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बेटेलाल के साथ छुट्टियों का जादुई अहसास (Magic of my kid on vacations)

    बच्चों केसाथ छुट्टियों पर जाना ही बेहद सुकूनभरा अहसास होता है, और बच्चे छुट्टियों कोअपनी शैतानी और असीमित ऊर्जा से छुट्टियों को यादगार बना देते हैं। बच्चों को कितना भी बोलो पर वे कहीं पर भी और कभी भी चुपचाप नहीं बैठ सकते, पता नहीं उनकी इस असीमित ऊर्जा को स्रोत क्या होता है। बच्चे अपनी मस्ती से छुट्टियों में जादू भर देते हैं और ये यादें हमेशा अंतर्मन में ऐसे रहती हैं कि अभी ही उन्होंने मस्ती की हो। बच्चे वे सब कर लेते हैं, जो हम बड़े झिझक के कारण नहीं कर पाते हैं।
    मैंने कुछ दिनों के लिये छुट्टियों पर गोवा जाने का कार्यक्रम बनाया था, तो हमारे बेटेलाल ने पहले ही अपनी सूचि बनाना शुरू कर दी थी, कि गोवा से क्या क्या लाना है और अपने दोस्तों के साथ मिलकर नेट पर ढ़ूंढ़ते थे कि कहाँ कहाँ घूमना है, कहाँ खाना अच्छा है और कैसे घूमना है। पूरे प्लेन में केवल यही उत्साहीलाल लग रहे थे, कि जैसे गोवा केवल इनके घूमने के लिये ही बनाया हो, और बाकी सब तो झक मारने जा रहे हैं। बेटेलाल की छुट्टियों का उत्साह देखते ही बनता था। मुझसे कैमरे से फोटो खींचना, वीडियो बनाना सब सीख लिया था।
Calangute beach Goa
Evening Snaks at Marriott Goa
Fort Aguada in Goa

 

Goa Marriott Swimming pull
Harsh at Marriott Room Goa

 

on the wall of Marriott of Goa
    गोवा हम रिसॉर्ट में पहुँचे तो वहाँ के स्वागत को देखकर ही अचंभित थे, और जब हमें गोवा की वाईन के बारे में जानकारी दी जा रही थी तो एक बंदा ट्रे में बीयर लेकर आया तो सबसे पहले बीयर हाथ में लेकर चीयर्स करने लगे कि मैं भी बड़ों की कोल्डड्रिंक पियूंगा, तो बेयरे ने कहा कि आप के लिये दूसरी बोतल है आप यह वाली मत लें, तब जाकर हमारी साँसों में साँस आई।
    जब हमें कमरा दिखाया जा रहा था, तो कहने लगे कि हम यहीं रहते हैं, यहाँ कितना अच्छा लग रहा है, तरणताल में पड़े रहो और समुँदर का नजारा देखते रहो, और बेटेलाल कोई भी ट्यूब लेकर तरणताल में मौज करने के लिये उतर पड़ते, हम बाहर से ही देखते रहते तो एक दिन बोले अब अंदर आकर तो देखो कितना मजा आता है, हम तरणताल में उतरे तो वाकई अनुभव मजेदार था।
    अगले दिन समुद्रतट पर घूमने गये थे, तो बेटेलाल बहुत उत्साहित थे, हालांकि मुँबई में रहने के दौरान कई बार समुद्रतट के मजे ले चुके थे, पर हमें बोले कि गोवा की तो बात ही कुछ और है, और कपड़े उतार कर निकर में ही रेत और पानी के मध्य मस्ती के आलम को जबरदस्त माहौल बनाया और कुछ ही देर में अपने ही हमउम्र बच्चों के साथ वहाँ मस्ती का आनंद उठाने लगे। हमने कभी ऐसी मस्ती का माहौल नहीं देखा था, बेटेलाल हमसे उनके साथ आने की जिद करने लगे तो हम भी उनकी मस्ती में सारोबार हो, रेत और समुँदर के पानी में डूब लिये ।
    बेटेलाल को तो बस हर जगह कैसे मजे लें, इसमें विशेषज्ञता हासिल है। और उनकी इसी मस्ती से भारी पल भी मस्ती के रंग में रंग जाते हैं। यह यात्रा और अनुभव क्लबमहिन्द्रा के टैडी
ट्रैवलॉग
के लिये लिखा गया है।

बैंगलोर से मुंबई ..

    सुबह जल्दी की फ़्लाईट हो तो सारी दिनचर्या अस्तव्यस्त हो जाती है, एक दिन पहले सारा समान पैक करा, टिकट भी एयर इंडिया में मिला था तो समान भी केवल १५ किलो, पहले तो सारा समान पैक कर लिया गया और फ़िर तोला गया पता चला कि २१ किलो हो गया है, फ़िर एक और बैग किया गया, जिसमें चेक इन वाले बैग से केबिन में ले जाने वाले बैग में शिफ़्ट किया गया, फ़िर देखा कि ७ किलो ले जा सकते हैं, अभी तो और भी समान रख सकते हैं, तो १ किलो नमकीन मिठाई और रख ली, अब इलाहाबाद की नमकीन और दिल्ली की मिठाई की बात ही कुछ और होती है । इतनी सारी मशक्क्त करने में देर रात हो गई, निश्चय किया गया कि सुबह केवल महत्वपूर्ण दैनिक कार्यक्रम करके हवाई अड्डे निकल लेंगे और मुंबई पहुँच कर बाकी के कार्यक्रम सम्पन्न किये जायेंगे।

    सुबह ४ बजे उठे कार्यक्रम निपटाकर  तुरत फ़ुरत तैयार हुए टैक्सी भी आ चुकी थी, समान टैक्सी के हवाले कर हम पीछे सीट पर धँस लिये और फ़िर से हम नींद के आगोश में जाने को तैयार थे क्योंकि अभी हवाई अड्डे पहुँचने में भी कम से कम १ घंटा लगना था ।

