सपरिवार बहुत दिनों से कहीं घूमने जाना नहीं हुआ था, और हमने सोचा कि इस भरी गर्मी में कहाँ घूमने ले जाया जाये तो तय हुआ कि नेहरु प्लेनिटोरियम, वर्ली जाया जाये। पारिवारिक मित्र के साथ बात कर रविवार का कार्यक्रम निर्धारित कर लिया गया। बच्चों को साथ मिल जाये तो उनका मन ज्यादा अच्छा रहता है और शायद बड़ों का भी।
सुबह ९ बजे घर से बस पकड़ने के लिये प्रस्थान किया गया, बस पकड़ी ए ७० सुपर ए.सी. बस जो कि वर्ली सीलिंक होती हुई नेहरु प्लेनिटोरियम तक जाती है, और एक्सप्रेस होने के कारण रुकती भी बहुत कम है, यह फ़्लॉयओवर के ऊपर से होती हुई निकल जाती है, और रविवार होने के कारण ज्यादा ट्रॉफ़िक भी नहीं था, बच्चों को भी मजा आ रहा था, थोड़े समय पश्चात ही बस पहुँच गयी वर्ली सी लिंक पर, पहली बार इस अद्भुत रास्ते से हम निकल रहे थे, जो कि समुद्र के ऊपर से होते हुए जा रहा था। रास्ते से गुजरते समय अजीब सा उत्साह था।
बहुत पुराने जमाने की गाड़ियाँ एकाएक हमें दिखने लगीं तो हमें लगा कि शायद हम कोई सपना देख रहे हैं, पर एक से एक पुराने जमाने की गाड़ियाँ, ऐतिहासिक…। उस दिन विन्टेज कार रैली थी हम नेहरु प्लेनिटोरियम के स्टॉप पर उतरकर फ़िर से विन्टेज कारों को देखकर लुत्फ़ ले रहे थे।
हम सुबह १०.२० पर नेहरु प्लेनिटोरियम पहुँच गये और वहाँ जाकर देखा कि पहला शो १२ बजे हिन्दी का है और टिकिट ११ बजे से मिलेंगे केवल ५७५ सीटें उपलब्ध हैं, और हमारे मित्र लाईन में लग गये, बड़ों का टिकिट ५० रुपये है और ४ से ११ वर्ष के बच्चों का २५ रुपये। शो शुरु होने का समय था १२.०० बजे दोपहर का, वैसे शो मराठी और अंग्रेजी में भी उपलब्ध है। उनके समय १.३० बजे और ३.०० बजे है और ४.३० वापिस से हिन्दी का शो है। शो में प्रवेश का समय ११.४५ बजे से था, जो हम वहीं पास में संग्रहालय घूम आये जो कि हमारी मानवीय सभ्यता की अच्छी झलक देता है।
संग्रहालय इतनी बड़ी जगह पर बनाया गया है कि बस !! क्योंकि यह बनाया गया था सन १९७७ में, अगर आज बनाया गया होता तो वर्ली जैसी पाश इलाके में इतनी जगह के लिये माफ़िया एड़ी चोटी का जोर लगा देते, और संग्रहालय की जगह कोई बड़ी सी बहुमंजिला इमारत खड़ी होती।
समय होते ही वापिस से नेहरु प्लेनिटोरियम चल दिये जो कि पैदल मात्र २ मिनिट के रास्ते पर ही है, पर मुंबई की गर्मी, जो कि बरस रही थी। सबकी हालत खराब थी, इतनी गर्मी और इतने दिनों बाद घूमने के लिये निकले थे।
नेहरु प्लेनिटोरियम के अंदर प्रवेश करते ही बहुत सुकून मिला, वहाँ पर ब्रह्मांड के बारे में बहुत ही सरल तरीके से सबकुछ समझाया गया है, हमने वहाँ चंद्रमा के ऊपर अपना वजन किया तो मात्र १५ किलो निकला और मंगल पर २४० किलो। फ़िर ब्रह्मांड के ग्रहों के एक गोल मोडल के नीचे सबको खड़ा कर दिया गया और पूरे सौर मंडल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई, फ़िर १० मिनिट की फ़िल्म कल्पना चावला के ऊपर दिखाई गयी।
हमें शो के लिये हॉल में जाने के लिये कहा गया और हम चल दिये हॉल में, जहाँ ब्रह्मांड के रहस्य समझाये जाने थे, हम भी अपनी कुर्सी पर लेट गये मतलब कुर्सी कुछ इस प्रकार से डिजाईन की गई है कि आप पूरे लेट सकते हैं और शो सामने दीवार पर नहीं था, शो था छत पर जो कि गोलाकार था, और डिजिटल ३ डी तकनीक से नेहरु प्लेनिटोरियम में हम ब्रह्मांड का आनन्द लेने को तैयार थे। शो शुरु हुआ और फ़िर ब्रह्मांड का सफ़र और हम ब्रह्मांड में डूबने लगे।
इसी बीच ए.सी. की ठंडक से हमारी थकी हुई देह आराम लेने की कोशिश करने लगी थी, और तारों की छांव में बहुत सालों बाद हम झपकी ले रहे थे। ऐसा लगा कि हम अपनी छत पर सो रहे हैं, तभी एक हल्का सा टल्ला लगा जो कि हमारी धर्मपत्नी जी का था कि खर्राटे की आवाज आ रही है, यथार्थ की दुनिया में आ जाइये। हमारी नींद को थोड़ी देर की नजर जरुर लगी पर फ़िर से हमने छत पर सोने का आनन्द लिया और यह क्रम चलता ही रहा ।
वहाँ से टेक्सी पकड़कर हम पहुँच गये कैमी कार्नर, फ़िर सबसे पहले ढूँढा गया पेटपूजा का स्थान जो कि गिरगाँव चौपटी पर आराम गेस्ट हाऊस के नीचे याने के ग्राऊँड फ़्लोर पर है, पुराना लुक और खाना भी बहुत ही बजट में, पर जब भूख लगती है तो खाना कैसा भी हो परम आनन्द आता है, आत्मा तृप्त हो जाती है, वही हाल हमारा था। बस फ़िर थोड़ी देर शापिंग काम्प्लेक्स में घूमकर मुंबई लोकल में सफ़र करके वापिस घर की ओर चल दिये।
फ़ोटो अपने मोबाईल से खींचे थे पर वो लगा नहीं पा रहे हैं क्योंकि तकनीकी समस्या है हमारी पेनड्राईव हमारे एक मित्र के पास है और उसके बिना अपने पीसी पर अपने लेपटॉप से फ़ाईल ट्रांसफ़र नहीं कर पा रहे हैं, फ़ोटो फ़िर कभी दिखा दी जायेगी।
विवेकजी, हमे सूचित करते तो नेहरु प्लेनिटोरियम तो हम भी साथ हो लेते भाई …..तारों की छांव में हम भी नींद क़ी आगोस में समा जाते ……..
प्लेनेटोरियम दर्शन के सुंदर अनुभव को हमलोगों से बांटने का शुक्रिया !!
बढ़िया रहा वृतांत…हमें भी पुरानी यादें आईं.
फोटो दिखाईयेगा.
pictures ka intzar rahega…
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बढ़िया रहा वृतांत..
बहुत ही रोचकता के साथ बयाँ किया हैं आपने……प्लेनिटोरियम देखने का अपना अलग ही अनुभव …और आपने विंटेज कार रैली का भी आनंद ले लिया…बहुत खूब…तस्वीरों का इंतज़ार
तारो के छावं में रात में ही तारे गिनने के बजाय आप सो गए -वेरी बैड !
तारों की छाँव में, अपनों के गाँव में ।
नींद तो आनी ही है ।
५० रूपये में इतनी बढ़िया नींद । क्या बात है ।
चाँद और मंगल पर तो ठीक है , पृथ्वी पर वज़न नहीं किया क्या । 🙂
फोटो ख़याल से दिखाइयेगा जरूर. हम भूलने वालों में से नहीं हैं.
ताराघर जाना एक अच्छा शौक है।
मैं जब भी किसी शहर जाता हूं यदि वहां ताराघर है तो अवश्य जाने का प्रयत्न करता हूं।