चबूतरे की सीढ़ियाँ उतरने लगे। मेरा मन अब शान्त हो गया था। सामने गुरुदेव द्रोण और युवराज अर्जुन चबूतरे की ओर आ रहे थे। अर्जुन मेरी ओर देखकर हँसा, लेकिन मुझको हँसी नहीं आयी। मुझको ऐसा लगा जैसे उसके हँसने में भी एक प्रकार का व्यंग्य है।
मुझको पितामह भीष्म की याद आयी। इस अर्जुन के पितामह थे वे। लेकिन दोनों में कहीं समानता नहीं थी। दोनों के स्वभाव और व्यवहार में कितना अन्तर था। जाते-जाते कुछ पूछने के विचार से अर्जुन ने मुझसे पूछा, “यह कौन है ?”
“मेरा छोटा भाई !” मैंने अभिमानपूर्वक कहा।
“यह भी इस शाला में आयेगा क्या ?” गुरुदेव द्रोण ने पूछा।
“जी हाँ ।“ मैंने उत्तर दिया।
“जाओ उस ओर कृप हैं, उनके पथक में सम्मिलित हो जाओ।“
मैंने कुछ भी न कहा। उनको नमस्कार करने की भी मेरी इच्छा न हुई। जाते-जाते मैंने अर्जुन की ओर मुड़कर देखा। वह तो आश्चर्य से मेरे कानों के कुण्डलों की ओर एकटक देख रहा था।
हम कृपाचार्य के पथक में आये। कृपाचार्य द्रोणाचार्य जी के साले थे। उनकी देख-रेख में अनेक युवक धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। क्षण-भर के लिए मेरे मन में यह विचार आया कि ये ढ़ेर सारे राजकुमार क्यों जहाँ-तहाँ अपनी अकड़ दिखा रहे हैं ? उस दुर्योधन का सा रोब एक में भी है क्या ? एक भी ऐसा है क्या, जिसकी चाल दुर्योधन की चाल की तरह शानदार हो ? है कोई ऐसा माई का लाल जिसकी दृष्टि उसकी दृष्टि की तरह भेदक हो ?
इतने में युवराज दुर्योधन ही सामने से आता हुआ मुझको दिखाई दिया। उसके पास जायेंगे तो निश्चय ही हमारी कुशल-क्षेम पूछेगा – यह सोचकर मैं उसकी ओर चलने लगा। उसके पास भी गया, लेकिन युवराज दुर्योधन नहीं था। उसमें और दुर्योधन में अद्भुत समता थी। उसकी देह पर जो वस्त्र थे उससे यह तो निश्चित था कि वह युवराज था। लेकिन युवराज किनमें से था कौरवों में से या पाण्डवों में से, चूँकि दुर्योधन में और इसमें बड़ी समता है, इसलिए यह कौरवों में से ही होगा, लेकिन कौरवों मे से यह कौन है ? इतने में ही कृपाचार्य ने उसको पुकारा, “दु:शासन !” वह भी जल्दी-जल्दी उनकी ओर चला गया। तो वह दु:शासन था ? अहा, दुर्योधन में और उसमें कितनी समानता थी। एक को छिपाइये और दूसरे को दिखाइए। युवराज दुर्योधन और युवराज दु:शासन। दोनों की चाल में वही शान थी। दोनों की दृष्टि में वही भेदकता थी। कहीं दु:शासन दुर्योधन की प्रतिच्छाया ही तो नहीं था ?
आभार इस अंश को प्रस्तुत करने का.
Is pustak ko blog ke madhyam se padhwane ke liye aapko bahut bahut dhanya wad Vivek ji
Jai Hind…
बहुत बढिया, शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut badhiya chal rahi hai shrinkhla magar meri kuch chhoot gayi hain abhi wo sab padhni hain.