अभिवादन हमारी संस्कृति हमारी परंपरा

रोज सुबह घूमने निकलता हूँ तो कई जाने जाने पहचाने चेहरे रोज ही दिखते हैं, पर कुछ ही लोग गुड मॉर्निंग कह कर अभिवादन करते हैं। हमारी परंपरा रही है कि सुबह हम लोग जय श्री कृष्णा करते थे, जय श्रीराम कहा करते थे। हमें हमारी परंपरा को भूलना नहीं चाहिये। हम लोग बातों-बातों में अंग्रेजों का उदाहरण देते हैं कितने संस्कारवान होते हैं और हमें उनसे सीखना चाहिये। दरअसल अभिवादन की परंपरा हमारी बहुत पुरानी है, लेकिन हम आधुनिक रीति-रिवाजों में, आधुनिक रहन-सहन में, सब भूल चुके हैं। आज कम ही लोग होते हैं जो अभिवादन स्वीकार करते हैं और अपनी तरफ से अभिवादन करते हैं, अगर आप ध्यान दें तो पायेंगे कि सामने से आता व्यक्ति अगर रोज आपको 10 दिन घूमता हुआ सुबह दिख रहा है तो वह या आप, अपने आप ही सुबह का गुड मॉर्निंग अभिवादन करने लगते हैं। पर कुछ लोग होते हैं जो मुँह ऐसा फुला कर रखते हैं, जैसे वह आपको जानते ही नहीं। हो सकता है कि वह कोई बहुत बड़ा आदमी हो, तो वह पहचान नहीं रहा हो कि कहीं आप उसका फायदा तो नहीं उठा लेंगे, यह समस्या केवल महानगरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी हो रही है।

अभिवादन केवल बाहर समाज के लिए ही नहीं अपितु अभिवादन घर में भी सुबह दोपहर शाम करना चाहिये। जिससे हम लोगों की आपस में कड़ी मजबूत रहती है और भावनात्मक लगाव बढ़ता है।

हम लोग घूमने निकलते हैं या दौड़ने निकलते हैं तो हम खुद ही अपनी तरफ से लोगों को अभिवादन कर देते हैं। अब आप एक ही जगह पर रहते हो, रोज ही एक दूसरे को देखते हों, ऑफिस आते जाते समय, कहीं सामान लेने जा रहे हैं तो भी कहीं ना कहीं अभी आपको मिल ही जाते हैं। अभिवादन दरअसल जो हमारे बीच की दूरी होती है, उसे दूर करता है अगर आप अभिवादन करते होंगे या केवल मुस्कुराते भी होंगे, अगर कहीं आप मिल जायेंगे, किसी दुकान पर, कहीं सड़क पर या फिर कहीं सार्वजनिक जगह पर तो कम से कम आप बात करने की हिम्मत जुटा पायेंगे या सामने वाला बात करने की हिम्मत जुटा पायेगा। आजकल सभी लोग एकांत में ही रहना पसंद करते हैं, कोई किसी से बातचीत करना पसंद नहीं करता है। अगर यही गति रही, हम लोग केवल अपने डिजिटल असिस्टेंट से बात करते रहेंगे। हम मानव लोग आपस में बात करना भूल जायेंगे और केवल कारपोरेट कम्युनिकेशन तक सीमित होंगे, तो अपने आप को एकांत में जाने से ढकेलने से रोकने हेतु अभिवादन करना शुरु कीजिये, नहीं तो जीवन में बहुत निराशा होगी। आप भले ही 10 लोगों को देखते हों या 16 को कम से कम हँसिये और हँसकर अभिवादन करिये, मुस्कुराकर अभिवादन करिये, हाथ दिखा कर अभिवादन करिये, सुप्रभातम, गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग कहकर अभिवादन करिये, लेकिन अभिवादन जरूर करिये।

आप टिप्पणी में बता सकते हैं कि क्या आप भी अभिवादन करते हैं और आप इस पर क्या सोचते हैं, क्या हमारे विचार मिलते हैं या हमारे विचारों की धुरी अलग-अलग है।

2 thoughts on “अभिवादन हमारी संस्कृति हमारी परंपरा

  1. मुझे लगता है भारत में आज कल अभिवादन का दौर ही नहीं है… फॉर्मेलिटी भर है.. पश्चिमी देशों में अनजान लोग एक दुसरे को देखकर सर झुका कर स्माइल पास करते हैं… इससे बेहतर मुझे और कुछ नहीं लगता…

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