ओह्ह.. तो तुम आ गये … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

इंतजार

ओह्ह..

तो तुम आ गये

कितना इंतजार करवाया

कहाँ छिपे थे,

बहता नीर भी रुक ही गया था

तुम्हारे लिये, पता है….

उड़ते हुए बदरा बौरा से गये थे

तुम्हारे लिये, पता है….

रुकी थी वो गौरैया भी चहचहाने से

तुम्हारे लिये, पता है….

हवा मंद मंद सी हुई थी,

तुम्हारे लिये…

अंधकार गहराने से डर रहा था

तुम्हारे लिये..

बस तुम आओ… तुम्हारे लिये

तुम्हें तुमसे मिलाने के लिये॥

11 thoughts on “ओह्ह.. तो तुम आ गये … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

  1. वाह पूरी कायनात को था उनका इंतज़ार …वो आएं और कयामत हो …क्या खूब लिखा है आपने विवेक भाई ..एकदम उम्दा ..कमाल

  2. उत्कृष्ट…लेकिन अहसान तो मानें…

    बस तुम आओ… तुम्हारे लिये
    तुम्हें तुमसे मिलाने के लिये

    -ये क्या बात हुई 🙂

  3. "बस तुम आओ तुम्हारे लिये,
    तुम्हें तु्मसे मिलाने के लिये"

    ये दो लाईनें विशेष लग रही हैं पर मेरी समझ हारने को राज़ी है।

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