चैन्नई में कल का रात्रि भोजन और आसपास के वातावरण के कुछ चित्र से अपने जहन में बीती जिंदगी का कोलाज बन गया…

    कल का रात्रि भोजन जो कि फ़िर हमने सरवाना भवन में किया, माफ़ कीजियेगा बहुत से ब्लॉगर्स को हमने इसका नाम याद करवा दिया है, और केवल इसके लिये ही वो चैन्नई आने को तैयार हैं।

    जब हम पहुँचे तो पहले से ही इंतजार की लाईन लगी थी क्योंकि बैठने की जगह बिल्कुल नहीं थी, हमने लिखवा दिया कि भई हमारा भी नंबर लगा दो। पीछे वेटिंग में पाँच लोगों का बहुत बड़ा परिवार (बड़ा इसलिये कि आजकल तो हम दो हमारा एक का कान्सेप्ट है।) और उनके पीछे दो लड़के हमारी ही उम्र के होंगे और साथ में उनके साथ एक वृद्धा थीं। पहला हमारा ही नंबर था, जैसे ही एक टेबल खाली होने वाली थी वैसे ही वेटर ने हमें उस टेबल का अधिकार हमें इशारा करके दे दिया। जो उस टेबल पर बैठे थे वो भाईसाहब हाथ धोने गये थे तब तक वेटर उनका बिल लेकर आ गया और उनको खड़े खड़े ही पेमेन्ट भी देना पड़ा और वापस छुट्टे आने का इंतजार भी करना पड़ा।

    पर हम अपनी कुर्सी पर ऐसे धँस गये थे बिल्कुल बेशर्म बनकर कि हमें कोई मतलब ही नहीं है, हालांकि अगर ये हमारे साथ होता तो बहुत गुस्सा आता और शायद इस बात पर हंगामा खड़ा कर देते। जब हम इंतजार की लाईन में खड़े थे तभी मेन्यू कार्ड लेकर क्या खाना है वो देख लिया था जिससे बैठकर सोचने में समय खराब न हो क्योंकि बहुत जोर से भूख लगी थी।

    आर्डर दे दिया गया, जहाँ हम बैठे थे उसी हाल के पास में ही खड़े होकर खाने की व्यवस्था थी, सेल्फ़ सर्विस वाली। हमारी टेबल के पास ही एक टेबल पर एक लड़की पानी बताशे खा रही थी, तो बताशा उसने जैसे ही मुँह में रखा, तो मुँह खुला ही रह गया, क्योंकि बताशा एक बार के खाने के चक्कर में उसके मुँह में फ़ँस गया था, उसने कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ फ़िर अंतत: अपने हाथ से बताशा मुँह के अंदर करना पड़ा ये सब देखकर हमें अपने पुराने दिन याद आ गये, जब हम अपने उज्जैन में चौराहे पर पानी बताशे वाले के यहाँ खड़े होकर बड़े बड़े बताशे निकालने को कहते थे कि मुँह में फ़ँस जाये। और हम सारे मित्र लोग बहुत हँसते थे।

    तभी हमारे सहकर्मी जो कि हमारे साथ थे कहा कि देखो उधर सिलेंडर देखो, तो उधर हमने देखा तो पाया कि एक सुंदर सी लड़की खड़ी थी, हमारा सहकर्मी बोलता है कि हमने सिलेंडर देखने को बोला है, लड़की नहीं। किसी जमाने में हम भी अपने दोस्तों के साथ यही किया करते थे, और बहुत मजा किया करते थे। अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें याद आ गईं।

    अगली टेबल पर एक छोटा परिवार (छोटा इसलिये कि वो हम दो हमारा एक कॉन्सेप्ट के थे) था जो कि खड़ा होकर खा रहा था। और अपने प्यारे दुलारे बेटे को गोल टेबल पर बैठा रखा था, और उसकी मम्मी पापा बड़े प्यार दुलार से अपने बेटे को अपने हाथों से खिला रहे थे। और साथ में प्यार भी करते जा रहे थे। हमें हमारे बेटे की याद आ गई, क्योंकि वो भी लगभग इतनी ही उम्र का है, और शैतानियों में तो नंबर वन है। कहीं भी चला जाये तो पता चल जाता है कि हर्षवर्धन आ गये हैं। होटल में तो बस पूछिये ही मत पूरा होटल सर पर रख लेंगे, होटल वाला अपने आप एक आदमी उसके पीछे छोड़ देता है, कि यह पता नहीं क्या शैतानी करने वाला है, और हम लोग अपना खाना मजे में खाकर बेटे को साथ में लेकर चल देते हैं, बेचारा होटल वाला भी मन में सोचता होगा कि ये हमारे यहाँ क्यों खाने आये हैं।

    आज हमें कुछ ज्यादा ही मोटे लोग नजर आये, तो समीर भाई “उड़नतश्तरी जी” की टिप्पणी याद आ गई, कि हमें तो खाने का फ़ोटू देखते ही वजन दो किलो बड़ गया, ध्यान रखें। मोटे लोगों को देखकर अनायास ही मुँह से निकल जाता है, ये देखिये अपना भविष्य। पर क्या करें बेशर्म बनकर उनको देखते रहते हैं।

    शाम को ही एक बिहारी की दुकान पर समोसा खा रहे थे, तो वहाँ पर एक बेहद मोटा व्यक्ति जलेबियाँ खा रहा था, कपड़े ब्रांडेड पहने हुआ था, और मजे में जलेबियाँ खाये जा रहा था, हम सोचने लगे कि ये तो हमसे लगभग तिगुना है फ़िर भी क्या जलेबियाँ सूत रहा है, तो बसे हम समोसे पर ही रुक गये और जलेबियों की ओर देखा भी नहीं, केवल उस मोटे व्यक्ति की ओर एक नजर देखकर चुपचाप सरक लिये।

    जब सरवाना भवन से खाकर निकले तो बिल्कुल पास में ही एक पान वाले भैया खोका लगाकर बैठते हैं, ५ दिन से हम इनके पर्मानेंट ग्राहक हैं, भैया जी इलाहाबाद के हैं और बहुत रसभरी प्यारी प्यारी बातें करते हैं पर तमिल पर भी उतना ही अधिकार है, जितना कि अपनी मातृभाषा पर, पर उनका टोन बिल्कुल नहीं बदला है, अभी भी ऐसा ही लगता है कि छोरा गंगा किनारे वाला ही बोल रहा है। उनसे हम अपना पान लगवाकर थोड़ी सी हिन्दी में मसखरी करके अपने रास्ते निकल लेते हैं। आज वे भी प्यार से बोले “बाबू आप भी हमारे मुल्क से लगते हो” हम भी बोल ही दिये “भई हम तो इलाहाबाद के दामाद हैं।” और चल दिये अपने ठिकाने की ओर…

13 thoughts on “चैन्नई में कल का रात्रि भोजन और आसपास के वातावरण के कुछ चित्र से अपने जहन में बीती जिंदगी का कोलाज बन गया…

  1. @Mahesh ji,
    हमने समीर लाल जी को कतई मोटा शब्द से संबोधन नहीं किया है, हमने केवल टिप्पणी का जिक्र किया है | बाकी सब बाते केवल हमारे लिए हमने की हैं| 🙂

  2. कभी मौका मिले तो टी नगर स्थित सर्वणा भवन के भी दर्शन कर आईये.. चेन्नई आकार अगर कोई वाहन नहीं गया तो उसका आना व्यर्थ ही समझे.. 🙂

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