कभी कभी सिगरेट से नफ़रत होती थी, कि ये कहीं अंदर तक नुकसान कर रही है, पर तन्हाई का एक अकेला दोस्त केवल और केवल सिगरेट ही थी, कहीं अगर २ मिनिट भी इंतजार करना होता तो फ़ट से एक सिगरेट सुलगा लेते और कसैला धुआँ मुँह में लेकर अंदर अंतड़ियों तक ले जाते, पता नहीं अंदर अंतड़ियों की क्या दशा होती होगी, जब फ़क से इतना सारा धुआँ इतनी रफ़्तार से उनमें जाता होगा।
कई बार तो गुस्सा भी आता कि क्यों में इस सड़ी सी चीज का गुलाम हूँ जो कि सफ़ेद कागज में लिपटी हुई मौत है, जिसमें तंबाखू और पता नहीं क्या कैमिकल मिला होगा, पर बस केवल अपनी जिद और अपना मन की करने के लिये पिये जा रहा था मैं तो, कोई मजा नहीं, कोई कसैलापन नहीं, सब साधारण सा हो रहा था, पर सिगरेट पीते देखकर शायद दुनिया को लगता होगा कि मैं कोई असाधारण कार्य कर रहा हूँ, मुझे कभी नहीं लगा !!
जो लोग आज भी सिगरेट पीते हैं, मैं उन्हें देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि अभी तक ये अपनी कमजोरी से जीत नहीं पाये हैं, सुबह चाय के साथ तलब, फ़िर ऑफ़िस पहुँचते ही चाय के साथ तलब, फ़िर थोड़ा काम किया न किया कोई सिगरेटिया मिल गया तो उसका साथ निभाने की तलब, बस इस तरह सिगरेटियों को बुरा न लग जाये इसके लिये सिगरेट पीते जाना और अपने जीवन के नित्यकर्म में शामिल कर लेना, और धीरे धीरे अपनी कुंठा को दबाना।
सिगरेट पीना केवल उत्कंठा से जनित होती है, जो कि किसी भी कारण से हो सकती है, गम को दबाने का बहाना देना या खुशी को जाहिर करने का या फ़िर दोस्तों या लड़कियों के सामने झांकीबाजी जमाने का, बहुत सारे कारण हो सकते हैं, जब अकेले सिगरेट पीते हैं तो ४ कश लगाने के बाद सिगरेट जल्दी खत्म होने का इंतजार और फ़िल्टर तक आने के पहले ही सिगरेट को अपने पैरों तले रौंद कर चल देते हैं।
कई सिगरेटिये देखे हैं, जो सिगरेट पैर से नहीं बुझाते, बोलते हैं कि पवित्र अग्नि है, वो सिगरेट के ठूँठ को दीवार से रगड़ कर बुझा देते हैं, कुछ नाली में डालकर चल देते हैं, तो कुछ ऐसे ही जलती हुई सिगरेट के ठूँठे को फ़ेंककर चल देते हैं।
सिगरेट पीने वाले अपने होठों की भी बहुत परवाह करते हैं कि फ़िल्टर तक आने के पहले ही फ़ेंक देते हैं, इस कार्य में कोई लापरवाही नहीं बरतते, नहीं तो फ़िल्टर तक याने कि ठूँठ तक सिगरेट पीने से होठ काले हो जाते हैं, कईयों के देखे हैं हमने तो। आखिर १०० डिग्री का तापमान होता है।
अगर कोई जरुरी कार्य कर रहा होता है और बीच में कोई मित्र फ़ोन करकर बोल दे कि चलो एक सिगरेट साथ में पी लें तो वह सब जरुरी कार्य छोड़कर चल देता है संगति देने, ऐसे सिगरेटिये दोस्तों की दोस्ती भी बहुत पक्की होती है जैसे बिल्कुल लंगोटिया यार, या दाँतकाटी रोटी।
मालूम जान पड़ता है के रस्तोगी जी इस मुई सिगरेट से आज़ाद हुए!
बाऊ जी, मुझे बेहद ख़ुशी है!
आशीष रस्तोगी
Congratulations!!! for your independence.
jhamaajham.
हमने तो किसी ज़माने में एक बार पी थी… फिर छोड़ दी…
सिगरेट निसंदेह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है
सच, सिगरेट की लत भी अजब है. हमें मुक्त हुए ६ बरस हो लिए अब तो!!
तब तो नशा ही कहा जायेगा इसे।
सिग्रेट छोड़ पाना सबके बस की बात नहीं। बहुत इच्छा शक्ति की जरूरत है।
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
अगर मैं लिक से हट कर काम करते कुछ ब्लाग्स की बात करूँ , तो यह ब्लाग आदरणीय है ! शुभकामनायें विवेक जी !
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सिगरेटियों की मानसिकता को आपने सलीके से बयान किया है।
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स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?
मुझे तो लगता है कि जैसे हम स्वतन्त्रता दिवस मनाते हैं आपको भी मुक्ति दिवस मनाना चाहिए। जन्मदिन या वैवाहिक वर्षगाँठ की तरह इसे भी परिवार के साथ घूम फिर कर मनाना चाहिए। इस दिन आप पूरी तरह से अपने व अपने परिवार के लिए जीने को मुक्त हुए। बधाई।
घुघूती बासूती
मैं तो सिगरेट से पूर्ण रुप से मुक्त रहा हूँ और चाहकर भी कभी पी नहीं पाया ।