    लगभग १ घंटे बाद हम हवाई अड्डे पर पहुँचे, हमने पहले ही वेब चेक इन कर लिया था और बोर्डिंग पास हमने प्रिंट निकाल लिया था कि समय की बचत हो सके, जब एयर इंडिया के काऊँटर पर पहुँचे तो पता चला कि केवल समान चेक इन करने की सुविधा का काऊँटर आज उपलब्ध नहीं है, तो हमें फ़िर लाईन में लगना पड़ा, हमने सोचा कि चलो लाईन छोटी है, पर फ़िर भी समय हो रहा था और अभी सुरक्षा जाँच से भी निकलना था । खैर जल्दी ही नंबर आया और चेक इन करके हम सुरक्षा जाँच के लिये निकल लिये । सुरक्षा जाँच में हमारा बैग रोक लिया गया, और फ़िर खाने के समान की पता नहीं कौन कौन सी मशीन से तलाशी ली गई, तब तक बोर्डिंग का समय निकला जा रहा था, फ़िर दौड़ लगानी पड़ी.. खैर समय से क्राफ़्ट में पहुँच गये और केबिन में सामान रखने की जगह भी मिल गई, कई बार देरी हो जाने पर सामान केबिन में रखने की जगह मिलना मुश्किल हो जाता है।

    एयर इंडिया में युवा पीढ़ी को सेवा करते देख बहुत अच्छा लगा, क्योंकि पता नहीं अपने को अब जेट की सुविधाएँ अच्छी नहीं लगतीं, जेट वाले हरेक चीज को टालते रहते हैं । सुबह बैंगलोर से बहुत सारी फ़्लाईट अलग अलग शहरों को जाती हैं, तो एयर पोर्ट पर बहुत भीड़ हो जाती है, और अधिकतर अपने व्यापार या नौकरी के सिलसिले वाले ही होते हैं, जिससे दिन भर वे दूसरे शहर में जाकर कार्य कर सकें । कुछ लोग सूटेड बुटेड थे कुछ लोग हमारे जैसे जींस टीशर्ट में, परंतु सभी अपने अपने कार्यों में व्यस्त, कुछ ना कुछ लेपटॉप पर या कॉपी पर लेखन जारी था, किसी के एक्सेल शीट खुली थी, किसी का वर्ड डॉक्यूमेंट खुला था, कोई प्रेजेन्टेशन को आखिरी रूप दे रहा था, यह दुनिया बहुत तेजी से बदलती जा रही है।

    उड़ान शुरू हुई और हिन्दी में उद्घोषणा सुनकर मन प्रसन्नता से भर जाता है, केवल विमान का कप्तान अंग्रेजी में ही बात करता है उसे शायद हिन्दी बोलने की अनुमति नहीं होती होगी। नाश्ते की खुश्बू नथुनों में समाने लगी थी, परंतु कुछ भी तरह की खुश्बू थीं किसी की परफ़्यूम की और किसी की सुबह कार्यक्रम ना करके आने की चुगली करने वाली खुश्बू ।

    मुंबई पहुँचे कन्वेयर बेल्ट पर समान बहुत देरी से आया, तो अहसास हुआ कि अपन सरकारी हवाई सुविधा का लाभ ले रहे हैं, इसलिये इंतजार तो करना ही होगा, वहीं पास वाले कन्वेयर बेल्ट पर दूसरे विमान का स्टॉफ़ भी अपने समान का इंतजार करते हुए खीज रहा था ।

    मुंबई में हवाई अड्डे पर बहुत लूट है, पास में जाने का भी टैक्सी इतने पैसे वसूलती हैं कि सुनकर ही हालत खराब हो जाये, हम समान के साथ सीधे सड़क पर आये और ऑटो जो पहले से ही खड़े थे, उनसे पूछा तो कहते हैं कि हमारे गंतव्य तक जाने के ३५० रूपये लगेंगे, हमने कहा भई मीटर से चलो, मुश्किल से १०० रूपये लगते हैं, पर वे तैयार नहीं हुए और हमे कहने लगे कि अरे साहब हमें ये पुलिस वालों को १०० रूपया हर ट्रिप का देना पड़ता है, क्योंकि हम यहाँ देर से खड़े हैं, नहीं तो ये हमें यहाँ खड़े नहीं होने देंगे । हमने कहा हम मुंबई में नये नहीं हैं, इसलिये तुमसे लुटने वाले नहीं हैं, एक काम करो थाने चलते हैं और तुम्हारी शिकायत करते हैं,  तो उन्हीं ऑटो वाले ने दूसरी ऑटो रोकी और मीटर से बैठा दिया ।

    काफ़ी दिनों बाद मुंबई की सड़क पर ऑटो की सवारी के मजे ले रहा था, बहुत अच्छा लग रहा था, ऑटो वाला भी गजब की रफ़्तार में चलाये जा रहा था, टैक्सी में जा सकते थे परंतु ऑटो का अपना अलग ही मजा है और आखिर ढ़ाई साल बाद मुंबई में आना हुआ था तो सबसे पहले ऑटो में ही बैठे । ऑटोवाले की बातें, आसपास की चिल्लपों अच्छी लग रही थी, शायद इसलिये भी कि बहुत दिनों बाद ये सब सुनी थीं।

    गंतव्य पर पहुँचे और तैयार होकर अपने ऑफ़िस के लिये निकल पड़े, जैसे ही बाहर निकले मुंबई में होने का अहसास हो गया, पूरी शर्ट पसीने से तरबतर हो गई थी, दो वर्षों से ज्यादा समय से बैंगलोर में हूँ तो कभी इतनी पसीने की आदत भी नहीं रही, बैंगलोर तो पूर्ण प्राकृतिक वातानुकुलित शहर है। अब मुंबई में मुबई के रहना का अहसास जो हुआ है,  उसमें अपने आप को ढ़ालना होगा, आगे के थोड़े दिनों के लिये।

जीवन की दो महत्वपूर्ण उपयोगी चीजें पानी और पेपर नेपकीन

    जब से देश के बाहर आना शुरू किया है तब से दो चीजों की महत्ता पता चल गई है, पहला पानी और दूसरा है पेपर नैपकीन । अपने भारत में तो कोई समस्या नहीं, पानी भी बहुत है और हाथ धो भी लिये तो अपने ही रूमाल से पोंछना पड़ते हैं, क्योंकि साधारणतया: पेपर नेपकीन उपलब्ध नहीं होते।

