गाढोत्कण्ठाम़् – विरह वेदना से उत्पन्न प्रिय या प्रिया से मिलन की उत्कट इच्छा ही उत्कण्ठा कहलाती है। उत्कण्ठा का लक्षण इस प्रकार है –
रागेष्वलब्धविषयेषु वेदना महती तु या।संशोषणी तु गात्राणां तामुत्कण्ठां विदुर्बुधा:॥
अर्थात जिससे प्रेम हो उसके न मिलने पर मन में ऐसी वेदना होने लगती है कि जिससे शरीर सूखता जाता है, उसे उत्कण्ठा कहते हैं।
बालाम़् – षोडशी नवयुवती को कहते हैं। स्त्रियाँ १६ वर्ष तक बाला, ३० वर्ष तक
तरुणी, ५० वर्ष तक प्रौढ़ा तथा उससे ऊपर वृद्धा कहलाती है।
शिशिरमथिताम़् – आचार्य मल्लिनाथ ने शिशिर का अर्थ शीत ऋतु लिया है। विश्व कोश में शिशिर का अर्थ पाला भी है जो कि अधिक उपयुक्त जान पड़ता है, क्योंकि पाला कमलिनी को मार देता है।
अन्यरुपाम़् – यक्ष मेघ को बताता है कि उसकी प्रिया वियोग में इतनी दुर्बल हो गयी होगी कि उसका रुप जो कि पूर्व वर्णित (तन्वी श्यामा आदि) से अत्यन्त बदल गया होगा इसलिए उसे ध्यानपूर्वक देखकर पहिचानना।
असकलव्यक्ति – जैसा कि पीछे बताया गया है कि प्रेषितभर्तृका नायिका श्रृंगार नहीं करती है। अत: यक्षिणी ने भी श्रृंगार नहीं किया होगा तथा बालों को नहीं सँवारा होगा। इस कारण लटकते हुए बालों ने उसके मुख को ढक लिया होगा, जिससे वह पूर्ण रुप से दिखाई नहीं देगा।
बलिव्याकुला – बलि का अर्थ होता है – देवताओं की आरधाना; क्योंकि यक्षिणी का पति शाप के कारण बाहर गया था इसलिए सकुशल लौट आने के लिये सम्भवत: यक्षिणी बलि कार्य करती हो।
बहुत आभार इस आलेख का.
वाह बहुत सुंदर वर्णन चल रहा है. मेघदूतम का रसास्वादन प्रथम बार आपके प्रयत्नों से हो रहा है.
रामराम.
आपका प्रयास सराहनीय है धन्यवाद
कालिदास के युग में बाला की परिभाषा <१६ वर्ष की रही होगी। पर वर्तमान सौन्दर्यप्रसाधनो की बदौलत बाला की आयु सीमा बढ़ गयी है। अब यह सिने तारिकाओं के लिये तो शायद प्रौढ़ा तक सरक गयी है!
bahut badhiya jankari uplabdh karwa rahe hain
बहुत सुंदर
धन्यवाद
रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक बातें हैं, आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
nice