हम हमेशा ही ब्लॉगर मीट के लिये तैयार रहते हैं, इंडीब्लॉगर मीट के तीन चार दिन पहले ही पता चला कि रविवार को विवांता ताज, जो कि महात्मा गाँधी सड़क पर है, रखा गया है। अभी बेटेलाल के विद्यालय की गर्मियों की छुट्टियों के कारण वे भी इस ब्लॉगर मीट में जाने को तैयार थे। हम दोनों ब्लॉगर चल पड़े, ब्लॉगर मीट के लिये घर से, और बिल्कुल समय से 4 बजे पहुँच भी गये।
हॉर्लिक्स ने यह ब्लॉगर मीट इंडीब्लॉगर के साथ रखी थी, जिसका नाम था The Horlicks Immunity Indiblogger Meet और जिसका हैशटैग #Immunity4Growth रखा गया था। जैसे ही हम मीटिंग में पहुँचे तो हमें अनूप और रैने से मिलने का अवसर मिला और जाने पहचाने पुराने ब्लॉगर, जो कि ब्लॉग में और ब्लॉगर मीट में मिलते ही रहते हैं। Continue reading हॉर्लिक्स में मौजूद माईक्रो न्यूट्रिशियन→
आज का युग तकनीक की दृष्टि से बेहद अहम है, हम बहुत सी तरह की सामाजिक तानेबाने वाली वेबसाईट से जुड़े होते हैं और अपने सामाजिक क्षैत्र को, उसके आवरण को मजबूत करने की कोशिश में लगे होते हैं। हम सोशल नेटवर्किंग को बिल्कुल भी निजता से जोड़कर नहीं देखते हैं, अगर हम किसी से केवल एक बार ही मिले होते हैं तो हम देख सकते हैं कि थोड़े ही समय बाद उनकी फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट हमारे पास आयी होती है या फिर हम खुद से ही भेज देते हैं। जबकि हम अपनी निजी जिंदगी में किसी को भी इतनी जल्दी दाखिल नहीं होने देते हैं, किसी का अपनी निजी जिंदगी या विचार में हस्तक्षेप करना हम बहुत बुरा मानते हैं और शायद यही एक कारण है कि जब तक हम किसी को जाँच परख नहीं लेते हैं तब तक हम उससे मित्रता नहीं करते हैं। Continue reading सोशल नेटवर्किंग के युग में टूटती आपसी वर्जनाएँ→
साक्षात्कार लेना भी एक कला है, केवल थोड़े से समय में (जो कि अमूमन 15 मिनिट से 1 घंटा होता है) किसी को भी परखना भी पारखी का ही काम है। मैं इतने वर्षों में साक्षात्कार लेने और देने दोनों की प्रक्रिया से बहुत बार गुजरा हूँ, हालाँकि साक्षात्कार दिये कम हैं और हमने साक्षात्कार लिये ज्यादा हैं। साक्षात्कार लेने से साक्षात्कार देने में बहुत मदद मिलती है, हम साक्षात्कार देते समय साक्षात्कार लेने वाले की मनोस्थिती को समझने में लगभग हर बार कामयाब होते हैं।
साक्षात्कार लेते समय हम सबसे पहले साक्षात्कार देने वाले का रिज्यूमे ध्यान से पढ़ते हैं, और अपने काम के बिंदुओं पर निशान लगाते जाते हैं, क्योंकि हमें जब भी कोई बंदा लेना होता है तो वह किसी विषय का ज्ञाता होता है। आंग्लभाषा में कहते हैं Skilled Resource । तो जिस विषय के लिये साक्षात्कार लिया जाता है उसका एक पैनल होता है और एक पैनल में वह होता है जो कि सारा तमाशा देखता है और शांति के साथ पूरा साक्षात्कार देखकर केवल साक्षात्कारदाता से कुछ सवाल पूछता है जिससे उसके व्यवहार और प्रतिक्रिया का पता चलता है।
साक्षात्कारदाता को हमेशा ही अच्छे कपड़ों में अपने आप को प्रदर्शित करना चाहिये, पुरूष हैं तो शेव और बाल अच्छे से करना चाहिये, महिला हैं तो बालों को अच्छे से सँवारना चाहिये। खुद को आईने में देखकर अपने आप को हम कुछ अलग लगना चाहिये। खुद में आत्मविश्वास रखें और अपना आत्मविश्वास अपनी बातों को अच्छे से रखकर प्रदर्शित करें। अपनी हर बात को जो आप साक्षात्कार में रखने वाले हैं, उसकी अच्छे से अकेले में ही प्रेक्टिस करें, इससे जब आप बोलेंगे तो आपकी हिचक खत्म हो जायेगी और आप साक्षात्कार में ज्यादा अच्छे से बोल पायेगे।
