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मेरी जिंदगी के कुछ लम्हे (नदी किनारे पिकनिक और गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्य सृजन).. My life my experience

नदी किनारे पिकनिक मनाने का आनंद ही कुछ और होता है, नदी हमारे शहर से करीबन १० किमी. दूर थी, वहाँ पर शिवजी का प्राचीन मंदिर भी है और एक गोमुख है जिससे लगातार पानी निकलता रहता है, किवंदती है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान यह गौमुख अस्तित्व में आया था। कहते हैं कि गंगाजी का पानी है, और वह कुंड जिसमें पानी आता है हमेशा भरा रहता है। पानी नदी में प्रवाहित होता रहता है।

नदी के पाट पर बड़े छोटे पत्थर, कुछ रेत और उनके बीच में से निकलता नदी का उनमुक्त जल, जो पता नहीं कब कहाँ निकल आता और कैसा अहसास करा जाता। इसीलिये नदी किनारा हमेशा से मेरा पसंदीदा स्थान रहा है। जब हम मंगलनाथ पर नदी के किनारे बैठते थे तो गजानन माधव मुक्तिबोध की याद आ जाती थी, कहीं पढ़ा था कि मुक्तिबोध मंगलनाथ पर नदी के किनारे बैठकर ही साहित्य सृजन किया करते थे।

केवल इसी कारण से नदी हमारा पसंदीदा स्थान था, पिकनिक मनाने के लिये, सब सामान हम अपने साथ ले जाते थे, हम पाँच मित्र थे जो भी सामान पिकनिक में लगता सब अपने अपने घर से कच्चा ले जाते थे, जैसे कि आटा, दाल, मसाले, सब्जियाँ, पोहे.. इत्यादि। सब अपनी सुविधा के अनुसार घर से निकलते थे हालांकि समय निश्चित किया रहता था, पर उस समय मोबाईल तो क्या लैंड लाईन भी घर पर नहीं था।

हम दो दोस्त साईकल से नदी के लिये निकलते थे, हमारे दो दोस्त सारा समान लेकर स्कूटर से पहले ही पहुँच जाते थे। साईकल से १० किमी जाना और फ़िर शाम को आना पिकनिक के मजे को दोगुना कर देता था। इससे लगता था, अहसास होता था कि हम कितने ऊर्जावान हैं।

सुबह नदी पहुँचकर सबसे पहले शिवजी के दर्शन और अभिषेक करके पिकनिक का शुभारम्भ किया जाता। एक दोस्त रुककर लकड़ियाँ बीनकर इकट्ठी करता और उनका चूल्हा बनाने का बंदोबस्त करता और बाकी के चार हम लोग निकल पड़ते पास के खेतों में भुट्टा ढूँढने, जल्दी ही पर्याप्त भुट्टे लेकर वापिस आते और चूल्हे पर पकाकर रसभरे दानों का आस्वादन करते। भुट्टे का कार्यक्रम समाप्त होते होते फ़िर भूख तीव्र होने लगती तो पोहे बनाने की तैयारी शुरु होने लगती, किसी हलवाई को हम साथ लेकर नहीं जाते थे, सब खुद ही पकाते थे, नाश्ते में पोहे सेव और खाने में दाल बाफ़ले और सब्जी। बाफ़ले पकाने के लिये,  कंडे मंदिर से ही मिल जाते थे। खाना पकाने के बर्तन भी मंदिर से उपलब्ध हो जाते थे।

खुद ही पकाते थे और सब मिलकर खुद मजे में खाते थे। कभी अंताक्षरी खेलते कभी कविताएँ सुनाते कभी एकांकी अभिनय करते कभी अभिनय की पाठशाला चलाते, एक मित्र चित्रकार था तो वह सबका पोट्रेट बनाता। खूब मजे भी करते और अपने अंदर की प्रतिभाओं को भी निखारते, भविष्य में करने वाले नाटकों के मंचन की रुपरेखा बनाते।

