एक दिवास्वपन आया मुझे
एक दिन..
श्री भगवान ने आशीर्वाद दिया,
सारे अच्छे लोग देवता रूपी
और
उनके पास हथियार भी वही,
सारे बुरे लोग राक्षस रूपी
और
उनके पास हथियार भी वही
समस्या यह हो गई
कि
देवता लोग कम
और
राक्षस ज्यादा हो गये
तब
श्री भगवान वापिस आये
और
देवता की परिभाषा ठीक की
फ़िर
देवता ज्यादा हो गये
और
राक्षस कम हो गये,
देवताओं ने राक्षसों पर कहर ढ़ाया
और
देवताओं का वास हो गया
फ़िर
कुछ देवता परेशान हो गये
क्योंकि
राक्षस गायब हो गये
तो
कुछ फ़िर से राक्षस बन गये।
कमाल की थ्योरी है, विवेक जी!!
राक्षसों की रीसाइक्लिंग!!
क्या करें इनके बिना दुनिया चलना भी मुश्किल है, ऐसा कोई युग भी तो याद नहीं आता जब राक्षस न हों ।
अच्छे बुरे लोग हमेशा ही रहे हैं तभी तो ये दुनिया है न तो स्वर्ग या नरक होती|
बिल्कुल
राक्षस, देवता और श्री भगवान जी सब हमारी कल्पनाएँ नहीं?
कल्पनाएँ भी कह सकते हैं । पर कही ना कहीं हम इससे प्रभावित तो हैं ।
देवता भी राक्षस बन जाते हैं, माया भरमाती है..
माया महाठगिनी है ।
दुनियाँ में अच्छे बुरे दोनो तरह के लोग हमेशा से थे, हैं और रहेंगे।
These days the definition of good and evil has changed. We can no longer put one person in a clear bracket. Thought provoking poem.
बराबर रहना ए हिसाब … अपने अपने अनुसार सब रूप बदलते रहते हैं ..
चुटीला व्यंग छिपा है रचना में …
कविता की समझ मुझे नहीं है किन्तु विचार गुदगुदानेवाला लगा।