जब कोई भी माता पिता अपने लड़के की शादी करते हैं तो मन में कहीं न कहीं ये आस होती है कि नई बहू आयेगी और हमारी सेवा करेगी और हम उसे बेटी मानकर प्यार देंगे।
अक्सर लड़का घर से दूर होता है तो शादी के तुरंत बाद ही वह उनकी नई बहू को अपने साथ ले जाता है और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करता है। परंतु छोटी छोटी बातों पर झगड़ा या मनमुटाव होता है या फ़िर दोनों में से किसी एक को दूसरे की आदतों के साथ समझौता करना पड़ता है। हमेशा आशा ये की जाती है कि बहू घर में आयी है तो घर सम्भालेगी, और अपने नये घरवालों की हर छोटी बड़ी बातों का ध्यान रखेगी
ससुराल में बहू को कुछ समय इसीलिये ही बिताना चाहिये कि वह सभी घरवालों को भली भांति समझ लें और घरवाले अपनी नई बहू को जान लें और अपने अनुकूल ढाल लें, जो संस्कार और जिन नियमों में उन्होंने अपने लड़के को पाला है बहू उन नियमों से भली प्रकार परिचित हो जाये जिससे नई दंपत्ति को असुविधा न हो। लड़के को क्या क्या चीजें खाने में पसंद हैं क्या नापसंद हैं। कैसे मूड में उससे कैसा व्यवहार करना है यह तो केवल ससुरालवाले ही बता सकते हैं। ससुराल में रहने से उसका घरवालों के प्रति अपनापन पैदा होता है, नहीं तो अगर वो कुछ दिनों के लिये ही ससुराल जायेगी तो केवल मेहमान बनकर मेजबानी करवाकर आ जायेगी, अपनेपन से सेवा नहीं कर पायेगी।
आप अपनी राय से जरुर अवगत करायें।
आपकी बात से सहमत | परिवार में आने वाली हर बहु को कुछ समय सास ससुर व ससुराल के अन्य बुजुर्गों के साथ समय अवश्य बिताना चाहिए इससे सभी को समझने जानने का मौका तो मिलता ही है साथ ही बहु अपने ससुराल के रीती रिवाजो को भी भली भांति समझ सकती है इससे परिवार के सदस्यों के साथ उसका प्यार बढ़ता ही है |
सही सुझाव है . उम्मीद पे दुनिया कायम है . वैसे आजकल दूर रहने वाले बच्चे अपनी दाल रोटी के लिए शादी ज्यादा करते हैं
बात तो सही है लेकिन आपकी पोस्ट से फिर एक नई बहस की आशंका मुझे दिख रही है.
@महेश जी – बिल्कुल सही है उम्मीद पर दुनिया कायम है, हमारी उम्मीद कुछ गलत तो नहीं समाज की इन भावी दंपत्तियों से एक खुशहाल जीवन के लिये।
@मनोज जी – बहस तो होनी ही चाहिये क्योंकि ये समाज का वो पक्ष है जिसे शायद कभी किसी ने टटोला ही नहीं है।
मै भी सहमत हूं आपसे .. बहुत कुछ सीखने को मिलता है इससे !!
ईमेल द्वारा प्राप्त –
विवेक जी आपका कथन सही है लेकिन आजकी परस्तिथियाँ देखकर बुजुर्गों ने उम्मीद ही कम करदी है .
धन्यवाद
महेश सिन्हा
वैसे तो सही है!!
भाई आजकल सबको कमाने वाली बहु चाहिये..और उसको इतनी छुट्टियां नही मिलती की वो सास ससुर की सेवा कर सके. इत्ती सी छुट्टियों मे तो वो मेहमान बनकर स्वयम कि सेवा भी ठीक से नही करवा पाती.:)
रामराम.
हां, इससे दायरे भी खुलेगें और एक नई बहस भी शुरू होगी। जोकि जरूरी है।
सच ही तो कहा है आपने.
आपने एक गंभीर विषय पर लिख कर……….सही समये पर सही बहस को जन्म दिया है ….अच्छा हो अगर ये चर्चा आगे बडए..
जिस तरह लड़की का दयित्व है अपने सास-स्वसुर का ख्याल रखना, ठीक उसी तरह लड़के का भी दायित्व है की वो अपने ससुराल के मुसीबतों मैं अपने-सास-स्वसुर के साथ खडा हो |
आज-कल तो शादी हुई और मियां-बीबी अलग | इससे काफी परेसानी बढ़ रही है | ऐसी स्थिति मैं लड़की कभी भी लड़के के घर वालों को अपना मान नहीं पाती | माँ-बाप मेहमान की तरह हो जाते हैं |
आज की इसी परेसानी पे -देबीप्रसाद गौड़ जी की कुछ कविता प्रस्तुत है :
1.
पत्नी ने कहा,
गर्मी की छुट्टियों में,
कहीं घूमने चलेंगे,
पति ने कहा,
''माँ“ को भी साथ ले चलेंगे
पत्नी ने बेलन उठाया
पति मुस्कराया
मैं तो मजाक कर रहा था
अपनी नहीं तुम्हारी ''माँ“ की
बात कर रह था ।
-2-
एक दिन बच्चों ने, माँ से पूछा
रूखे मन को कुछ
इस तरह सींचा,
माम, यह आपकी
कैसी नादानी है,
भला दादा, दादी से
तुम्हें क्या परेशानी है,
तुम अभी बच्चे हो,
समझ के कच्चे हो,
उनका तो, वही
फटा पुराना हाल है,
बेटा यह हमारे 'स्टेटस` का सवाल है।
आपने तो पोस्ट ही गलत लिख दी और सभी समझदार बंधू भी उसे नहीं पकड़ पाए ,आरे भाई लड़की को नहीं लड़की की माँ को कुछ दिन अपनी बेटी की ससुराल मे सब के साथ बिताने चाहए जिसे की वो अपनी लड़की की बातो और अपने नए संभन धियो की बातो को समझ सके साथ मे जब कभी भी कोई ग़लतफ़हमी उत्पन हो तो उस को समझदारी से मिटा सके न की …………. आप समझदार है
मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि सब कुछ बहू या बेटी ही क्यों करे .इन विषयों के पीछे ही क्यों आप लोग पडे है .ब्लॉग लेखन के लिए अब विषय शेष नही है क्या?