साक्षात्कार देने से पहले की भी तैयारी अच्छे से करें आप अपना रिज्यूमे अच्छे से पढ़ लें और सुनिश्चित कर लें कि आपने जो लिखा है आप उस सबके बारे में अच्छे सा जानते हैं, अगर किसी चीज पर काम न किया हो तो बेहतर है कि आप अपने रिज्यूमें में उसके बारे में न लिखें, क्योंकि हो सकता है कि आप केवल उसी बिंदु पर ही सिलेक्ट न हो पायें, अपने रिज्यूमें में और अपने साक्षात्कार में कही गई बातों में हमेशा ईमानदारी बरतें, याद रखें इससे आपको ही सहायता होगी, क्योंकि हो सकता है कि अभी आप जिस जगह काम कर रहे हैं उस जगह के बारे में साक्षात्कारकर्ता को अच्छे से पता हो या कोई उसकी जान पहचान वाला हो।
आलस को अपने ऊपर हावी न होने दें। साक्षात्कार देने से पहले अपने लिये पॉजिटिव एनर्जी बनायें और खुद को उसी पॉजिटिव ऊर्जा में रहने दें, बाहरी ऊर्जा प्रवाह के लिये आप कोई भी चॉकलेट खा लें जिसमें चोको की मात्रा अच्छी हो, हाँ कुछ भी खाने के पहले पनी सेहत का ध्यान जरूर रखें। अपने दिमाग में, मन में कोई भी नकारात्मक विचार न आने दें और कोशिश करें कि आप साक्षात्कार देने तक अपने रिज्यूमे के हर बिंदु में मन ही मन एक चक्कर लगा लें, इस तैयारी से आपको जबाब देते समय बहुत मदद होगी।
जब आप साक्षात्कार देने गये हैं तो वहाँ पर भी अपनी सोशल नेटवर्किंग का उपयोग करें तो आपको पता चल जायेगा कि और कहाँ कहाँ पर अभी साक्षात्कार हो रहे हैं और साक्षात्कार में क्या पूछा जा रहा है।
मुझे उम्मीद है कि बतायी गई बातों से आपको मदद मिलेगी।
जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारा दिमाग अलग अलग स्थितियों में चला जाता है, जैसे या तो सुन्न हो जाता है हम किसी भी प्रकार से सोच ही नहीं पाते हैं, दिमाग सुस्त हो जाता है हमारे सोचने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है हम परिस्थितियों से हाथ दो चार करना चाहते हैं परंतु सोचना मुश्किल हो जाता है, हमारे सोचने की प्रक्रिया तेज हो जाती है जब हमें थोड़ी भी प्रेरणा या कोई आगे बढ़ने की थोड़ी सी भी राह मिल जाती है कोई रोशनी की किरण दिख जाती है हम Continue reading परेशानी में दिमाग की स्थितियाँ→
हरपीज के लक्षण पहचानना बहुत ही मुश्किल होता है, पर यह बेहद ही तकलीफदेह बीमारी है और इसको पहचानना केवल डॉक्टर के बस की है, हरपीज के लिये कोई दवाई अभी तक नहीं है। इसकी तकलीफ सहनी ही होती है।
लगभग पिछले सोमवार की रात की बात होगी, पीठ पर रीढ़ की हड्डी के पास एक दाना सा लगा और थोड़ी खुजली सी लगी। पर हमने खुजाये नहीं क्योंकि हमने ये सीखा है और जाना है कि अगर कहीं पर भी आपको खुजाने की इच्छा होती है तो उस जगह को नहीं खुजाना चाहिये नहीं तो वहाँ तकलीफ बढ़ती ही जाती है। Continue reading हरपीज के लक्षण पहचानना बहुत ही मुश्किल होता है→
आज हम सिगरेट के बारे में बात करेंगे । कल जब ऑफिस से घर के लिये निकले तो सूरज अपने शाम के चरम पर था, जैसे कोई दिया बुझने से पहले जमकर लौ देता है, जैसे कि सप्ताहांत के दो दिनों में सूरज अपने न निकलने का मलाल निकाल रहे हों, या फिर बादलों से खुद को छिपाने का बदला ले रहे हों। घर पहुँचे तो बाजार जाने के लिये बेटेलाल तैयार थे, उन्होंने पहले ही अपने सामान की सूचि जो कि उन्हें अपने विद्यालयीन प्रोजेक्ट के लिये चाहिये थी, हमें व्हाट्सएप कर दी थी। नहीं तो घर पहुँचकर हम डायरी पढ़ते और फिर सामान दिलवाने ले जाते, तो इस नई तकनीक ने पता नहीं कितना हमारा समय बचा दिया।
घर पहुँचते ही बेटेलाल ने कहा कि डैडी कल हमारे विद्यालय से हमें सिलोखेड़ा गाँव में ले जाने वाले हैं, वह गाँव हमारे विद्यालय ने गोद ले रखा है जैसे कि कन्हाई गाँव गोद ले रखा है। मैं बेटेलाल का चेहरा देखे जा रहा था और सोच रहा था, कि विद्यालय ने गोद लेने का मतलब बच्चों को कितनी जल्दी समझा दिया है और बच्चे भी अपने गोद लिये हुए गाँव के लिये सामान लेकर जा रहे हैं, जिससे उन्हें कपड़े का थैला बनाना था और गाँव वालों का वे थैले बनाकर देते और उन्हें थैले बनाना सिखाते। गाँव वालों के साथ यह प्रयोजन करने का मतलब यह समझाना है कि पोलीथीन की थैली से प्रदूषण फैलता है, तो पोलीथीन की जगह कपड़े के थैले का प्रयोग करें।
हम उन्हें बाजार लेकर गये पर प्रोजेक्ट के लिये जो सामान चाहिये था वह नहीं मिला, हमने कहा कोई बात नहीं, अपने शिक्षक को कह देना कि हमें बाजार में यह सामान नहीं मिला, फिर किसी और प्रोजेक्ट के लिये बारिश के कुछ फोटेग्राफ्स कलर प्रिंट निकलवाने थे, जो फोटो प्रिंट करने थे वे हमारे बेटेलाल ने हमें ईमेल कर दिये थे और हमने उन्हें एक वर्ड डाक्यूमेंट में करके पेनड्राईव पर सेव कर लिया, और फिर उसी पेनड्राईव से प्रिंट आउट की दुकान से प्रिंट निकलवा दिये। पता नहीं आजकल विद्यालय बच्चों से क्या क्या करवाते हैं।
सुबह से बेटेलाल का पेट खराब था, बताया कि विद्यालय में एक उल्टी भी हुई तो उनके शिक्षक ने उन्हें एक दवाई भी दी जिससे थोड़ा आराम मिला, और दोपहर से घर आने के बाद वे पेटदर्द की शिकायत कर रहे थे। हम बड़े दिनों बाद बाजार आये थे तो हमने अपने और भी काम साथ में निपटा लिये। हम एक जगह खड़े थे तो वहीं से एक लड़की और एक लड़का निकले और लड़की के हाथ में सिगरेट थी और धूम्रपान का आनंद ले रही थी, लगभग दस कदम दूर जाकर वे लोग दो लड़कियों के साथ जाकर खड़े हो गये, हम तब तक दुकानदार से बात कर रहे थे, हमने बेटेलाल की और देखा तो क्या देखते हैं कि ये भाईसाहब बड़े ध्यान से मुंह खोलकर औचक से उन चारों की और देख रहे थे, वे चारों आपस में एक ही सिगरेट से धूम्रपान कर रहे थे, तभी बेटेलाल को हमारा ध्यान आया होगा, हमारी और देखा तो शर्मा गये और हमसे आकर चिपक गये और बताने लगे कि डैडी वो देखो आंटी लोग सिगरेट पी रही हैं, हमने उन्हें बताया कि ये सब तो सामान्य है, इसमें इतना चौंकने वाली बात क्या है।
फिर घर आते समय हम उनके साथ बहुत सी अलग तरह की बातें करते हुए आये, जिससे उनका ध्यान धूम्रपान वाली बात से हट जाये और उन्हें बताया भी कि दुनिया में ऐसी बहुत सी बातें हो रही हैं जिसका तुमको पता नहीं है, तो ऐसे आश्चर्य करने वाली कोई बात नहीं है, अभी ऐसे कई वाकये आपकी जिंदगी में आयेंगे।
