बस बहुत हुआ… मेरी कविता.. विवेक रस्तोगी

बस बहुत हुआ, जीवन का उत्सव

अब जीवन जीने की इच्छा

क्षीण होने लगी है

जीवंत जीवन की गहराइयाँ

कम होने लगी हैं

अबल प्रबल मन की धाराएँ

प्रवाहित होने लगी हैं

कृतघ्नता प्रेम के साथ

दोषित होने लगी है

9 thoughts on “बस बहुत हुआ… मेरी कविता.. विवेक रस्तोगी

  1. उसके हाथों मे रहे
    हर संयोग वियोग
    खुशी खुशी से जी लियो
    रब की इच्छा भोग
    फिर भी निराशा अच्छी नही। चलते रहने का नाम जीवन है। शुभकामनायें।

  2. bahut sundar rachna, badhayi sweekar kare..

    ————–

    मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
    आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
    """" इस कविता का लिंक है ::::
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
    विजय

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