कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३३

भावगम्यम़् – यक्षिणी पत्नी-विरह से युक्त अपने पति की कृशता देख तो नहीं सकती थी, परन्तु अनुमान के द्वारा ही चित्र खींचा करती थी। संस्कृत साहित्य में विरह से पीड़ित के लिए विनोद के चार साधन वर्णित किये गये हैं – १. सदृश वस्तु का अनुभव, २. चित्रकर्म ३. स्वप्न

दर्शन, ४.प्रिय के अंग से स्पृष्ट पदार्थों का स्पर्श करना।


सारिका – प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं के यहाँ तथा कुलीन परिवारों में मनोरञ्ज्न आदि के लिये तोता, मैना, हंस आदि पक्षी पाले जाते थे और उनसे विरह काल में मनोरञ्जन होता था। यक्ष के यहाँ भी पालतू पक्षी थे और यक्ष विचार करता है कि उसकी प्रिया सारिका आदि के साथ बातें करके अपना समय व्यतीत करती होगी।

उद्रातुकामा – क्योंकि यक्ष-पत्नी देवयोनि की थी, इसलिये गान्धार ग्राम में गाने की इच्छा रखती थी, जबकि मनुष्य षड्ज या मध्यम ग्राम में गाते हैं। जैसा कि कहा है –
षड्जमध्यमनामानौ ग्रामौ गायन्ति मानवा:।
न तु गान्धारनामानं स लभ्यो देवयोनिभि:॥
स्वर भेद को ग्राम कहते हैं। ग्राम तीन प्रकार के होते हैं – षड्ज, मध्यम, गान्धार।

तन्त्रीमार्द्राम़् – यक्ष पत्नी कभी-कभी अपने प्रिय के नाम के चिह्नों से युक्त रचे हुए पदों के गाने की इच्छा करती होगी तथा वीणा बजाने के साथ उसे प्रियतम की स्मृति होती होगी जिस कारण आँसू आने से उसके तार भीग जाते होंगे।

मूर्च्छना – स्वरों के आरोह-अवरोह क्रम को मूर्च्छना कहते हैं। संगीतशास्त्र में सात स्वर माने गये हैं – षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद। इन स्वरों तथा तीन ग्रामों के मेल से ये मूर्च्छना २१ प्रकार की होती है।

देहलीदत्तपुष्पै: – जिस दिन प्रियतम विदेश जाता है, उसी दिन नायिका देहली की पूजा करती है और वहाँ पुष्प रखती है कि मेरा प्रियतम इतने महीनों के लिये गया है। अत: मास बीतने पर एक पुष्प उठाकर दूसरी ओर रख देती है। उत्कण्ठा के क्षणों में वह पुष्पों को गिनती है कि अब आने के कितने महीने शेष रह गये हैं। यह वियोग के क्षणों में मन बहलाने का साधन है।

4 thoughts on “कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३३

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *