कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३९

धातुरागै: शिलायाम़् – अपनी प्रिया का चित्र बनाने के लिये विरही यक्ष के पास कोई सामग्री जैसे कागज, पैंसिल, रंग आदि नहीं थी। इसलिये वहाँ सुलभ गेरु को रंग के स्थान पर तथा पत्थर को कागज के स्थान पर प्रयुक्त करके अपनी प्रिया का चित्र बनाया।


दृष्टिरालुप्यते – यक्ष विरह की अग्नि में अत्याधिक पीड़ित है, इसलिये वह अपनी प्रिया का चित्र बनाता है और अपने आप को भी उसके पैरों में गिरकर उसे मनाता हुआ चित्रित करना चाहता है, किन्तु आँसुओं की अविरल धारा के कारण वह ऐसा नहीं कर पाता, आँसुओं से उसकी दृष्टि लुप्त
हो जाती है। वस्तुत: यहाँ कालिदास द्वारा वर्णित करुणा अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी है।


स्वप्नसंदर्शनेषु – सोये हुए पुरुष के ज्ञान को स्वप्न कहते हैं। प्राय: देखा जाता है कि जो भाव दिन में हमारे मन में जागृत होते हैं और वे पूर्ण नहीं होते, वे स्वप्न में पूर्ण होते हैं। यक्ष की भी स्थिति ऐसी ही है कि वह प्रिया मिलन के लिये उत्कण्ठित है, परन्तु दिन में मिलन सम्भव नहीं, तब रात्रि में स्वप्न में आलिंगन के लिये भुजाएँ फ़ैलाता है, किन्तु वहाँ प्रिया कहाँ ? वहाँ तो शून्याकाश है। उसकी इस दयनीय दशा को देखकर वन देवियाँ भी रो पड़ती हैं। स्वप्नदर्शन विरहकाल में मनोविनोद के चार साधनों में से तीसरा है।


तरुकिसलयेषु – अश्रुबिन्दुओं का भूमि पर न गिरकर पत्तों पर गिरना साभिप्राय है; क्योंकि कहा जाता है कि महात्मा, गुरु और देवताओं का अश्रुपात भूमि पर होगा तो देशभ्रंश, भारी दु:ख और मरण भी निश्चय होगा।


तुषाराद्रिवाता : – वायु के मान्द्य, सौरभ और शीतलता ये तीन गुण होते हैं। हिमालय पर्वत की वायु में ये तीनों गुण पाये जाते हैं। ऐसी वायु को श्रंगार का उद्दीपक कहा जाता है। इसी कारण यह वायु विरही यक्ष को और अधिक उद्दीप्त करती है, जिस कारण उसे अपनी प्रिया की स्मृति हो आती है। वह इन पवनों को यह सोचकर स्पर्श करता है कि इन पवनों ने इससे पूर्व उसकी प्रिया के शरीर को भी स्पर्श किया है।

3 thoughts on “कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३९

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *