सुबह ९ बजे तक सब ठीक था, परंतु एकाएक सीएनबीसी आवाज पर एक न्यूज फ़्लेश देखा कि मुंबई में ऑटो की हड़ताल, फ़िर हम दूसरे न्यूज चैनलों पर गये परंतु कहीं भी कुछ नहीं आ रहा था। अपने सहकर्मी के साथ रोज ऑटो में जाते थे उसका फ़ोन आया कि आ जाओ हम घर से निकले तो वो अपनी मोटर साईकिल पर आया हुआ था, हम उसकी मोटर साईकिल पर लद लिये। सड़कों पर दूर दूर तक ऑटो और टेक्सियाँ कहीं दिखाई नहीं दे रही थीं।
पर आज कमाल की बात हुई कि हम केवल १० मिनिट में ही ऑफ़िस पहुँच गये जो कि रोज से लगभग आधा है, और तो और बसें भी अपनी पूरी स्पीड से चल रही थीं, ऐसा लगा कि ये ऑटो और टेक्सी वाले ही ट्राफ़िक न्यूसेंस करते होंगे, तभी तो कहीं भी कोई ट्राफ़िक नहीं, ऐसा लग रहा था कि हम मुंबई नहीं कहीं ओर हैं, और इस शहर में ऑटो और टेक्सियों की पाबंदी है।
सी.एन.जी. गैस की कीमत ३३% बढ़ायी गई है, और ऑटो यूनियनों की मांग थी कि बेस फ़ेयर १.६ किमी के लिये ९ रुपये से बढ़ाकर १५ रुपये कर दिया जाये और उसके बाद प्रति किमी ५ से बढ़ाकर ६.५० रुपये कर दिया जाये। तो मांग मान ली गई और बेस फ़ेयर ९ रुपये से बढ़ाकर ११ रुपये कर दिया गया और उसके बाद प्रति किमी. ५ से बढ़ाकर ६.५० रुपये कर दिया गया है। सीधे सीधे २५% की ऑटो किराये में बढ़ौत्तरी कर दी गई है। अभी तक हमें एक तरफ़ के ४० रुपये लगते थे अब ५० रुपये लगेंगे, याने कि महीने के ५०० रुपये ज्यादा खर्च होंगे।
अब सरकार को कन्वेन्स एलाऊँस ८०० से बढ़ाकर २००० रुपये कर देना चाहिये जिससे आयकर में ही कुछ राहत मिले।
पूरा मुंबई बिना ऑटो और टेक्सी के बहुत ही अच्छा लग रहा था, अगर इनको हटा दिया जाये और बेस्ट अपनी बसें बड़ा दे तो ज्यादा अच्छा है।
शाम को ऑफ़िस से निकले तो फ़िर ऑटो की तलाश शुरु की, क्योंकि हमारे सहकर्मी को कुछ काम था तो पहले आधे घंटे तक तो ऑटो ही नहीं मिला फ़िर सोचा कि चलो बस से बोरिवली जाते हैं और फ़िर वहाँ से अपने घर तक की बस मिल जाती है, तो थोड़े इंतजार के बाद ही सीधे घर के ओर की ही बस मिल गई। बस के पिछले दरवाजे पर लटकते हुए अगले स्टॉप पर अंदर हो पाये। फ़िर थोड़ी देर में ही बस लगभग खाली जैसी थी, तो हमने कंडक्टर से पूछा ये रोज ऐसी ही खाली आती है क्या ? वो बोला कि आज खाली है ऑटो के हड़ताल के कारण लोग ऑफ़िस नहीं जा पाये।
खैर हम घर पहुँचे तो टीवी पर खबर देखी कि दिल्ली में तो लूट ही मच गई है, पहले २ किमी के लिये २० रुपये और फ़िर २ किमी. के बाद ६.५० रुपये कर दिया गया है। शायद अब दिल्ली में ऑटो वाले मीटर से चलें।
खैर अपन तो आम जनता है और हमेशा से अपनी ही जेब कटती है और हम कुछ बोलते नहीं हैं, बोल भी नहीं पाते हैं। बस हमेशा लुटने को तैयार होते हैं, और हम कर भी क्या सकते हैं।
आज का दिन आपका अच्च्छा बीता या बुरा ? ऐसे भी अनुभव होते ही रहने चाहिए !
ऑटो वाले की मजबूरी भी तो समझो। वे भी तो अपना परिवार चलाएंगे ही ना।
हमारे यहां तेल पेट्रोल ओर गेस के दाम बढते ओर घटते रहते है, क्या भारत मै भी दाम घटते है? या सिर्फ़ ऊपर जाना ही जानते है? ओर वो भी ३३% जब कि यहां १, २ पेसे ही बढते है
ऑटो और टैक्सियां बन्द हो गईं तो बाहर से आने वालों का क्या होगा विवेक जी?
सरकार का क्या जाता है…………मरता तो हमेशा आम आदमी ही है ना ! चाहे वह मेरी और आपकी तरह हो या फिर ऑटो या टेक्सी वाला !
हालत बुरे हैं जनाब, सरकार सो रही है क्या ?
@अरविन्द जी – दिन तो ठीक ही रहा ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
@अजीत जी – आप सही कह रही हैं, पर जब ऑटो वाला लूटता है तब भी तो उसे अपने परिवार के बारे में सोचना चाहिये ना ।
@ राज जी – ऐसा हमारे यहाँ कहाँ, यहाँ पर तो दाम बस बढते ही जाते हैं, क्या आपको पता है पेट्रोल पर कितना टैक्स है १००% से भी ज्यादा, पर हमारा भारत महान हम चुप रहते हैं।
@ वन्दना जी – मेरी बात मानें तो बेस्ट की बसों से अच्छा कुछ नहीं है, परंतु समस्या है अंतराल की, अगर मुझे कहीं जाना होता है तो मैं बस पहले और ऑटो टेक्सी बाद में देखता हूँ। और हाँ बाहर वालों के लिये क्या सबके लिये मुंबई बहुत अच्छी है, क्योंकि यहाँ पर आपको सब मदद के लिये तत्पर होते हैं।
@ शिवम जी – सही कहा आम आदमी तो होता ही इन सबको झेलने के लिये।
@ राम जी – हालत बुरे हैं, पर सरकार सो नहीं रही है, सरकार भी ऑटो टेक्सी वालों के साथ मिल गई है, आम जनता की कोई नहीं सोच रहा है।
विवेक जी..चाहे खरबूजा छुरी पे गिरे या फिर छुरी खरबूजे पे..कटना तो खरबूजे को ही है…
कटना हमारी नियति में लिखा है …हमेशा गाज आम जनता पर ही गिरती है
अजित जी सही कह रही हैं आटो वाले ने भी तो पेट पालना है।शाम को उसकी सारे दिन की कमाई तो एक डाक्टर ही निकाल लेगा अगर उसका बच्चा बीमार हुया आपना तो चाहे इलाज ही न करवाये
उसका आटा दाल कैसे चलता होगा ये भी सोचने की बात है आभार।
ऑटो व टैक्सी प्रति व्यक्ति जितनी जगह घेरते हैं, उतनी बस व ट्रेन नहीं घेरती हैं । केवल अन्तिम 1 किमी के लिये इन पर निर्भरता के कारण ऑटो व टैक्सी इतना उत्पात मचाते हैं ।
क्या कहें हम सभी इन सबसे त्रस्त हैं या ये कहें सरकार और हालात के मारे हैं
hum bhi bechare hain aur auto-wale bhi..