शीर्षक देखकर चौंक गये क्या, अरे यह आम भाषा है हमारे यहाँ मालवा में। किसी भी छोटे होटल में जहाँ सुबह सुबह पोहे, उसल पोहे और चाय मिलती है, वहाँ पहुँच जाईये, और अंदर बैठ जाईये। आप अपना ऑर्डर काऊँटर वाले को अपनी जगह पर बैठे हुए ही दे देंगे या फ़िर कोई लड़का आकर ऑर्डर ले लेगा। और फ़िर अपने विशेष अंदाज में छोटूनुमा लड़के को बोलेगा – ऐ छोटू सा..ब को दो प्लेट मिस्सल और दो चाय मार। अब अपन तो ये सब बचपन से ही ये सब देखते आ रहे हैं, इसलिये ये भाषा और ये बातें हमें कोई जुदा नहीं लगती हैं। हाँ अगर ये भाषा सुनने को न मिले तो अच्छा नहीं लगता है।
हमारे मामाजी मामीजी अपने लड़के के पास महू आ रहे थे, भोपाल तक ट्रेन से आये और फ़िर टैक्सी से महू जा रहे थे, तो इंदौर में नाश्ता करने के लिये रुक गये, बस स्टैंड के पीछे महारानी रोड पर, छोटे से होटल पर, उन्होंने भी ऑर्डर किया दो मिस्सल और दो चाय। तो फ़िर आवाज हुई “सा..ब को दो प्लेट मिस्सल और दो चाय मार”, तो उनको पता नहीं था कि यह यहाँ की भाषा है और शायद पेटेंट भी । उन्होंने सोचा कि ये मारने की क्यों बोल रहा है, क्या यहाँ मारके दिया जाता है, या चाय हमें दूर से फ़ेंक कर देगा। बहरहाल उनके लिये तो बहुत ही असमंजस वाली स्थिती हो गई। इंतजार करते रहे और मिस्सल भी आई और चाय भी पर मार कर नहीं।
जब वे उज्जैन आये और हमको ये किस्सा सुनाया तो हम बहुत पेट पकड़ पकड़ कर हँसे क्योंकि वो इस बात पर नाराज हो रहे थे, कि क्या भाषा है अच्छे से अच्छा आदमी घबरा जाये।
तो आपको कैसा लगेगा अगर कहीं होटल पर कहा जाये “सा..ब को दो प्लेट मिस्सल और दो चाय मार” ..
रोचक रहा
रोचक संस्मरण।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
अब कभी ऐसी बाते सुनूं तो अजूबा न लगेगा .. आपके पोस्ट से ये फायदा हुआ !!
अच्छा बताया.
…बहुत खूब !!
nice
बहुत झेल चुके हैं यह…तो अजीब नहीं लगा!
विवेक जी आप कुछ मिस कर रहे हैं..
कहा जाता ..“सा..ब को दो प्लेट मिस्सल और दो पेशल चाय मार…..
हा हा हा…बहुत सुना है….हमेशा….और हर चाय मारने वाले का नाम छोटू ही होता है…:):)
भाई मारो मत साब को चाय पिला दो.. 🙂
जय हिंद.. जय बुंदेलखंड…
भीडू अपुनके सामने ऐसा बोलता तो उसकी गर्दन पकड लेता. चलो अच्छा हुआ तुमने बता दिया.
बहुत रोचक लगा धन्यवाद्
बहुत रोचक संस्मरण….
आदरनीय…….बहुत मज़ेदार किस्सा सूनाया आपने! मुझे यहा से ही उज्जैन दर्शन करा दिया!
जय महाकाल
लड़के….. साहब को एक टिप्पणी मारो..।
और ये मिस्सल पाव किसी अच्छे होटल में क्यूँ नहीं मिलती…मैंने भी गोवा जाते समय रास्ते के किनारे ढाबे में ही खाई थी…और हर जगह ढूँढती रहती हूँ…वह स्वाद ही अलग होता है और पेश करने के अंदाज़ से स्वाद और भी ख़ास हो जाता है,शायद
@ रश्मिजी,
ये मिस्सल, मिस्सल पाव वाली मिस्सल नहीं है, ये है मिस्सल पोहा, हमारे यहाँ मालवा में मिस्सल पाव नहीं मिलता है यह तो मुंबई का प्रसिद्ध है।