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आसुस का ऑल इन वन पीसी और ईबुक दोनों ही अच्छी लग रही हैं

    मैंने अपना पहला लेपटॉप लगभग 8 वर्ष पहले अमेरिका से मँगवाया था, फिर मुझे ऑफिस से लेपटॉप मिल गया तो हमारे लेपटॉप को बेटेलाल ने हथिया लिया और उस लेपटॉप की जो ऐसी तैसी करी है, कि उसका पहले तो कीबोर्ड तोड़ा, तभी बैटरी ने भी दम तोड़ दिया, और थोड़े दिनों बाद लेपटॉप की स्क्रीन भी मोड़ मोड़ कर उसकी स्क्रीन से भी दिखना बंद हो गया। अब वह लेपटॉप केवल डेस्कटॉप बन कर रह गया है, हमने स्क्रीन का आऊटपुट पुराने रखे मॉनिटर पर कर दिया और वायरलैस कीबोर्ड माउस अलग से दे दिया। अब लगभग एक वर्ष से हमारे बेटेलाल इसका ही उपयोग कर रहे हैं, जब हम उपयोग करते हैं तो लगता है कि अब नया ले ही लेना चाहिये, पर अब लेपटॉप नहीं डेस्कटॉप ।
    डेस्कटॉप वह भी ऐसा कि जिसमें सीपीयू न हो, केवल मॉनीटर हो और सारी सुविधाएँ जैसे कि 3.0 यू.एस.बी.,

लेपटॉप का डेस्कटॉपी जुगाड़

एच.डी.एम.आई. जिससे में अपने टीवी पर आराम से फिल्म देख सकूँ। स्कीन बड़ी हो कम से कम 21 इंच, टच सुविधा के साथ होनी चाहिये, उसमें अपने आप में ही बैटरी बैकअप हो, जिससे बिजली न होने पर कम से कम में काम तो कर सकूँगा। कैमरा हो, जिससे मैं जब भी बाहर होता हूँ तो मैं परिवार के साथ वीडियो चैट कर सकूँ, खुद में ही स्पीकर भी हों, और कीबोर्ड, माऊस अलग से लगा सकें। टच वाले सारे गेम्स खेले जा सकें और मोबाईल जैसा ही ऊँगलियों से पिक्चर कम या ज्यादा कर सकूँ। 3डी गेम्स खेल सकूँ, तो ये सब खासियत मुझे मिली

ASUS All In One PC ET2040 में, जिसमें ये सारी सुविधाएँ बेहतरीन तरीके से उपलब्ध हैं। इसकी एक खासियत यह अच्छी है कि इसमें पहली बार गैस्चर क्न्ट्रोल उपलब्ध है। तो मैं इस डेस्कटाप की स्कीन को किचन में गैस प्लैटफॉर्म के नीचे रखने की जगह बना सकता हूँ, जिससे हमारी श्रीमतीजी खाना बनाते समय किचन में भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकेंगी, फिर वह यूट्यूब पर वीडियो देखना हो या फिर इंटरनेट सर्फ करना हो।

    जब मैं लंबे सफर पर जाता हूँ तो पढ़ने के लिये टेबलेट या किताब अपने पास रखता हूँ, पर लेपटॉप की बैटरी जल्दी खत्म हो जाती है, तो फिर एयरपोर्ट पर चार्जिंग के लिये प्वाईंट ढ़ूँढ़ने में अच्छी खासी मशक्कत हो जाती है, उसके लिये एक ऐसे छोटे से लेपटॉप की जरूरत महसूस होती थी जिसमें कि बैटरी बैकअप जबरदस्त हो और बिल्कुल पतला, छोटा से हो, ज्यादा  हार्डडिस्क न भी हो तो भी चलेगा। जब मैंने ASUS EeeBook X205TA देखा तो लगा वाह यही तो मैं ढ़ूँढ़ रहा था, इसमें 32 जीबी की स्टेट हार्डडिस्क है और 128 जीबी तक का बाहर से एस.डी. कार्ड का उपयोग कर सकते हैं। 29.4 सेंटीमीटर की स्क्रीन लिखने के लिये बहुत होती है, और एयर क्रॉफ्ट की सीच के लिये उपयुक्त भी होती है।
    मैं जल्दी ही ASUS EeeBook X205TA and ASUS All In One PC ET2040 अपने उपयोग के लिये लेने की सोच रहा हूँ।

