भारत बंद को राजनैतिक दलों ने जनता को अपनी ताकत बताने का हथियार बना दिया है, और टी.वी. पर देखकर ही पता चल रहा था कि राजनीति में अब केवल और केवल गुंडों का ही अस्तित्व है, क्या आम आदमी ऐसा कर सकता है ??
पुतला बनाकर जलाना
टायर जलाना बीच सड़क पर
डंडा लेकर लहराना
इत्यादि
शायद आपका जबाब भी होगा “नहीं”, पर क्यों और ये लोग कौन हैं जो ये सब कर रहे हैं –
आम आदमी तो बेचारा अपने घर में दुबका बैठा अपनी रोजी रोटी की चिंता कर रहा था और ये बदमाशी करने वाले लोग राजनैतिक दलों के आश्रय प्राप्त लोग हैं, जिन्हें अगर २-४ लठ्ठ पड़ भी गये तो उसकी भी सारी व्यवस्था इन दलों ने कर रखी है। टी.वी. पर फ़ुटेज दिखाये जा रहे थे लोग डंडे खा रहे थे पर बड़े नेता ४-५ पंक्ति पीछे मीडिया को चेहरा दिखा रहे हैं, फ़िर ब्रेकिंग न्यूज भी आ जाती है कि फ़लाने नेता प्रदर्शन करते गिरफ़्तार, सब अपने को बचा रहे हैं, बस भाड़े के आदमी पिट रहे हैं।
जो राष्ट्र का एक दिन का नुकसान इन दंगाईयों ने किया, उसकी भरपाई कैसे होगी ? जो हम लोगों के कर से खरीदी गई या बनाई गई सार्वजनिक वस्तुओं की तोड़ फ़ोड़ की गई है, उसका हर्जाना क्या ये खुद भरने आयेंगे ? आम आदमी को सरेआम बेईज्जत करना, क्या ये राजनैतिक दलों को शोभा देता है, (जैसा कि टीवी फ़ुटेज में दिखाया गया, बोरिवली में लोकल से उतारकर लोगों को चांटे मारे गये)। तो इन राजनैतिक पार्टियों को बंद का साफ़ साफ़ मतलब समझा देना था। बंद महँगाई के खिलाफ़ नहीं था बंद था अमन के खिलाफ़, बंद था शांति के खिलाफ़, बंद था आम आदमी के खिलाफ़।
अगर इन राजनैतिक दलों को वाकई काम करना है तो कुछ ऐसा करते जिससे एक दिन के लिये महँगाई कम हो। अपनी गाड़ियों से सब्जियाँ और दूध भिजवाते तो लागत कम होती और आम आदमी को एक दिन के लिये महँगाई से राहत मिलती। ऐसे बहुत से काम हैं जो किये जा सकते हैं, पर इन सबके लिये इनकी अकल नहीं चलती है।
शायद इस बंद का समर्थन हम भी करते अगर इसका कोई फ़ायदा होता, हमारे फ़ायदे –
सब्जी ५०-८० रुपये किलो है वो १०-२० रुपये किलो हो जायें।
दाल १००-१६० रुपये किलो हैं वो ४०-५० रुपये किलो हो जायें।
दूध ३० – ३९ रुपये लीटर है वो १५-२० रुपये लीटर हो जाये।
पानी बताशे १५ रुपये के ६ मिलते हैं, वो ५-६ रुपये के ६ हो जायें। 🙂
भले ही पेट्रोल, डीजल और गैस के भाव बड़ें वो सहन कर लेंगे पर अगर आम जरुरत की चीजें ही इतनी महँगी होंगी तो जीना ही मुश्किल हो जायेगा, पेट्रोल डीजल नहीं होगा तो सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार हड़ताल करने वाले राजनैतिक दलों की भी थी और भविष्य में भी आयेगी परंतु क्या इन लोगों ने महँगाई कम करने के लिये कोई कदम उठाया ? नहीं क्यों इसका कारण इनको भारत बंद के पहले जनता को बताना चाहिये था, और ये भी बताना चाहिये था कि सरकार कैसे महँगाई कम कर सकती है ? आखिर ये भी तो सरकार चलाना जानते हैं। कैसे करों को कम किया जा सकता है, कैसे कमाई बढाई जा सकती है, फ़िर ये भारत बंद से क्या हासिल होगा ? कुछ नहीं बस जनता को अपनी शक्ति प्रदर्शन दिखाने के ढ़ोंग के अलावा और कुछ नहीं है ये भारत बंद ।
“भारत बंद – मैं इसका विरोध करता हूँ”
ढोंग है…..
एक तो महंगाई का मारा..
उपर से तुम्हारा बंद…
उफ्फ.. महँगा पड़ा ये बंद भी…
मेरी गरीबी बढ़ा गया..!
आम समस्याओं में यदि राजनीतिक दलों को रूचि होती .. तो आज हालात यहां तक न पहुंच चुके होंते !!
बंद महँगाई के खिलाफ़ नहीं था बंद था अमन के खिलाफ़, बंद था शांति के खिलाफ़, बंद था आम आदमी के खिलाफ़।
बिलकुल सौ आने सही बात कही आपने। मगर ये तो विरोधी होने का स्वाँग भर है जो हर दल जब सत्ता मे नही होता तो करता है जब अपनी बारी आती है तो सब कुछ ठीक ठाक हो ता है। बधाई इस सच के लिये।
आप की बात दमदार है किन्तु हमारे देश की राजनीति इतनी कलंकित हो गई है की अब उसे ठीक करने की कोशिश में हर किसी को परिणाम ही नजर नहीं आतें……. band तो हो चूका.. अब उसके नाम से रोने से कोई फायदा नही है… जिस नेता के मन में जो आता है वह वही करके दम लेता है…
बन्द करना तो उपाय नहीं ।