यक्ष का प्रिया विरह – यक्ष कितना दुर्बल हो गया है अपनी प्रिये से दूर होकर कि उसके हाथ में जो स्वर्ण कंकण पहन रखा था वह ढ़ीला हो जाने के कारण गिर पड़ा था, जिससे उसकी कलाई सूनी हो गई थी।
कालिदास के अनुसार – आषाढ़ के प्रथम दिन से ही वर्षा का प्रारम्भ होता है।
वप्रक्रीड़ा उस क्रीड़ा को कहते हैं जब प्राय: मस्त सांड, हाथी, भैंसे
आदि पशु टीले की मिट्टी को सींग से उखाड़ते हैं, इसे उत्खातकेलि भी कहते हैं।
सुखी किसे माना जाता है – प्रिया से युक्त वयक्ति को, धन से युक्त को नहीं।
अर्घ्य किसी विशेष व्यक्ति, अतिथि या देवता आदि को दिया जाता है।
गुह्यक और यक्ष ये दो अलग अलग देवयोनियाँ मानी जाती हैं, परंतु कालिदास ने इन दोनों को एक-दूसरे का पर्यायवाची माना है।
अत्यधिक काम-पीड़ित व्यक्ति अपना विवेक खो बैठते हैं और उन्हें जड़-चेतन में भी भेद प्रतीत नहीं होता। प्राय: काम-पीड़ित व्यक्ति विरह के क्षणों में अपनी प्रिया के फ़ोटो, वस्त्रादि से बातें करते हैं।
पुराणों के अनुसार प्रलयकाल में संहार करने वाले मेघों को पुष्करावर्तक कहते हैं। इसी कारण पुष्कर और आवर्तक को मेघ जाति में श्रेष्ठ माना जाता है।
अलका – यह धन के देवता कुबेर की राजधानी मानी जाती है। इसमें बड़े-बड़े धनी यक्षों का निवास बताया गया है। यह कैलाश पर्वत पर स्थित मानी जाती है। इसके वसुधारा, वसुस्थली तथा प्रभा ये अन्य नाम भी कहे जाते हैं।
पुराणों के अनुसार कुबेर की राजधानी अलका के बाहर एक उद्यान था जिसे गन्धर्वों के एक राजा चित्ररथ ने बनाया था। उस अलका के महल, बाह्य उद्यान में रहने वाले शिव के सिर पर स्थित चन्द्रमा की चाँदनी से प्रकाशित होते रहते थे।
पवनपदवीम़् – क्योंकि वायु सदा आकाश में ही चलती है, इस कारण आकाश को वायु मार्ग भी कहते हैं।
आप ज्ञान वर्धन करते चलिए -हम तत्पर हैं !
bahut acchee jaanakaaree hai aabhaar
bahut hi badhiya jankari muhaiyaa karwa rahe hain …………dhanyavaad.
वाह, वाह, ब्लॉगजगत में बहुत से लोग बहुत प्रकार से वप्रक्रीड़ा करते पाये जाते हैं!
सुखी किसे माना जाता है – प्रिया से युक्त वयक्ति को, धन से युक्त को नहीं।
बहुत सुंदर बाते हमे बता रहे है, इन ग्रांथो से आप का धन्यवाद