 

दिल्ली के पास के वे पर्यटक स्थल जहाँ कम ही लोग जाते हैं (Tourist places near Delhi without crowd)

     बहुत दिनों से घूमने का कार्यक्रम बना रहे थे, बैंगलोर और मुँबई इतने समय रहकर आ गये परंतु आलस कहें या समय न मिल पाना कहें, घूमने नहीं जा पाये, अब गुड़गाँव आ गये हैं, यहाँ भी आये हुए 6 महीने हो आये हैं, परंतु यहाँ आकर कार खरीद लेने से कहीं भी घूमना फिरना आसान हो गया है, दो बार तो आगरा, मथुरा और एक बार वृन्दावन हो आये हैं, और खैर दिल्ली तो मौका लगते किसी भी दिन निकल पड़ते हैं।

    अब वहाँ घूमने जाने की ज्यादा इच्छा भी नहीं रही जहाँ बहुत ज्यादा चहल पहल रहती हो और दिमाग को शांति नहीं मिलती है, अब सोचा है कि कहीं प्राकृतिक स्थानों पर जाकर  मानसिक शांति पाई जाये। तब हमने एयरबीएनबी की वेबसाईट पर जाकर उन जगहों पर रहने की जगह ढ़ूढ़ने के लिये यह वेबसाईट बहुत काम आई। 

    हमने सोचा कि किसी ग्रामीण क्षैत्र में भी हमे पर्यटन करना चाहिये, जहाँ हम अपने ग्रामीण जीवन की झलक ले सकें तो हमें यह जगह बहुत ही अच्छी लगी । Banni Khera -Farm Stay & activities बन्नीखेड़ा गुड़गाँव के पास रोहतक में है और किसी भी सप्ताहांत में जाया जा सकता है, यहाँ पर साईकिलिंग, खेती और भी बहुत सी गतिविधियाँ हैं, और प्रकृति के बीच भी है।

    हमें हिमाचल प्रदेश हमेशा से ही लुभाता रहा है, जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहाँ हिम का आँचल है, और हिम याने कि बर्फ किसे अच्छी नहीं लगती, सभी को अच्छी लगती है, बादल बहुत ही नीचे पहाड़ों में भ्रमण करते हैं, चीड़ के ऊँचे ऊँचे वृक्ष और तेज हवाओं से उनसे आती आवाजें हमेशा से ही लुभाती रही हैं, जैसे पहले फिल्मों में हीरो हीरोइन इन्हीं पेड़ों के चारों और घूमकर गाना गाते थे, हमें जगह पसंद आयी कोटघर, धरती पर स्वर्ग KOTGARH,heaven on earth.

    उत्तराखंड में किसी गाँव में गाँववालों के साथ उनके मध्य रहना एक अलग ही अनुभव होगा यह सोचकर हमने लखवार जो कि देहरादून से मात्र दोसौ किमी. की दूरी पर है, का चयन किया। यहाँ पहाड़ों के मध्य देहाती परिवेश में रहने का लुत्फ उठाने के लिये A House in the Himalayas हमें हिमालय के पास लखवार बेहद जम रहा है।

    शिमला जाना किसे अच्छा नहीं लगता और ऊपर से यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है, शिमला की मॉल रोड बहुत प्रसिद्ध है, बस यहाँ सीजन में जाओ तो हर चीज महँगी मिलती है, हमें सोलन में यह जगह Shimla Affordable Luxury Flat Solan  रहने के लिय जमी क्योंकि यह एक तो हाईवे पर ही है और हैरीटेज पार्क यहाँ से मात्र 7 किमी है, कसौली 31 और शिमला केवल 45 मिनिट का रास्ता है।

    अगर हिमाचल में प्रकृति के बीच में न रहे तो वाकई हिमाचल घूमना अधूरा है, हिमाचल और हिमालय के प्राकृतिक वातावरण में अगर साहसिक कार्यों में  हिस्सा न लो तो यात्रा अधूरी ही होती है, वहाँ हमें यह Camp Roxx- Adventure Camp निजी कैम्प बहुत ही पसंद आया जिसमें कि उनका रूकने से लेकर खाने पीने एवं पर्यटन की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है, यह नहान और शिमला के मध्य है, और कांगोजोड़ी जंगल में है।

    आप भी एयरबीएनबी से मेरे रैफरल से जुड़ सकते हैं और विश्व के बेहतरीन रहने के स्थानों को चयन कर सकते हैं।

होगेन्नाकल जलप्रपात अप्रितम सौंदर्य (Hogenakkal Fall)

    होगेन्नाकल जलप्रपात  अप्रितम प्राकृतिक सौंदर्य से ओत प्रोत है, कावेरी नदी की अथाह जलराशि देखते ही बनती है। चारों तरफ़ कल कल बहता जल, कहीं बिल्कुल शांत तो कहीं अपनी अल्हड़ जवानी से रंगा हुआ तेज धारा के साथ फ़ुहारों को आसमान में उड़ाता हुआ।
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    बैंगलोर से लगभग २२० किमी. की दूरी पर है होगेन्नाकल, जहाँ कृष्णागिरी, धरमपुरी होते हुए जाया जा सकता है। सड़क बहुत अच्छी है, केवल २ – ३ किमी ही ठीक नहीं है। सड़क मार्ग से जाते हुए दोनों तरफ़ प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है, कभी चावल के खेत तो कहीं मक्का याने के भुट्टे के, और हर तरफ़ नारियल के पेड़ों की छटा तो देखते ही बनती थी। दोनों ओर पहाड़ियों ने रास्ते को और सुंदर बना दिया था। जब हाईवे से होगेन्नाकल जलप्रपात के लिये मुड़ते हैं, तो थोड़े आगे ही एक चौराहे पर मशहूर तस्कर वीरप्पन को मुठभेड़ में मारा गया था,  लगभग ४ घंटे में हम होगेन्नाकल जलप्रताप पहुँच गये। हमारे चालक महोदय को दक्षिण भारत की अच्छी खासी जानकारी थी।
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    होगेन्नाकल जलप्रपात का रास्ता तमिलनाडु से है, और कर्नाटक की तरफ़ वाले जलप्रपात के लिये वहाँ से खास तरह की नाव जो कि टोपले की तरह होती है, उससे जाना पड़ता है, बारिश के कारण कावेरी अपने भरपूर उफ़ान पर थी, और उस नाव पर हमें ज्यादा भरोसा नहीं था, इसलिये नाव की सवारी न करने का ही फ़ैसला किया।
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    हम मुख्य जलप्रपात की ओर बड़ चले जो कि तमिलनाडु राज्य की सीमा मॆं आता है और एक मुख्य जलप्रपात कर्नाटक की सीमा मॆं भी है, वैसे लगभग १५-२० जलप्रपात कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों की सीमा में आते हैं। एक साथ इतने सारे जलप्रपातों को एक साथ देखना सुखद अनुभूति देता  है, प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक पहाड़ी क्षैत्र घूमने में आनंदित थे और जलराशि का आनंद ले रहे थे।
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    जल अपनी रफ़्तार से जगह जगह हिलोरे मार रहा था और बीच में पत्थर के पहाड़ और बड़े बड़े पत्थर उन हिलोरों में बाधा बन रहे थे जो कि अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित कर रहा था। लोग अपने आप को उस अप्रितम जलराशि में जाने के लोभ का संवरण नहीं कर पा रहे थे और सभी लोग जलराशि की और खिंचे जा रहे थे, सभी अपने अपने तरह से जगह जगह जलक्रीड़ा में मग्न थे। हम भी अपने पैरों को कावेरी के जल में डूबोकर उस वातावरण के आनंद में डूब गये और बहती हुई जलराशि की मधुर ध्वनि अपनी और आकर्षित कर रही थी।
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    जलप्रपात को देखने के बाद और जलराशि के संपूर्ण रस का आस्वादन करने के बाद जब वापिस से किनारे जाने की बारी आई तो इस बार हमने नाव से जाना निश्चित किया और उसी विशेष नाव जो कि टोपले के आकार की थी, उसमें बैठकर गये। पहले बैठते समय डर लगा परंतु जब तक किनारे पहुँचे तब तक थोड़ा डर कम हो चुका था।
    होगेन्नाकल में बहुत सारी छोटी छोटी रसोईयाँ बनी हुई हैं, और बैठने के लिये जगह भी बनी हुई हैं, रसोई से खाना खा सकते हैं, परंतु शुद्ध शाकाहारी की उम्मीद नहीं की जा सकती । यहाँ का मुख्य भॊजन मछली ही है, जहाँ देखो वहाँ तली हुई मछली मिल रही थी, लोग चख भी रहे थे। जैसे जैसे दोपहर होते जा रही थी, तमिलनाडु अपनी गर्मी का पूरा अहसास करवा रहा था।
    होगेन्नाकल एक छोटा सा गाँव है, पर जलप्रपात ने इस क्षैत्र को पूर्ण व्यवसायिक बना दिया है और जहाँ देखो वहाँ छोटे छोटे टिकट लगा दिये हैं, होगेन्नाकल में एन्ट्री का ३० रूपये और पुलिस वाले को ५० रूपये देना ही होते हैं, वरना ये लोग गाड़ी को आगे जाने ही नहीं देते हैं। जलप्रपात पर जाने के लिये दो तीन जगह ५ रूपये प्रति व्यक्ति टिकट और कैमरे के लिये एक जगह १० रूपये का टिकट देना होता है।
    होगेन्नाकल का विकास अभी जारी है और अभी वहाँ के गाँव वाले अभी मुनसिब दाम ही लगा रहे हैं, परंतु जिस तेजी से व्यवसायिकरण बड़ रहा है वे भी कब तक बचेंगे।
    बैंगलोर लौटते समय अड्यार आनंद भवन में खाना खाया, जो कि असल तमिलनाडु का स्वाद है। आनंद भवन बैंगलोर से लगभग ८० किमी दूर है।

