बस बहुत हुआ… मेरी कविता.. विवेक रस्तोगी March 11, 2011कविता, मेरी लिखी रचनाएँमेरी कविता, मेरी जिंदगी, मेरी पसंदVivek Rastogi Share this... Facebook Pinterest Twitter Linkedin Whatsappबस बहुत हुआ, जीवन का उत्सव अब जीवन जीने की इच्छा क्षीण होने लगी है जीवंत जीवन की गहराइयाँ कम होने लगी हैं अबल प्रबल मन की धाराएँ प्रवाहित होने लगी हैं कृतघ्नता प्रेम के साथ दोषित होने लगी है
उसके हाथों मे रहेहर संयोग वियोगखुशी खुशी से जी लियोरब की इच्छा भोगफिर भी निराशा अच्छी नही। चलते रहने का नाम जीवन है। शुभकामनायें। Reply
bahut sundar rachna, badhayi sweekar kare.. ————– मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे."""" इस कविता का लिंक है :::: http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html विजय Reply
समय का फेर ही है..
मन की लहर- गुजर जायेगी…
अरे ये क्या
जै बम भोले
ऐसा होता है कभी कभी या यूँ कहे अक्सर.
जीवन गंगा बही चले,
एक वेदना बनी रहे।
उसके हाथों मे रहे
हर संयोग वियोग
खुशी खुशी से जी लियो
रब की इच्छा भोग
फिर भी निराशा अच्छी नही। चलते रहने का नाम जीवन है। शुभकामनायें।
शुभ शुभ बोलिए जम कर होली खेलिए इस बार
होली के मौसम में यह बैराग-भाव और वह भी इस उम्र में। आने आप को टटोलिए। सब ठीक हो जाएगा।
bahut sundar rachna, badhayi sweekar kare..
————–
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय