बीच मेरे पास एक बाईक आयी टीवीएस की मैक्स 100 जो कि मेरी सबसे पसंदीदा बाईक रही, उसका पिकअप और उसकी आवाज का तो मैं दीवाना था और यह बाईक भी दूधवालों के पास बहुत प्रसिद्ध रही। यह बाईक मेरे पास लगभग २ वर्ष रही और इस बाईक से मैंने उज्जैन के आसपास के लगभग सारी जगहें घूम डाली थीं, लगभग हर गाँव भी। इस बाईक से मुझे लांग ड्राईव पर जाना बहुत अच्छा लगता था, और खासकर सुबह जब सूरज आसमान पर चढ़ रहा होता था, और मैं खेतों के बीच यह बाईक लेकर घूमा करता था।
फ़िर मेरे पास आई बजाज की सीडी १००, माईलेज और मैंन्टेनेन्स के लिहाज से बहुत अच्छी बाईक है, और इससे मैंने इंदौर बहुत आना जाना किया एक एक दिन में मैं इससे लगभग १५० किमी तक की सवारी कर लिया करता था। इसका पिकअप थोड़ा कमजोर था, परंतु बाकी मामलों में ठीक थी।
इसके बाद थोड़े दिन हमने हीरो हांडा और पल्सर के भी मजे लिये, अब बैंगलोर में आकर फ़िर बाईक की जरूरत पड़ी तो हमने फ़िर सुजुकी मैक्स 100 का पता किया तो पता चला कि वो तो कब की कंपनी ने बंद कर दी है। हमें सुजुकी का इंजिन बेहद पसंद है और इसकी मशीन के आगे हमें और किसी कंपनी की बाईक की मशीन पसंद ही नहीं है, फ़िरThunderbird सोचा कि रॉयल एनीफ़ील्ड की थंडरवर्ल्ड बुलेट ली जाये जो कि 350 सीसी की है परंतु बैंगलोर में इसका वैटिंग पीरियड लगभग १० महीने का था और हमें बाईक एकदम चाहिये थी, अब चूँकि वजन बड़ चुका है इसलिये 100 सीसी की बाईक से काम नहीं होने वाला था, इसलिये हमने 125 सीसी की बाईक लेने की सोची, जिससे पिकअप और माईलेज अच्छा मिले।
suzuki sling shot plus
हमने ली सुजुकी स्लिंगशॉट प्लस हाईएन्ड मॉडल जिसमें ऑटो स्टार्ट और एलॉय व्हील हैं। और इसकी बैठने के लिये सीट बहुत ही आरामदायक है, बाईक को इस तरह से डिजाईन किया गया है कि अगर दो लोग भी बैठे हैं और बाईक रफ़्तार में है तो इसका बैलेन्स नहीं बिगड़ेगा, इसकी पीछे वाली सीट ऊँची दी गई है।
ऐसी बहुत सारी बाईकें जो मैंने चलाई हैं उन सभी को मैं यहाँ शामिल नहीं कर पाया परंतु बाईक की दीवानगी आज भी सिर चढ़कर बोलती है।  आज भी बाईक को चलाते समय ऐसा लगता है कि मैं बहुत ऊर्जावान घोड़े पर बैठ सवारी कर रहा हूँ। आज भी मेरा सपना है कि मैं पूरा राजस्थान बाईक से घूम कर आऊँ। देखते हैं कि यह सपना कब पूरा हो पाता है।
यह पोस्ट केस्ट्रोल पॉवर1 ब्लोगिंग प्रतियोगिता की एक प्रविष्टी है, जो कि इंडीब्लॉगर ने आयोजित की है। अगर प्रविष्टि पसंद आये तो इंडीब्लॉगर में लॉगिन करके वोट दीजिये।

बैंगलोर में प्रोजेक्ट, पिता परिवार से दूर और छोटे बच्चे पर उसका प्रभाव

हमारे एक मित्र हैं जो कि पिछले ६ महीने से बैंगलोर में प्रोजेक्ट के कारण अपने परिवार से दूर हैं। हालांकि माह में एक बार वे अपने परिवार से मिलने जाते हैं, उनका एक छोटा बच्चा भी है जो कि ४ वर्ष का है। कल उनसे ऐसे ही बातें हो रही थीं, तो बहुत सारी बातें अपनी सी लगीं, क्योंकि यही सब मेरे साथ मेरे अतीत में गुजर चुका था। ऐसा लगा कि वे अपनी नहीं मेरी बातें कह रहे हैं, फ़िर मैंने कुछ बातें बोलीं तो उनसे वे भी सहमत थे।
मैं अपने परिवार के साथ अब लगभग पिछले तीन-चार वर्षों से रह रहा हूँ उसके पहले दो वर्ष लगभग ऐसे बीते कि मैं हमेशा क्लाईंट लोकेशन पर ही रहता था और वहाँ परिवार को ले भी नहीं जाया सकता था, क्योंकि सब प्रोजेक्ट पर निर्भर था, और प्रोजेक्ट अस्थायी होते हैं। जैसे ही प्रोजेक्ट खत्म हुआ अपनी बेस लोकेशन पर वापसी हो जाती है।
पिछले तीन-चार वर्षों में भी क्लाईंट के पास जाना हुआ परंतु वहाँ रहना लंबा नहीं होता था, अब हमारी टीम वहाँ रहती थी और हम किसी जरूरी काम से ही जाते थे।
मित्र से बात हो रही थी, कह रहे थे कि अब बेटा फ़ोन पर कहता है कि आपसे बात नहीं करनी है। बीबी भी कभी कभी नाराज हो जाती है, अब ये सब तो ऐसी परिस्थितियों में चलता ही रहता है, क्योंकि जब पति और पिता बाहर हों और सांसारिक परिस्थितियों का अकेले मुकाबला करना हो तो इस तरह की बाधाएँ आती ही हैं।
बेटे को मनोचिकित्सक के पास दिखाया तो मनोचिकित्सक ने हमारे मित्र को राय दी कि आप कैसे भी करके जल्दी से अपने परिवार के साथ रहें तो सब के लिये यह अच्छा होगा। उनका बेटा  बहुत जिद्द करने लगा है, मम्मी की सुनता नहीं है, खाना नहीं खाता है। मित्र ने बताया कि पहले बेटा मुझसे बहुत खेलता था परंतु आजकल वैसा नहीं है, हमने कहा कि अब बेटॆ को लगता है कि शायद उससे भी कोई जरूरी चीज है जो कि पापा को मुझसे दूर ले गई है, अब इस उम्र में बच्चे को समझाना नामुमकिन है। उसके कोमल मन में तो है कि पापा मम्मी हमेशा मेरे साथ रहें। जब वे पिछली बार बैंगलोर आ रहे थे तो अपने बेटॆ को बोले कि मैं बैंगलोर जा रहा हूँ, तो बेटा साधारण तौर पर बोला कि ठीक है जाओ। इतनी साधारण तरीके से बोलना देखकर हमारे मित्र को  भी बहुत बुरा लगा और दूर रहने का प्रभाव दिखने लगा।
हमारे मित्र की बातें सुनकर हमें भी अपने पुराने दिन याद आ गये। जब हम भी ऐसे ही घर जा पाते थे, जैसे ही हम अपना बैग पैक करते थे तो पहले तो हमारा बेटा बैग के पास ही रहता था कि पता नहीं डैडी कब चले जायें, और जाने के समय बहुत रोता था, बहुत प्यार करके मैं उसको चुप करवाकर जाता था। बहुत दिनों तक ऐसा चला फ़िर धीरे धीरे मेरे बेटे को इस सब की आदत पड़ गई, और वह मेरे जाने के प्रति लापरवाह हो गया। कुछ दिनों बाद पता नहीं क्या हुआ वह हमारा आने का बेसब्री से इंतजार करता और बहुत प्यार करता। उस समय मैं मुंबई में था और वह हमसे कहता कि हमें भी मुंबई देखना है, हमें मुंबई ले चलो, बस उसके कहने भर की देर थी और लगभग उसी समय हमारा प्रोजेक्ट खत्म हो गया, तो एकदम हमने परिवार को मुंबई ले गये।
जीवन का वह दौर आज भी याद है, इतनी मुश्किल इतनी कठिनाईयाँ जो कि छोटी छोटी होती हैं, परंतु अपने आप में उनका सामना करना बहुत ही कठिन होता है, और ये ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है। ऐसा दौर हमने भी देखा है परंतु उस समय तक हम समझदार हो चुके थे, इसलिये हमें बातें समझ में आती थीं, परंतु छोटे बच्चों से उनका बचपन में अगर यह कहा जाये तो शायद बहुत ही जल्दी होगी।
हमने भी मित्र को सलाह तो दी है अच्छा है कि जल्दी अपने परिवार के पास जाओ या अपने परिवार को यहाँ ले आओ, पर आई.टी. में प्रोजेक्ट जो ना करवाये वह कम है।

