शब्द-शक्ति के भेद
(२) लक्षणा
आचार्य मम्मट ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘काव्य-प्रकाश’ में लक्षणा की व्याख्या इस प्रकार की है –
‘’मुख्यार्थबाधेतद्योगे रूढ़ितोऽथ प्रयोजनात ।
अन्योर्थो लक्ष्यते यत्सा लक्षणारोपिता क्रिया॥’
अर्थ यह हुआ – मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढि या प्रयोजन के आधार पर अभिधेयार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को व्यक्त करने वाली शक्ति लक्षणा शक्ति कहलाती है। एक और प्रसिद्ध विद्वान ने लक्षणा के लक्षण में यही बात कही है –
‘मुख्यार्थबाधे तद्युक्तो ययाऽन्योऽर्थ: प्रतीयते।
रूढ़े प्रयोजनाद्वासौ लक्षणा शक्तिरर्पिता॥’
अर्थात – मुख्यार्थ मे ंबाधा होने पर रूढ़ि या प्रयोजन को लेकर जिस शक्ति द्वारा मुख्यार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ का बोध हो उसे लक्षणा शक्ति कह सकते हैं। प्रसिद्ध आचार्य का कथन है कि लक्षणा में वक्ता के तात्पर्य को ही प्रधानता दी जाती है। लक्षणा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों ने तीन प्रमुख कारण बताये हैं –
(१) मुख्यार्थ में बाधा,
(२) मुख्यार्थ में कुछ-न-कुछ सम्बन्ध और
(३) रूढ़ि या प्रयोजन द्वारा अन्य अर्थ का बोध
(१) जब शब्दों के वाच्यार्थ से वांछित अर्थ की उपलब्धि न हो तो मुख्यार्थ में बाधा मानी जायेगी। उदाहरणार्थ – यदि कहा जाये कि ‘घनश्याम गधा है’ तो इसमें पशु रूप गधा के मुख्यार्थ में बाधा है, क्योंकि घनश्याम गधे के समान चार पैर वाली आकृति वाला नहीं है।
(२) मुख्यार्थ में बाधा होने पर जो अन्य अर्थ लगाया जाता है उसका मुख्यार्थ से थोड़ा-बहुत सम्बन्ध अवश्य होता है। जैसे – घनश्याम यद्यपि गधे के समान आकृति वाला नहीं है, लेकिन एक बात में सम्बन्ध अवश्य है कि उसकी मूर्खता गधे से समानता रखती है अत: इस मुख्यार्थ में किंचित सम्बन्ध अवश्य है।
(३) ‘गधा’ मूर्खता के लिये रूढ़ हो गया है, इसलिए ‘मूर्खता’ प्रयोजन के लिए ‘गधा’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
लक्षणा के भेद – आचार्यों ने लक्षणा के अनेक भेद माने हैं। लक्षणा के प्रमुख भेद निम्न प्रकार हैं –
लक्षणा
(१) रूढ़ि –
गौणी
शुद्धा
(२) प्रयोजनवती
गौणी
सारोपा
साध्यवसाना
शुद्धा
लक्षण लक्षणा ( जहत स्वार्था)
सारोपा
साध्यवसाना
उपादान लक्षणा (अजहत स्वार्था)
सरोपा
साध्यवसाना
पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –
“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”
काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल
शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 1 – रस अलंकार पिंगल
शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा– 2 – रस अलंकार पिंगल