कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बार में – ४

मेघदूतम़् में यक्ष को एक वर्ष अपनी यक्षिणी से दूर रहने का शाप मिला है, यक्ष रामगिरी पर्वत के आश्रम में निवास करता है और यक्षिणी अलकापुरी हिमालय पर निवास करती है।
शाप का कारण – कवि ने शाप का कारण यक्ष द्वारा अपने कार्य से असावधानी करना बताया है, परंतु साफ़ साफ़ नहीं बताया गया है कि शाप
का कारण क्या था। कुछ विद्वानों के अनुसार –

  • ब्रह्मपुराण में शाप का कारण स्वामी की पूजा के लिये फ़ूलों का न लाना बताया गया है।
  • कुबेर के उद्योगों की ठीक प्रकार से रक्षा न करना मानते हैं।
  • यक्ष ने अपने गण की प्रथा के अनुसार सुहागरात को अपनी पत़्नी पर गणपति के अधिकार को सहन नहीं किया, अत: गण के नियम के अनुसार उसे एक वर्ष का प्रवास अंगीकार करना पड़ा।

शाप की अवधि देवोत्थान एकादशी को जब विष्णु भगवान शेष शय्या से उठेंगे उसी दिन मेरा शाप खत्म होगा। अत: यह स्पष्ट होता है कि यक्ष को शाप देवोत्थान एकादशी के दिन ही दिया गया होगा।
कवि ने यक्ष का नाम भी नहीं दिया है क्योंकि उसने स्वामी की आज्ञा का पालन नहीं किया और ऐसे व्यक्ति का नाम देना परम्परा से निषिद्ध था।
यक्ष देवताओं की ही श्रेणी है। ’अष्टविकल्पो देव:’ इस उक्ति के अनुसार – ब्रह्मा, प्रजापति, इन्द्र, पितृगण, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और पिशाच ये देवताओं के आठ भेद हैं। यक्षों का कार्य कुबेर के उद्यान की रक्षा करना है।
रामगिरि पर्वत जहाँ यक्ष ने एक वर्ष व्यतीत किया था, प्रसिद्ध टीकाकार वल्लभ मल्लिनाथ ने इस रामगिरि कोचित्रकूट माना है।
ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति के लिये ग्रन्थ के आरंभ में मंगलाचरण किया जाता है। मंगलाचरण तीन प्रकार का होता है –
१. आशीर्वादात्मक
२. नमस्क्रियात्मक
३. वस्तुनिर्देशात्मक
’आशीर्नमस्क्रिया वस्तुनिर्देशो वाऽपि तन्मुखम़्’ यहाँ इस काव्य में तीसरे प्रकार का अर्थात वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण अपनाया गया है।
सम्पूर्ण काव्य में मन्दाक्रांता छन्द का प्रयोग हुआ है, जिसके प्रत्येक पाद में १७ अक्षर होते हैं। वे मगण, भगण, नगण, तगण, और दो गुरु इस क्रम में होते हैं तथा चौथे, दसवें, सत्रहवें अक्षर पर यति होती है।
मेघदूत में विप्रलम्भ श्रंगार का वर्णन है।

6 thoughts on “कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बार में – ४

  1. अपनी प्रेयसी को भेजा गया अनूठा संदेश, और इसके लालित्य को सामने लाने के लिए आपको बधाई

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