    जब सऊदी आये तो यहाँ सब कुछ बदला हुआ था, पहली बार शौचालय में घुसे तो लगा कि अपने पुरूष वाले शौचालय में नहीं हैं गलती से महिलाओं वाले शौचालय में घुस आये हैं, बाहर जाकर देखा तो शेख को चिन्हित करता फ़ोटो लगा था, तब वापिस अंदर आ गये। क्योंकि पुरूषों वाले शौचालय में दोनों तरह के साधन उपलब्ध होते हैं और यहाँ केवल पश्चिमी और देशी पद्धति वाले बंद दरवाजे के शौचालय उपलब्ध थे, वो खुलेवाले खड़े होकर निवृत्त होने वाले शौचालय नहीं थे। बहुत आश्चर्य हुआ परंतु फ़िर भी बाहर निकले और साथी को बताया कि इधर तो ऐसे ही शौचालय हैं और अपने को तो वैसे वाले की आदत है। क्योंकि दुबई या अबुधाबी में साधारणतया: इस तरह के शौचालय भी उपलब्ध हैं।

    अब यहाँ पर टॉयलेट पेपर भी वो अपने २-३ तह वाला नहीं यहाँ पर तो सीधा पेपर रोल लोड कर देते हैं और फ़िर चाहे जितना पेपर खींचो और हाथ मुँह पोंछ लो, यह पेपर रोल पहले तो हमें बड़ा अजीब लगा था पर अब तो इसकी आदत पड़ गई है,  हमने कई लोगों को देखा हाथ मुँह धोकर इतना पेपर खींचते हैं कि अच्छा खासा छोटा तौलिया बन जाता है और फ़िर हाथ मुँह पैर सब उसी से पोंछ लेते हैं।

Hand Towel DispensersPaper Roll

    Auto cut paper towel dispensersकुछ रेस्टोरेंट में ऐसे ही रोल होते हैं परंतु उसमें कटर साथ में होते हैं, कुछ जो देसी किस्म के रेस्टोरेंट होते हैं, वहाँ बड़े बड़े रोल तार में करके लटका दिये जाते हैं, जितना मर्जी हो पेपर खींचो और हाथ पोंछ लो, पता नहीं यहाँ पर रोज ही कितने ही पेपर नेपकीन की खपत होती होगी, और तो और वो टिश्यु पेपर का अलग उपयोग किया जाता है।

    पानी लगभग सभी जगह बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध होता है, अधिकतर जगह पानी का फ़ोर्स बहुत कम होता है जिससे पानी के खर्च पर नियंत्रण रखा जा सके। यहाँ जेद्दाह में पानी अधिकतर डिस्टीलेशन से होता है, पीने का पानी अधिकतर इपोर्ट होता है। परंतु पर केपिटा पानी का खर्च दुनिया में सबसे ज्यादा होता है, वैसे अभी थोड़े दिन पहले ही दोहा कतार के बारे में पढ़ रहे थे, उधर भी यही कहा जा रहा था। पता नहीं दोनों में ज्यादा पानी का उपयोग कौन करता है।

    जब तक दुनिया के लिये इनके पास ईंधन है, ये अपनी अमीरी से सबको रिझाते रहेंगे । वैसे एक बात और बता दूँ कि यहाँ पेट्रोल भारतीय रूपये में ७ रूपये लीटर और पानी १५ रूपये का ६०० एम.एल. है।

रात्रि का सफ़र और दिन भर नींद

    इस बार सफ़र कुछ जल्दी ही हो गया, केवल तीन दिन ही भारत में परिवार के साथ व्यतीत कर पाये थे कि तीसरे दिन की रात्रि को ही घर से निकलना था, क्योंकि सुबह ४.३० बजे की फ़्लाईट थी और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के लिये ३ घंटे पहले पहुँचना होता है, वैसे तो वेब चेक इन कर लिया था, तो १.५ घंटे पहले भी पहुँचते तो काम चल जाता । परंतु हमने सोचा कि दो बजे तो निकलना ही है उसकी जगह १२ बजे ही निकल लेते हैं, अगर नींद नहीं खुली तो खामखाँ में घर पर ही सोते रह जायेंगे, और फ़िर २ बजे जरा नींद ज्यादा ही आती है, तो टैक्सी ड्राइवर साब भी झपकी मार लिये गाड़ी चलाते हुए तो बस कल्याण ही हो जायेगा।

समय से मतलब कि १ बजे रात्रि को हवाई अड्डे पहुँच गये, सोचा इतनी जल्दी भी क्या करेंगे, उधर जाकर । पहले कैफ़ोचीनो पीते हैं आराम से और फ़िर थोड़ी देर बैंगलोर की रात की ठंडक के मजे लेते हैं। जींस के जैकेट में भी ठंडक कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सो ज्यादा देर बैठने का आनंद भी नहीं लूट पाये। चाँद की हसीन रोशनी में कोहरा देखना कभी कभी ही नसीब होता है। हवा में भरपूर नमी थी, और जितने भी लोग घूम रहे थे या बैठे थे, वे अपने भरपूर गरम कपड़े होने के बावजूद ठिठुर रहे थे। वैसे भी बैंगलोर में इस तरह से रात बिताने का संयोग से बनता है।

खैर जल्दी ही चाँद के आँचल से निकल कर हवाईअड्डे की पक्की इमारत के आगोश में आ गये। पता चला कि फ़्लाईट एक घंटा देरी से है, सोचा कि पहले लगता था कि केवल ट्रेन और बस ही देरी से चलते हैं और तो और ये हवाई कंपनी वाले एस.एम.एस. भी नहीं करते हैं । जब चेक इन के काऊँटर पर देखने पहुँचे तो लंबी लाईन लगी थी, और वेब चेकइन की लाईन खाली थी, हमारे एक और मित्र भी मिल गये थे लाईन में लगने के पहले, तो दोनों साथ ही चेक इन की लाईन में लग लिये और कब एक घंटा बातों में व्यतीत हो गया, पता ही नहीं चला, जब काऊँटर पर पहुँचे तो अधिकारी महोदय मुस्कराकर बोले कि आपने तो वेबचेक इन कर लिया था फ़िर इधर, हम कहे नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा कैसे टाईम पास किया जाये सो लाईन में लग लिये, वे भी हँस पड़े। इमिग्रेशन फ़ॉर्म भरने के बाद इमिग्रेशन और सुरक्षा की बाधाएँ पार कीं, तो पाया सब हिन्दी बोलने वाले थे, और सुरक्षा में जो अधिकारी मौजूद थे वे तो ठॆठ हिन्दी बोल रहे थे, जैसे कि अधिकतर उत्तर भारत के राज्यों में बोली जाती है।

