कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – २०

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड अ. ३९-४० के अनुसार राजा सगर ने इन्द्र पद प्राप्ति के लिये अश्वमेध यज्ञ प्रारम्भ किया, परन्तु पर्व के दिन इन्द्र ने राक्षस का रुप बनाकर अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे और उनको ही उस अश्व का चोर

समझ लिया। उन्होंने मुनि का अपमान किया। मुनि ने भी अपने तेज से उन सभी को भस्म कर दिया। जब वे नहीं लौटे तो अंशुमान ने उनकी भस्मी खोजी तथा मुनि से प्रार्थना की। तब मुनि ने कहा यदि गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आ जाये तो इनका उद्धार हो सकता है। इस पर राजा भगीरथ घोर तपस्या करके गंगाजी को पृथ्वी पर लाये तथा अपने पितरों का उद्धार किया। इसलिये गंगा को सगर पुत्रों के लिये स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है।



गौरीवक्त्रभ्रुकुटिरचनाम – पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा ने भगीरथ ने कहा कि तुम तपस्या करके शिव को प्रसन्न करो, जिससे कि वे स्वर्ग से गिरती हुई गंगा को सिर पर धारण कर लें। राजा भगीरथ ने वैसा ही किया। इससे यहाँ कवि ने कल्पना की है कि जब शिव ने गंगा को सिर पर धारण कर लिया, तब पार्वती का भी सौतिया डास से भृकुटि तान लेना स्वाभाविक था। इसे देखकर गंगा ने अपने झाग से पार्वती का उपहास किया, परन्तु गंगा ने प्रौढ़ा नायिका के समान पार्वती की उपेक्षा करके शिव के केश पकड़ लिये।
सुरगज देवताओं का हाथी है, दिग्गज आठ माने जाते हैं। अमरकोश के अनुसार यह निम्न हैं –
ऐरावत: पुण्डरीको वामन: कुमुदोऽञ्जन: ।
पुष्पदन्त: सार्वभौम: सुप्रतीकश़्च दिग्गजा: ॥
अस्थानोपगतयमुनासड़्गमा – स्थान से भिन्न प्राप्त कर लिया है, यमुना का संगम जिसने। भाव यह है कि गंगा और यमुना का संगम का स्थान प्रया है, किन्तु रवि ने कल्पना की है कि कनखल में गंगा पर पहुँचकर जब मेघ जल लेने के लिये नीचे झुकेगा तो उसकी परछाई से ऐसा लगेगा कि जैसे कनखल में ही गंगा-यमुना का संगम उपस्थित हो गया हो। यमुना का जल श्याम होता है और मेघ का रंग भी श्याम है।

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