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स्नूज कार्यक्रम और सुबह का आलस
अगर ऑफ़िस जाने का समय जल्दी का हो तो सुबह उठने में कभी कभी आलस्य आने लगता है, रोज उसी समय उठो, रात को रोज अलार्म चेक करो कि हाँ भई अलार्म चल भी रहा है, जब से मोबाईल में अलार्म लगाने लगे हैं, तो मोबाईल झट से गणना करके बता भी देता है कि कितने घंटे और कितने मिनिट अलार्म बजने में लगे हैं, और लगता है कि अरे केवल इतनी ही देर सोने को मिलेगा।
सुबह उठना बचपन से अच्छा लगता है, ऐसा नहीं है कि अब नहीं लगता परंतु कभी कभी देर तक सोने की इच्छा हो जाती है और ये अलार्म इतनी जल्दी बज जाता है कि बस, ऐसा लगता है कि अभी अभी सोये थे और इतनी जल्दी सुबह हो गई, अभी नई अलार्म लगाया है जिसमें पक्षिओं के कोलाहल के बीच मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती है, इस अलार्म को सुनकर तो नींद और लेने का मन करता है, ऐसा लगने लगता है कि कहीं बागीचे में ठंडी बयार में घास पर लेटे हुए इन आवाजों को सुन रहे हैं।
अभी कम से कम रोज ४-५ बार तो स्नूज करना पड़ता है ५ मिनिट के स्नूज में फ़िर भी २०-२५ मिनिट सो जाते हैं, इसे कहते हैं अर्धचेतन अवस्था, और जो सपना पूरा नहीं हो पाता है, उसे फ़ास्ट फ़ार्वर्ड करके पूरा कर लेते हैं।
स्नूज का कार्यक्रम अच्छा लगा मोबाईल में, नहीं तो पहले जब घरवाले उठाते थे तो कभी कभी प्रवचन से दिन की शुरूआत होती थी, पर अब अलार्म ने आसान कर दिया है, पहले वाली घड़ी में स्नूज वाला कार्यक्रम नहीं था।
दिन भर एक्सेल, वर्ड, पीडीएफ़ और ईमेल में गुजरता है, लंबे लंबे फ़ोन कॉल होते हैं, कभी पढ़ते हुए कभी सुनते हुए और कभी बोलते हुए उन तन्हाईयों में भी कोई विचार आ जाता है। पता नहीं ये विचार कहाँ कितनी जगह लेते हैं, जरा सी स्पेस मिली नहीं और विचार घुस जाता है। जो दिन भर करते हैं वही सपने रात में आते हैं, कभी किसी एक्सेल शीट में काम कर रहे होते हैं और काम चल रहा होता है, गणनाएँ कठिन होती हैं तो रात को सपने में भी वहीं एक्सेल शीट घूम रही होती है, और सपने में भी उसके सॉल्यूशन पर काम चलता रहता है।
कई बार ऐसा लगता है कि लंच के बाद ऑफ़िस खत्म हो जाना चाहिये, लंच के बाद घनघोर आलस आता है, मुँह में उबासी और आँखों में नींद होती है। पर जब कार्य होता है तो कार्य तो करना ही पड़ता है।
हम स्नूज कार्यक्रम का अच्छा उपयोग कर रहे हैं, अब सोचते हैं कि कोई मोबाईल ऐसा नहीं आये जिसमें नहीं उठने पर वो करंट मार दे या पानी की बाल्टी डाल दे ।
स्वप्न की पटकथा के लेखक और अभिनयकर्ता
स्वप्न हमारी मूर्क्षित जिंदगी के वे पल होते हैं जहाँ हम हमारे आसपास की घटनाओं और आसपास रहने वाले व्यक्तियों को देखते हैं। दिनभर में जो भी घटना हम पर प्रभाव डालती है उससे जुड़ी वे बातें जो हम देखना चाहते हैं और वास्तव में देखी नहीं हैं, वास्तव में स्वप्न में अपने आप वह कहानी बुन जाती है और हम उसे फ़िल्म जैसा देखते हैं।
कई बार हम अपने स्वप्न की कहानी खुद चला रहे होते हैं और यहाँ तक कि जो कार्यकलाप हम स्वप्न में देख रहे होते हैं, उन कार्यकलापों में हम उन वास्तविक व्यक्तियों की प्रतिमूर्ति अभिनय के रूप में देख रहे होते हैं, जिन्हें हम जानते हैं कि यह व्यक्ति इन कार्यकलापों में संलग्न है या अच्छा करता है।
स्वप्न अकारण भी नहीं होते हैं शायद प्रकृति की देन है कि हम स्वप्न में भी मनोरंजन चाहते हैं, और उस आनंद की अनुभूति करना चाहते हैं, जो वास्तव में कहीं पर भी नहीं है, देशकाल वातावरण कहीं का भी हो सकता है, जहाँ वास्तव में स्वप्नदर्शी गया ही नहीं हो, परंतु इस का एक बिंदु यह भी है कि व्यक्ति स्वप्न में अपनी सारी क्षमताओं का प्रदर्शन करता है, जो कि वास्तव में उसके पास होती ही नहीं हैं, यह भी कह सकते हैं कि उन क्षमताओं को व्यक्ति पाना चाहता है परंतु वास्तविक जिंदगी में वह पा नहीं सकता या उतना दृढ़ नहीं बन पाता कि वह उन क्षमताओं का अधिकारी पात्र हो।
स्वप्न अर्धचेतन अवस्था में भी होते हैं, जिसमें हम आधे जड़ और आधे चेतन होते हैं, जिसमें स्वप्न की कहानी की डोर स्वयं स्वप्नदर्शा के पास होती है, परंतु अर्धचेतन होने पर भी वह अपना स्वप्न पूर्ण कर पाता है, अधिकतर ऐसे स्वप्न प्रात:काल उठने के पहले होते हैं, यह वह समय होता है जब व्यक्ति अर्धचेतन अवस्था में अपने स्वप्न को किसी फ़िल्म की तरह अपने रंगमंच पर अपने कलाकारों के साथ बुन रहा होता है।
स्वप्न हमेशा वैयक्तिक चिंतन से संबंधित होते हैं, जैसा चिंतन पार्श्व मष्तिष्क में चल रहा होता है, वही स्वप्न की पटकथा निर्धारित करता है, बेहतर है कि हम अच्छे वातावरण में अच्छे विचारों के साथ रहें और अच्छे स्वप्न देखें।