अर..रे
आओ ना ! क्यों इतनी दूरी तुमने बना रखी है.
हाँ तुम्हें पाने के लिये बहुत जतन करना पड़ेंगे
हाँ बहुत श्रम करना पड़ेंगे
करेंगे ना !
तुम्हें पाने के लिये दुनिया जहान से लड़ना पड़ेगा
शायद युद्ध भी करना पड़ेगा
करेंगे ना !
लड़ेंगे मरेंगे पर तुम्हें पाकर ही रहेंगे
तुम कितनी भी दूरी बनाओ, हम पास आकर ही रहेंगे..
हमे तो लगता है यह कविता खुशी को सम्बोधित है या ज़िन्दगी को या …. अब बता भी दो भाई ?
sharad jee ko bataa hee deejiye sir
सही है । ऐसा ही डिटरमिनेशन होना चाहिए ।
होंगे कामयाब…
होंगे कामयाब…
एक दिन
ओहो मन में है विश्वास…. पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन.
(और कुछ लिखें की इत्ता काफ़ी है विवेक भाई)
drud nishchy hee to chahiye kuch bhee hasil kiya ja sakta hai…..
vishvas bharee kavita acchee lagee.
drud nishchy hee to chahiye kuch bhee hasil kiya ja sakta hai…..
vishvas bharee kavita acchee lagee.
बहुत जबरदस्त जिद है जी, लेकिन किस के लिये है यह जिद…. जिन्दगी, धन या महबुबा? कोन है वो?
कहीं आप कश्मीर की बात तो नहीं कर रहे ?
न न …कुछ मत करिये यूँ ही आ जायेंगे टहलते हुए किसी दिन..कल्पनाओं के वॄक्ष पर भी…कोई गीत गाने…
यह हुयी न कोयी मर्दों वाली बात !
जबरदस्ती का जबरद्स्त रूप से रेखांकित करती कविता मन से लिखी गई है, जबरदस्ती नहीं। रस्तोगी जी को मुबारक बाद्।
मैं कहीं कवि न बन जाऊँ, तेरे प्यार में ऐ कविता।
सही मे आप तो अच्छे कवि बन गये। बधाई।
हौसला नहीं खोना चाहिए…
क्रांतिकारी तेवर हैं इस कविता के.