सोच थिएटर ग्रुप (Soch Theater Group) को शुरू करने के पीछे बस एक ही मकसद था, इस समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाना और इसके लिए नाटक से अच्छा और कोई माध्यम नहीं हो सकता। खास तौर पर नुक्कड़ नाटक। बस इसी उम्मीद के साथ हम कुछ लोगों ने इस थिएटर ग्रुप की शुरुआत करने की तरफ कदम बढ़ाया।
सोच थिएटर ग्रुप की स्थापना या कह लीजिये इस थिएटर ग्रुप को शुरू करने के बारे में मैंने पिछले साल नवम्बर में सोचा था। इस सोच को कुछ अपने जैसी ही सोच रखने वाले सहकर्मियों के साथ बांटा तो पता चला की थिएटर में रूचि रखने वाले बहुत से लोग हैं। सोच थिएटर ग्रुप की वहीं से शुरुआत हुयी।
हालाँकि हम कुछ लोगों ने मिलकर इस ग्रुप की नींव नवम्बर २०१४ में ही रख दी थी लेकिन आम जनता के बीच आकर अपना पहला नाटक करने के लिए हम लोगों को कम से कम दो महीने लग गए। ऐसा इसलिए भी था क्यूँकि हम अपने ग्रुप की शुरुआत एक अच्छे नाटक के साथ और पूरी तैयारी के बाद करना चाहते थे. मुझे आज भी याद है ये नाटक था सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा और हमे इस नाटक का मंचन राहगिरी गुडगाँव में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार के सौजन्य से करने का अवसर मिला।
बस उस दिन के बाद सोच थिएटर ग्रुप ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, इसके बाद हमने राहगिरी से नाता बनाये रखा और राहगिरी गुडगाँव, कनाट प्लेस, द्वारका में अलग अलग नाटक का मंचन किया जिनमें प्रमुख हैं-
सड़क सुरक्षा जीवन रक्षा : सड़क पर वाहन के नियमों के पालन करने की महत्वता को दर्शाता हुआ नाटक।
स्वच्छ भारत – एक सुन्दर सच : अपने घर, शहर और भारत देश में सफाई बनाये रखने पर जोर डालता हुआ नाटक।
शिक्षा परमो भ्रम – शिखा प्रणाली में सुधार लाने के लिए एक अपील करता हुआ नाटक।
इतना ही नहीं हमारा थिएटर ग्रुप (Soch Theater Group) कई गैर सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ भी जुड़ा है जिनमें प्रमुख नाम हैं –
Naaz foundation – Goal India program
9People4Change
Naaz foundation के साथ मिलकर हमने इसी साल महिल दिवस के उपलक्ष्य में हमारे नए नाटक “मुझे जीने दो” का मंचन किया, जो की नारी शक्ति पर आधारित है। इस नाटक को काफी सराहा गया और अब सोच थियेटर ग्रुप Naaz foundation के प्रवासी बच्चों को थिएटर वर्कशॉप भी करवाता है ।
9People4Change संस्थान के साथ मिलकर हमें देहरादून के दून इंटरनेशनल और हिम्ज्योती स्कूल में बच्चों के बीच अपने नाटक पेश करने का मौका मिला। सोच थिएटर के कलाकरों के लिए यह अपने आप में एक नया अनुभव था, जब आपके दर्शक मासूम बच्चे हों तो आपको अपने नाटक के बारे में प्रतिक्रिया उसी वक़्त नाटक के चलते हुए ही मिल जाती है और ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ।
यहाँ दिल्ली में भी हमें कई कॉर्पोरेट्स के साथ परफॉर्म करने का मौका मिला जिसमें प्रमुख है makemytrip.com जिनके लिए हमने नए नाटक “Diversity है सही” का मंचन किया। इस नाटक को सभी ने सराहा और इसमें हमने सन्देश दिया हमें अपने ऑफिस में सभी को अपनाना चाहिए और बराबर का मौका देना चाहिए और इस सन्देश को सभी को अपनाना चाहिये।
