तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 10)[Darshan of ShrikalaHasti Shiva…]

    श्रीकालाहस्ती शिवजी की स्थली है, जो कि बहुत ही प्राचीन और भव्य मंदिर है, मैंने शायद आज तक इतना भव्य प्राचीन मंदिर कहीं देखा होगा। स्थापत्य का तो बेजोड़ नमूना है।

    श्रीकालाहस्ती एक छोटा सा गाँव है, जहाँ स्वर्णमुखी नदी बहती है। तिरुपति से श्रीकालाहस्ती तकरीबन ४५ कि.मी. है और करीब एक घंटा लगता है। यहाँ पर भी भगवान के नाम की लूट मची हुई है।

    श्रीकालाहस्ती में आते ही  वहाँ का नजारा मन मोहने वाला था, मंदिर के पार्श्व में पहाड़ी थी, और मंदिर का गुंबद दक्षिण भारतीय स्टाईल का सफ़ेद रंग में चमक रहा था, जो तालमेल था वह गजब ही था।

    जैसे ही हम मंदिर के बाहर पहुँचे तो देखा कि वहाँ इतना बड़ा मंदिर होने के बाबजूद कोई आधिकारिक जूता चप्पल स्टैंड नहीं था, बस अपनी चरणपादुकाएँ भगवान भरोसे छोड़ कर चल दिये।

    मंदिर का प्रवेशद्वार बहुत भव्य है और अंदर जाते ही देखते हैं, कि भारी भीड़ लगी हुई है क्योंकि वह राहु-केतु काल था शाम ४ से ६.३० बजे तक का काल। और वहाँ लिखा हुआ था, राहु-केतु पूजा २५० रुपयों में। स्पेशल पूजा १५०० रुपयों में। सब जगह रुपयों का इतना महत्व देखकर यह तो समझ में आ गया कि यहाँ मंदिर के नाम पर जनता को खूब लूटा जा रहा है।

    हमने निश्चय किया कि हम कोई टिकट नहीं खरीदेंगे और फ़्री दर्शन करेंगे क्योंकि दर्शन के लिये ज्यादा भीड़ नहीं लग रही थी। हम चल दिये फ़्री दर्शन के लिये। मंदिर की भव्यता देखते ही बन रही थी, हम जैसे ही दर्शन के  लिये शुरु हुए सबसे पहले गणपति जी के दर्शन हुए, बहुत ही सुन्दर मूर्ती थी, इतनी सुन्दर मूर्ती हमने आज तक देखी नहीं थी, फ़िर तो जितनी भी मूर्तियों को देखा सब एक से बढ़कर एक थीं, जब हम शिवजी के मंदिर की ओर बड़ते चल रहे थे, तभी एक शिवजी का का सस्त्रशिवलिंग रुप दिखाई दिया, काफ़ी अद्भुत था यह शिवलिंग हमने पहली बार ऐसा शिवलिंग देखा था, और बहुत ही मनमोहक था। हम तो धन्य हो गये शिव के इस रुप के दर्शन करके। हम पहुँच चुके थे, श्रीकालाहस्ती के गर्भगृह के द्वार पर, हमें बाहर से ही दर्शन करने पड़े क्योंकि अंदर केवल १५०० रुपये वाले ही दर्शन कर सकते थे। वाह री माया तेरे खेल निराले, हमने बाहर से ही दर्शन किये पर बाबा के यहाँ माया का खेल देखकर मन खिन्न हो उठा। श्रीकालाहस्ती एक वायुलिंग है और शायद ही हमने ऐसा शिवलिंग कहीं देखा होगा, हम तो धन्य हो गये उनके दर्शन करके। जय श्रीकालाहस्ती।

    फ़िर जब हम बाहर की ओर आ रहे थे, तो देवी देवताओं की एक से एक बेजोड़ मूर्तियों के दर्शन हो रहे थे । एक मूर्ति बाबा कालभैरव की थी, बहुत ही प्राचीन और अतिसुन्दर पहले बार हमने बाबा कालभैरव की ऐसी मूर्ती देखी थी मन प्रसन्न हो गया।

    जब हम मंदिर के बाहर आने लगे तो देखा कि वहाँ दीपदान हो रहा है, बहुत सारे लोग एक साथ दीपदान कर रहे हैं, एक स्टैंड बना हुआ था, जहाँ पर लोग दीपदान कर रहे थे। बहुत ही सुन्दर और अनुपम दृश्य था।

    जब हम मंदिर से बाहर निकल रहे थे, तो देखते जा रहे थे कि ऊपर पहाड़ी से पटाखों की आवाज आ रही थी और किसी की सवारी आ रही थी, जब तक हम बाहर पहुँचे तब तक सवारी हमारे सामने आ चुकी थी, नंदी महाराज आगे थे बहुत ही सुन्दर उनकी सज्जा की गई थी, और श्रीकालाहस्ती उनके पीछे पालकी पर थे, हम तो बाबा के दर्शन करकर धन्य हो गये। इंसानों ने मंदिर में दर्शन नहीं करने दिये तो बाबा ने बाहर आकर खुद ही दर्शन दे दिये। फ़ोटो हम खीच नहीं पाये क्योंकि मोबाईल मंदिर में निषेध है इसलिये मोबाईल हम टैक्सी में छोड़ आये थे। पर मन मोह लिया इस दृश्य ने।

    दर्शन कर चल दिये हम वापिस अपनी टैक्सी की ओर वापिस चैन्नई जाने के लिये, चैन्नई अब हमारे लिये तकरीबन १४० कि.मी. था ये दूरी हमने तय की तकरीबन तीन घंटे में, शाम छ: बजे निकले और नौ बजे गंतव्य पहुँच गये।

    कुछ फ़ोटो श्रीकालहस्ती के देखिये जो हमने जाते समय निकाले –

07022010174536  07022010174449

सूर्यास्त                                            मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी

07022010174503 07022010174513

मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी                          सूर्यास्त

 07022010174521

ये भी पढ़ें –

6 thoughts on “तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 10)[Darshan of ShrikalaHasti Shiva…]

  1. इस देव -स्थान से अच्छा परिचय कराया आपनें.
    ''बस अपनी चरणपादुकाएँ भगवान भरोसे छोड़ कर चल दिये.''….
    देव स्थानों में तर्क के लिए संभवतः जगह नहीं है.भरोसा बना रहा न?यही बात है कि-मानों तो मैं…….न मानों तो…

  2. आप के लेख को पढ कर ऎसा लगा जेसे हम भी वही घुम कर आये हो, बहुत सुंदर लेख ओर चित्र भी बहुत सुंदर. धन्यवाद

  3. अपनी दक्षिण यात्रा में मंदिरों में विधिवत टिकट लेकर दर्शन करने की व्यवस्था से मैं उतना कुपित नहीं हुआ जितना इस बात से कि वहाँ भी बिना टिकट दिए दलाल पैसे ले कर दर्शन करा रहे थे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *