क्यों हमें धन के लिये कार्य करना पड़ता है ? क्या हमारे बुजुर्गों ने सही निवेश नहीं किया था ?

    समाज में देखा होगा कि नौकरी पेशा व्यक्ति केवल और केवल धन के लिये ही कार्य करता है, अगर वह कार्य करना बंद कर दे तो उसकी मासिक आय रुक जाती है, और उसकी जरुरतें पूरी नहीं हो पायेंगी।

    क्या गलत है ? मैं यह सोच रहा हूँ, मेरे दादा भी पैसे के लिये कार्य करते थे, मेरे पापा भी और अब मैं भी !! इसका मतलब कि जितना कमाया वह बहुत कम था ऐसा तो नहीं ?

    नहीं !! मुझे लगता है कि हमारे बुजुर्गों ने कमाया पर सही तरीके से निवॆश नहीं किया, जिसके कारण हमें आज भी पैसे के लिये कार्य करना पड़ रहा है, मैं बुजुर्गों को कोस नहीं रहा हूँ केवल अपनी बात रख रहा हूँ।

    अगर सही तरीके से निवॆश किया जाता तो मुझे अपना भविष्य चुनने की आजादी होती और मैं किसी थियेटर में कार्य कर रहा होता या कहीं नदी किनारे बैठकर कविता लिख रहा होता।

    आज भी वक्त है हमारे खुद के लिये कि हम चेत जायें और अपनी भविष्य की पीढ़ी को वो देने की कोशिश करे जो हमें नहीं मिला, कम से कम उनको तो धन के लिये कार्य नहीं करना पड़े और वे अपने मनोनुकूल अपनी राह चुन सकें नहीं तो उनकी भी जिंदगी केवल धन कमाने में निकल जायेगी।

    ये मेरे विचार हैं और आजकल ये प्रश्न बहुत ही तेजी से धाड़धाड़ करके दिमाग में कौंधता रहता है ।

17 thoughts on “क्यों हमें धन के लिये कार्य करना पड़ता है ? क्या हमारे बुजुर्गों ने सही निवेश नहीं किया था ?

  1. पूत कपूत तो का धन संचय ,पूत सपूत तो का धन संचय …
    यदि वंश नालायक हुआ तो धन का संचय व्यर्थ है और लायक हुआ तो वह खुद अर्जित कर ही लेगा
    किसी भी दशा में धन का संचय उचित नहीं है ..
    इशोपनिषद भी धन संचय की भर्त्सना करता है …
    भारतीय सनातन सोच धन संचय की नहीं है बल्कि विरक्ति भाव की है …
    मा गृधः कस्यस्वद्ध्नम ! यह कोई अपना तो है नहीं फिर संचय के लिए गृद्ध दृष्टि क्यों ?

  2. भाई हम आप की इस बात से बिलकुल भी सहमत नही… मेरे दादा करोड पति थे,मेरे पिता जी ने बहुत सारी जिन्दगी गरीबी मै गुजारी मेरे पिता जी सारी उम्र नोकरी करते रहे, मेरे दादा ने भी एक पेसा मेरे पिता जी को नही दिया, मेने भी कोई पेसा अपने पिता से नही लिया, लेकिन जो धन हम ने अपने अपने पिता से लिया वो सब से कीमती है, जिसे कोई चुरा नही सकता, लुट नही सकता, ओर वोही धन मै अपने बव्चो को भी दे रहा हु विरासत मै, बाकी मै अर्विंद जी से सहमत हुं

  3. @ अरविन्द जी – पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय… बात १६ आना सच है परंतु मैं संचय या निवेश का इसलिये पक्षधर हूँ कि जिससे हमारे बच्चे को अपना मनपसंदीदा काम करने की आजादी हो, उसे मन मारकर वह काम न करना पड़े जो वह करना ही न चाहता हो, यह रुढ़िवादी विचारधारा है।

    हमारे जितने भी पौराणिक ग्रंथ हैं और जो कह रहे हैं, वे निश्चित ही गलत तो नहीं कह रहे होगे परंतु काल और परिस्थितियाँ जिस तरह से बदलती जा रही हैं, जीवनशैली जिस तरह से परिपक्व होती जा रही है, उसी तरह से हमें कुछ चीजों को तो बदलना ही चाहिये।

    कपूत समाज उन्हें कहती है जो पैसा नहीं कमाते हैं और बुरी संगत में पड़ जाते हैं, सपूत समाज उन्हें कहती है जो पैसा कमाते हैं और अच्छी संगत में रहते हैं, परंतु पैसा कमाकर सपूत खुश न हो तो, केवल पैसे की मजबूरी में कार्य करकर और फ़िर पीढ़ी दर पीढ़ी वही चलते रहना और उक्त कहावत का उदाहरण देना सही नहीं होगा।

    अगर पूत के पास वित्तीय स्वतंत्रता होगी तो वह जिस क्षैत्र में कार्य करने की रुचि रखता है वह उसमें भी सफ़ल हो सकता है, पर सफ़लता भी तभी संभावित है जब उसे पूरे मन से कार्य करने को मिले।

    पहले पूत खुद अपने कैरियर का चुनाव नहीं करते थे, जो नियती में मिल जाता था वही नौकरी या धंधा कर लेते थे, कोई लक्ष्य नहीं था, परंतु अब समय बदला है, आज की युवा पीढ़ी लक्ष्यकेंद्रित है, उसे पता है कि उसका लक्ष्य क्या है।

    अगर तब भी आप मुझसे सहमत नहीं तो जरुर अपने घर के या पास के युवाओं से बात की जाये तो शायद आप सहमत हों।

  4. @ प्रवीण जी – धन संरक्षण किया जाना चाहिये पर उसका उपयोग कैसे किया जाता है, अकर्मण्यता उसे पर निर्भर करती है।

    @ताऊ जी – बहुत दिनों बाद आपका आगमन हुआ, धन्यवाद आपके आशीर्वाद के लिये।

    @ सुब्रमनियम जी – धन्यवाद।

  5. @ राज जी – सभी जगह और सभी परिवारों में अपनी अपनी सोच होती है, अपने उसूल होते हैं, जिन्हें तोड़ना किसी को अच्छा नहीं लगता है, परंतु आप केवल इतना सोचिये कि क्या आप वह कार्य कर रहे हैं जिसे करना चाहते हैं, क्या आज तक कभी भी कार्य पर जाते समय यह लगा है कि अगर पैसे की मजबूरी न होती तो आज कार्य पर जाने की इच्छा नहीं थी, तो समझ लीजिये कि आप अपने मन का कार्य नहीं कर रहे हैं। ऊपर की मेरी टिप्पणी को पढ़ियेगा।

    बस इतना कहना चाहता हूँ कि अगर युवा पीढ़ी को वित्तीय स्वतंत्रता हो तो वह कमाल कर सकती है, नहीं तो वो ऐसे ही बोझ से लद कर खत्म हो जायेगी।

  6. @ योगेन्द्र जी – ब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद, आते रहिये अपने विचारों से अवगत करवाते रहिये।

  7. मुझे लगता है कि‍ कमजोरी खुद हम में ही होती है… सबसे बड़ी कमजोरी अपने हि‍साब से जीवन जीना ना सीख पाने की। यदि‍ हम अपनी इच्‍छाओं के बारे में जानते समझते हैं तो हम जान सकते हैं कि‍ हमें कि‍तना धन कमाना है।
    हमारी परेशानी यह है कि‍ हम अपने आसपास के समाज के दबाव से भी संचालि‍त हैं। हमें साइकि‍ल की भी जरूरत ना हो पर लोगों की देखा-देखी या तुलना करने या अपने अहं के पोषण के लि‍ये हम हवाई जहाज तक कि‍ इच्‍छाएं पालने लगते हैं।

    हम मध्‍यमवर्गीय परि‍वार वालों को देखना चाहि‍ये कि‍ कि‍स तरह एक मजदूर हमसे 10-20 गुना कम वेतन में गुजर बसर कर लेता है, गांव भी हो आता है त्‍यौहार भी मना लेता है।

    कोई हमें नहीं कह रहा कि‍ हम जि‍न्‍दगी भर नौकरी करें या दुकान पर बैठे बैठे बवासीर पालें, पर जरूरतों और व्‍यर्थ खर्चों में भेद ना कर पाना हमारी समस्‍या है।

    ये तो सरासर गलत है कि‍ हम कि‍सी से धन सम्‍पत्‍ति‍ की अपेक्षा रखें, या कि‍सी भी अन्‍य प्रकार की अपेक्षा… क्‍योंकि‍ कि‍सी की मर्जी आपका अधि‍कार कदापि‍ नहीं है।

    खुद को जि‍न्‍दगी भर कमाने की भाड़ में झोंकने की वजह खुद हम ही हैं।

    आदरणीय ये सब आपके बारे में ही नहीं खुद हमारे बारे में भी अक्षरक्ष: सत्‍य है।

  8. हम हैं सबसे बड़े पाखंडी! बात करेंगे पैसा हाथ का मैल है, पैसे का संचय मत करो। किन्तु हमारे देश में कितने लोग परोपकार में पैसा लगाते हैं? किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय, किसी छात्रवृत्ति के लिए पैसा देते हैं? यह तो हमारी संस्कृति में ही नहीं है।
    हम तो संसार में सबसे निराले हैं। हमारी क्या बात!
    विवेक, आपकी बात से बहुत सीमा तक सहमत हूँ। इसलिए नहीं कि हम बच्चों के जीवन यापन का पूरा प्रबन्ध करें किन्तु इसलिए कि वे लम्बा समय लगाकर भी अपनी पसन्द का काम खोज लें। कोई हड़बड़ी न हो। परन्तु इसका प्रभाव बिल्कुल विपरीत भी पड़ सकता है। बच्चे यह भी सोच सकते हैं कि उन्हें कुछ भी काम नहीं करना।
    घुघूती बासूती

  9. @ राजे शा जी – बिल्कुल सही बात की है कि हम लोग शोशेबाजी के शिकार हैं,

    यह गलत है कि हम किसी से धन संपत्ति की अपेक्षा रखें, पर अपने माँ बाप से तो नहीं, अगर अपने आप को बाप की जगह रख कर सोचें कि बेटा कुछ ऐसा काम करना चाहता है जिसमें ज्यादा कमाई शुरुआत में नहीं है, परंतु बाद में जम जायेगा। परंतु वह ऐसा कार्य करने की सोच ही नहीं पाता क्योंकि उसकी जिम्मेदारियाँ उसके साथ होती हैं। और वह मन मारकर कुछ ओर जिंदगी भर करता जाता है।

    बिल्कुल सही कहा है कि "खुद को जि‍न्‍दगी भर कमाने की भाड़ में झोंकने की वजह खुद हम ही हैं।"

  10. @ घुघूती जी – बात सही कही है, कि हम सब हैं पाखंडी, भागते हैं पैसे के पीछे और बोलते हैं कि पैसा हाथ का मैल है।

    आपकी सहमति देखकर सुखद आश्चर्य हुआ क्योंकि ये पीढ़ियों की मानसिकता का अंतर है, और यह मैं जिस प्रबंधन की बात कर रहा हूँ वह केवल उन्हीं लोगों के लिये बिल्कुल सही है जो अपना सपना पूरा करना चाहते हैं, ये अकर्मण्य लोगों के लिये नहीं हैं, जिन्हें केवल पैसा और आजादी बिना मेहनत के चाहिये। अकर्मण्यता न आये उसके लिये कुछ उपाय भी करना होंगे।

  11. आपने धन की बात करते करते
    सच्‍चे मन की बात कर दी
    राह भी आप ही सुझायेंगे
    हम तो बस ऑनलाईन खाते के जरिए
    अपना सारा कमाया धन
    आपके पास पहुंचायेंगे।

    उसके बाद कविता, व्‍यंग्‍य और
    हिन्‍दी ब्‍लॉग लिखने के लिए
    दस दस कंप्‍यूटर लेकर बैठ जायेंगे
    पर नदी किनारे नहीं
    समुद्र के किनारे भी नहीं
    आसमान के नीचे भी नहीं
    क्‍योंकि बारिश का खतरा है
    जिसे व्‍यंग्‍य तो झेल सकता है
    कविता भी झेल सकती है
    झेल सकती है कविता भी
    पर कंप्‍यूटर नहीं झेल सकता है
    पर उम्‍मीद है तकनीक विज्ञ
    जल्‍दी ही बिस्‍लेरीवॉटरप्रूफ कंप्‍यूटर बनायेंगे
    और हमारी तमन्‍नाओं को परवान चढ़ायेंगे।

  12. अपने बच्चों के लिए धन संचय करते रहेंगें तो अपना वर्तमान दुखद बना लेंगे |यह सोच पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही तो सब आने वालों के लिए ही काम करते रहेंगे|मेरा सोचना है कि वर्तमान में ही जीना आ जाए किसी भी चीज़ की कमी नहीं खलेगी |रही बात मन के अनुसार काम करने की तो जहाँ चाह होती है वहाँ राह भी निकल ही आती है|
    सारी दुनिया में नज़र डाल कर देखिये जिनके बाप दादा इतना कमा गए हैं कि वोह कुछ काम न भी करें तो सारी जिंदगी आराम से गुज़ार सकते हैं लेकिन फिर भी वोह सब भी धन के लिए ही काम कर रहे हैं |

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