क्या दिन थे, अब कभी लौटकर नहीं आयेंगे, बस वे दिन तो बीत ही गये, और उनकी यादें जेहन में आज भी ऐसी हैं जैसे कि ये पल अभी आँखों के सामने हो रहे हैं।

संतुष्टि कब किसे कहाँ हुई है, कोशिश एक खोज की ? (Satisfaction…)

    संतुष्टि बड़ी गजब की चीज है, किस को कितने में मिलती है इसका कोई मापद्ण्ड नहीं है और मजे की बात यह की इंसान को हरेक चीज में संतुष्टि चाहिये चाहे वह खाने की चीज हो या उपयोग करने की। इंसान जीवन भर अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करने मॆं लगा रहता है। इंद्रियाँ शैतानी रुप लेकर इंसान से अपनी तृप्ती पूर्ण करती रहती हैं।

    किसी को केवल पेट भरने लायक अन्न मिल जाये तो ही संतुष्टि मिल जाती है, और प्रसन्न रहता है, पर इंसान की इंद्रियाँ बड़ी ही शक्तिशाली होती जा रही हैं, और केवल पेट भरने से आजकल कुछ नहीं होता, घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस सब चाहिये, क्यों ? केवल इंद्रियों की संतुष्टि के लिये, अगर यह सब होगा तो गर्व नामक तरल पदार्थ की अनुभूति होती है ? पर इस सब में इंसान अपने भक्ति की संतुष्टि को भुल जाता है।

    वैसे भी संतुष्टि इंसान की इंद्रियों की ही देन है और उसकी सोच पर ही निर्भर करता है कि उसकी इंद्रियाँ उस पदार्थ विशेष की कितनी मात्रा मिलने पर तृप्त होती हैं, उस इंसान की जीवन संरचना का भी इंद्रियों पर विशेष प्रभाव होता है। केवल इंद्रियों की तृप्ति याने संतुष्टि के लिये इंसान बुरे कार्यों के लिए उद्यत होता है, अगर इंद्रियाँ तृप्त होंगी तो बुरे कार्य भी नहीं होंगे।

    इंसान को जीने के लिये चाहिये क्या दो वक्त की रोटी और तन ढ़कने के लिये कपड़ा, और भगवान ने हर इंसान के हाथों को इतनी ताकत प्रदान की है कि वह अपने लिये खुद यह सब कमा सके। परंतु इंसान ने अपनी ग्रंथियों के पदार्थों की संतुष्टि के लिये दूसरों की रोटी पर भी अधिकार करना शुरु कर दिया, अब हमें केवल रोटी की चिंता नहीं होती, हमें चिंता होती है ऐश्वर्य की, पर इंसान की ग्रंथियाँ यह नहीं समझ रहीं कि ऐश्वर्य पाने के चक्कर में वह कितने लोगों की रोटी ग्रन्थी की संतुष्टि से दूर कर रहा है।

    कहाँ ले जायेगी इंद्रियों की तृप्ति के लिये यह संतुष्टि हमें अपने जीवन में यह तो हम भी नहीं जानते ? परंतु इतना तो है कि अगर सही दिशा में सोचा जाये तो कभी न कभी तो खोज के निष्कर्ष पर पहुँचेगें। खोज जारी है अनवरत है… वर्षों से… हम भी उसका एक छोटा सा हिस्सा हैं…

जन्माष्टमी पर मुंबई की दही हांडी (Dahi Handi in Mumbai)

    सुबह से ही दही हांडी की धूम है मुंबई में, क्योंकि आज जन्माष्टमी त्यौहार है। आप सबको जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनाएँ। हम कहीं दूर दही हांडी देखने तो नहीं गये परंतु घर के पास ही एक आयोजन था जिसको देखने जरुर गये और हाथों हाथ वीडियो भी बना लाये, आप सबको दिखाने के लिये। देखिये –

    ऊपर के वीडियो में दो अलग अलग समूह हांडी फ़ोड़ते हुए और नीचे वाले वीडियो में हांडी फ़ोड़ने के बाद गोविंदाओं की मस्ती…

