कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – १९

कौरवं क्षेत्रम़् – कुरुक्षेत्र थानेसर से दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। शतपथ ब्राह्मण में भी इसे धर्मक्षेत्र कहा गया है। यहाँ सूर्यकुण्ड या ब्रह्मसर नाम का तालाब है। जिस पर सूर्य ग्रहण के अवसर पर धार्मिक मेला लगता है। महाभारत का युद्ध भी इसी क्षेत्र में हुआ था।


गाण्डीव अर्जुन के धनुष का नाम है।  कहा जाता है कि यह धनुष सोम ने वरुण को तथा वरुण ने अग्नि को दिया था। खाण्डव को जलाने के समय अग्नि से

यह अर्जुन को प्राप्त हुआ था।



रेवतीलोचनाड़्काम़् – रेवती बलराम की पत़्नी का नाम है। बलराम को सुरा अत्यन्त प्रिय थी। रेवती उसकी सहचरी होती थी। अत: जब रेवती मद्य प्रस्तुत करती थी तो उसके नेत्रों का प्रतिबिम्ब मद्य में पड़ता था। इसलिये बलराम को और भी अधिक अभीष्ट हो जाती थी। इस प्रकार की शराब छोड़ना यद्यपि बलराम के लिये कठिन था। किन्तु सरस्वती के जल के लिये उसने यह भी छोड़ दी थी।


सरस्वती एक प्रसिद्ध प्राचीन नदी है, जो कुरुक्षेत्र के पास होकर बहती थी। आज यह प्राय: लुप्त है।


अनुकनखलम़् – कनखल एक पुराना तीर्थ स्थल है, जो हरिद्वार के पास स्थित है। स्कन्दपुराण में कनखल की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है –
खल: को नात्र मुक्तिं वै भजते तत्र मज्जनात़् ।
अत: कनखलं तीर्थं नाम्ना चक्रुर्मुनीश्वरा: ॥
इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि यहाँ पर स्नान करने से पुनर्जन्म नहीं होता है –
हरिद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलपर्वते ।
स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते ॥
गंगा को जह्नु ऋषि की पुत्री कहा गया है। वाल्मीकि रामायण की एक कथा के अनुसार जब गंगा भगीरथ का अनुसरण करते हुए पृथ्वी पर आयी तब मार्ग में स्थित जह्नु ऋषि के आश्रम को भी बहा ले गयी। ऋषि ने इसे गंगा का गर्व समझकर इसे पी लिया। देवताओं, ऋषियों आदि को महान आश्चर्य हुआ और उन्होंने जह्नु ऋषि से कहा कि यदि आप गंगा को प्रकट कर दें तो आप उसके पिता कहलायेंगे। तब जह्नु ऋषि ने उसे कान से निकाल दिया। तभी से गंगा को जह्नु ऋषि की कन्या (जाह्नवी) कहते हैं।

7 thoughts on “कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – १९

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *