एक किरण
रोशनी की
कहीं चुपके से
बहुत दूर से
आती हुई,
अंधकार
जो कि अँधेरे से
निकल पाने में
असमर्थ है
घुप्प,
सुबह
रोशन रोशनी
लहराती हुई
नई ताजी हवा
के झोंके
नथूनों में
दर्द जगाती है
रात
घुप्प अंधकार
सन्नाटे में
चीत्कार से
निर्जन झन्न
कहीं
सुकून देती है।
वाह कवि जी वाह
नाक के नथूने बना दिए
Prakriti ka sookshma avlokan….bahut khoob…
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
सादर वन्दे !
भावनाओं की गहराई कविता को सार्थक बनाती है
सुन्दर
रत्नेश त्रिपाठी
बेहतरीन कविता रच रहे हैं कविवर.
सरल व प्रभावी ।
achha likhaa hai…..behatri kee or
APNI MAATI
MANIKNAAMAA
बहुत सही – हर अंधेरे के बाद रोशनी आती ही है!
अंधेरे के बाद उजाले को तो आना ही है बस समय की बात है…बहुत सुंदर. आशा का साथ छोड़ना नहीं है. Curse breeds nothing.
वाह…भाव और विचार नये है.
Andhkaar aur Prakash ka kabhi na khatm hone wala sangharsh!
Sadhuwad!