पता है लिखना बहुतों के लिये बहुत दुश्कर कार्य होता है, और बहुतों के लिये बहुत ही आसान, कुछ लोग तो जब भी लिखना चाहते हैं, लिख ही लेते हैं, और वहीं कुछ लोगों को लिखने के लिये बहुत जोर लगाना पड़ता है, अंग्रेजी में कहे गये शब्द राईटर्स ब्लॉक को भी कई लोग आजकल उपयोग करने लगे हैं। मेरा तो खैर मानना यह है कि जब शब्द अंदर से निकलते हैं, आप तभी लिख सकते हैं, नहीं तो लिखना नामुमकिन ही है।
लेखन भी कई प्रकार के होते हैं, कोई लेख अच्छा लिख सकता है तो कोई कहानी, नाटक या उपन्यास, अब अपनी विधा के महारती होते हैं, बस जैसे जैसे लिखते जाते हैं तो उस विधा में उनका अनुभव गहराता जाता है और उसे लिखना उनके लिये बाँयें हाथ का खेल हो जाता है, दूसरे लोग सोचते ही रहते हैं कि यह लेखक कैसे इतना गहरा लिख लेता होगा, पर सही बताऊँ तो शायद लेखक भी इस सवाल का जवाब न दे पाये।
कुछ लोग अपने आपको लिखते हैं तो कुछ लोग अनुभव लिखते हैं, और वहीं कुछ लोग दूसरों को लिख देते हैं। मैं पता नहीं कैसे कहाँ कब से लिखने लगा, मुझे अब लिखना अच्छा लगता है, बचपन से ही टेपरिकॉर्डर पर कवितायें सुनते हुए बड़ा हुआ और फिर महाविद्यालयीन काल में कुछ कविताओं, नाटकों और रचनात्मक लेखन ने शायद मुझे लेखन के लिये प्रोत्साहित किया। परंतु असली लेखन तो मेरा ब्लॉगिंग से शुरू हुआ, जब ब्लॉग आये तो मैंने फिर से लिखना शुरू किया, पता नहीं लेखन में वो धार तब भी थी या नहीं, यही बात आज भी सोचता हूँ कि वह लेखन की धार आज भी है या नहीं।
पहले सीधे कम्पयूटर पर लिखा नहीं जाता था, तो पहले कॉपी पर लिखता था और फिर कम्प्यूटर पर टाईप करता था, परंतु धीरे धीरे आदत ऐसी बनी कि अब सीधे ही कीबोर्ड से लिखने में आनंद आने लगा और आदत भी पड़ गई, अब कागज पर लिखना बहुत कम हो गया है, अब तो लिखने के लिये टाईप करना भी जरूरी नहीं है, मोबाईल में बोलकर लिखा जा सकता है, वहीं अब तो लेपटॉप में भी बोलकर लिखा जा सकता है, और सबसे बड़ी बात इसके लिये किसी प्रोग्राम को पहले की तरह ट्रेंड नहीं करना पड़ता है, अब तो प्रोग्राम ट्रेंड होते हैं और बढ़िया से टाईप करते हैं।
अब जिस विषय पर अच्छी पकड़ होती है, खासकर वित्त पर, उसमें तो मैं कई लेख केवल बोलकर ही लिख लेता हूँ, परंतु जैसे यह ब्लॉग लिख रहा हूँ तो इसे तो मुझे टाईप ही करना पड़ रहा है, क्योंकि यह भावनायें सीधे दिल से निकल रही हैं, यह लिखने के लिये मुझे कुछ सोचना नहीं पड़ रहा है, यहाँ तो बस उँगलियाँ अपने आप ही लिखे जा रही हैं। आप भी कैसे लिख पाते हैं, इस पर टिप्पणी करके जरूर बताईयेगा। हालांकि यह जरूर बता दूँ कि ब्लॉगर लेखक नहीं होता है, केवल ब्ल़ॉगर ही होता है, और मैं भी अपने आपको लेखक नहीं ब्लॉगर ही मानता हूँ, लेखन एक अलग विधा है और ब्लॉगिंग एक अलग विधा है।
बोलकर लिखने की सुविधा तो बहुत ही बेहतरीन है, और अब तो लगभग 100% शुद्ध परिणाम भी जिससे कि उत्पादकता बहुत ही अधिक मिलती है, मगर मैं बोलकर लिख नहीं पाता, और टाइप कर ही लिखता हूँ. इनस्क्रिप्ट पर टच टाइपिंग से लिखता हूँ तो गति भी सामान्य से अधिक ही है.
bahut khoob… bas aise hi likhte rahiye… aur mera bhi aapki hi tarah dil se likhna hi hota hai… aur kuch nahin
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस – पुरुषोत्तम दास टंडन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।