विद्यालयों में बच्चों को सजा देना कितना उचित ? मुझे भी अपने बेटे की चिंता हो रही है… क्या आपको है..? (Molestation in School)

आज बुद्धु बक्से पर एक शो देख रहा था, जिसमें एक बच्चे के अभिभावक बैठे हुए थे, उनकी लड़की जो कि मात्र १२ वर्ष की थी, ने विद्यालय में मिली सजा से आत्महत्या कर ली। अभिभावकों ने बताया की उनकी बेटी को किसी कारण से शिक्षक ने मारा पीटा और बेईज्जती की जिससे उनकी बेटी विद्यालय जाने को भी तैयार नहीं थी। परंतु उन्होंने समझा बुझाकर विद्यालय भेजा और उसने आकर दोपहर में घर पर आत्महत्या कर ली।

जब अभिभावकों ने विद्यालय में जाकर विरोध दर्ज करवाया तो प्रबंधन का रवैया भी रुखा ही रहा और आरोपी शिक्षक पर कोई कार्यवाही नहीं करने की बात की, और उल्टा उनकी बेटी और उनको भला बुरा कहा।

विद्यालयों को बच्चों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये, किसी भी सजा का उनके मन पर क्या असर होता है, यह भी विद्यालय को सोचना चाहिये। पढ़ाने वाले शिक्षक पुरानी पीढ़ी के और पढ़ाने का तरीका भी पारंपरिक होता है, जब कि बच्चे आधुनिक परिवेश में रहकर उन चीजों से नफ़रत करते हैं। आज की बाल पीढ़ी बहुत जागरुक है, और पहले से बहुत ज्यादा संवेदनशील भी। आज के बच्चों को बहुत ही व्यवहारिक तरीके से समझाना चाहिये।

क्या विद्यालय पर प्रशासन कोई जाँच करता है, निजी विद्यालय अपने बच्चों को कैसे पढ़ा रहे हैं, उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, कैसे उनको व्यवहारिक शिक्षा दे रहे हैं। निजी विद्यालय आर.टी.आई. (Right for Information) के अंतर्गत आते हैं, पर फ़िर भी पारदर्शितापूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।

विद्यालयों के इस असंवेदनशील रवैये से आजकल के अभिभावक कैसे निपटें ? अगर किसी को जानकारी हो तो कृप्या बतायें, जिससे सभी अभिभावक जागरुक हों।

[मेरा बेटा भी पिछले दो दिनों से विद्यालय न जाने की जिद कर रहा है, कुछ भी पूछो तो बोलता है कि “क्या बेईज्जती करवाने जाऊँ”, कल मैंने बहुत प्यार से पूछा तो कोई भी कारण स्पष्ट नहीं हुआ, और विद्यालय में पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला, अब विद्यालय का वह वक्त जो मेरे बेटे और विद्यालय के शिक्षकों के मध्य गुजरता है, और उस वक्त में वाकई क्या हो रहा है, मुझे पता ही नहीं है, और इसलिये मेरी भी चिंता बड़ती जा रही है, पर अब कुछ तो तरीका ईजाद करना ही होगा।]

17 thoughts on “विद्यालयों में बच्चों को सजा देना कितना उचित ? मुझे भी अपने बेटे की चिंता हो रही है… क्या आपको है..? (Molestation in School)

  1. अध्यापक भी बहुत बार घर के झगड़ों या कभी कभी अपनी किसी ना कामयाबी का गुस्सा छात्रों पे निकलते हैं. इसके लिए अभिभावकों को जागरूक होना पड़ेगा. अच्छा विषय चुना है.

  2. "क्या बेईज्जती करवाने जाऊँ"?
    क्या अध्यापक के मारने या डांटने से बेइज्जती हो जाती है?
    हमने तो बहुत मार खाई स्कूल में, कभी ऐसा नहीं लगा… 🙂 फ़िर नई पीढ़ी "अध्यापक की मार" के प्रति इतनी संवेदनशील क्यों है?
    =========
    मैं अध्यापक द्वारा "हल्की मार" के पक्ष में हूं…।

    हल्की मार का स्तर = बच्चे को कोई स्थाई शारीरिक नुकसान न हो।

  3. मैं तो अपने बच्चों के स्कूल में खुद कहकर आया हूँ कि इन्हें होमवर्क ना करने या गलती करने पर थोडी सजा भी दिया करें। लेकिन वहां देते ही नहीं हैं।