फ़िर लंबी कुर्सी पर लेट लिये पर नींद को हम आने नहीं दे रहे थे क्योंकि ३ घंटे बचे थे और एक बार हम सो जायें तो उठने की गारंटी तो अपनी है नहीं, तो बेहतर था कि जागकर नींद को न आने दिया जाये। जब फ़्लाईट में घुस गये तो सुबह के पाँच बज चुके थे और साढ़े पाँच को उड़नी थी, अपन तो कंबल ओढ़कर सो लिये।

लगभग चार घंटे की फ़्लाईट में पूरा समय सोकर निकाला, जब सुबह अबूधाबी पहुँचे तो केवल आठ ही बज रहे थे, याने की भारत में दस, हम समय से दो घंटे तेजी से भाग लिये थे, और अब हमें फ़िर ७ घंटे का इंतजार करना था, सो फ़िर लंबी आराम कुर्सी पकड़ी और सो लिये । घर से परांठे बनवाकर लाये थे, जब भूख लगी खाकर फ़िर सुस्ता लिये।

आखिरकार आठ घंटे इंतजार करने के बाद अपनी अगली फ़्लाईट का वक्त हो गया और सऊदी पहुँच गये, इधर भी पूरी फ़्लाईट में सोते सोते गये। इमिग्रेशन में १ घंटा लग गया फ़िर आधे घंटे में होटल पहुँच गये और फ़िर जल्दी ही शुभरात्रि कर बिस्तर में घुस गये।

कुछ फ़ोटो खींचे थे, अबूधाबी के ऊपर से वो हमारे टेबलेट में पड़े हैं, अभी लोड करने में आलस आ रहा है, तो फ़ोटो अगली पोस्ट में लगा देंगे।

इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)

जेद्दाह पहुँचने के उपरांत कई बार जो कठिन प्रक्रिया लगती है वह है इमिग्रेशन, बस इधर से उधर लाईन में दौड़ते रहो, शायद यह प्रक्रिया सभी देशों में एक जैसी होती है, इसलिये किसी को कोसने से कोई फ़ायदा नहीं था, खैर हमें ज्यादा देर नहीं लगी, ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा वह भी लाईन के कारण लगा, वरना हमारे एक सहकर्मी को तो एक बार ७-८ घंटे लग गये थे, उनके पासपोर्ट या वीजा संबंधित कोई जानकारी इमिग्रेशन के सिस्टम में नहीं मिल रही थी, और उन्होंने किसी और संबंधित विभाग को सूचित कर दिया था। इमिग्रेशन के बाद बाहर निकले और जहाँ रुकने वाले थे वहाँ से हमारे नाम की तख्ती लिये टैक्सी ड्राईवर खड़ा हुआ था।

जेद्दाह एयरपोर्ट छोटा है तो कहीं  भी ज्यादा चलना नहीं पड़ता है, बस वैसे ही टैक्सी तक जल्दी से पहुँच गये। टैक्सी कौन सी कंपनी के द्वारा बनाई गई थी, वह तो हम भूल गये, परंतु थी बड़ी लंबी चौड़ी, सऊदी में एक बात है कि कारें एक से एक देखने को मिलती हैं, लंबी, चौड़ी, छोटी और बड़ी बड़ी कारें और कई कारों के तो हमें ब्रांड भी पता नहीं होते, और अगर ब्रांड सुने भी होते हैं तो पहली बार वहीं देख रहे होते हैं ।

एयरपोर्ट से होटल करीबन २५ किमी है और ये दूरी लगभग २० मिनिट में पूरी कर ली गई, कारों की औसत रफ़्तार ११० किमी होती है, और रजिस्टर्ड कंपनियों की टैक्सियाँ इससे ज्यादा रफ़्तार पर नहीं जाते, हमें बताया गया कि लोग तो इस रोड पर २०० किमी की रफ़्तार पर भी चलते हैं, जैसे कि जेद्दाह से दुबई सड़क मार्ग से लगभग ११०० किमी की दूरी पर है और अधिकतर लोग ६-७ घंटे में यह मार्ग तय कर लेते हैं।

Marriot Jeddah 1. jpegMarriot Jeddah

चित्र गूगल से साभार

होटल आकर चेकइन किया और अपनी थकान के मारे और अपनी ऊर्जा संग्रहण के लिये बिस्तर पर निढ़ाल होकर गिर पड़े। इसी दिन से ही रमादान के पवित्र महीने की शुरूआत हुई थी।  होटल के ग्रांऊँड फ़्लोर पर ही होटल ने ओपन रेस्टोरेंट की शुरूआत की हुई थी, जिसमें कि इफ़्तार और सेहरी के लिये लोग अपनी टेबल बुक करवा कर आते थे।

रमादान का माह उन लोगों के लिये बहुत कठिन होता है जो कि इसके आदी नहीं होते हैं, जैसे कि हम लोग थे, क्योंकि रमादान के महीने में शाम ७ बजे इफ़्तार होता है और सुबह ३.३० बजे तक सेहरी होती है। सऊदी की पूरी जिंदगी दिन की जगह रात की हो जाती है। दिनभर सड़क पर भी कोई ट्राफ़िक नहीं होता पर हाँ शाम ७ बजे के बाद ट्राफ़िक बढ़ जाता है और ट्राफ़िक का दबाब सुबह ४ बजे तक बना रहता है, हम रात को ९ बजे के लगभग सड़क के पार जाते थे तो वह सड़क पार करने में ही हमें १५-२० मिनिट लग जाते थे, क्योंकि ट्राफ़िक का घनत्व ज्यादा और रफ़्तार भी १२० किमी के लगभग होती थी, और चार लेन को पार करना भी इतना आसान नहीं होता था, क्योंकि किस लेन में कौन तेज रफ़्तार से आयेगा, पता ही नहीं चलता था| 120 की रफ़्तार हमें बहुत ज्यादा लगती थी, पर शायद जो गाड़ी में बैठते हैं उन्हें रोमांच का अनुभव होता है, हमने भी यह रोमांच जेद्दाह में लिया। बैंगलोर में तो ८० की रफ़्तार पर चलना भी संभव नहीं हो पाता।