सोच थिएटर ग्रुप को Zabardast Hit 95FM के प्रोग्राम “मैं भी RJ” में पुरे 3 घंटे का कार्यक्रम पेश करने का मौका मिला। जिसमें हमने आम जनता से अपील की कि वो हमारी इस मुहीम के साथ आकर जुड़ें जिसमें हम चाहते हैं कि थिएटर के माध्यम से हम इस समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकें. इस प्रयास को सफल बनाने के लिए हम Zabardast Hit 95FM की पूरी टीम , मुख्यत: Ritesh, RJ Panky के आभारी हैं।
सोच थिएटर ग्रुप की टीम इस बात को भली भांति जानती है कि आम जनता से जुड़ने के लिए हमें आम जनता के बीच जाना होगा उनके साथ जुड़ने के सभी सोशल नेटवर्किंग के माध्यमों को अपनाना होगा और इसी पहल के तहत सोच टीम Facebook, Twitter, Instagram पर सक्रिय है। आप भी हमारे साथ जुड़ सकते हैं।
यहीं नहीं आप हमारी वेबसाइट के माध्यम से भी हमसे जुड़ सकते हैं हमारी वेबसाइट का पता www.sochtheatregroup.com है ।
सोच थिएटर ग्रुप की नयी पहल है और हम कल्पतरु ब्लॉग के जरिये आप सभी के बीच ये लांच करना चाहते हैं कि जल्द ही सोच थिएटर ग्रुप चंडीगढ़ में भी शुरू हो रहा है, अगस्त के महीने में हम लोग सोच थिएटर ग्रुप चंडीगढ़ और पटियाला में शुरू कर रहे हैं आप सभी लोग चंडीगढ़ की टीम के साथ जुड़ सकते हैं –
यही नहीं आज कल की टेक्नोलॉजी और स्मार्ट फोन के इस्तेमाल को देखते हुए अभी हाल ही में सोच थिएटर ग्रुप ने अपनी तरह की पहली एंड्राइड (ANDROID) app भी लांच की है। आप सभी नीचे दिए गए लिंक के जरिये ये आप अपने फ़ोन पर इंस्टाल कर सकते हैं
हम आप सभी को अपील करते हैं ज्यादा से ज्यादा संख्या में हमसे जुड़े हमारे थिएटर ग्रुप को ज्वाइन करें ऐसा करने के लिए आप हमें facebook पर मैसेज कर सकते हैं, ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं या फिर e-mail कर सकते हैं। आप हमारी वेबसाइट पर जाकर contact-us पेज पर एक छोटा सा फॉर्म भरकर भी हमें ज्वाइन कर सकते हैं.
Join Soch theatre Group, Be part of the change, be the change !!!
जब भी मोबाईल पर हम नेट सर्फिग करते हैं, हमेशा ही 3 जी हो या 2 जी हो हम हमेशा ही गरियाते रहते हैं, पर आजकल कुछ अच्छे ब्राउजर भी उपलब्ध हैं जैसे कि यूसीब्राउजर(UCBrowser) जिनसे हम डाटा और नेटवर्क की कम रफ्तार होने पर भी हम अपने सारे कार्य कर सकते हैं, क्योंकि ये ब्राउजर वेब कंटेंट को मोबाईल के अनुकूल ऑप्टिमाईज कर लेते हैं और कम डाटा खर्च कर कंटेंट को ऑप्टिमाईज्ड मोड में दिखाने लगते हैं।
वैसे तो मैं कभी क्रिकेट का बहुत ही बड़ा फैन रहा हूँ पर जब से नौकरी में आये हैं तो इतनी व्यस्तता हो गई कि क्रिकेट को शौक लगभग त्यागना ही पड़ा है, जब भी कही ऑफिस में काम करते रहो तो ऐसा लगता है कि काश ऑफिस में टीवी भी होता तो कम से कम बैटिंग या बोलिंग ही देख लेते पर ऐसी कोई सुविधा नहीं होने के कारण हम केवल हमारा मन ही मार सकते हैं, अब ऐसा लगता है कि यूसीब्राउजर के नवीनतम फीचर्स के साथ हम अपना ये शौक अब आगे से जिंदा रख पायेंगे।
यूसीब्राउजर (UCBrowser) का डाटा ऑप्टिमाईजेशन इतना जबरदस्त है कि यह भारी कंटेंट को भी अपने अनुसार ढालकर उस कंटेंट को मोबाईल पर झट से दिखा देता है, हमने कई बार मोबाईल पर लाईव मैच देखने की कोशिश की परंतु वह इतना डाटा खाता था कि हमारा बिल जबरदस्त आने लगा और दिखता भी स्ट्रीमिंग करके था, परंतु अब यूसीब्राउजर में इस झंझट से मुक्ति मिल गई है, अब बिना स्ट्रीमिंग के क्रिकेट का मजा हम मोबाईल पर कहीं भी ले सकते हैं, धन्यवाद यूसीब्राउजर । अब मैं भी UC Cricket का दीवाना हो गया हूँ।
