विषादों से ग्रसित जीवन,
रुधिर के थक्के
जीवन में जमते हुए,
खुली हवा की घुटन,
थक्के के पीछे
नलियों में, धमनियों में,
धक्के मारता हुआ
रुधिर,
थक्के के
निकलने का इंतजार,
खौलता हुआ रक्त,
और
विषादित जीवनमंच,
रेखाएँ खिंचती हुई
हटती हुईं,
जाल बुनता हुआ,
गहराता हुआ,
ठहरा सा
गुमसुम रक्त शिराओं में,
विषादों से लड़ता हुआ,
देखना है
रक्त की विजय !!!
काफी खूबसूरत प्रतिमानों का इस्तेमाल दिखा कविता में.. रक्त और थक्के को जीवन और उसकी उलझनों से जोड़ना सुन्दर प्रयोग लगा.. आभार और बधाई.
आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ….वहाँ आपका स्वागत है ..
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी कविता।
हिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
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गुमसुम रक्त शिराओं में,
विषादों से लड़ता हुआ,
देखना है
रक्त की विजय !!
वाह !…क्या लिखते है आप !…अद्भुत !
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रक्त के थक्के , विषादों से लड़ते हुए
देखना है रक्त की विजय …
सुन्दर !
सुन्दर बिम्बों से लैस जीजिविषा की कविता