    आपके बच्चे के ये शब्द चिंतनीय हैं, स्कूल में जाकर पता करें। उसने ऐसा क्यों कहा। प्यार से बार-बार पूछने की कोशिश करें।

    प्रणाम

  4. थोड़ी बहुत सजा तो अनिवार्य है पर इतनी न हो के बच्चा भयभीत रहे। इससे उसके मानसिक विकास पर भी असर पड़ता है। शिक्षकों में मानवता का अभाव भी चिंतनीय है।

    विषय अच्छा है। गंभीर चर्चा मांगता है।

  5. नमस्कार विवेक जी, ये मेरा प्रथम प्रयास है, अगर कोइ गल्ती हो तो माफ़ करे ।
    आप ने जो विषय चयनित किया है वह काफ़ी महत्वपूर्ण है,और मेरा मानना है कि हम सब को मिल जुल कर इस के खिलाफ़ एक आंदोलन की शुरुआत करनी चाहिये। बच्चे बहुत कोमल दिल वाले होते है और शारीरिक रुप से कोइ भी सज़ा उनके मन मे काफ़ी गहराई से जाती है, जो उनका ना केवल शैक्षिक बल्कि मानसिक विकास भी बाधित करती है। अगर कोइ गलती हुई भी है तो भी किसी भी शिक्षक द्वारा बच्चे को शारीरिक रुप से कोइ भी सज़ा देने की कोइ शैली होनी ही नही चहिये।
    यहा विदेश मे शिक्षक द्वारा बच्चे को शारीरिक दंड देना अपराध है और मेरा मानना है कि अगर हम सब मिल कर प्रयास करे तो ये हमारे अपने देश मै भी मुमकिन है। यहा शिक्षक बच्चे को शारीरिक दंड की जगह उसे अलग अलग तरीको से किसी काम को सही तरह से करना सिखाते है और सुनिश्चित करते है कि वो गल्ती फिर से न हो।

  6. विवेक जी

    बिल्कूल सही कहा आज के बच्चे पहले से कही ज्यादा संवेदनशील है और बातो को कही ज्यादा समझते है और दिल से लेते है | हम उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते है मेरी बच्ची अभी मात्र साढ़े तीन साल की एक बार मैंने उसको उसके दोस्तों के सामने डाट दिया वो बच्ची जिस पर मेरी डांट का या तो असर नहीं होता था या यु ही जोर से रोने का नाटक करती थी वो उस समय चुपचाप आँखों में आँसू लेकर खड़ी रही और बार बार तिरक्षी नजरो से अपने दोस्तों को देखती रही | ये देख कर मुझे बहुत ही ख़राब लगा की मैंने गलत काम कर दिया उसे ये बात इनसल्टिंग लग रही है | उसके बाद हमेसा मै इन बातो का ख्याल रखती हु | उसके पहले मै सोच भी नहीं सकती थी की इतनी छोटी बच्ची बेईज्जती जैसी बातो को जानती भी होगी |

    आप के बच्चे के लिए बोलू तो कभी कभी बच्चे अपने माँ बाप को वो बाते नहीं बताते है जितना की अपने दोस्त से या कई बार तो उसके मम्मी पापा या पड़ोस की कोई दीदी या अपनी दीदी , भईया बुआ आंटी को बताते है | इसलिए पता कीजिये की वो ज्यादा समय किसके साथ गुजरता है या बाते करता है उसी के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उससे बात जानने का प्रयास कीजिये | कई बार बाते काफी गंभीर होती है समय रहते परिवार को पता चल जाये तो हम स्थिति को संभाल सकते है | और आगे की उसकी बातो को जानने के लिए आप उसी व्यक्ति से टच में रह सकते है | पर ध्यान रखियेगा की बच्चे को कभी ना पता चले की उसकी बाते आप तक पहुच रही है |

  7. विवेक जी बहुत अच्छा विषय उठाया है. आजकल बच्चे संवेदनशील हो गए हैं…पर क्यों? क्या कभी किसी ने यह सोचा ? समय बदल गया है ,परिवार बदल गए हैं,रहने का तरीका बदल गया है तो जाहिर है कि बच्चों की परवरिश का तरीका भी बदला है.अब बच्चे घर में भी इतनी दांट या मार नहीं खाया करते जितनी पहले खाया करते थे तो जरुरी है कि परंपरागत शिक्षा का तरीका भी बदलना चाहिए.
    आप जाकर स्कूल में टीचर्स और स्टाफ से बात कीजिये अगर स्कूल अच्छा है तो मुझे उम्मीद है कि जरुर फायेदा होगा.

  8. मैं बच्चों को पीटे जाने के सख्त खिलाफ हूँ, क्यूंकि बचपन मे स्कूल मे तथा घर मे पड़ने वाली मार की वजह से मेरा आत्मविश्वास बहुत कम हो गया था, जिसकी वजह से मुझे आज भी कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है.
    मैं तो शिक्षा के क्षेत्र मे आया ही इसलिए हूँ जिससे बच्चों के साथ होने वाले इस तरह के व्यवहार को बदल सकूं. आप तुरंत प्रिंसिपल से जाकर बात कीजिये तथा यदि कोई संतोष जनक उत्तर नहीं मिलता है तो किसी दुसरे स्कूल मे दाखिला दिलवाइये, यह मुद्दा parent meeting मे भी उठाइये.
    मुझे ताज्जुब है कि यहाँ पर कुछ लोगो ने लिखा है कि उन्होंने खुद ही अध्यापक से कह रखा है कि बच्चे को गलती करने पर मारिये, ऐसे लोगो को अपने दिमाग का इलाज करवाने की जरूरत है. आप हिंसा करेंगे तो बच्चे या तो विरोधी हो जायेंगे या फिर गुमशुम रहने लगेंगे दोनों ही स्थितियां गंभीर है, याद रखिये आगे का समाज इन बच्चों को ही चलाना है |

    सजा देने के तरीके मे गृहकार्य को पुनः करके लाना या फिर बिषय से सम्बंधित प्रोजेक्ट थमा देना जैसी विधियाँ शामिल होनी चाहिए, ना कि मुर्गा बनाना या बेंत से पीटना. मुझे पता है कुछ अभिभावक बोलेंगे कि बच्चा अगर विरोधी हो जायेगा तो हम और मारेंगे, ऐसी स्थिती मे बच्चा अपने मन मे ठान लेता है "जितना मरना चाहो मार लो, इससे ज्यादा कर भी क्या सकते हो" |

    मे इस बिषय मे बहुत ही जल्द एक पोस्ट लिखूंगा, शायद उसमे अपने विचार पूरी तरह से लिख पाऊँ

    1. सर बिलकुल सही कहै रहे हैं आप, मैं आपके साथ हूँ |

      बच्चों को मारना बहोत गलत है | जो आपने इलाज बताए हैं वो भी सही हैं |
      अगर टीचर बच्चों को मारें गे तो हम उन्हें स्कूल से निकलवा देंगे |

  9. आजकल स्कूलों में बच्चे को ईडियट या दफर कहने पर भी अभिभावक टीचरों के सर पर चढ़ जाते हैं. पच्चीस साल पहले हमारे शिक्षक हमें सिर्फ मारते नहीं थे, वे जो करते थे उसे हम 'ठुकाई' या 'सुताई' कहते थे. बड़ा कठिन समय था वह.
    आपने पोस्ट के शीर्षक में molestation शब्द क्यों लिखा है? इसका अध्यापकों की मार से क्या लेना? अब यह शब्द केवल कामोत्पीड़न के लिए ही प्रयुक्त होता है.

  10. जब हमलोग विद्यार्थी थे , शिक्षकों द्वारा बुरी तरह मारपीट आम बात थी ..मगर कभी नहीं सुना कि किसी विद्यार्थी ने आत्महत्या कर ली …वे लोंग गुरुजन को माता-पिता की तरह ही सम्मान देते थे और उनकी मार पीत को भी सामान्य रूप में स्वीकार कर लेते थे …
    इससे आगे शिखा से सहमत हूँ कि आजकल हमलोग बच्चों को घर में भी नहीं डांटते हैं , इसलिए उन्हें ये सब सहने की आदत नहीं है …समय के साथ पालन पोषण के तरीके बदले हैं तो शिक्षा देने में भी परिवर्तन अपेक्षित है ..!

  11. Its my humble request please take your child to child psychologist immediately

    sodomization is in many forms not just physical

    please dont waste time in thinking and dont go by the fact that he is just a child

    i hope you understand the gravity of the situation

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