इसमें (UCBrowser) बेहतरीन फीचर्स भी हैं –
प्राइवेसी – आप अपने एकाऊँट में लॉगिन करके आसानी से मैनेज कर सकते हैं और यह कूकीज को भी सपोर्ट करता है।
बुकमार्क और हिस्ट्री – वैसे तो यह आम फीचर होता है, पर यहाँ आपको त्वरित तरीके से यह सुविधा उपलब्ध है।
वेबसाईट एड्रेस अपने आप आना – आप कुछ ही शब्द एड्रेस के लिये लिखना शुरू करेंगे और ये आपके द्वारा लिखे जाने वाला वेबसाईट के एड्रेस को ले आयेगा।
झूम मोड – आप किसी भी वेबसाईट को पूरी भी देख सकते हैं और झूम करके उसके कंटेट आसानी से देख सकते हैं।
शेयर पेज – आप किसी भी पेज को सेव करके बाद में शेयर भी कर सकते हैं।
फाईल मैनेजर – आप फाईल मैनेजर के जरिये अपनी फाइलों को सेव कर सकते हैं और हटा भी सकते हैं।
नाईट मोड – रात को यह ब्राउजर अपने आप ही मोबाईल के प्रकाश को कम कर देता है, जिससे आपकी आँखों को आराम मिलता है।
कंप्रेशन तकनीक – इसके जरिये आपका मोबाईल डाटा का बिल 85 प्रतिशत तक कम होता है।
डाउनलोड मैनेजर – डाउनलोड मैनेजर इस इस ब्राउजर में आंतरिक रूप से ही मौजूद है, जिसे आप बीच में रोक भी सकते हैं, उसे चालू भी कर सकते हैं और कई सारी फाईलें एक साथ डाउनलोड भी कर सकते हैं।
आप भी एकदम से नई तकनीकी पर आईये और मोबाईल पर बेहतरीन रफ्तार का मजा यूसीब्राउजर (UCBrowser) से उठाइये। इस ब्राउजर (UCBrowser) को आप http://www.ucweb.com/ वेबसाईट से डाउनलोड कर सकते हैं।
कल गुड़गाँव में केवल दो घंटे की बरसात हुई जिसका असर यह हुआ कि गुड़गाँव जो कि सायबरसिटी के नाम से उत्तर में जाना जाता है, जाम में फँस गया। सायबर सिटी के नाम से केवल मशहूर है – गुड़गाँव, पर सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है, अच्छा पब्लिक ट्रांसपोर्ट पहली प्राथमिकता होनी चाहिये, पर इसका कहीं से कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। खैर बैंगलोर इसका एक अच्छा उदाहरण है।
तो इस सायबरसिटी में कल हमने 25 मिनिट का रास्ता ढ़ाई घंटे में तय किया, और हर जगह जाम लगा हुआ था, हालांकि प्रशासनिक अमला बहुत देर से जागा और फिर प्रशासनिक अमला भी सड़क पर व्यवस्था ठीक करता नजर आया, हमने गुड़गाँव में पहली बार प्रशासनिक अमले को व्यवस्था ठीक करते देखा। हालांकि बाद में देखा कि दूसरी तरफ की लेन जहाँ का ट्रॉफिक सामान्य है, उधर से किसी मंत्री संत्री की गाड़ी को रांग साईड से निकाल कर ले गये, अगर यही हरकत हम लोग करते तो यही प्रशासनिक अमला गाड़ी खड़ी करवा
लेता, हालांकि बहुत से लोग रांग साईड से जा रहे थे।
गुड़गाँव में लोग लाल बत्ती को भी हरी बत्ती समझ कर निकल लेते हैं, ऐसा लगता है कि लोगों को रतोंधी हो गयी है, हमें कई बार लगता है कि हमें रंगों की पहचान होनी बंद हो गई है, अगर अपन यातायात के नियमों का पालन करें तो पीछे वाला हॉर्न मारमार कर परेशान कर देता है।
यहाँ की पुलिस को मैंने कभी भी (एकाध बार छोड़कर) बिगड़ी हुई यातायात व्यवस्था सँभालते नहीं देखा, यातायात पुलिस यहाँ केवल एक किताब लेकर घूमती है, जिसे चालान बुक भी कहते हैं, और लोगों को रोककर उन्हें परेशान कर या तो चालान काटते हैं या फिर कुछ ले देकर छोड़ दिया जाता है।
