अपने शहर उज्जैन के ऑनलाईन अखबार का एडीशन रोज ही पढ़ता हूँ, आज एक खबर देखी कि एक बिल्डर ने 198 फ्लैट (Flat) बेचे और लगभग पूरे पैसे भी ले लिये, पर अभी तक न मल्टी पूरी हुई और न ही किसी को मालिकाना हक दिया। इस पर कोर्ट ने बिल्डर को जेल भेज दिया है।
यह किस्सा है तकरीबन 4 वर्ष पहले का, जब इस कंपनी ने बड़े बड़े विज्ञापन अखबारों में दिये थे, और हमने भी एक फ्लैट यहाँ पर बुक करवाया था, हम बैंगलोर में थे और पापा को कहकर कि फ्लैट अच्छी जगह लग रहे हैं और ले लेना चाहिये, जो बुकिंग एजेन्ट था वह हमारे पारिवारिक परिचित ही थे, हमने बुकिंग एमाऊँट बिना सोचे समझे, उन पारिवारिक परिचित के कहने पर जमा भी करवा दिया।
जब हम छुट्टियों में घर पहुँचे तो एजेन्ट और बिल्डर दोनों से मिलकर आये, बात करने के बाद हमें मामला गड़बड़ लगा और हमने तत्काल ही अपने बुकिंग एमाऊँट को वापिस करने की माँग रखी, और कहा कि हाँ अपने से गलती हुई कि बिना जाँचे परखे बुकिंग करवाई, आप पैनल्टी काटकर हमारा बुकिंग एमाऊँट वापिस कर दो। पर वे लोग पैसा वापिस देने में आनाकानी करने लगे।
पहले हमने उन्हें सीधे सादे तरीके से कहा कि हमारे पैसे दे दो, तो वो हमारा मखौल उड़ाने लगे, कहने लगे कि जो करते बने कर लो, पैसा तो आपको नहीं मिलेगा, आप बेहतर है कि लोन लो और बाकी के पैसे भी चुकाकर फ्लैट जब बन जायेगा, तब ले लो। हमने उस समय LIC Housing में जाकर बात की, बिल्डर ने हमें वहाँ भेजा था, तो वे तत्काल ही लोन देने को तैयार हो गये। उसी समय हमारे मित्र इलाहाबाद बैंक में मैनेजर थे, हमने उनसे बात की कि आप अपने बैंक से लोन दो, उन्होंने हमें बहुत सारे बिल्डरों की कहानियाँ बताईँ और समझाया कि उज्जैन में मल्टी का फंडा नया है और बिल्डर का कोई भी पुराना रिकार्ड नहीं है, इसलिये कोई भी सरकारी बैंक लोन नहीं देगा। हमें समझ आ गया कि भई अपन फँस चुके हैं।
हम परेशान थे तो हमने महफूज भाई से बात की और उन्होंने जो कानूनन तरीका बताया, उस पर चले। हमने एक आवेदन लिखा कलेक्टर महोदय के नाम और पहुँच गये उनसे मिलने, वहाँ जाकर बात की तो उन्होंने कहा कि आप अपना आवेदन यहीँ छोड़ जाईये, आपका पैसा बिल्डर घर पर देने आ जायेगा। हमने कहा हमें आप पर पूर्ण विश्वास है, परंतु फिर भी आप हमें आवक नंबर दे दीजिये, जिससे हमें संतुष्टि हो जाये। इस पर कलेक्टर महोदय ने कहा कि अगर आपको कानूनन प्रक्रिया ही करनी है तो फिर आवेदन बाहर दीजिये, अपनी गति से कार्य होगा। हमने उन्हें बताया कि अगर कानूनन प्रक्रिया को नहीं अपनाया तो हम मुश्किल में फँस जायेंगे, क्योंकि हमें अगले दिन ही बैंगलोर के लिये वापिस निकलना था। हमारे एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र हैं, उनसे इस बाबद बात की तो वे बोले कि बॉस इस तरीके से थोड़ा समय जरूर लगेगा, परंतु ये सब सुधर जायेंगे।
हमने आवक नंबर लिया और आवेदन की अपनी प्रति पर आवक के सील ठप्पे लगवाकर, कलेक्टरेट से निकल ही रहे थे, कि हमने एक नाम देखा डिप्टी कलेक्टर महोदय का, हमें लगा कि अरे ये तो अपने परिचित हैं, वे हमारे कॉलेज के अर्थशास्त्र विषय के प्रोफेसर थे, जो बाद में पीएससी करके डिप्टी कलेक्टर थे, हम पहुँचे तो वे एकदम से पहचान गये और उन्होंने कुशल पूछा और कहा कि बताओ इधर कैसे आना हुआ, हमने अपना सारा किस्सा उन्हें सुना दिया, तो वे बोले अभी माधवनगर कंट्रोल रूम जाओ और वहाँ पर एक एएसपी का नाम बताया और सामने ही फोन कर दिया, कहा कि चिंता मत करो बेटा, हम यही सब ठीक करने के लिये तो प्रोफेसर से प्रशासन में आये हैं।
हम कंट्रोल रूम गये, बड़े अच्छे से साहब पेश आये और हमारा आवेदन उन्होंने भी ले लिये, अभी तक जो एजेन्ट और बिल्डर अकड़ रहे थे, तो उनके ऊपर अब कानूनन हमने दो प्रकार से दबाब बना दिया था, पुलिस कंट्रोल रूम से भी अब दबाब बनाया जाने लगा और कलेक्टर महोदय ने हमारी अर्जी को तहसीलदार को सौंप दिया, तो तहसीलदार की तरफ से भी उनके पास समन जाने लगे, समन की तामील करने वे नहीं आये, तो कानून ने अपने तरीके से काम करना शुरू किया और वे लोग हमारे घर आये और बाहर ही सैटलमेंट की बाद करने लगे, हम अपने अभिभावकों को ज्यादा परेशान नहीं करना चाहते थे, सो बाहर ही सैटलमेंट कर लिया।
पर सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि हमने अपनी कमाई की पूँजी लुटने से बचा ली, और दुख इस बात का है कि बहुत से लोग उस एजेन्ट और बिल्डर के झाँसे में आकर अपने सपने को लुटते हुए देखते रहे और आखिर में वह सपना टूट ही गया।