वन्डरला एम्य़ूजमेंट पार्क बैंगलोर याने कि मनोरंजन की फ़ुल गारंटी (Wonderla Bangalore Means Full Enjoyment)

    वन्डरला एम्यूजमेंट पार्क बैंगलोर मैसूर रोड पर बैंगलोर से लगभग ३५ किलोमीटर दूर है, और यह मैसूर हाईवे से लगभग १.७ कि.मी. अंदर है, अगर अपने वाहन से जा रहे हैं तो यहाँ पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है और बहुत ही विशाल पार्किंग है।

Wonderla Harsh  Harsh with His friend

वन्डरला एम्यूजमेंट पार्क याने कि मनोरंजन की फ़ुल गारंटी, मनोरंजन पार्क को अच्छा साफ़ सुथरा रखा गया है और लगभग ७ एकड़ क्षैत्र में बनाया गया है।

    वन्डरला का एन्ट्री टिकिट बच्चों के लिये ऊँचाई के अनुसार है, एन्ट्री टिकिट ऑनलाईन भी खरीद सकते हैं या फ़िर वहाँ जाकर लाईन में लगकर क्रेडिट कार्ड या नकद खरीद सकते हैं, दोनों की अलग अलग लाईनें हैं।

MonkeyFace WaterPlayPool

    सप्ताहांत और सार्वजनिक अवकाश वाले दिन वन्डरला का टिकिट बड़ों के लिये 680 रुपये और बच्चों के लिये 490 रुपयों का होता है। ज्यादा जानकारी वन्डरला की वेबसाईट से ली जा सकती है ।