कल के जबरदस्त जाम का मूल कारण हमें लगा कि हर तरफ पानी भरा हुआ है, गुड़गाँव में पानी निकलने की कहीं जगह नहीं है, मेट्रो के नाम पर पूरा गुड़गाँव खुदा पड़ा है, पिछले एक वर्ष से देख रहे हैं, स्थिती जस की तस है, एक महीने पहले अंग्रेजी अखबार ने सड़कों पर गढ्ढों की खबर प्रमुखता से छापी थी, और तभी एकाएक प्रशासन ने सुध ली और सारे गढ्ढों को भी दिया गया, फिर से अखबार में खबर छपी तो सड़क बनवा दी गई, और वो कागजी लाखों रूपयों की सड़क कल के दो घंटों की बारिश में बह गई। पता नहीं कि अब लोग कहने लगेंगे कि ये तो गुड़गाँव में विकास का पानी बह रहा है, जो कि आप की आँखों को कुछ और ही दिख रहा है।
हम भी सायबरसिटी में विकास की बयार देखना चाहते हैं, जहाँ लोग महँगा किराया देने को मजबूर हैं, महँगी सब्जियाँ और फल भी खरीदने को मजबूर हैं और ऑफिस जाने के लिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट के उपलब्ध नहीं होने से रोज ऑटो की लूट मची हुई है। सरकार को राज्य में सबसे
ज्यादा आय देने वाले शहर का यह हाल है तो पता नहीं विकास की बयार कहाँ से चलेगी।
बचपन हमेशा ही हर किसी के लिये अनूठा होता है और हमेशा ही हम अपना बचपन हम भूल जाते हैं, वही बचपन हम हमारे बच्चों में हमेशा ही ढ़ूँढ़ते हैं। चाहते हैं कि हम अपने बच्चे के बचपन को उसके साथ वापस से जियें, कुछ बातों की हमेशा ही हमें अपने पालकों से शिकायत रहती है, तो वह कमी भी हम अपने बच्चों को नहीं महसूस करवाना चाहते हैं। हम हमेशा ही बच्चों की मदद कर उनसे उनके जीवन में घुलमिलना चाहते हैं।
मेरे बेटे को हिन्दी में शब्द श्रंखला बनाना थी, जो कि 100 शब्दों की होनी चाहिये थी और उसके कुछ नियम भी थे –
शब्द श्रंखला नाम के आखिरी अक्षर से शुरू होगी
एक ही शब्द एक से ज्यादा बार नहीं आना चाहिये
शब्द में किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं होना चाहिये
शब्द में जगह का नाम भी नहीं होना चाहिये
दो अक्षर वाले शब्द नहीं होने चाहिये, कम से कम तीन शब्दों वाले अक्षर होने चाहिये
हमारे बेटेलाल का नाम हर्ष है और उनको पहले ही शब्द को बनाने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि अंग्रेजी में कुछ भी करवा लो, कितना भी कार्य करवा लो पर हिन्दी में तो आजकल अच्छे अच्छों को पसीने छूट जाते हैं। हमने कहा चलो पहले शब्द श्रंखला खेलते हैं और फिर बाद में तुमको शब्दों के बारे में पता चल जायेगा तो तुम लिख भी लेना।
इसमें पहला शब्द जिस अक्षर से खत्म होता है तो अगला शब्द उसी अक्षर से शुरू होगा, इतना आसान कार्य भी नहीं है, पर हाँ जब खेलने लगे तो बहुत ही आसान लगा पर कई बार कुछ शब्द वापिस लेने पड़ते क्योंकि बार बार एक ही शब्द की निरंतरता रहती, जैसे कि “र” और “र” से कितने शब्द बनायें जायें जबकि ऊपर बताये गये 5 कठिन नियमों का भी पालन करना था।
खैर हमसे खेल ही खेल में हमारे बेटेलाल बहुत ही खुल गये, तो हमारे लिये वे पल “खुशी के पल” थे और बेटेलाल ने हमें बता दिया कि अगर बच्चों के साथ समय बिताया जाये तो “खुलजाये बचपन” । और उनके खुशी के पल वे ज्यादा होते हैं जब वे चोकोस (Chocos)खाते हैं।