क्यों उदास है ये जिंदगी
पलकें भारी हैं
होश नहीं है,
जीवन जीवन नहीं है
पर फ़िर भी
इस उदासी भरी जिंदगी को,
जीते जा रहे हैं
अब शायद कुछ बचा न हो
पर फ़िर भी,
इंतजार कर रहे हैं
मन व्याकुल है
आत्मा कष्ट में है,
हर राह में कंटक बिछे हैं
अंतर बीमार है
मन अशांत है
जीवन में
ध्यान छिन्न भिन्न है
अत्र तत्र यत्र सर्वथा
अवांक्षित से विचार
न कोई ओर न कोई छोर
जीवन की डोर
फ़िसली जा रही है
राहें कठिन होती जा रही हैं
संबल अंतहीन के अंत तक
पहुँचा लगता है
हर चीज जो जीवंत है
मेरे लिये उसका अंत ही दिखता है,
अनमोल है सब पर,
मेरे जीवन का मोल और
हर वस्तु का मोल खत्म सा है,
गीता ज्ञान और मर्म
सब निरापद सा लगता है
चहुँ और अवसाद के
घिरे हुए से बादल हैं,
कहीं कोई रोशनी और
उम्मीद दूर दूर तक नहीं है
बस जीवन अवसादपूर्ण है
कैसे इसकी थाह लूँ
गंगा में या हिमालय में
खोज रहा हूँ।
जबरदस्त कविता लिख दिए हैं भाई -बहुत खूब !
अंतर बीमार है
मन अशांत है
……………………
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
मन छूने वाले शब्द चुने हैं आपने……
मन की कशमक्श का सुन्दर चित्रण। बधाई।
अन्तः को राह कौन दिखाये, अन्तर्यामी।
रानी विशाल जी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी –
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ……अशांत मन की व्यथा को निर्बाध भाव मिले आपकी कविता में …..आभार
यहाँ भी पधारें
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
कैसे इसकी थाह लूँ
गंगा में या हिमालय में
खोज रहा हूँ
जीवन की जिजीविषा को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है .
मन व्यथित कर देने वाली कविता…आशा है यह एक ख़ास मूड की उपज होगी…और अब मूड बदल गया होगा…कितना भी कठिन हो जीवन,जीना तो पड़ता ही है…चाहे कितनी ही जद्दोजहद करनी पड़े…इसलिए हंसी-ख़ुशी पर ही ध्यान केन्द्रित हो तो बेहतर…
कविता उदास है क्योंकि जिसने उसे लिखा वो लेखनी उदास है.. उस लेखनी में उदासी उतरी उस हाथ की जिसने उसे लिखा और उस हाथ में उस व्यक्ति की जो उस हाथ का मालिक है.. बस इसलिए ये कविता उदास है लेकिन जो भी हो एकदम झक्कास है.. 🙂
रात जितनी ही संगीन होगी सुबह उतनी ही रंगीन होगी…॥
गंगा और हिमालय के बजाय आपने यह सही रास्ता अपनाया, ब्लॉग पोस्ट का.
महाराज बहुत ज्यादा गहराई में तो नहीं चले गए….. रुकिये आ रहे हैं आज….
गहराई से वापस आपको धरातल पर ना ले आए तो फ़िर कहियेगा……
गीता ज्ञान और मर्म
सब निरापद सा लगता है
…bahut sundar aur saargarbhit abhivyakti…..
http://sharmakailashc.blogspot.com/