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल के दर्शन और रक्षाबंधन पर सवा लाख लड्डुओं का भोग ४ (Travel from Mumbai to Ujjain 4, Mahakal Darshan)

    सुबह उठते ही नई उमंग थी क्योंकि आज रक्षाबंधन था, कोई बहन नहीं है परंतु खुशी इस बात की थी कि हमारे बेटेलाल की अब बहन घर में आ गई थी और उसने राखी भेजी थी, एक त्यौहार जो हमने कभी मन में तरंग नहीं जगा पाता था वह त्यौहार अब हमारे घर में सबको तरंगित करता है।

    पापा की बहनें हैं और उनकी ही राखियाँ हम भी बाँध लेते हैं, क्योंकि हमें भी भेजी जाती हैं। देखिये राखी के कुछ फ़ोटो और साथ में मिठाई –

Rakhi aur Mithai Harsh aur mere papaji

    फ़िर चल दिये महाकाल के दर्शन करने के लिये, महाकाल पहुँच कर पता चला कि बहुत लंबी लाईन है और ज्यादा समय लगेगा, हमारे पास समय कम था क्योंकि शाम को वापिस मुंबई की ट्रेन भी पकड़नी थी। हमने पहली बार विशेष दर्शन के लिये सोचा जो कि १५१ रुपये का था, और वाकई मात्र ५ मिनिट में बाबा महाकाल के सामने थे, १५१ रुपये के विशेष दर्शन के टिकट से हम तीनों ने दर्शन किये और धन्य हुए। अटाटूट भीड़ थी महाकाल में।

Mahakal bahar se darshan

    महाकाल में रक्षाबंधन पर्व पर सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और हरेक दर्शनार्थी को एक लड्डू का प्रसाद दिया जाता है। यह परंपरा हम सालों से देखते आ रहे हैं, जब भी रक्षाबंधन पर उज्जैन होते हैं तो दर्शन करने जरुर जाते हैं और साथ ही लड्डुओं का प्रसाद लेने भी। ये वीडियो फ़ोटो देखिये सवा लाख लड्डुओं के भोग का –

Mahakal sava lakh ladduo ka bhog Mahakal sawa lakh ladduo ka bhog

जय महाकाल

ऊँ नम: शिवाय !

अनुग्रहित करो मुझे …. मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

अनुग्रहित करो मुझे

पासंग में अपने लेकर,

अपने संभाषण में

सम्मिलित करो,

जीवन की धारा में

साथ साथ

ले चलो अनुषंगी बनाकर,

कट रहा है

इसे जीने दो

अपनी मौज में

अपने उच्छश्रंखल अवस्था में

रंगीन रंग में

करतल ध्वनि में

जीवन की ताल से

जोड़ते हुए

ले चलो कहीं,

दूर पठारों पर, वादियों में,

झाड़ के झुरमुट में

पतंगों की गुनगुनाहट में

मन की अंतरताल में,

शामिल करलो मुझे

अनुग्रहित करो मुझे।

देखना है रक्त की विजय !!! … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

विषादित जीवन

विषादों से ग्रसित जीवन,

रुधिर के थक्के

जीवन में जमते हुए,

खुली हवा की घुटन,

थक्के के पीछे

नलियों में, धमनियों में,

धक्के मारता हुआ

रुधिर,

थक्के के

निकलने का इंतजार,

खौलता हुआ रक्त,

और

विषादित जीवनमंच,

रेखाएँ खिंचती हुई

हटती हुईं,

जाल बुनता हुआ,

गहराता हुआ,

ठहरा सा

गुमसुम रक्त शिराओं में,

विषादों से लड़ता हुआ,

देखना है

रक्त की विजय !!!

१५ अगस्त के संदर्भ में – वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]

    आज स्वतंत्रता दिवस है, भारत को आजाद हुए आज ६३ वर्ष हो चुके हैं, पर महत्वपूर्ण और ज्वलंत प्रश्न यह है कि क्या हम वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ?