भूकम्प जो सबको हिला गया Tremors Tsunami

कल दोपहर लगभग दोपहर २.०८ पर भूकम्प आया था, और कई जगहों से इस खबर की पुष्टि भी हुई, हम उस समय कैन्टीन से दोपहर का भोजन कर लौट रहे थे और रास्ते में थे तो शायद हमें पता नहीं चला।

जैसे ही अपने अपनी सीट पर पहुँचे वहाँ चारों तरफ़ अफ़रा तफ़री फ़ैली हुई थी, सभी लोग इमारत से बाहर जाने के लिये जल्दी कर रहे थे, सबके चेहरे पर घबराहट साफ़ नजर आ रही थी। पता चला कि १० वीं मंजिल पर लोगों को अपने पानी की बोतलें और कम्प्यूटर हिलते हुए महसूस हुए। हमने सुरक्षा अधिकारी को फ़ोन लगाकर स्थिती का जायजा लिया तो उन्होंने हमें कहा कि हाँ १० वीं मंजिल से ऐसी खबर आई तो है, हमारे सुरक्षा अधिकारी अभी स्थिती का जायजा ले रहे हैं, और अगर इमारत खाली करनी होगी तो सभी मंजिलों पर उद्घोषणा कर दी जायेगी।

और हमने अपने फ़ेसबुक पर अपना यह स्टेटस अपडेट कर दियाimage

इसी बीच चैन्नई से भी कई अपडेट आ रहे थे, हमारे पास ही बैठने वाली हमारी साथी जो कि चैन्नई से थीं, उनके पास लगातार फ़ोन से खबरें आ रही थीं, वहाँ उनके मकान में एक दरार भी आ गई।

कल के भूकम्प का केन्द्र इंडोनेशिया बताया गया और लगभग २८ देशों में सुनामी की चेतावनी जारी कर दी गई। प्रशांत प्रियदर्शी के फ़ेसबुक स्टेटस से पता चला कि चैन्नई में ट्राफ़िक का बुरा हाल है।

आज सुबह अभी फ़िर से मैक्सिको में ७.४ तीव्रता के भूकम्प के झटकों की खबर आ रही है। अब डरने से तो कुछ होगा नहीं और ना ही आम आदमी प्रकृति का सामना कर सकता है। तो यह आदमखोर शेर के सामने एक आदमी के खड़े होने की स्थिती है।

फ़ोर्स बैचलर रहने का मौका|

वर्ष भर में एक बार कम से कम एक माह के लिये फ़ोर्स बैचलर रहने का मौका मिलता है, कुछ कमियां खलती हैं, तो कुछ रोज रोज के अड़ंगों से मुक्ति भी मिल जाती है। सबका अपना अपना अनुभव होता है। इस वर्ष भी वह एक माह हमारा आज से शुरू हुआ है, पर अब फ़ोर्स बैचलर रहने का ना मजा आता है और ना ही रोमांच रह गया है। शायद अपने परिवार की ज्यादा ही आदत पड़ गई है, कुछ लोग कहते हुए पाये गये कि भई तुम अब बुढ्ढे हो गये हो, पर क्या परिवार की आदत और उनको प्यार क्या व्यक्ति को वाकई बुढ्ढ़ा बना देती है ? एक यक्ष प्रश्न जैसे हम से हम ही आमने सामने खड़े होकर पूछ रहे हैं।
समाज परिवार से व्यक्ति की पहचान करता है और परिवार में हर व्यक्ति की अपनी पहचान और जिम्मेदारियां होती हैं। अकेले रहने का रोमांच भी व्यक्ति को शायद इसलिये उद्वेलित करता है कि वह सब कार्य जो कि परिवार की उपस्थिती में नहीं किये जा सकते वे सब बिना रोक टोक के किये जा सकते हैं। वहीं कुछ दैनिक कार्य हैं जिनके लिये व्यक्ति परिवार पर निर्भर करता है। पहले किसी जमाने में एक अकेलेपन का भी एक मजा था, दोस्तों के साथ गपबाजी और समय अपने हिसाब से काटना एक शगल होता था। लगभग सभी दोस्त ऐसे मौके का बेसब्री से इंतजार करते थे। परंतु तेजी से वक्त ने करवट बदली और अब यह शगल मजा की जगह सजा जैसा लगने लगा है।
आज तो पहला दिन है अभी तो पूरे ३४ दिन अकेले रहना है, घर सम्हालना है। और यह पूर्ण महीना पता नहीं अभी और कितने नये अनुभव दिखायेगा।

