ओह्ह..
तो तुम आ गये
कितना इंतजार करवाया
कहाँ छिपे थे,
बहता नीर भी रुक ही गया था
तुम्हारे लिये, पता है….
उड़ते हुए बदरा बौरा से गये थे
तुम्हारे लिये, पता है….
रुकी थी वो गौरैया भी चहचहाने से
तुम्हारे लिये, पता है….
हवा मंद मंद सी हुई थी,
तुम्हारे लिये…
अंधकार गहराने से डर रहा था
तुम्हारे लिये..
बस तुम आओ… तुम्हारे लिये
तुम्हें तुमसे मिलाने के लिये॥
वाह पूरी कायनात को था उनका इंतज़ार …वो आएं और कयामत हो …क्या खूब लिखा है आपने विवेक भाई ..एकदम उम्दा ..कमाल
सुन्दर अभिव्यक्ति…
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में ….बड़ा छछलोल बाड़ऽ नऽ, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
अच्छे काव्य बिम्बों का इस्तेमाल किया है आपने
अति सुंदर रचना, धन्यवाद
आधुनिक छायावाद।
Praween jee se sahamat
उत्कृष्ट…लेकिन अहसान तो मानें…
बस तुम आओ… तुम्हारे लिये
तुम्हें तुमसे मिलाने के लिये
-ये क्या बात हुई 🙂
सुंदर प्रस्तुति
sunder abhivykti.
"बस तुम आओ तुम्हारे लिये,
तुम्हें तु्मसे मिलाने के लिये"
ये दो लाईनें विशेष लग रही हैं पर मेरी समझ हारने को राज़ी है।