यहाँ पर तीन प्रकार की राईड्स हैं – ड्राय राईड्स, वॉटर राईड्स और किड्स राईड्स।

    लगभग सभी ड्राय राईड्स में बैठने के लिये बहुत ही हिम्मत चाहिये होती है, क्योंकि या तो राईड्स बहुत तेजी से नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे आती हैं, या फ़िर थोड़ा ऊपर जाकर गोल गोल घुमाती हैं। वैसे हमने तो बहुत मजे किये सबसे अच्छा लगा मावेरिक । और रोमांच के लिये नेट वॉक है, नेट वॉक बहुत दिनों बात देखी थी इसलिये ६-७ बार वॉक कर ली, इसके पहले एन.सी.सी. में आर्मी अटैचमेन्ट केम्प में की थीं।

High Wheels Elephant ride

    वॉटर राईड्स में प्ले पूल्स, वेव पूल्स, लेजी रिवर, रेन डिस्को और बहुत सारी राईड्स हैं, कुछ फ़ैमिली राईड्स भी हैं। पानी की स्वच्छता का भरोसा वन्डरला देता है परंतु हमें उतना भरोसेमंद नहीं लगा, पानी में लोगों ने गंदगी फ़ैलायी हुई थी, अत: पानी को मुँह में न जाने दें और कोशिश करें कि अपना सिर बचा कर रखें, ज्यादा भीग न पाये।

Elephant ride in Wonderla Ride in Wonderla

    किड्स राईड्स में जम्पिंग फ़्रॉग्स, मिनि एक्सप्रेस, मेरी घोस्ट्स, मिनि पाईरेट शिप, कोन्वॉय, फ़ंकी मंकी और भी बहुत सारी राईड्स हैं। इन राईड्स में बिल्कुल बड़ों की राईड्स जैसा ही मजा है बस इसमें बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से ऊँचाई और रफ़्तार कम है।

Kids Ride Monkey face

    सबसे बाद में हमने देखा म्यूजिकल फ़ाऊँटेन और लेजर शो, जो कि थोड़ी देर का ही है, परंतु बेहतरीन है, म्यूजिकल फ़ाऊँटेन तो बहुत जगह देखने को मिलेंगे, पर जो लेजर शो वन्डरला में है वैसा तो कहीं देखा ही नहीं।

    खाने के लिये बहुत सारे रेस्टोरेंट उपलब्ध हैं, बाहर से खाने पीने की वस्तुएँ अंदर ले जाने की मनाही है, पर फ़िर भी सबके भाव बहुत ज्यादा महँगे नहीं हैं, पर हमें खाने की गुणवत्ता ज्यादा ठीक नहीं लगी, पर अगर ज्यादा थके रहते हैं और बहुत तेज भूख लगती है तो कुछ भी खाने को मिल जाये अच्छा ही लगता है।

दिल के मरीज,  रक्तचाप के मरीजों के लिये राईड्स पर मनाही है।

    कुल मिलाकर वन्डरला मनोरंजन पार्क जाना एक बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, बस कोशिश करॆं कि सप्ताहांत की जगह सप्ताह में किसी दिन जायें तो भीड़ कम मिलेगी और सारी राईड्स के मजे ले पायेंगे।

पिछले दिनों के कुछ फ़ोटो, उज्जैन प्रवास के दौरान पढ़ी गई किताबें, नेहरु प्लेटिनोरियम और ट्रेन की यात्रा

   कुछ किताबें जो हमने अपने उज्जैन प्रवास के दौरान घर पर पढ़ीं – 

 

ताराघर मुंबई के अंदर का एक फ़ोटो –

ताराघर के बाहर के फ़ोटो और उज्जैन जाते समय ट्रेन से खींचा गया एक फ़ोटो और वर्ली सी लिंक का बस में से खींचा गया फ़ोटो –

         

नेहरु प्लेनिटोरियम मुंबई की सैर और तारों की छांव में हमारी नींद

    सपरिवार बहुत दिनों से कहीं घूमने जाना नहीं हुआ था, और हमने सोचा कि इस भरी गर्मी में कहाँ घूमने ले जाया जाये तो तय हुआ कि नेहरु प्लेनिटोरियम, वर्ली जाया जाये। पारिवारिक मित्र के साथ बात कर रविवार का कार्यक्रम निर्धारित कर लिया गया। बच्चों को साथ मिल जाये तो उनका मन ज्यादा अच्छा रहता है और शायद बड़ों का भी।