    जब बच्चे स्कूल में १५ अगस्त को स्कूल में भारत का तिरंगा नहीं फ़हरायेंगे और साथ में देशभक्ति से ओतप्रोत गीत और माहौल नहीं मिलेगा तो कैसे उम्मीद करेंगे कि ये भारत की नई पीढ़ी तक देशभक्ति का संदेश पहुँच रहा है। जब तक स्कूल की रैली में झंडे पकड़कर “वन्दे मातरम” “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे, तब तक कैसे ये हमारी नई पीढ़ी स्वतंत्रता और वन्दे मातरम  के सही मायने कैसे सीख पायेगी।

    मुझे याद है कि मैंने जब से होश सम्हाला है तब से कॉलेज से बाहर निकलने के बाद भी जब भी मौका मिलता तो हमेशा परेड ग्राऊँड पर जाकर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के सम्मान में समारोह में शरीक होता रहा हूँ।

    क्या उम्मीद रखें हम अपनी नई पौध से, किस देशभक्ति की उम्मीद रखें हम इस नई पीढ़ी से, जबकि आज के स्वतंत्रता के मायने नई पीढ़ी के लिये “इंडिपेन्डेन्स डे” की ५० % से ७०‍ % तक की सेल होती है। सारे अखबारों में पन्ने “इंडिपेन्डेन्स डे सेल” से अटे पड़े हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं मिलेगा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कैसे ये स्वतंत्रता पाई और कैसे वे लोग ये स्वतंत्र आकाश में रह पा रहे हैं।

    जिस तेजी से हमारी नई पौध वापिस से पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर है तो उनसे देशभक्ति की उम्मीद लगाना गलत है। जिस तेजी से पाश्चात्य देशों से आ रही वस्तुएँ हमारी दैनिक उपभोग में आती जा रही हैं और हम हमारी दैनिक उपभोग की वस्तुओं को भूलते जा रहे हैं। जो बच्चे बचपन से जैसा परिवार में देखते आते हैं, उनके संस्कार भी वैसे ही होते हैं।

    आईये हम अपनी नई पीढ़ी को देशभक्ति के सही मायने समझायें और आजादी की कीमत बतायें, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी नई पौध की ऊँगली हमारे ऊपर होगी। उन्हें पता होना चाहिये कि शहीद चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली क्यों मारी थी, क्या जज्बा था उनका खुद को गोली मारने की पीछे…., उन्हें पता होना चाहिये कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल का क्या योगदान था, नई पौध को आजादी के लिये योगदान देने वालों के बारे में पता होना चाहिये ।

जय हिंद !!!

ये गीत सुनिये मेरा पसंदीदा – “दिल दिल हिन्दोस्तां” फ़िल्म “यादों के मौसम”

चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना, हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं … मेरी पसंद … विवेक रस्तोगी

पिछली पोस्ट पर “यादों के मौसम” का “तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है” , “जब हिज्र की शब पानी बरसे, जब आग का दरिया बहने लगे..”  गीत सुनवाये थे  आज सुनिये यह गाना –“चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना, हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं ..”

जब हिज्र की शब पानी बरसे, जब आग का दरिया बहने लगे.. मेरी पसंद… विवेक रस्तोगी

पिछली पोस्ट पर “यादों के मौसम” का “तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है” ये गीत सुनवाया था, तब श्री पंकज सुबीर जी ने “जब हिज्र की शब पानी बरसे, जब आग का दरिया बहने लगे..” की फ़रमाईश की तो आज सुनिये यह गाना –

तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है – एक गीत … मेरी पसंद

सालों पहले “यादों के मौसम” फ़िल्म आयी थी और इसका एक एक गाना मेरी पसंद आज भी है, एक गाना सुनिये – तुझसे बिछुड़कर जिंदा है, जान बहुत शर्मिंदा है – एक गीत … मेरी पसंद

ये गाने इसलिये सुनवा रहा हूँ क्योंकि बहुत ही कम लोगों ने ये गाने सुने हैं –