पल भर के लिये कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही

पल भर के लिये कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही, गाना क्या बंगले में फ़िल्माया गया है, इत्ते सारे खिड़की दरवाजे, कि हीरो देवानंद को सारे पता हैं और हीरोईन हेमामालिनी खिड़की दरवाजे बंद करके थक रही है। अच्छा गाना है प्यार में नाराज और गुस्सा और मनाना, जब हीरोईन मारने आये तो खुद को समर्पित कर दिया।गीत इतना बेहतरीन लिखा गया है, एक एक पंक्ति प्यार की स्याही में डुबाकर लिखी गई है, गाना सुनकर दिल रोमांचित हो उठता है और भावनाएँ उमड़ घुमड़ पड़ती हैं।

हेमामालिनी की अदाएँ

आज सुबह यह गाना किशोर कुमार की सदाबहार आवाज में सुना, इस गाने में देवानंद और हेमामालिनी की अदाएँ देखते ही बनती हैं, गाने की पंक्तियों में कहा खटमल के लिये गया है और हेमामालिनी शरमा रही हैं।
हमारे एक मित्र हैं जो कि उम्र में हमसे बहुत बड़े हैं, वे लगभग पुराने हर गाने का पोस्टमार्टम कुछ ऐसे अंदाज में करते हैं कि आज की पीढ़ी पुराने सारे गाने पसंद करने लगे, ऐसे लोगों की बहुत जरूरत है।

भयावह स्वप्न – ड्रेगन, बख्तरबंद ट्रक और पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना

उफ़्फ़ रात को भयावह स्वप्न आ रहे हैं पता नहीं किस बात का अंदेशा है ।
स्वप्न १
साड़ी में लिपटी हुई माता के ऊपर ड्रेगन की नजर है और ड्रेगन के मुँह से आग निकल रही है, आग निकालते हुए बड़े बड़े यंत्र बेरहमी से बड़ते जा रहे हैं, और माता के सैनिक अपने खटारा आग निकालने वाले यंत्रों के साथ चुपचाप खड़े हैं, उनके दोनों हाथ सफ़ेद टोपी और खादी पहने लोगों ने खादी के सूत से पीछे की और बाँध रखे हैं, इतना भयावह स्वप्न देख आँख खुल गई।
स्वप्न २
हमारी सशस्त्र सेना युद्ध के मैदान में ट्रकों से जा रही है, बड़े बड़े बख्तरबंद ट्रक हैं, जैसे ही पहाड़ी इलाका आया, ट्रकों की साँसें फ़ूलने लगीं और जवानों को पैदल ही युद्ध के मैदान की और बढ़ना पढ़ रहा है और दुश्मन अपने आधुनिक शस्त्रों के सहारे कबका सीमारेखा पार कर चुका है, दूसरी और सफ़ेद टोपी और खादी वाले लोग बड़े बड़े बक्से लेकर अपने चार्टड विमानों की और जा रहे हैं। यह तो सारी जनता को पता है तो ये स्वप्न आसानी से झेल गये।
स्वप्न ३
एक गोल महत्वपूर्ण इमारत में सेना मार्च करती हुई दाखिल हुई और कानून बनाने के लिये कब्जा कर लिया गया, सारे खादी खद्दर वालों को तोप के मुँह पर बाँधकर जनता के बीच ले जाया जा रहा है, बख्तरबंद गाड़ियाँ दौड़ी जा रही हैं और सशस्त्र सैनिक लोगों का खून पीने वाले विभागों के अफ़सरों के यहाँ धावा कर बख्तरबंद गाड़ियों में हरे हरे पत्ते भर रहे हैं, सारे पत्तों को वापिस पेड़ पर ट्रांसप्लांट करने के लिये वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी फ़ौज लगी हुई है, और वहीं कुछ खाकी में लिपटे हुए लोग अपना डंडा लेकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, एक सैनिक की फ़ूँक से ही सब हवा में उड़ते हुए अंतरिक्ष में अंतर्धान हो जाते हैं, पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना जारी है, साथ के सीमारेखा वाले हरे होते हुए पेड़ को देखकर थरथर काँपने लगते हैं।
पता नहीं ये स्वप्न कैसे हैं, कहते हैं कि कभी स्वप्न भी सच्चे हो जाते हैं।
नोट – यह हमारे सच्चे स्वप्नों पर आधारित है किसी और घटना से जोड़कर ना देखा जाये।

