लगभग १० साल बाद वापिस से कविता लिखी है, “इंतजार है उस दिन का”… इंतजार है आपकी प्रतिक्रियाओं का

इंतजार है उस दिन का

जब तुम अपनी बाँहों मॆं

भरकर मुझे गर्मजोशी से

प्यार से दिल से मन से

मुझे अलसुबह उनींदे बिस्तर से

उठाओगी, और हल्के से कहोगी

प्रिये सुप्रभात, तुम्हारे लिये

मैंने नई दुनिया गढ़ी है

वो तुम्हारा इंतजार कर रही है…

16 thoughts on “लगभग १० साल बाद वापिस से कविता लिखी है, “इंतजार है उस दिन का”… इंतजार है आपकी प्रतिक्रियाओं का

  1. प्रिये सुप्रभात!! कुछ झुनझुनी लगी… 🙂

    काश, कोई कहने वाला मिले कि लगे!!

  2. चालिसे या उसके आस पास एक बार व्यक्ति फिर रोमानी होता है ।
    अबकी रची गई कविताएँ अलग सी तासीर लिए होती हैं – अब आप की अवस्था तो मुझे नहीं मालूम लेकिन कुछ ऐसा ही लगा।
    सरल जाना पहचाना तरीका पर प्रभाव नई दुरुस्ती लिए हुए।
    आभार।

  3. गिरिजेश जी का अनुभव सत्य है, अब हम भी इंतजार कर रहे है कि जबके किताबों मे दबे हुए फ़ूल एक बार फ़िर सुरभित हो जाए,
    एक बार वो फ़िर से दबे पांव चले आएं, और मुस्कुराकर कहें "आज श्रीमान जी टुर पर हैं"-हा हा हा
    विवेक जी बहुत बढिया-आज सुबह से हमारा भी मुड कुछ ऐसा ही है।

  4. मैंने नई दुनिया गढ़ी है

    वो तुम्हारा इंतजार कर रही है…

    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ….

    दस साल बाद वापसी के लिए बहुत बहुत बधाई…

    पर इतना लम्बा अंतराल क्यूँ? कुछ ख़ास…….?

  5. प्रिये सुप्रभात, तुम्हारे लिये

    मैंने नई दुनिया गढ़ी है

    प्रेम की सार्थकता तो सृजन में ही है..और ये व्यक्त हो गयी उस रोमानी सुबह में ..!

    देखो; आज कल्पतरु में एक नन्हा फूल आया है…!!!

  6. विवेक भाई मुझे कविता की बहुत ज्यादा समझ है नही और फ़िर रोमांटिक मूड की कविता पर मैं बजरंगबली भक़्त कहूं भी तो क्या?वैसे गिरिजेश कुछ कह रहे हैं।दस साल बाद ही सही कविता लिखने का सिलसिला शुरू हुआ तो सही और कविता मेरे खयाल से दिल के बहुत ज्यादा करीब होती है इसे सिर्फ़ लिखने की फ़ार्मेलिटी के नाम पर नही लिखा जा सकता।चलिये बधाई आपको,बहुत सुन्दर रचना है ये,समीर जी टाईप मुझे भी थोड़ी सी झुनझुनी लगी।हा हा हा हा हा।

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