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]

धूम्रपान कक्ष, खालिस उर्दू और विमान दल का देरी से आना जेद्दाह यात्रा भाग ३ (Smoking chamber, Urdu and Late Crew Jeddah Travel Part 3)

इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]

भाग १

शटल से मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुँच गये, वहाँ कौन से गेट से हमें अंदर जाना है, कोई बताने वाला नहीं था, जब हम गलत गेट पर पहुँच गये तो वहाँ खड़े जवान ने बताया कि आप गलत गेट पर आ गये हैं, आपको तो पहले गेट पर जाना है, हम फ़िर से अपने सही गेट की ओर चल पड़े। बहुत सारे यात्री जो कि मस्कट और दम्माम जा रहे थे, वे भी उसी गेट की ओर चल पड़े क्योंकि वे भी हमारे साथ ही बस से उतरे थे।

मस्कट और दम्माम जाने वाले अधिकतर भारतीय अपनी वेशभूषा से कर्मचारी लग रहे थे, जिससे पता चल रहा था कि ये लोग अपने परिवार के लिये पैसे कमाने के लिये अपना देश छोड़कर दूसरे देश जाने को मजबूर हैं। कई बार न चाहते हुए भी अपने आप की तुलना उनसे कर बैठते थे, हम भी तो यही कर रहे हैं।

गेट पर हमारी सुरक्षा जाँच नहीं की गई केवल बोर्डिंग पास देखा गया, शायद शटल से आने के कारण हमें सुरक्षा जाँच से ढ़ील दे दी गई थी, उसके बाद हम जैसे ही इमारत में प्रविष्ट हुए वहाँ पहला हॉल इमिग्रेशन का था, जहाँ हमें हमारे कागजात अधिकारियों को दिखाने थे और भारत निकास की सील लगाई जाती है, वहाँ निकास पत्र भी भरना होता है जिसमें अपनी तमाम जानकारियाँ देनी पड़्ती हैं।

मुंबई में भी इमिग्रेशन में ज्यादा समय नहीं लगा, साधारणतया: लाईन का खेल होता है, और अधिकारी के ऊपर भी होता है कि उसे कितना तेज काम करना आता है और कितना आलस करना आता है, कुछ अधिकारी बेहद चुस्त होते हैं और फ़टाफ़ट अपनी पैनी निगाहों से सारी जाँच सतर्कता के साथ फ़टाफ़ट पूर्ण कर लेते हैं और कुछ अधिकारी तो कागजात ही पलट कर देखते रहते हैं, ऐसा लगता है कि इनको प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया है और फ़िर बाद में यात्री को ही पूछते हैं कि यह कागज कहाँ है, और वह कागज अलग से दिखता रहता है,  बेहतर है कि ऐसे अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये, इस तरह के कारनामों से भारत का बहुत नाम रोशन होता है ।

इमिग्रेशन अधिकारी हमसे पूछते हैं, अरे आपका तो जन्मस्थान मध्यप्रदेश का है फ़िर आप मुँबई में कैसे, हमने कहा कि हम तो बैंगलोर रहते हैं और जाने की फ़्लाईट वाया मुंबई मिली है, तो कहते हैं अच्छा अच्छा, मतलब जन्म होने के बाद आप बैंगलोर चले गये, मन में आया अब इस बुडबक को क्या कहते कि कब गये और क्यों गये, हमने कहा नहीं जी नौकरी के लिये बैंगलोर में रहते हैं, वे बोले अच्छा अच्छा ! और हमें सुरक्षा जाँच पर जाने के हरी बत्ती दे दी गई, हमें अपने कागजात दे दिये गये और हमने अपने कागजात को जांचा और सुरक्षा जांच के लिये चल दिये।

उसी हाल में सुरक्षा जाँच के लिये थोड़ा लंबा चले तो वहाँ देखा कि बहुत भीड़ लगी हुई है, हम भी वहीं खड़े हो गये, तो एक विशिष्ट लाईन अलग से लगी हुई थी, सुरक्षा कर्मी ने हमें उस लाईन में लगने को कहा और हमने अपना जेब का सारा समान मतलब पर्स, घड़ी, सिक्के, मोबाईल और बेल्ट अपने हैंड बैग में रख दिया और लेपटॉप निकालकर ट्रे में रख दिया, फ़िर कई स्तरीय सुरक्षा जाँचों के मध्य से निकले।

जब अपना लेपटॉप बैग में रखने लगे तभी एक सुरक्षा कर्मी ने हम से एक बैग दिखाते हुए पूछा कि क्या यह बैग आपका है, हमने मना किया तो एक और व्यक्ति ने आकर दावा किया तो उन्हें वह बैग खोलने को कहा गया और उसमें लाईटर था, तो सुरक्षाकर्मी ने उनका लाईटर जब्त किया और एक रजिस्टर में उनका पूरा विवरण नोट कर लिया गया, बहुत आश्चर्य होता है कि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुरक्षा जाँच में विवरण नोट करने के लिये आज भी रजिस्टर का उपयोग हो रहा है, क्यों नहीं इन चीजों का डिजिटलाईजेशन किया जा रहा है, जिससे एजेंसियों को जाँच करने में मदद मिलेगी और किसी छेड़ छाड़ की आशंका भी नहीं रहेगी।

