आज मैं BG 15-5 जो कि गोपीनाथ चंद्र प्रभू ने इस्कॉन गिरगाँव चौपाटी पर १ जनवरी २०१० को यह वक्तृता दिया था, सुन रहा था। जिसमॆं उन्होंने समय प्रबंधन के लिये Tripple “S” फ़ॉर्मुला बताया जो मुझे बहुत अच्छा लगा।
कार्य हमारी जिंदगी में चार प्रकार के होते हैं –
१. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण
२. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण
३. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं
४. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण
१. अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण – जैसे कि छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी करता है, क्योंकि छात्र को परीक्षा के समय पढ़ाई से ज्यादा अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण कार्य कुछ और नहीं होता है।
२. अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण – जैसे कि पढ़ाई अगर सतत की जाये तो निश्चित ही परीक्षा में अच्छॆ अंक आयेंगे और परीक्षा के समय पढ़ाई अत्यावश्यक नहीं रहेगी। जैसे अपने स्वास्थ्य के लिये अगर रोज व्यायाम करेंगे तो यह भी अत्यावश्यक नहीं है परंतु महत्वपूर्ण है।
३. अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं – जैसे कि फ़ोन कॉल अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं, हो सकता है कि केवल टाईम पास करने के लिये किसी मित्र ने ऐसे ही फ़ोन लगाया हो। किसी को सिगरेट पीना है तो उसके लिये यह अत्यावश्यक है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। नई फ़िल्म जैसे ही टॉकीज में लगती है दौड़ पड़ते हैं देखने के लिये, क्या यह तीन महीने बाद नहीं देखी जा सकती, क्या है यह, यह अत्यावश्यक कार्य है परंतु महत्वपूर्ण नहीं। जिन विचारों पर मन का नियंत्रण नहीं होता।
४. न ही अत्यावश्यक और न ही महत्वपूर्ण – जैसे की फ़ालतू में सोते रहना, टाईम पास करना, ओर्कुट या फ़ेसबुक पर रहना, ऐसे ही सर्फ़िंग करते रहना।
समय प्रबंधन का Tripple “S” फ़ॉर्मुला है –
पहला “S” – पहले प्रकार के कार्यों की कमी (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) करना जिससे हमें कभी गुस्सा नहीं आये । जो लोग दूसरे प्रकार के कार्य नहीं करते हैं वे ही पहले प्रकार को आने की दावत देते हैं, अगर समय पर सब कार्य कर लिया जाये तो पहले प्रकार (अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण) की नौबत ही नहीं आयेगी।
दूसरा “S” – तीसरे प्रकार के कार्यों (अत्यावश्यक किंतु महत्वपूर्ण नहीं) को मना करना, जो कि केवल हम मन को खुश करने के लिये करते हैं या कुछ क्षणों के सुख के लिये करते हैं, हमे हमेशा दूसरे प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना चाहिये।
तीसरा “S” – चौथे प्रकार के कार्यों से हमेशा बचना चाहिये, केवल दूसरे प्रकार (अत्यावश्यक नहीं किंतु महत्वपूर्ण) के कार्य में व्यस्त रहना चाहिये।
बहुत काम का आलेख और यह फार्मुला!!
सही है.
सूत्र सरल है, लोग गलती करते है कार्यों को सही खाने में डालने के लिए. उदाहरण के लिए आराम करना, पूरी नींद लेना, मनोरंजन करना अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण हो सकता है बल्कि बहुत बार होता ही है परन्तु लोग उसे अनावश्यक समझकर पीछे छोड़ देते हैं और बाद में अवसादग्रस्त, अन्यमनस्क, या अस्वस्थ होकर पछताते हैं.
इसी प्रकार बूढों, बच्चों के साथ यूं ही रूककर बातचीत करना भी दीर्घकाल में आपके लिए लाभप्रद हो सकता है.
ok, thanks
सलीम खान की टिप्पणी को मोडरेट कर दिया गया है क्योंकि वह विषय से हटकर थी।
बहुत सुंदर आलेख
भाई हम तो कुछ असमंजस में आ गए हैं।
ये ट्रिपल एस कहाँ इस्तेमाल हुआ।
कृपया समझाएं।
ये तो वोर्कोहलिक का फॉर्मूला हो गया
@महेश जी – बिल्कुल वोर्कोहलिक का फ़ॉर्मुला नहीं है, अगर आप नियत समय पर नियत कार्य करते रहेंगे तो कभी भी आदमी वोर्कोहलिक हो ही नहीं सकता है। मैं अपनी कह सकता हूँ कि समय प्रबंधन से ही मैं सभी कार्य समय पर कर पाता हूँ और पहली वाली स्थिती "अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण" से हमेशा बचा रहता हूँ।