    सुबह ९ बजे घर से बस पकड़ने के लिये प्रस्थान किया गया, बस पकड़ी ए ७० सुपर ए.सी. बस जो कि वर्ली सीलिंक होती हुई नेहरु प्लेनिटोरियम तक जाती है, और एक्सप्रेस होने के कारण रुकती भी बहुत कम है, यह फ़्लॉयओवर के ऊपर से होती हुई निकल जाती है, और रविवार होने के कारण ज्यादा ट्रॉफ़िक भी नहीं था, बच्चों को भी मजा आ रहा था, थोड़े समय पश्चात ही बस पहुँच गयी वर्ली सी लिंक पर, पहली बार इस अद्भुत रास्ते से हम निकल रहे थे, जो कि समुद्र के ऊपर से होते हुए जा रहा था। रास्ते से गुजरते समय अजीब सा उत्साह था।

    बहुत पुराने जमाने की गाड़ियाँ एकाएक हमें दिखने लगीं तो हमें लगा कि शायद हम कोई सपना देख रहे हैं, पर एक से एक पुराने जमाने की गाड़ियाँ, ऐतिहासिक…। उस दिन विन्टेज कार रैली थी हम नेहरु प्लेनिटोरियम के स्टॉप पर उतरकर फ़िर से विन्टेज कारों को देखकर लुत्फ़ ले रहे थे।

    हम सुबह १०.२० पर नेहरु प्लेनिटोरियम पहुँच गये और वहाँ जाकर देखा कि पहला शो १२ बजे हिन्दी का है और टिकिट ११ बजे से मिलेंगे केवल ५७५ सीटें उपलब्ध हैं, और हमारे मित्र लाईन में लग गये, बड़ों का टिकिट ५० रुपये है और ४ से ११ वर्ष के बच्चों का २५ रुपये। शो शुरु होने का समय था १२.०० बजे दोपहर का, वैसे शो मराठी और अंग्रेजी में भी उपलब्ध है। उनके समय १.३० बजे और ३.०० बजे है और ४.३० वापिस से हिन्दी का शो है। शो में प्रवेश का समय ११.४५ बजे से था, जो हम वहीं पास में संग्रहालय घूम आये जो कि हमारी मानवीय सभ्यता की अच्छी झलक देता है।

    संग्रहालय इतनी बड़ी जगह पर बनाया गया है कि बस !! क्योंकि यह बनाया गया था सन १९७७ में, अगर आज बनाया गया होता तो वर्ली जैसी पाश इलाके में इतनी जगह के लिये माफ़िया एड़ी चोटी का जोर लगा देते, और संग्रहालय की जगह कोई बड़ी सी बहुमंजिला इमारत खड़ी होती।

    समय होते ही वापिस से नेहरु प्लेनिटोरियम चल दिये जो कि पैदल मात्र २ मिनिट के रास्ते पर ही है, पर मुंबई की गर्मी, जो कि बरस रही थी। सबकी हालत खराब थी, इतनी गर्मी और इतने दिनों बाद घूमने के लिये निकले थे।

    नेहरु प्लेनिटोरियम के अंदर प्रवेश करते ही बहुत सुकून मिला, वहाँ पर ब्रह्मांड के बारे में बहुत ही सरल तरीके से सबकुछ समझाया गया है, हमने वहाँ चंद्रमा के ऊपर अपना वजन किया तो मात्र १५ किलो निकला और मंगल पर २४० किलो। फ़िर ब्रह्मांड के ग्रहों के एक गोल मोडल के नीचे सबको खड़ा कर दिया गया और पूरे सौर मंडल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई, फ़िर १० मिनिट की फ़िल्म कल्पना चावला के ऊपर दिखाई गयी।