सुरक्षा जाँच के बाद हम अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल के गेटों पर आ गये जहाँ कि गेटों की संख्या निर्देशित थी, और यात्री उन निर्देशों को देखकर अपने प्रस्थान द्वार पर जा सकते हैं। हमारे पास काफ़ी समय था, तो हम कस्टम फ़्री एरिया देखने के लिये निकल पड़े, क्योंकि जहाँ से हमारे फ़्लाईट थी वहाँ उस प्रस्थान द्वार के पास बहुत भीड़ थी, पहले हमने अपने घर के पराठे खाये और फ़िर चाय काफ़ी के लिये निकल पड़े। सभी चीजों के भाव देखकर हमें लगने लगा कि हम वाकई अब भारत के बाहर आ गये हैं और अंतर्राष्ट्रीय हो गये हैं, क्योंकि सारे भाव अंतर्राष्ट्रीय बाजार के ही लग रहे थे। फ़िर भी कहीं एक कोने में हमें ठीक ठाक भाव वाली कॉफ़ी मिल गई और हमने वहाँ से कॉफ़ी लेकर आराम से बैठकर पेय का आनंद लिया ।

वहीं पर एक प्रार्थना कक्ष बना हुआ था जिस पर कि सभी धर्मों के निशान बने हुए थे पर वहाँ केवल मुस्लिम धर्मावलम्बी अपनी प्रार्थना अदा कर रहे थे, और कोई दिख भी नहीं रहा था, पर हमें अच्छी बात यह लगी कि यहाँ किसी विशेष धर्म के लिये प्रार्थना कक्ष नहीं बना है, जबकि लगभग सभी जगहों पर हमने देखा है कि विशेष धर्म के निशान के साथ प्रार्थना कक्ष बना है। अंतर्राष्ट्रीय स्थलों पर सर्वधर्म समान समझना चाहिये और सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना चाहिये।

प्रार्थना कक्ष

प्रार्थना कक्ष

मुंबई हवाई अड्डे पर

दुबई स्थित प्रार्थना कक्षधर्म विशेष प्रार्थना कक्ष

दुबई हवाई अड्डे पर                              सिंगापुर हवाई अड्डे पर

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

धूम्रपान कक्ष, खालिस उर्दू और विमान दल का देरी से आना जेद्दाह यात्रा भाग ३ (Smoking chamber, Urdu and Late Crew Jeddah Travel Part 3)

इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इस बार की जेद्दाह यात्रा बहुत कुछ यादें और अपनी छापें जीवन में छोड़ गयी, एक अलग ही तरह का अनुभव था जो कि जीवन में पहली बार हुआ। इस बार २० जुलाई को बैंगलोर से दोपहर की जेट की फ़्लाईट थी और वाया मुंबई जेद्दाह जाना था, अच्छी बात यह थी कि मुंबई से सीधी फ़्लाईट थी।
बैंगलोर से मुंबई अंतर्देशीय हवाईयात्रा हुई परंतु चेकइन बैग बैंगलोर में ही जेद्दाह तक के लिये ले लिया गया। बैंगलोर में टर्मिनल पर जाने के लिये दो स्वचलित सीढ़ियाँ हैं जिसमें सीधी तरफ़ वाली सीढ़ी जो कि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के यात्रियों द्वारा उपयोग में लायी जाती हैं, वही पास ही सऊदी एयर लाईन्स का काऊँटर है, जिनकी सीधी उड़ान जेद्दाह वाया रियाद है। वहाँ बहुत सारे मुस्लिम धर्मावलम्बी जो कि उमराह पर मक्का और मदीना जा रहे थे, लाईन में खड़े थे और सब के सब सफ़ेद कपड़ों में थे। ऊपर जहाँ से टर्मिनल के लिये रास्ता है वहाँ स्थित शौचालय में यही लोग नहा रहे थे और पूरा शौचालय इस तरह बन पड़ा था कि जैसे यह एयरपोर्ट का नहीं कोई आम शौचालय हो।
20072012(001)20072012(002)
अंतर्देशीय हवाईअड्डे से शटल में जाते हुए कुछ फ़ोटो
20072012(004)20072012(005)
बरबस ही मुंबई में ऑटो पर नजर गई तो फ़ोटो खींचने का लोभ संवरण ना कर सके।
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विरार से अलीबाग की टैक्सी और नवनिर्माणाधीन पुल (कुबरी)
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ये वही कॉफ़ी शाप है जहाँ इमिग्रेशन के बाद सबसे सस्ती कॉफ़ी मिली थी, और आराम करता हुआ एक विमान।
मुंबई समय से पहुँच गये और खराब बात यह थी कि जेट कनेक्ट की फ़्लाईट में खाना पीना फ़्री नहीं मिलता है, जबकि जेट एयरवेज की फ़्लाईट में खाना फ़्री होता है। दोपहर हो चली थी, खाना सुबह १० बजे घर से ही खाकर चले थे, साथ ही दूध में मले आटे के परांठे बँधवा लिये थे, जिससे अगर आगे भूख लगे तो उसे इन परांठे से शांत किया जा सकता है। मुंबई जाते समय फ़्लाईट में सॉफ़्टड्रिंक और सैंडविच खाया जिसके भाव आसमान के माफ़िक ही थे। परांठे इसलिये रख लिये गये थे कि अगर खाना न खाते बना तो परांठे खाने का आखिरी रास्ता होंगे।
मुंबई से अगली फ़्लाईट लगभग ५ घंटे बाद का था, अब हमें अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर जाना था। अंतर्देशीय हवाईअड्डे पर उतरने के बाद हम सबसे पहले शौचालय के लिये चल दिये, वहाँ देखा कि सफ़ाई का नामोनिशान नहीं था, कम से कम मुंबई के स्तर का तो नहीं था, लगता है कि हवाईअड्डे केवल शुल्क लेते हैं और बेहतर व्यवस्था के नाम पर अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं।
वहीं कन्वेयर बेल्ट पर लोगों के समान घूम रहे थे और उसी हाल के बीचों बीच में एक पिलर के पास अंतर्देशीय से अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे जाने के लिये शटल सेवा के लिये बोर्डिंग पास देखकर शटल के पास दिये जा रहे थे । जिसपर ON PRIORITY लिखा था और वहीं टीवी पर शटल का समय देखा तो पता चला कि अब अगली शटल आधे घंटे बाद है और यात्रियों की लाईन इतनी लंबी थी, कि हमने कई बार सोचा क्यों ना बाहर से टैक्सी करके चला जाया जाये। लोगों को वहीं खड़ा इंतजार करते हुए देख रहे थे, और लोग अपने पास पासपोर्ट और बोर्डिंग पास को बार बार चेक कर रहे हैं।
खैर ठीक ३० मिनिट से १० मिनिट पहले शटल आ गई, अच्छी खासी ए.सी. वोल्वो बस थी, शटल से बड़ी इज्जत के साथ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अंदर से ही ले जाया गया, जिसमें कि पास ही झुग्गी झोपड़ियों के लिये प्रसिद्ध धारावी दीवार से ही लगी थी, धारावी और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच केवल फ़ेंसिंग थी, शायद उसमें करंट दौड़ रहा हो। अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से यह बिल्कुल भी मान्य नहीं होगा।

