भकभकाती गर्मी में …. मेरी कविता ….. विवेक रस्तोगी

भकभकाती गर्मी में

जल रहे हैं तन मन,

एसी की सर्दी में

इतरा रहा है मन तन,

पारदर्शी काँच के प्रतिबिम्ब

बिम्बित हो रहे हैं,

इस पार सर्दी

उस पार गर्मी,

काश कि अहसास भी

ऐसे ही बिम्बित हो पाते ॥

5 thoughts on “भकभकाती गर्मी में …. मेरी कविता ….. विवेक रस्तोगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *