विद्रोह मेरे मन का,
भड़क रहा है,
चिंगारियों से,
आग निकल रही है,
मेरे मन के,
मेरे दिल के,
कुछ जज्बात हैं,
जो दबे हुए हैं,
कहीं किसी चिंगारी में,
और जो,
हवा के रुख का,
इंतजार कर रहे हैं,
और वहीं कहीं,
रुख हवा का,
हमसे बेरुखी कर चुका है,
पर…
विद्रोह मेरे मन का,
भड़क रहा है.. !!
सुंदर अभिव्यक्ति !!
बा्प रे किस से विद्रोह कर रहे हैं?
सुन लीजिये विद्रोह की.. और ले आईये क्रान्ति..
ये बेचैनी, ये विद्रोह मैने भी देखा है..
http://pupadhyay.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html
चेन्नई का गुस्सा मुम्बई पर ।
विद्रोह की ज़रूरत क्यों आन पडी गुरुवर
Samajik kuvywasth aur manavta ke dushmanon ke prati vidroh ke swar aur aag to aaj ke daur ki awasyakata hai…
Bahut achhi lagi aapki rachana…
Samajik kuvywasth aur manavta ke dushmanon ke prati vidroh ke swar aur aag to aaj ke daur ki awasyakata hai…
Bahut achhi lagi aapki rachana…
जब भी परिवार से दूर होने की परिस्थितियां आती हैं मैं सीमा पर तैनात सिपाही की सोचता हूं व पाता हूं कि कितना भाग्यशाली हूं मैं…जब चाहूं घर हो आता हूं, न ही अनुशासन की बंदिश…
पूरा आक्रोश निकाल दिया..
बढ़िया रचना!
दो चार नारे भी लगाये ऊंची आवाज मै, ताकि पडोसियो को भी पता चले आप के विद्रोह का…. वेसे विद्रोह कर कहां रहे है दफ़तर मै या घर पर???
सुंदर रचना
अपुन के हाल भी कुछ ऐसे ही हैं विवेक भाई !
मन विद्रोह कर उठा है ।
हवा के रूख का
मत कर इंतजार
अपना दावानल और भड़का
क्योंकि विद्रोह जब मरेगा तो
बहुत कुछ अनर्गल करेगा
सुंदर अभिव्यक्ति..
युवा पीढी का विद्रोह देश को जिन्दा रखता है.
विद्रोह को समय रहते मिटायें – ब्लाग पोस्ट ठेलें!