    हमें शो के लिये हॉल में जाने के लिये कहा गया और हम चल दिये हॉल में, जहाँ ब्रह्मांड के रहस्य समझाये जाने थे, हम भी अपनी कुर्सी पर लेट गये मतलब कुर्सी कुछ इस प्रकार से डिजाईन की गई है कि आप पूरे लेट सकते हैं और शो सामने दीवार पर नहीं था, शो था छत पर जो कि गोलाकार था, और डिजिटल ३ डी तकनीक से नेहरु प्लेनिटोरियम में हम ब्रह्मांड का आनन्द लेने को तैयार थे। शो शुरु हुआ और फ़िर ब्रह्मांड का सफ़र और हम ब्रह्मांड में डूबने लगे।

    इसी बीच ए.सी. की ठंडक से हमारी थकी हुई देह आराम लेने की कोशिश करने लगी थी, और तारों की छांव में बहुत सालों बाद हम झपकी ले रहे थे। ऐसा लगा कि हम अपनी छत पर सो रहे हैं, तभी एक हल्का सा टल्ला लगा जो कि हमारी धर्मपत्नी जी का था कि खर्राटे की आवाज आ रही है, यथार्थ की दुनिया में आ जाइये। हमारी नींद को थोड़ी देर की नजर जरुर लगी पर फ़िर से हमने छत पर सोने का आनन्द लिया और यह क्रम चलता ही रहा ।

    वहाँ से टेक्सी पकड़कर हम पहुँच गये कैमी कार्नर, फ़िर सबसे पहले ढूँढा गया पेटपूजा का स्थान जो कि गिरगाँव चौपटी पर आराम गेस्ट हाऊस के नीचे याने के ग्राऊँड फ़्लोर पर है, पुराना लुक और खाना भी बहुत ही बजट में, पर जब भूख लगती है तो खाना कैसा भी हो परम आनन्द आता है, आत्मा तृप्त हो जाती है, वही हाल हमारा था। बस फ़िर थोड़ी देर शापिंग काम्प्लेक्स में घूमकर मुंबई लोकल में सफ़र करके वापिस घर की ओर चल दिये।

    फ़ोटो अपने मोबाईल से खींचे थे पर वो लगा नहीं पा रहे हैं क्योंकि तकनीकी समस्या है हमारी पेनड्राईव हमारे एक मित्र के पास है और उसके बिना अपने पीसी पर अपने लेपटॉप से फ़ाईल ट्रांसफ़र नहीं कर पा रहे हैं, फ़ोटो फ़िर कभी दिखा दी जायेगी।

चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

जैसा कि आमतौर पर सभी शहरों में होती है लूट वैसी ही लूट चैन्नई में भी है, अब अभी समझ नहीं पा रहे हैं कि लूट कम है कि ज्यादा है, हमें तो ये पता है कि लूट, लूट ही होती है, चाहे वह कम हो या ज्यादा।
यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।
अब और देखते हैं कि कौन कौन लूट मचा रहा है, क्योंकि टैक्सी वालों के भाव भी बहुत ज्यादा हैं, प्रीपैड टैक्सी अगर २८० रुपये लेती है तो बाहर अगर आप टैक्सी से मोलभाव करने जायेंगे तो वो ८५० रुपये से कम में नहीं मानेगा।
चारों तरह लूट मची है, लूट सके तो लूट !!!!

कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर – मनाली की लोकल सैर


कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर


बस की १४ घंटे की लंबी यात्रा के बाद बहुत थकान थी पर चारों तरफ़ देवदार के वृक्ष और बर्फ़ के पहाड़ देखकर थकान कुछ हल्की हुई। होटल ने पिकअप के लिये टेक्सी भेजी थी हम उसमें सवार हो लिये और फ़टाफ़ट नाश्ता कर, तैयार होकर थोड़ी देर आराम करने का प्लान किया आँख खुली दोपहर एक बजे और फ़िर चल पड़े लोकल साईटसीन पर।


सबसे पहले तो हमने माल रोड पर दोपहर का खाना खाया और फ़िर चल पड़े वन्य विहार, जहाँ पर देवदार के ऊँचे पेड़ और बच्चों के झूले थे। हमारे बेटेलाल ने खूब तो झूले झूले और ठंडी हवा का आनंद लिया। वहीं पर एक छोटा सा वोटिंग क्लब भी था। 