मैं उन सभी शरीफ़ लोगों को सैल्यूट करता हूँ ।

जब मैं पहली बार घर से बाहर याने कि किसी दूसरे शहर वो भी इतनी दूर कि जाने में ही कम से कम १८ घंटे लगते थे, जिसमें बीच में अलीगढ़ से बस बदलनी पड़ती थी, चूँकि हमारे अभिभावक उधर की ही तरफ़ के हैं, तो उन्होंने बहुत सारी हिदायतों से हमारा थैला भर दिया । जैसे कि –

– किसी दूसरे पर ऐसे ही विश्वास मत कर लेना ।

– अपना और अपने समान का ध्यान रखना ।

– किसी भी अनजान से खाने को मत लेना ।

– बस स्टैंड पर भी अपने सूटकेस का ध्यान रखना, कहीं ऐसा ना हो कि सूटकेस का हैंडल तुम्हारे हाथ में हो और सूटकेस गायब हो जाये ।

– चलते रिक्शे से लोग गायब कर दिये जाते हैं।

– यहाँ तक कि चलते रिक्शे गायब हो जाते हैं और जो गायब होते हैं उनका कभी पता भी नहीं चलता ।

और भी ऐसी बहुत सारी बातें हमें बतलाई गईं, हमने भी पूर्ण सतर्कता से अपनी यात्रा शुरू की और अलीगढ़ पहुँचे और ये सारी बातें हमें याद आने लगीं, और पूरे साहस के साथ बस स्टैंड पर बस के इंतजार में ऐसे खड़े थे जैसे लुटेरों की बस्ती में एक शरीफ़ आदमी बेबस खड़ा है अगर लुटेरे आ भी गये तो ये शरीफ़ आदमी इस सतर्कता का क्या अचार डालेगा ।

खैर लगभग इस डर और सतर्कता के वातावरण में वो सुबह का एक घंटा अलीगढ़ के बस स्टैंड पर बस का इंतजार करते हुए निकला और फ़िर बस समय से आ गई तब जाकर जान में जान आई। और ये जानकर तसल्ली हुई कि न अपन ने किसी पर विश्वास किया, अपने समान का ध्यान रखा, न ही किसी अनजान से खाने को लिया और समान का ध्यान रखा और सबसे बड़ी बात ना ही चलते रिक्शे से अपन गायब हुए।

खैर आज भी ऐसे कई इलाके हैं जहाँ ये बातें सच हैं, और ऐसी खौफ़नाक जगहों पर लोग रहते ही हैं, और ऐसे लुटेरों में हिम्मत इसलिये है क्योंकि वहाँ ज्यादा ही शरीफ़ लोग रहते हैं, मैं उन सभी शरीफ़ लोगों को सैल्यूट करता हूँ ।

जेद्दाह में सप्ताहांत, टैक्सीवाले की बातें, निराला में भोजन, मुशर्रफ़ और एमग्रांड कार (Weekend in Jeddah, Taxiwala, Lunch In Nirala, Musharraf and Emgrand Car)

