“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”

इस बार के सफ़र में हम अपने साथ आदत के मुताबिक फ़िर कुछ किताबें लेकर चले, इस बार सबसे पहली पुस्तक पढ़नी शुरू की है “रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]” और लेखक हैं डॉ. शम्भुनाथ पाण्डेय।
हमने सोचा कि हिन्दी साहित्य की बारीकियों को पढ़े हुए वाकई बहुत दिन हो गये हैं, यह किताब मैंने वर्षों पहले पढ़ी थी, अपने महाविद्यालयीन पाठ्यक्रम को अच्छे से समझने के लिये, फ़िर इसके नये नये संवर्धित संस्करण आते रहे, और कुछ वर्षों पहले इसका हमने १७ वां संस्करण लिया था, इस बार फ़िर सोचा कि अपने हिन्दी के ज्ञान को थोड़ा समृद्ध कर लिया जाये।
काम में व्यस्तता अभी जेद्दाह में कुछ ज्यादा ही है, इसी कारण ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर से दूर ही हैं, क्योंकि समय ही नहीं है, सामाजिक नेटवर्क से जुड़ने के लिये।
इस पुस्तक की भूमिका में शम्भुनाथ जी लिखते हैं, यह लघु प्रयास है, रस-अलंकार तथा पिंगल का अध्ययन शास्त्रीय विषय है; अस्तु इस बात का दावा कोई नहीं कर सकता कि विवेचन सर्वांगपूर्ण विवादों-परि तथा अन्तिम ओगा। प्रस्तुत पुस्तक में शास्त्रीय पारिभाषिक शब्दावली के स्थान पर सरल, बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया गया है जिससे विद्यार्थियों को विषय क्लिष्ट तथा नीरस न प्रतीत हो और थोड़े ही परिश्रम में समझ में आ जाये।
अति अपार जे सरित वर, जो नृप सेतु कराहि।
चढ़ि पिपीलिका हू परम लघु, बिनु श्रम पारहि जाहि॥
आगे अभी कुछ दिन हिन्दी के ऊपर ही लिखने का विचार है जो कि इसी किताब से उदघृत होगा।
पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –

“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”

काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल

शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 1 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा– 2 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 3 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 1 – रस अलंकार पिंगल

11 thoughts on ““रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”

  1. हिन्दी ना बनी रहो बस बिन्दी
    मातृभाषा का दर्ज़ा यूँ ही नही मिला तुमको
    और जहाँ मातृ शब्द जुड जाता है
    उससे विलग ना कुछ नज़र आता है
    इस एक शब्द मे तो सारा संसार सिमट जाता है
    तभी तो सृजनकार भी नतमस्तक हो जाता है
    नही जरूरत तुम्हें किसी उपालम्भ की
    नही जरूरत तुम्हें अपने उत्थान के लिये
    कुछ भी संग्रहित करने की
    क्योंकि
    तुम केवल बिन्दी नहीं
    भारत का गौरव हो
    भारत की पहचान हो
    हर भारतवासी की जान हो
    इसलिये तुम अपनी पहचान खुद हो
    अपना आत्मस्वाभिमान खुद हो …………

  2. “गुहार लगा”
    जागो जागो कब जागोगे , अन्धकार का वह लाया |
    कौन वेद बुलाकर अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाने आया ||
    आन बान शान के खातिर ,कौन गुहार लगाया |
    आरक्षण का कागद देकर ,वह भूखे पेट सुलाया ||

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