भोरकालीन वातावरण और प्रकृति के अप्रितम रंग

ओस युक्त पत्तियाँसुबह जल्दी उठकर प्रकृति का आनंद लेना, मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा है, प्रकृति के इस रम्य वातावरण को देख मन आह्लादित हो उठता है। जो प्रसन्नता मन को भोरकालीन वातावरण में मिलती है, वह अवर्णनीय है। सुबह पंक्षियों का कलरव, मंद गति से बहती शीतल हवा, बयार में शांत पेड़ पौधे अपने अप्रितम सौंदर्य का दर्शन देते हैं, दैनिक जीवन की शुरूआत से पहले बिल्कुल शांत और निर्वाण रूप होता है सुबह का।

पक्षी स्वच्छन्दता से अपने पंखों से उड़ रहे होते हैं और डैने फ़ैलाकरपक्षियों का कलरव आकाश में क्रीड़ा कर रहे होते हैं। पक्षियों की इस क्रीड़ा को देखने से मन ऊर्जास्फ़ुरित हो उठता है। कुछ पक्षी उड़ान के अपने नियम बनाते हैं और कुछ पक्षी अनुशासन में एक के पीछे एक पंक्ति में उड़ान भरते नजर आते हैं। इन पक्षियों को देखकर ही विचार मुखरित हो उठते हैं और हृदय को मिलने वाली प्रसन्नता शब्दों में कह पाना कठिन होता है।

पौधे अपने निर्विकार रूप में खडे होते हैं, पेड़ पौधों में जान होती है परंतु वे स्व से अपने पत्तियों को खड़का नहीं सकते, वे तो प्रकृति प्रदत्त वातावरण पर आश्रित होते हैं। भोर में पेड़ पौधों पर पड़ी ओस, मोती सा आभास देती है, और जलप्लवित पत्तियों से ऊर्जा संचारित होती है, वह ऊर्जा लेकर हम अपने जीवन की शुरूआत करते हैं।

कुछ समय पूर्व रंगों के त्यौहार पर इस बागीचों के शहर में पंक्तिबद्ध रंगबिरंगे फ़ूलों के बड़े बड़े पेड़ों को देखते ही बनता था, प्रकृति प्रदत्त इन रंगीन फ़ूलों को देखकर ही लगता था कि रंगों का त्यौहार आ चुका है, सड़क किनारे कच्ची पगडंडियों पर गिरे इन फ़ूलों का अप्रितम सौंदर्य देखते ही बनता है। विभिन्न रंगों के फ़ूल जीवन के विभिन्न रंगों को प्रदर्शित करते हुए, गीत गाते हुए जीवन को नया राग देते हैं।

प्रकृति की इस मौन भाषा को देखकर और अहसास से ही समझा जा सकता है, भोर के इस थोड़े से समय बाद जीवन की भागदौड़ में ये भोरकालीन मंच अपने आप पर पर्दा गिराकर फ़िर से दिनभर के लिये लुप्त हो जाता है। यह भोरकालीन मंच का आनंद लें और अपने जीवन को खुशियों में प्रकृति संग बितायें।

भोरकालीन कुछ और चित्र जिन्हें देखकर मन आनंद की सीमाओं के परे दौड़ पड़ता है।

पत्तियों का सौन्दर्य पत्तियों पर ओसभोरकालीन पत्ती मोर का अहसास करवाता फ़ूल

आम आदमी बेबस और उसका लक्ष्य !

कल ऑफ़िस से वही देर से आये, रात्रिभोजन और टहलन के पश्चात १० मिनिट टीवी के लिये होते हैं और फ़िर शुभरात्रि का समय हो जाता है। कल जब टीवी देखना शुरू किया तो फ़िल्म “शूल” आ रही थी, और यह मेरी मनपसंदीदा फ़िल्मों में से एक है।

मनपसंदीदा फ़िल्म इसलिये है कि आदमी की बेबसी और उसके द्वारा तय किया गया लक्ष्य कैसे प्राप्त किया गया, इसका बेहतरीन चित्रण है।

आम आदमी बेबस और कमजोर नहीं होता, केवल परिवार के कारण भयभीत होता है, अगर आम आदमी भयभीत होना छोड़ दे तो सारा तंत्र एक दिन में सही हो जाये, परंतु आम आदमी बेबस ठहरा। कहीं भी हो किसी भी तरह की संस्था में हो, गलत का साथ देना या आँख मूँदकर गलत होने देना केवल बेबसी के कारण करता है, अगर गलत का विरोध करेगा तो जितना भय और गलत लोगों से उसे खतरा होगा वह आम आदमी टालना चाहता है।

इसके उदाहरण बहुत सारे हैं, जिन्होंने अपनी जान गँवाई है फ़िर वो किसी एनजीओ के कार्यकर्ता हों या फ़िर पत्रकार या फ़िर और कोई इंजीनियर, ये सब भी बेबस थे परंतु निर्भीक थे और तंत्र से लड़ना चाहते थे, सो तंत्र ने उन्हें गहरी नींद सुला दिया।

लक्ष्य अधिकतर फ़िल्मों में ही मिलता है, क्योंकि आम जीवन में तंत्र इतना प्रभावशील होता है कि उसमें रीटेक की कोई गुंजाईश ही नहीं होती।

बीबी को नई चप्पल

श्रीमतीजी याने की बीबी को नई चप्पल लेनी थी सो बाटा की बड़ी दुकान घर के पास है वहीं जाना हुआ, अब एक बार बड़ी दुकान में घुस जायें तो सारी चीजें न देखें मजा नहीं आता, और खासकर इससे थोड़ी सामान्य ज्ञान में वृद्धि होती है, खरीदें या ना खरीदें वो एक अलग बात है।

चप्पल तो ले ली और हम भी अपने लिये देखने लग गये, वैसे हमेशा यही ऐतराज होता है आते हमारे लिये हैं और खरीददारी खुद के लिये होती है, खैर शिकायतें तो कोई न कोई रहती ही हैं।

जब हम अपने लिये एक सैंडल देख  रहे थे तभी एक और व्यक्ति पास में से अपनी पत्नीजी को अंग्रेजी में बोलता हुआ गुजरा “तुम हमेशा मुझे वही चीज खरीदने पर मजबूर करती हो, जो मुझे नहीं खरीदनी है।”, हमारी जबान भी फ़िसल गई “अबे ढ़क्कन खरीदता क्यों है”, अब वो हमारे पीछे ही खड़ा था, और उसे हिन्दी भी समझ आती थी, उसके बाद वो हमें घूरने लगा। अनायास ही अपने एक बुजुर्ग मित्र बात समझ में आने लगी “जो व्यक्ति बीबी से डरता है, वही बाहर शेर बनकर दहाड़ता है, भले ही उसकी दहाड़ में दम हो या ना हो”।

और उधर ही एक विज्ञापन भी याद आ गया पुराना है मगर सबकी जबां पर था – “जो बीबी से करे प्यार वो प्रेस्टीज से कैसे करे इंकार”।

खैर फ़िर हमने उस दुकान में चमड़े के बैग देखे, पॉलिश और बेल्ट देखी, मगर एक निगाह अपने ऊपर घूमती हुई महसूस हुई, जो कुछ बोल नहीं पा रही थी। लगता है कि अपनी टिप्पणी केवल ब्लॉग के लिये है, जीवंत टिप्पणी किसी को अच्छी नहीं लगती है।

आज वैलंटाईन डे है, सबको प्यार भरी शुभकामनाएँ, यह वर्ष प्यार भरा रहे।

गूगल का वैलंटाईन डे पर डूडल देखिये –