    जेद्दाह में अभी लगभग ५० डिग्री तापमान चल रहा है कहने के लिये केवल ५० डिग्री है परंतु रेगिस्तान होने के कारण ये बहुत ही भयंकर वाली गर्मी पैदा होती है, ऊपर से हरियाली नहीं है। कहीं भी जाना हो टैक्सी में ही जाना पड़ता है, आज फ़िर टैक्सी करके निराला रेस्टोरेंट जाना तय किया।
    होटल से निकल लिये और टैक्सी रोकी, निराला रेस्टोरेंट का बताया और चल दिये मात्र १० रियाल, निराला रेस्टोरेंट यहाँ जेद्दाह में बहुत प्रसिद्ध है और अपने बेहतरीन स्वाद के लिये जाना जाता है। जैसे ही टैक्सी में बैठे आगे पेट्रोल पंप पर उसने अपनी टैक्सी रोकी और कहा पेट्रोल लेना है, पेट्रोल ना होने की लाल बत्ती बार बार दिख रही थी, १८ रियाल दिये पेट्रोल पंप कर्मचारी को और ४० लीटर पेट्रोल डाल दिया गया, टैक्सीवाले का नाम सैफ़ुल्ला था और बंदा पाकिस्तान से था, कहने लगा कि यहाँ देखिये ४१ हलाला का एक लीटर पेट्रोल मिलता है और १८ रियाल में टैंक फ़ुल हो गया। साथ में १.५ लीटर पानी की बोतल और पसीना पोंछने के लिये टिश्यु पेपर का १ बॉक्स फ़्री। इतने में ही उसके पास फ़ोन आ गया (जी हाँ यहाँ पेट्रोल पंपों पर मोबाईल फ़ोन पर बात करने की पाबंदी नहीं है, पता नहीं भारत में किसने लगाई), पंजाबी भाषा में बात करने लगा, इतना समझ में आया कि किसी ने मुर्गी पकाई है और वह पंद्रह बीस मिनिट में खाने पहुँच जायेगा।
    टैक्सीवाले ने बताना शुरु किया कि पाकिस्तान में १०३ रुपया पेट्रोल था अभी सरकार ने १० रुपये कम किये हैं, हमारे मित्र ने कहा जरदारी को हटा दिया, तो उनका कहना था कि सारे हुक्मरान ऐसे ही हैं, बस पैसा खा जाते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं और अवाम को मरने के लिये छोड़ देते हैं, सारा पैसा अपनी जेब में रख लेते हैं जैसे अल्लाह के पास सारा पैसा लेकर जायेंगे।
    जब मुशर्र्फ़ का शासन था तब बहुत अच्छा था, यह चुनाव जो हैं पाकिस्तान के लिये नहीं बने हैं, पाकिस्तान तो सैनिक शासन में ही खुश रहता है, आज पाकिस्तान के अधिकतर जगहों पर २२ घंटे बिजली नहीं आती, जब मुशर्रफ़ थे तब एक मिनिट के लिये भी बिजली नहीं जाती थी। वाप्टा (बिजली विभाग का दफ़्तर) में यह हालात थे मुशर्रफ़ के आने के पहले कि केवल २५% कर्मचारी चढ्ढी बनियान में बैठे रहते थे और बाकी के बचे हुए घर पर ही रहते थे और मुफ़्त की तन्ख्वाह खाते थे। जैसे ही मुशर्रफ़ का शासन आया, उन्होंने सेना की टुकड़ियाँ सारे सरकारी महकमे में भेजी और कहा देखो क्या काम चल रहा है और अगर काम नहीं हो रहा है तो काम करवाओ।
    जब सेना वाप्टा पहुँची तो देखा कि सारे कर्मचारी हाजिर ही नहीं हैं, तो सेना के अफ़सरान ने कहा, कल सारे कर्मचारी यहाँ यूनिफ़ार्म में उपस्थित होने चाहिये नहीं तो बस छुट्टी समझो। इस तरह से सारे सरकारी महकमों को ठीक किया गया। अब लोकतंत्र की बहाली के बाद वापिस से वही पुराना हाल हो गया है।
    हम लोग पाकिस्तान से यहाँ आकर मजदूरी करके, टैक्सी चलाकर पेट पाल रहे हैं और हुक्मरान हमारे हिस्से का पैसा अपनी जेब में भरे जा रहे हैं। जब सारे देशों से मदद आयी तो उस मदद को भी हुक्मरानों ने अपने घर में भर लिया और पाकिस्तान की जनता उससे महरूम रह गई। जब सऊदी सरकार ने भी मदद की पेशकश की तो हुक्मरान ने कहा आप मदद भेज दीजिये हम गरीबों में मदद भिजवा देंगे, तो यहाँ की सरकार ने कहा कि मदद हम सीधे गरीबों को देना चाहते हैं, और यहाँ से सेना मदद लेकर गई और सीधे पाकिस्तान की गरीब जनता को मदद दी गई, सही मायने में केवल यही मदद जनता के पास पहुँची, बाकी तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई, यहाँ रेल्वे की हालत यह है कि चंद ट्रेनें ही चलती हैं, बस बंद होने की कगार पर है।
    आगे टैक्सी ड्राईवर का कहना था,  साहब आपका भारत तो बहुत अच्छा है, कम से कम सरकार मीडिया और कोर्ट के पास अधिकार तो हैं, उनके पास पॉवर तो है।
    हमारा रेस्टोरेंट आ गया था सप्ताहांत का माहौल था, यहाँ वेज और नॉनवेज दोनों मिलता है, हम तो वेज ही खाते हैं और यहाँ की दाल, आलू मैथी और रोटियाँ बहुत पसंद आईं, और कुल्फ़ी के तो क्या कहने, एकदम बेहतरीन।
    आते समय वहीं रेस्टोरेंट के पास कालीन की दुकान थी, जिसमें हमें तुर्की का कालीन बहुत अच्छा लगा, बहुत ही अच्छी कारीगरी वाला नीले रंग में, परंतु वह हमारे मित्र को पसंद आ गया, तो हमने कहा आप ले लीजिये और दुकानवाले को कहा कि हमारे लिये एक ऐसा ही मंगवा दीजिये अगले १-२ दिन में आकर ले जायेंगे।
    आते समय टैक्सी वाला बता रहा था कि सऊदी में अभी एम्ग्रांड चाईना की नई कार आई है, ३९,००० रियाल में सबसे अच्छा मॉडल है और कैमरी की सेल्स को इस गाड़ी ने पीटकर रख दिया है, आगे एक लेपटॉप भी दिया है, गाड़ी इतनी बड़ी है कि मर्सीडिज भी कहीं नहीं लगती, बहुत शान-शौकत वाली गाड़ी है।
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    हमारा होटल आ चुका था हमने १० रियाल चुकाये और फ़तूरा (बिल) लेकर उतर गये। सोचने लगे कि अगर यही गाड़ी भारत में आ गई तो लगभग ३-४ लाख की होगी, अभी तो ट्राफ़िक की यह हालत है बाद में क्या होगी।

छुट्टियाँ शुरू और बैंगलोर से कर्नाटक एक्सप्रेस

कल से हमारी छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं और कल बैंगलोर से कर्नाटक एक्सप्रेस से निकल रहे हैं, वापस बैंगलोर आने तक धौलपुर, वृन्दावन, मथुरा, आगरा, ग्वालियर और उज्जैन जाना हो रहा है।

इस बार ऑनलाईन रहने के लिये फ़ोन के जीपीआरएस के साथ साथ टाटा फ़ोटोन भी ले कर जा रहे हैं, अगर ट्रेन के डिब्बे में बराबर चार्जिंग की सुविधा हुई तो काफ़ी पढ़ना होगा और अगर चार्जिंग की सुविधा पिछली बार जैसी हुई तो फ़िर भगवान ही मालिक है।

कुछ किताबें रख ली गई हैं और उम्मीद है कि इस यात्रा के दौरान इन किताबों को निपटा दिया जायेगा और भरभर कर ज्ञान ले लिया जायेगा।

खूब सोया जायेगा, खूब खाया जायेगा और खूब मजा किया जायेगा।

राधे बिहारी और महाकाल का नाम लेकर कल से यात्रा पर निकल रहे हैं।