आधुनिक शिक्षा की दौड़ में कहाँ हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य (Can we save our indian culture by this Education ?)

    क्या शिक्षा में सांस्कृतिक मूल्य नहीं होने चाहिये, शिक्षा केवल आधुनिक विषयों पर ही होना चाहिये जिससे रोजगार के अवसर पैदा हो सकें या फ़िर शिक्षा मानव में नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक मूल्य की भी वाहक है।

कैथलिक विद्यालय में जाकर हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं –

यीशु मसीह देता खुशी

यीशु मसीह देता खुशी
करें महिमा उसकी
पैदा हुआ, बना इंसान
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान
देखो भागा भागा, देखो भागा भागा
देखो भागा भागा शैतान

नारे लगाओ, जय गीत गाओ
शैतान हुआ परेशान
ताली बजाओ, नाचो गाओ
देखो भागा शैतान
देखो भागा भागा…

गिरने वालों, चलो उठो
यीशु बुलाता तुम्हें
छोड़ दो डरना
अब काहे मरना
हुआ है ज़िन्दा यीशु मसीह
यीशु मसीह…

झुक जायेगा, आसमां एक दिन
यीशु राजा होगा बादलों पर
देखेगी दुनिया
शोहरत मसीह की
जुबां पे होगा ये गीत सभी के
यीशु मसीह..

कल के चिट्ठे पर कुछ टिप्पणियों में कहा गया था कि धार्मिक संस्कार विद्यालय में देना गलत है, तो ये कॉन्वेन्ट विद्यालय क्या कर रहे हैं, केवल मेरा कहना इतना है कि क्या इन कैथलिक विद्यालयों के मुकाबले के विद्यालय हम अपने धर्म अपनी सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरुप नहीं बना सकते हैं ? क्या हमारे बच्चों को यीशु का गुणगान करना और बाईबल के पद्यों को पढ़ना जरुरी है। पर क्या करें हम हिन्दूवादिता की बातें करते हैं तो हमारे कुछ लोग ही उन पर प्रश्न उठाते हैं, जबकि इसके विपरीत कैथलिक मिशन में देखें तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाई देगा।

यहाँ मैं कैथलिक विद्यालयों की बुराई नहीं कर रहा हूँ, मेरा मुद्दा केवल यह है कि जितने संगठित होकर कैथलिक विद्यालय चला रहे हैं, और समाज की गीली मिट्टी याने बच्चों में जिस तेजी से घुसपैठ कर रहे हैं, क्या हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ इन कैथलिक विद्यालयों के साथ स्वस्थ्य प्रतियोगिता नहीं कर सकते।

10 thoughts on “आधुनिक शिक्षा की दौड़ में कहाँ हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य (Can we save our indian culture by this Education ?)

  1. यही तो दिक्कत है. क्रास बना हो तो धर्मनिरपेक्ष. सरस्वती शिशु मन्दिरों में ऊं साम्प्रदायिक… मदरसे धर्मनिरपेक्ष और संस्कृत पाठशालायें साम्प्रदायिक. उर्दू को राजाश्रय और संस्कृत को मृत्युदण्ड..

  2. @ भारतीय नागरिक – यही तो समस्या है, कि धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा सबके लिये अलग अलग है।

  3. @ प्रवीण जी – बेहद गंभीर समस्या है यह, इस पर महाराष्ट्र सरकार ने कैथलिक विद्यालयों को बुलाकर कहा था कि बच्चों को भारतीय संस्कृति से भी परिचय करवाया जाये, परंतु उन्होंने सरकार की इस बात को सिरे से नकार दिया।

  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

  5. शत प्रतिशत सहमत हूँ आपसे…यह बात मुझे भी बहुत क्षुब्ध करती है…
    पर अफ़सोस है कि इसके विरुद्ध यदि एक शब्द भी हम बोलेन तो तुरंत सांप्रदायिक ठहरा दिए जायेंगे…
    भारत में हिन्दू धर्म की बात करना छोड़ और किसी भी धर्म की बात करने पर कोई बुराई नहीं है..

    और नैतिकता – उसे तो कब का तेल लेने भेज दिया गया है…

  6. सहमत हूँ आप से. हमारे यहाँ तो बस तुष्टिकरण की नीति चलती है. अल्पमत के अधिकारों की रक्षा करने वाली बात तो समझ में आती है , लेकिन उसके लिये बहुमत के इच्छाओं का बलिदान कहा तक उचित है? ब्लॉग तक पहली बार पहुँच सका हूँ, निरंतरता बनाये रखने का प्रयास करूँगा.

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