फ़िर गये मोनेस्ट्री, बुद्ध भगवान का मंदिर। जिंदगी में पहली बार मैं किसी बोद्ध मोनेस्ट्री में था और बहुत ही अलग अनुभव था। मंदिर के दरवाजे के खंबों पर ड्रेगन बने हुए थे। भगवान बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही अच्छी लग रही थी।


वहाँ से गये वशिष्ठ मंदिर जहाँ पर ‌ऋषि वशिष्ठ ने तपस्या की थी और अर्जुन ने यहां पर गुस्से में तीर मारकर गरम पानी का स्रोत निकाला था। कहते हैं कि इस पानी में नहाने से त्वचा संबंधी सारे रोग खत्म हो जाते हैं। रास्ते में वूलन वाले आवाज लगाते रहे चिंगू देख लो, हम भी एक दुकान पर देखने लगे चिंगू के कंबल देखे और बताया कि चिंगू एक बर्फ़ में रहने वाला प्राणी है जो कि आजकल बहुत ही दुर्लभ है अब उसके बालों को काट कर ये कंबल बुने जा रहे हैं ना कि मारकर ऐसा हमें बताया गया, ये सर्दी में गरम और गर्मी में ठंडे होते हैं और साथ में ५ आइटम फ़्री थे। पर चूंकि हमें कंबल लेना ही नहीं था इसलिये हम निकल लिये। वहां पर एक बहुत ही आश्चर्य़जन चीज देखने को मिली, छोटे छोटे ढाबों पर भारतीय व्यंजन नहीं, बाहर देशों के व्यंजनों के नाम लिखे हुए थे।

फ़िर निकल पड़े हिडिम्बा मंदिर जो कि भीम की पत्नी थीं वहां पर हिडिम्बा के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं और कहते हैं कि हिडिम्बादेवी के बिना मनाली का दशहरा पूरा नहीं हो सकता। मंदिर के बाहरी दीवार पर तरह तरह के सींग लगे हुए थे। वहीं पर घटोत्कच का एक मंदिर भी है। यहां पर हमने पहली बार याक देखे आज तक केवल फ़ोटो में ही देखे थे।
फ़िर निकल पड़े होटल आराम करने क्योंकि अगले दिन रोहतांग पास बर्फ़ के पहाड़ देखने के लिये सुबह ६ बजे निकलना था।

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मैं रोज आटो से करोलबाग से कनाटप्लेस अपने ओफ़िस जाता हूँ तो पंचकुइयां रोड और कनाटप्लेस की रोड जहाँ मिलती है, उसके थोड़े पहले ही चरसियों की भीड़ फ़ुटपाथ पर लगी रहती है। खुलेआम भारत की राजधानी दिल्ली में चरस का सेवन कर रहे हैं पर कोई भी किसी भी तरह की कार्यवाही करने को तैयार नहीं, कारण शायद यह कि उनसे कमाई नहीं हो सकती !!

वैसे तो रास्ते में बहुत सारी ओर भी चीजें पड़ती हैं रास्ते में, हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर, थोड़ी ओर आगे जाने पर कबूतरों को दाने खिलाते लोग और कोने में श्मशानघाट और भी बहुत कुछ। पर बरबस ही निगाहें रुक जाती हैं चरसियों को देखकर जब कनाटप्लेस की रेडलाईट पर आटो रुकता है। ये लोग भिखारी, कचरा बीनने वाले जैसे लगते हैं, परंतु ये खुलेआम चरस का सेवन करते हुए दिख जायेंगे कानून का मजाक बनाते हुए। किसी भी कानून पालन करवाने वाले व्यक्ति को ये लोग नहीं दिखते ?

ये लोग वहाँ मैली कुचैली चादर ३-४ के झुँडों में ओढ़कर चरसपान करते रहते हैं और जैसा कि आटो वाले बताते हैं कि यही लोग रात के अँधेरे का फ़ायदा उठाकर लूटपाट भी करते हैं और पुलिस वाले इनको इसलिये पकड़ के नहीं ले जाते हैं कि इनसे उन्हें कोई भी (धन संबंधी) फ़ायदा नहीं होता है। उल्टा उनकी सेवा करना पड़ती है।

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