तुम्हारे लिये, तुम कभी गुलाब होती थीं…. मेरी कविता… विवेक रस्तोगी

तुम कभी

गुलाब होती थीं

तुम कभी

नरम दिल होती थी

तुम कभी

बहुत प्यारी होती थी

तुम कभी

जन्नत होती थी

तुम कभी

खुशियों का खजाना होती थी

तुम कभी

शीतल होती थी

तुम कभी

कुछ और ही होती थी

तुम अभी भी

कभी जैसी ही हो

बस वैसी ही रहना और

आगे भी

तुम कभी, तुम अभी ही रहना।

10 thoughts on “तुम्हारे लिये, तुम कभी गुलाब होती थीं…. मेरी कविता… विवेक रस्तोगी

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

  2. होती होगी तुम कभी
    नितान्‍त मेरी।
    किन्‍तु हालत
    यह है अब
    कि तुम कैसी थी,
    यह बताना पड रहा है
    सारे जमाने
    के सामने।

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